Book Title: Granth Pariksha Part 02
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

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Page 78
________________ ( ७० ) 'भगवानकी पूजा करनेवाले बतलाया है । इसके बादके दो पयोंमें लिखा है कि " जो कोई जिनेंद्रके सन्मुख ग्रहों को प्रसन्न करनेके लिए ' नमस्कारशत ' को भक्तिपूर्वक १०५ बार जपता है ( उससे क्या होता है ? यह कुछ नहीं बतलाया ) । पाँचवें श्रुतकेवली भद्रवाहुने यह सब कथन किया है । विद्यानुवाद पूर्वकी ग्रहशांतिविधि की गई । " यथा: जिनानामप्रतो योहि ग्रहाणां तुष्टिहेतवे । नमस्कारशतं भक्त्या जपेदष्टोत्तरं शतं ॥ ६ ॥ भद्रबाहुरुवाचेति पंचमः श्रुतकेवली | विद्यानुवादपूर्वस्य ग्रहशांतिविधिः कृतः ॥ १० ॥ - ११ वें पद्यमें यह बतलाया है कि जो कोई नित्य प्रातः काल उठकर विघ्नोंकी शांतिके लिए पढ़े ( क्या पढ़े ? यह कुछ सूचित नहीं किया) उसकी विपदायें नाश हो जाती हैं और उसे सुख मिलता है। इसके बाद एक पद्यमें ग्रहोंकी धूपके, दूसरेमें ग्रहों की समिधिके और तीसरे में सप्त धान्योंके नाम दिये हैं और अन्तिम पद्यमें यह बतलाया है। कि कैसे यज्ञके समान कोई शत्रु नहीं है | अध्याय के इस संपूर्ण परिचयसे पाठक भले प्रकार समझ सकते हैं कि इन सब कथनोंका प्रकृत विषय ( ग्रहस्तुति ) से कहाँ तक सम्बन्ध है और आपसमें भी ये सब कथन कितने एक दूसरेसे सम्बंधित और सुगठित मालूम होते हैं ! आश्चर्य है कि ऐसे असम्बद्ध कथनोंको भी भद्रबाहु श्रुतकेवलीका वचन बतलाया जाता है । 1 te पद्मप्रभस्य मार्तेडश्चंद्रचंद्रप्रभस्य च । वासुपूज्यस्य भूपुत्रो वुधेप्यष्टजिनेश्वराः ॥ ३ ॥ विमलानन्तधर्माण: शांतिकुंथुर्नभिस्तथा । वर्धमान जिनेंद्रस्य पादपद्मे वुधं न्यसेत् ॥ ४ ॥ वृषभा जितसुपार्श्वश्चाभिनंदनशीतलौ । सुमतिः संभवः, स्वामीश्रेयांसश्च वृहस्पतेः ॥ ५ ॥ सुविधेः कथितः शुक्रः सुव्रतस्य शनैश्वर । नेमिनाथो -भवेद्राहोः केतुः श्रीमल्लिपार्श्वयोः ॥ ६ ॥ " 1

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