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अशुभव्यापारों से रहित मन, वचन और काया इन त्रिकरण योग को जिसने स्थिर कर लिया है ऐसे योगीश्वर गाँव, नगर, अरण्य, दिवस, रात्रि, सोते या जागते सर्वत्र समभाव में रमण करते रहते हैं। कहा भी है कि-'आत्मदर्शी कुं वसति, केवल आतमशुद्धि' जो केवल आत्मनिष्ठ हुए हैं जो निज स्वरूप में ही रमण करते हैं ऐसे महात्माओं का निवास शुद्ध आत्मप्रदेश ही है अर्थात् उन्हें आत्मरमणता सिवाय निन्दा, ईर्षा, कषाय आदि अशुभ स्थानों में निवास करने की आवश्यकता नहीं है। शास्त्रकारों ने महात्माओं के लक्षण इस प्रकार लिखे हैं कि
सत्पुरुषों के लक्षणउदारस्ततत्त्ववित्मत्त्व संपन्नः सुकृताऽऽशयः। सर्वसत्त्वहितः सत्य-शाली विशदसद्गुणः।।१।। विश्वोपकारी संपूर्ण चन्द्रनिस्तन्द्रवृत्तभूः। विनीतात्मा विवेकी यः, स 'महापुरुषः' स्मृतः।।२।।
भावार्थ उदार जिनके हृदय में नीच लोगों की तरह 'यह मेरा यह तेरा' इत्यादि तुच्छ बुद्धि उत्पन्न नहीं हो और सारी दुनिया जिनके कुटुम्ब रूप हों १, तत्त्ववित्-स्वबुद्धि बल से साराऽसार, सत्याऽसत्य, हिताऽहित, कृत्याऽकृत्य, यावद् गुण और दोष की परीक्षा पूर्वक सत्यमार्ग का आचरण करते हों २, सत्त्वसंपन्न स्वपुरुषार्थ का सदुपयोग करते हों, प्रारम्भ किये हुए कार्य को पार करें और आचरित प्रतिज्ञा को अन्तः पर्यन्त निर्वाह करने वाले हों ३, सुकृताऽऽशय-जिनका आशय निरन्तर निर्मल रहता हो, किसी समय दुर्ध्यान के वशीभूत न हों ४, सर्वसत्त्वहित प्राणीमात्र का हित करने में दत्तचित्त रहते हों, और मन, वच, काया से नित्य सब का भला ही करना चाहते हों ५, सत्यशाली जो अत्यन्त मधुर हितकारी वचन बोलते हों, प्राणसन्देह होने पर भी सत्य-सीमा का उल्लंघन नहीं करते हों और राज्यादि सांसारिक पदार्थ प्राप्ति के लिये भी असत्य वचन नहीं बोलते हों ६, विशदसद्गुणी उत्तम क्षमा, नम्रता, सरलता, सन्तोष, तप, संयम, सत्य प्रामाणिकता, निस्पृहता, और ब्रह्मचर्य आदि सद्गुण
७० श्री गुणानुरागकुलक