Book Title: Granth Pariksha Part 02
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

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Page 41
________________ (३३) है कि यह ग्रंथ 'प्रतिष्ठासारसंग्रह' से पीछेका बना हुआ है। इस प्रतिछापाठ के कर्ता वसुनन्दिका समय विक्रमकी १२ वीं १३ वीं शताब्दी पाया जाता है। इसलिए यह ग्रंथ, जिसमें वसुनन्दिके वचनोंका उल्लेख हैं, वसुनन्दिसे पहलेका न होकर विक्रमकी १२वीं शताब्दीके बादका बना हुआ है। ७ पंडित आशाधर और उनके बनाये हुए 'सागारघर्मामृत' से पाठक जरूर परिचित होंगे । सागारधर्मामृत अपने टाइपका एक अलग ही ग्रंथ है। इस ग्रंथके बहुतसे पय संहिताके पहले खंडमें पाये जाते हैं, जिनमें से दो पय इस प्रकार है: धर्म यशः शर्म च सेवमानाः केप्येकशः जन्म विदुः कृतार्थम् । अन्ये द्विशो विद्म वयं त्वमघान्यहानि यान्ति नयसेवयैव ॥ ३-३६३ ॥ नियोजया मनोवृत्या सानुत्या गुरोर्मनः ॥ प्रविश्य राजवच्छश्वद्विनयेनानुरंजयेत् ॥ १०-७२ इनमें से पहला पद्य सागारधर्मामृतके पहले अध्यायका १४ वाँ और दूसरा पय दूसरे अध्यायका ४६ वाँ पय है । इससे साफ जाहिर है कि यह संहिता सागारधर्मामृत के बादकी बनी हुई है । सागारधर्मामृतको पं० आशाधरजीने टीकासहित बनाकर विक्रमसंवत् १२९६ में समाप्त किया है | इसलिए यह संहिता भी उक्तं संवत्के वादकी- विक्रमकी १३ वीं शताब्दी से पीछेकी बनी हुई है । 4 इस ग्रंथ के तीसरे खंड में, 'फल' नामक नौवें अध्यायका वर्णन करते हुए, सबसे पहले जो श्लोक दिया है वह इस प्रकार है: -- प्रणम्य वर्धमानं च जगदानंददायकम् । प्रणिधाय मनो राजन् सर्वेषां शृणु तत्फलम् ॥ १ ॥ यह श्लोक बड़ा ही विलक्षण है । इसमें लिखा है कि- 'जगत्‌को आनंद - ३

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