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होते हैं । इस तरह पर ये ग्यारहके ग्यारह अध्याय भद्रबाहुसंहितामें नकल किये गये हैं और उनका एक अध्याय बनाया गया है। इतने अधिक श्लोकोंकी नकलमें सिर्फ आठ दस पद्य ही ऐसे हैं जिनमें कुछ परिवर्तन पाया जाता है। बाकी सब पद्य ज्योंके त्यों नकल किये गये हैं । अस्तु । यहाँ पाठकोंके संतोपार्थ और उन्हें इस नकलका अच्छा ज्ञान कराने के लिए कुछ परिवर्तित और अपरिवर्तित दोनों प्रकारके पद्य नमूनेके तौर पर उद्धृत किये जाते है:
१-यानरभिक्षुप्रयणावलोफनं भैम्डतातृतीयांशे।
फलफुमुमदन्तघटितागमय कोणायनुर्थीशे ॥२-८॥ इस पद्यमें नेत कोणके सिर्फ तृतीय और चतुर्थ अंशोंहीका कथन है। इससे पहले दो अंशोका कथन और होना चाहिए जो भद्रबाहुहितामें नहीं है। इसलिए यह कथन अधूरा है । बृहत्संहिताके ८७वें अध्यायमें इससे पहलेके एक पद्यमें वह कथन दिया है और इसलिए इस पद्यको नं. ९पर रक्सा है। इससे स्पष्ट है कि वह पद्य यहाँ पर छूटगया है। २-अवाक्प्रदाने विहितार्थसिदिः पूर्वोफदिक्चक्रफलौरथान्यत् ।
वाच्यं फलं चोत्तममध्यनीचशासास्थितायां वरमध्यनीचम् ॥ ३-३९॥ बृहत्संहितामें, जिसमें इस पयका नं० ४६ है, इस पद्यसे पहले सात पद्य और दिये हैं जो भगवाहुसंहितामें नहीं हैं और उनमें पिंगला जानवरसे शकुन लेनेका विधान किया है। लिखा है कि, 'संध्याके समय पिंगलाके निवास-वृक्षके पास जाकर ब्रह्मादिक देवताओंकी और उस वृक्षकी नये वस्त्रों तथा सुगंधित द्रव्योंसे पूजा करे। फिर अकेला अर्धरात्रिके समय उस वृक्षके अमिकोणमें खड़ा होकर तथा पिंगलाको अनेक प्रकारकी शपथं ( कसमें ) देकर पद्य नं. ४२।४२४४ में दिया हुआ मंत्र ऐसे स्वरसे पढ़े जिसे पिंगला सुन सके और उसके साथ पिंगलासे अपना मनोरथ पूछे । ऐसा कहने पर वृक्ष पर बैठी हुई वह पिंगला यदि