Book Title: Granth Pariksha Part 02
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

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Page 115
________________ ( १०७ ) शान्ति-विधान और झूठा आश्वासन । (१८) इस संहिताके तसिरे खंडमें - 'शांति' नामक १० वें अध्याय-रोग मरी और शत्रुओं आदिकी शांति के लिए एक शांति-विधानका वर्णन देकर लिखा है कि, 'जो कोई राष्ट्र, देश, पुर, ग्राम, खेट, कर्वट, पत्तन, मठ, घोष, संवाह, वेला, द्रोणमुखादिक तथा घर, सभा, देवमंदिर बावड़ी, नदी, कुआँ और तालाब इस शांतिहोमके साथ स्थापन किये जाते हैं वे सब निश्वयसे उस वक्त तक कायम रहेंगे जब तक कि आकाशमै चंद्रमा स्थित है । अर्थात् वे हमेशा के लिए, अमर हो जायँगे - उनका कमी नाश नहीं होगा । यथा: ―― " राष्ट्रदेशपुरप्राम खेटकर्वटपत्तनं । मठं च घोषसंवाहवेलाद्रोणमुखानि च ॥ ११५ ॥ इत्यादीनां गृहाण न्व सभार्ना देववेखनाम् । वापीकूपतटाकानां सन्नदीनां तथैव च ॥ ११६ ॥ शांतिहोमं पुरस्कृत्य स्थापयेद्दर्भमुत्तमं । आचंद्रस्थायि तत्सर्वे भवत्येव कृते सति ॥ ११७ ॥ इस कथन में कितना अधिक आश्वासन और प्रलोभन भरा हुआ है, यह बतलानेकी यहाँ जरूरत नहीं है। परन्तु इतना जरूर कहना होगा कि यह सब कथन निरी गप्पके सिवाय और कुछ भी नहीं है। ऐसा कोई भी विधान नहीं हो सकता जिससे कोई कृत्रिम पदार्थ अपनी अवस्था विशेषमें हमेशा के लिए स्थित रह सके । नहीं मालूम कितने मंदिर, मकान, कुएँ, बावड़ी, और नगर - ग्रामादिक इस शांति-विधान के साथ स्थापित हुए होंगे जिनका आज निशान भी नहीं है और जो मौजूद हैं उनका भी एक दिन निशान मिट जायगा । ऐसी हालत में संहिताका उपर्युक्त कथन बिल्कुल असंभव मालूम होता है और उसके द्वारा लोंगो को व्यर्थका झूठा आश्वासन दिया गया है। श्रुतकेवली जैसे विद्वानोंका

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