Book Title: Granth Pariksha Part 02
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

View full book text
Previous | Next

Page 16
________________ खंडको 'मध्यमसंड' करार दिया हो और पहले जो उसके लिए 'उत्तरसंड' पंदें लिखा गया था उसका सुधार करना स्मृतिपथसे निकल गया हो । कुछ भी हो, पर इससे ग्रंथका अव्यवस्थितपना प्रगट होता है। यह तो हुई खंडांके साधारण विभागकी बात; अब उनके विषय-विभागकी अपेक्षा विशेष नामकरणको लीजिए । ऊपर उद्धृत किये हुए श्लोक नं० १ में दूसरे खंडका नाम 'ज्योतिष-खंड' और तीसरेका नाम 'निमित्तखंड* दिया है जिससे यह सूचित होता है कि ये दोनों विषय एक दूसरेसे भिन्न अलग अलग खंडोंमें रक्खे गये हैं। परंतु दोनों खंडोंके अध्यायोंका पाठ करनेसे ऐसा मालूम नहीं होता। तीसरे संडमें सिर्फ 'ऋषिपुत्रिका' और 'दीप' नामके, दो अध्याय ही ऐसे हैं जिनमें 'निमित्त' का कथन है । वाकीके आठ अध्यायोंमें दूसरी ही वातोंका वर्णन है । इससे पाठक सोच सकते हैं कि इस खंडका नाम कहाँतक 'निमित्तखंड' हो सकता है । रही दूसरे खंडकी वात । इसमें १ केवलकाल, २ वास्तुलक्षण, ३दिव्येन्दुसंपदा, ४ चिह्न और ५ दिव्योषधि नामके पाँच अध्याय तो ऐसे हैं जिनका ज्योतिषसे प्रायः कुछ सम्बंध नहीं और 'उल्का' आदि २६ अध्याय तथा शकुन ( स्वरादि द्वारा शुभाशुभज्ञान), लक्षण और व्यंजन नामके कई अध्याय ऐसे हैं जो निमित्तसे सम्बंध रखने हैं और उस अष्टांग निमित्तमें दाखिल हैं जिसके नाम 'राजवार्तिक में इस प्रकार दिये हैं: अंतरिक्ष-भौमांग-स्वर-स्वप्न--लक्षण-व्यंजन-छिन्नानि अष्टौमहानिमित्तानि ।। इस खंडके शुरूके २६ अध्यायोंको उनकी संधियोंमें दिये हुए 'भद्रबाहुके निमित्ते' इन शब्दों द्वारा निमित्ताध्याय सूचित भी किया है। शेषके अध्यायोंमें एक अध्याय (नं. ३०) का नाम ही 'निमित्त' * तीसरे खंडके अन्तमें भी उसका नाम ' निमित्तखंड ' लिखा है।

Loading...

Page Navigation
1 ... 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127