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है उस प्रकारका परिवर्तन इस अध्यायके और भी अनेक श्लोकों में पाया जाता है और इस परिवर्तनके द्वारा ग्रंथकर्ताने हिन्दुओंके इस होरा - कथनको भद्रबाहु का बनानेकी चेष्टा की है। रहा तीसरे श्लोकका परिवर्तन, वह बड़ा ही विलक्षण है । इसके मूलमें लिखा था कि 'इस प्रकार बुद्धिमान् ज्योतिषी ( कालवित्तमः ) भले प्रकार विचार करके फल कहे ' । परन्तु संहिताके कर्ताने, अपने इस परिवर्तन से, फलकहनेका वह काम मागधोंके राजाके सपुर्द कर दिया है ! और इसलिए उसका यह परिवर्तन यहाँ बिलकुल असंगत मालूम होता है । यदि विसर्गको हटाकर यहाँ ' मागधाधिपः ' के स्थान में ' मागवाधिप ' ऐसा सम्बोधनपद भी मान लिया जाय तो भी असम्बद्धता दूर नहीं होती। क्योंकि ग्रंथ में इससे पहले उक्त राजाका कोई ऐसा प्रकरण या प्रसंग नहीं है जिससे इस पदका सम्बंध हो सके ।
( ४ ) हिन्दुओं के यहाँ ' लघुपाराशरी' नामका भी एक ग्रंथ है और इस ग्रंथसे भी बहुतसे श्लोक कुछ परिवर्तन के साथ उठाकर भद्रबाहुसंहिताके अध्याय नं० ४१ में रक्खे हुए मालूम होते हैं, जिनमें से. एक श्लोक उदाहरण के तौर पर इस प्रकार है:
योगो दशास्वपि भवेत्प्रायस्सुयोगकारिणोः । दशायुग्मे मध्यगतस्तदयुक् शुभकारिणाम् ॥ ४१ ॥ लघुपाराशरीमें यह श्लोक इस प्रकार दिया है:-- दशास्वपि भवेद्योगः प्रायशो योगकारिणोः ।
दशाद्वयी मध्यगतस्तदयुक् शुभकारिणाम् ॥ १८ ॥
पाठक दोनों पद्यों पर दृष्टि डालकर देखें, कितना सुगम परिवर्तन है ! दो एक शब्दोंको आगे पीछे कर देने तथा किसी किसी शब्दका पर्यायवाचक शब्द रख देने मात्र से परिवर्तन हा गया है । लघुपाराशरीके दूसरे पद्योंका भी प्रायः यही हाल है। संहितामें उनका भी इसी प्रकाका परिवर्तन पाया जाता है ।
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