Book Title: Granth Pariksha Part 02
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

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Page 98
________________ ( ९० ) ३ - उच्छिष्टास्पृश्यकाकादिविण्मूत्रस्पर्शसंशये । अस्पृश्यमृष्टसूर्पादिकटादिस्पर्शने द्विजः ॥ ८२ ॥ ४ - शुद्धे वारिणि पूर्वोतयंत्रमंत्रः सचेलकः । कुर्यात्स्नानत्रयं दंतजिह्वाघर्षणपूर्वकम् ॥ ८३ ॥ ५- मिथ्यादृशां गृहे पात्रे भुंके व शूद्रसद्मनि । तदोपवासाः पंच स्युर्जाप्यं तु द्विसहस्रकंम् ॥ ८६ ॥ इन पद्योंमेंसे पहले पद्यमें लिखा है कि, चारों वर्णोंमेंसे किसी भी वर्णका - अथवा मनुष्य मात्रमेंसे कोई भी क्यों न हो यदि उसने स्नान नहीं किया है तो उसे छूना नहीं चाहिए । और शूद्रोंको - कुम्हार, माली, नाई, तेली तथा जुलाहोंको - यदि वे स्नान भी किये हुए हों तो भी नहीं छूना चाहिए | ये सब लोग अस्पृश्य हैं। दूसरे पयमें यह बतलाया है कि यदि किसी मातंग श्वपचादिककी अर्थात् भील, चांडाल, म्लेच्छ, भंगी, और चमार आदिककी छाया भी शरीर पर पड़ जाय तो तुरन्त जलाशयको जाकर वस्त्रसहित स्नान करना चाहिए ! तीसरे और चौथे यद्यमें यहाँ तक आज्ञा की है कि, यदि किसी उच्छिष्ट पदार्थसे, अस्पृश्य मनुष्यादिकसे, काकादिकैसे अर्थात् कौआ, कुत्ता, गधा, ऊँट, पालतू सुअर नामके जानवरोंसे और मलमूत्र से छूजानेका संदेह भी हो जाय अथवा किसी ऐसे छान - छलनी वगैरहका तथा चटाई - आसनादिकका स्पर्श हो जाय जिसमें कोई अस्पृश्य पदार्थ लगा हुआ हो तो इन दोनों ही अवस्थाओं में दाँतों तथा जीभको रगड़कर यंत्रमंत्रोंके साथ शुद्धजलमें तीन चार वस्त्रसहित स्नान करना चाहिए !! और पाँचवें पद्य में इससे भी बढ़कर यह आदेश है कि यदि मिथ्यादृष्टियों अर्थात् अजैनोंके घर पर १'आदि' शब्दसे ज्ञान ( कुत्ता ) आदिका जो ग्रहण किया गया है वह इससे पहले "स्पृटे विण्मूत्र का कश्वाख राष्ट्रयामशू करे' इस वाक्यके आधार पर किया गया है।

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