Book Title: Granth Pariksha Part 02
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

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Page 116
________________ (१०८) 7 कदापि ऐसा निःसार और गौरवशून्य वचन नहीं हो सकता । अस्तु; जिस शांतिविधानका इतना बढ़ा माहात्म्य वर्णन किया गया है और जिसके विषयमें लिखा है कि वह अकालमृत्यु, शत्रु, रोग और अनेक प्रका की मरी तकको दूर कर देनेवाला है उसका परिचय पानेके लिए पाठक जरूरं उत्कंठित होंगे। इस लिए यहाँ संक्षेपमें उसका भी वर्णन दिया जाता है । और वह यह है कि ' इस शांतिविधानके मुख्य तीन अंग है- १ शांतिभट्टारकका महाभिषेक, २ बलिदान और ३ होम | इन तीनों क्रियाओंके वर्णनमें होममंडप, होमकुंड, वेदी, गंधकुटी और स्नान -- मंडप आदिके आकार- विस्तार, शोभा-संस्कार तथा रचना विशेषकां विस्तृत वर्णन देकर लिखा है कि गंधकुटीमें शांतिभट्टारकका, उसके सामने सरस्वतीका और दाहने वायें यक्ष-यक्षीका स्थापन किया जाय । और फिर, अभिषेकसे पहले, भगवान् शांतिनाथकी पूजा करना ठहराया है । इस पूजनमें जल-चंदनादिकके सिवाय लोटा, दर्पण, छत्र, पालकी, ध्वजा, चंवर, रकेवी, कलश, व्यंजन, रत्न और स्वर्ण तथा मोतियों की मालाओं आदिसे भी पूजा करनेका विधान किया है । अर्थात ये चीजें भी, इस शांतिविधानमें, भगवानको अर्पण करनी चाहिए, ऐसा लिखा है ।. 1 यथा: J भंगारमुकुरच्छत्र पालिकाध्वजचामरैः । घंटैः पंचमहाशब्दकलशव्यंजनाचलैः ॥ ५६ ॥ 'सद्गधचूर्णैर्मणिभिः स्वर्णमौक्तिकदामभिः । वेणुवीणादिवादित्रैः गीतैर्नृत्यैव मंगलैः ॥ ५७ ॥ · भगवंतं समभ्यर्च्य शांतिभट्टारकं ततः । तत्पादाम्बुरुहोपान्ते शांतिधारां निपातयेत् ॥ ५८ ॥" cc " ऊपर के तीसरे पद्यमें यह भी बतलाया गया है कि पूजनके बाद शांतिनाथके चरण-कमलोंके निकट शांतिधारा छोडनी चाहिए । यही 1 .

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