Book Title: Granth Pariksha Part 02
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

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Page 74
________________ (६६) पहले इसी संहले ग्रहयुद्ध' नामक २४वें अध्याय । शुरुमै आचुके हैं और उन्हीं नम्बरों पर दर्ज हैं । समझमें नहीं आता कि जब दोनों अध्यायांचा विषय भिन्न भिन्न था तो फिर क्यों एक अध्यायके इतने अधिक श्लोकोंको दूसरे अध्यायमें फिजूल नकल किया गया। संभव है कि इन दोनों विषयोंमें ग्रंथकर्ताको परस्पर कोई भेद ही मालूम न हुआ हो । उसे इस ' विरोध ' नामके अव्यायकोरसनेकी जसरत इस वजहसे पढ़ी हो कि उसके नामची सूचना उस विषयसूचीमें की गई है जो इस संडके पहले अन्यायमें लगी हुई है और जो पहला अध्याय अगले २३-२४ अध्यायोंके साथ किसी दूसरे व्यक्तिका बनाया हुआ है, जैसा कि पहले लेतमें सूचित किया जा चुका है और इसलिए ग्रंथकाने इस अव्यायमें कुछ लोगोंको 'ग्रहयुद्ध' प्रकरणते और वाकीको एक या अनेक ताजिक ग्रंथोंसे उठाकर रख दिया हो और इस तरहपर इस अध्यायही पूर्ति की हो । परन्तु कुछ भी हो, इसमें सन्देह नहीं कि ग्रंथतीने अपने इस कृत्यद्वारा सर्व साधारण पर अपनी सासी मूर्खता और हिमान्तका इजहार किया है। (घ) इस ग्रंथमें 'स्वम' नामका एक अध्याय नं० २६ है, जिसमें केवल स्वमका ही वर्णन है और दूसरा 'निमित्त ' नामका ३० वाँ अध्याय है, जिसमें स्वमका भी वर्णन दिया है। इन दोनों अन्यायोंमें स्वमविषयक जो कुछ व्यन किया गया है उसमें से बहुतसा कयन एक दूसरेसे मिलता जुलता है और एकके होते दूसरा बिलकुल व्यर्थ और फिजूल मालूम होता है । नमूनके तौरपर यहाँ दोनों अध्यायोंसे सिर्फ "" दो दो श्लोक उद्धृत किये जाते हैं: १-मधुरेत्रिविशेलने दिवा वा यस्य वेलनि । तत्यार्थनाशं नियतं नृतोवाप्यभिनिर्दिशेत् ॥ ४५ ॥ -अध्याय २६.. + इस.२४ वें अध्यायनें कुल ४३ लेक है।

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