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२, 'जो वस्तु उत्तम होती है, उसका शीघ्र मिलना भी कठिन होता है। इसलिये उत्तमता की खोज में यदि कठिनता पड़े तो घबड़ाना नहीं चाहिये।'
३, 'मनुष्यों के साथ व्यवहार करने में सदा न्याय और निष्पक्षता का विचार रक्खो, और उनके साथ वैसा ही वर्ताव करो जैसा कि तुम अपने लिये उनसे चाहते हो।'
४, 'जो काम तुमको सौंपा गया है, उस को धर्म और सच्चाई से करो। उस मनुष्य के साथ कभी विश्वासघात न करो, जो तुम्हारे ऊपर भरोसा रखता है। चोरी करने की अपेक्षा विश्वासघात करना महापाप है।'
५, 'अपनी बड़ाई अपने मुह मत करो, नहीं तो लोग तुमसे घृणा करने लग जायेंगे। और न दूसरों को तुच्छ समझो, क्योंकि इसमें बड़ा भय है।'
६, 'कठिन उपहास मित्रता के लिये विष है क्योंकि जो अपनी जिह्वा को नहीं रोक सकता, अन्त में वह दुःख पाता है।'
७, 'किसी की विना परीक्षा किये उस पर विश्वास मत करो। परन्तु बिना कारण किसी को अविश्वासी भी न समझो।'
८, 'धार्मिक सत्पुरुषों को अमूल्यरत्न के समान सदा अपने पास रक्खो, या उनके पास रहो। सत्संग करना स्वजीवन को उच्चतम बनाना है।'
६, 'जो समय बीत गया वह फिर कभी न आवेगा; और जो दिन आने को है कौन जाने तुम उसे देख सकोगे या नहीं, इसलिये जो कुछ करना है उसे वर्तमान काल में करो जो बीत गया उस पर सोच मत करो, और जो आने वाला काल है उस पर भरोसा भी मत करो।'
१0, 'कोई काम कल पर न उठा रक्खो , क्योंकि ऐसा करने वालों को कल (स्वास्थ्य) कभी नहीं मिलता।'
११, 'आलस्य से दरिद्रता और दुःख उत्पन्न होता है। परन्तु परिश्रमी पुरुष दरिद्रता और दुःख को धक्का मार कर निकाल देता है।'
८० श्री गुणानुरागकुलक