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(८१) (२) दूसरे खंडके 'उत्पात' नामक १४ वें अध्यायमें लिखा है कि, यदि बाजे बिना बजाये हुए स्वयं बजने लगें और विकृत रूपको. धारण करें तो कहना चाहिए कि छठे महीने राजा बद्ध होगा (बंदिगृहमें पड़ेगा) और अनेक प्रकारके भय उत्पन्न होंगे । यथाः
" अनाहतानि तूर्याणि नदन्ति विकृति यथा ।
पटे मासे नृपो बद्धो भयानि च तदा दिशेत् ॥१६५॥ परंतु तीसरे खंडके ' ऋपिपुत्रिका ' नामक चौथे अध्यायमें इसी उत्पातका फल पाँचवें महीने राजाकी मृत्यु होना लिखा है। यथा
__ " अह गंदितरसंखा पति अणाहया विफुटंति । ____मह पंचमम्मि मासे गरवइमरणं च णायन् ॥ ९३ ।।* इससे साफ प्रगट है कि ये दोनों पय पूर्वापरविरोधको लिये हुए हैं और इस लिए इनका निर्माण किसी केवली द्वारा नहीं हुआ। साथ ही, इससे यह भी सूचित होता है कि ये दोनों पद्य ही नहीं बल्कि संभवतः ये दोनों अध्याय ही भिन्न भिन्न व्यक्तियों द्वारा रचे गये हैं।
(३) भद्रबाहुसंहिताके 'चंद्रचार ' नामक २३ वें अध्यायमें लिखा है कि 'श्वेत, रक्त, पीत तथा कृष्ण वर्णका चंद्रमा यथाक्रम अपने वर्णवालेको (क्रमशः ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्रको) सुखका देनेबाला और विपरीत वर्णके लिए भयकारी होता है । यथाः
खेतो रफश्च पीतश्च कृष्णश्चापि यथाक्रमं ॥
सवर्ण मुखदचन्द्रो विपरीतं भयावहः ॥ १६ ॥ परन्तु तीसरे खंडके उसी ऋषिपुत्रिका ' नामके चौथे अध्यायमें यह बतलाया है कि 'समानवर्णका चंद्रमा समान वर्णवालेको भय और * संस्कृतच्छायाः
'अथ नंदितूरखा नदन्ति अनाहताः स्फुटति । अथ पंचमे मासे नरपतिमरणं च ज्ञातव्यं ॥ ९३ ॥
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