Book Title: Granth Pariksha Part 02
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

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Page 105
________________ (९७) • यह वचन कितना निठुर है ! कितना धर्म शून्य है ! और इसके द्वारा • कन्याओं पर कितनी आपत्ति डालनेका आयोजन किया गया है, इसका । विचार पाठक स्वयं कर सकते हैं । समझमें नहीं आता कि किस आधार पर यह आज्ञा प्रचारित की गई है ? और लक्षण-शास्त्रसे इस कथनका क्या सम्बंध है ! क्या पैदा होते समय कन्याके मस्तकादिक किसी अंग विशेष पर उसका कोई नाम खुदा हुआ होता है जिससे अशुभ या शुभ नामके कारण वह भयंकरी समझली जाय ? और लोगोंको उससे अपना मुँह छिपाने, आँखें बन्द करने या उसे कहीं प्रवासित करनेकी जरूरत "पैदा हो ? जब ऐसा कुछ भी न होकर स्वयं मातापिताओंके द्वारा अपनी इच्छानुसार कन्याओंका नाम रक्खा जाता है तो फिर उसमें उन बेचारी अबलाओंका क्या दोष है जिससे वे अदर्शनीय और अनवलोकनीय समझी जायँ ? जिन पाठकोंको उस कपटी साधुका उपाख्यान याद है, जिसने अपनी स्वार्थसिद्धि के लिए अपनी पाशविक इच्छाको पूरा करनेके आभिप्रायसे-एक सर्वांग सुन्दरी कन्याको कुलक्षणा और अदर्शनीया कह . कर उसे उसके पिता द्वारा मंजूषमें बन्द कराकर नदीमें बहाया था, वे इस बातका अनुभव कर सकते हैं कि समय समय पर इस प्रकार के निराधार और निर्हेतुक वचन ऐसे ही स्वार्थसाधुओं द्वारा भूमंडल पर प्रचारित हुएं हैं। मनुष्योंको विवेकसे काम लेना चाहिए और किसीके कहने सुनने यां धोखेमें नहीं आना चाहिए। कूटोपदेश और मायाजाल। (१४) तीसरे खंडके 'प्रतिष्ठा-क्रम' नामक दूसरे अध्यायमें, गुरुके उपदेशानुसार कार्य करनेका विधान करते हुए, लिखा है कि:- . " यो न मन्यत तद्वाक्यं सो मन्येत न चाहतम् । जनधर्मवहिर्भूतः प्राप्नुयान्नारकी गति ॥ ८८ ॥"

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