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हैं, ज्योंके त्यों (उसी क्रमसे) उठाकर रक्खे गये हैं। सिर्फ पहले 'पद्यमें कुछ अनावश्यक उलट फेर किया है । बृहत्संहिताका वह पद्य इस प्रकार है:___ यत्कार्य नक्षत्रे तदैवत्यासु तिथिषु तत्काय ।
करणमुहूर्तेष्वपि तत्सिद्धिकरं देवतासदृशम् ॥ ३॥ भद्रबाहुसंहितामें इसके पूर्वार्धको उत्तरार्ध और उत्तरार्धको पूर्वार्ध • बना दिया है। इससे अर्थमें कोई हेर फेर नहीं हुआ । इन छहों पद्योंके बाद भद्रबाहुसंहितामें सातवाँ पद्य इस प्रकार दिया है:
लामे तृतीये च शुभैः समेते, पापैविहीने शुभराशिलग्ने ।
वेच्यौ तु कर्णौ त्रिदशेज्यलने तिष्येन्दुचित्राहरिरेवतीषु॥ यह पय बृहत्संहिताके 'नक्षत्र' नामके ९८ वें अध्यायसे उठाकर - रक्खा गया है, जहाँ इसका नम्बर १७ है । यहाँ 'करण' के अध्यायसे । - इसका कोई सम्बंध नहीं है । इसके बादके दोनों पद्य (नं० ८-९) भी इस करण-विषयक अध्यायसे कोई संबंध नहीं रखते । वे बृहत्संहिताके अगले अध्याय नं० १०० से उठा कर रक्खे गये हैं, जिसका नाम है • 'विवाह-नक्षत्रलग्गनिर्णय ' और जिसमें सिर्फ ये ही दो पद्य हैं । इन 'पद्यों से एक पद्य नमूनेके तौर पर इस प्रकार है:
रोहिण्युत्तररेवतीमृगशिरोमूलानुराधामघाहस्सस्वातिपु पष्ठ तौलिमिथुनेद्यत्सु, पाणिग्रहः । सप्ताष्टान्त्यवहिः शुभैरुडुपतावेकादशद्वित्रिगे,
क्रूरैस्त्रयायषडष्टगैर्न तु भृगौ पष्ठे कुजे चाष्टमे ॥ ८॥ (ख) बृहत्संहितामें 'वस्त्रच्छेद ' नामका ७१ वाँ अध्याय है, जिसमें १४ श्लोक हैं। इनमें से श्लोक नं० १३ को छोड़कर बाकी सब श्लोक भद्रबाहुसंहिताके निमित्त' नामक ३० वें अध्यायमें नं० १८३ से .१९५ तक नकल किये गये हैं । परन्तु इस नकल करनेमें एक
• भद्रवाहुसंहितामें 'त्रिदशेज्य ' की जगह ' अमरेज्य ' बनाया है।