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ये दोनों पद्य मनुस्मृतिके सातवें अध्यायके हैं जहाँ वे क्रमशः नं० ४३ और ५६ पर दर्ज हैं।
नोपगच्छेप्रमत्तोऽपि त्रियमार्तवदर्शने ।
समानशयने चैव न शयीत तया सह ॥ ४-४२ ॥ यह पद्य मनुस्मृति के चौथे अध्यायका ४० वाँ पद्य है।
कन्यैव कन्यां या कुर्यात्तस्याः स्याद्विशतो दमः ।
शुल्कं च द्विगुणं दद्याच्छिफाश्चैवामुयाइश ॥ ८-१४ ॥ यह पद्य मनुस्मृतिके आठवें अध्यायमें नं०३६९ पर दर्ज है।
ख-परिवर्तित पध। मनुस्मृतिके सातवें अध्यायमें, राजधर्मका वर्णन करते हुए, राजाके कामसे उत्पन्न होनेवाले दस व्यसनोंके जो नाम दिये हैं वे इस प्रकार हैं:
मृगयाक्षो दिवास्वमः परिवादः स्त्रियोमदः ।
तौर्यत्रिक वृथाट्या च कामजो दशको गणः ॥ ४७ ॥ भद्रबाहुसंहितामें इस पद्यके स्थानमें निम्न लिखित डेढ़ पद्य दिया है:
परिवादो दिवास्वनः मृगयाक्षो वृथाटनम् । तौर्यत्रिकं स्त्रियो मद्यमसत्यं सौन्यमेव च ॥२-१३८ ॥
इमे दशगुणाः प्रोक्ताः कामजाः बुधनिन्दिताः। दोनों पद्योंके मीलानसे जाहिर है कि भद्रबाहुसंहिताका यह डेढ़ पद्य मनुस्मृतिके उक्त पद्य नं० ४७ परसे, उसके शब्दोंको आगे पीछे करके चनाया गया है। सिर्फ असत्य' और 'स्तैन्य ' ये दो व्यसन इसमें ज्यादह बढ़ाये गये हैं, जिनकी वजहसे कामज व्यसनों या गुणोंकी संख्या दसके स्थानमें चारह हो गई है। परंतु वैसे भद्रबाहुसंहितामें भी यह संख्या दस ही लिखी है, जिससे विरोध आता है। संभव है कि मंथकर्ताने 'तौर्यत्रिक ' को एक गुण या एक चीज समझा हो। परन्तु