Book Title: Granth Pariksha Part 02
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

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Page 33
________________ (२५) रह जाता है । सिर्फ 'लमेशे वै' के स्थानमें 'लग्नाधिपे ' का परिवर्तन है। इस श्लोकके आगे पीछे लगे हुए उपर्युक्त दोनों आधे आधे पद्म बहुत ही खटकते हैं और असम्बद्ध मालूम होते हैं। दूसरे पद्यका उत्तरार्ध तो बहुत ही असम्बद्ध जान पड़ता है। उसके आगे इस प्रकरणके ९ पद्य और दिये हैं, जो उक्त होराके प्रकरणमें भी श्लोक नं. १ के बाद पाये जाते हैं। इससे मालूम होता है कि संहिताका यह सब प्रकरण उक्त होरा ग्रंथसे उठाकर रक्खा गया है और उसे भद्रबाहुका बनानेकी चेष्टा की गई है। इस प्रकारकी चेष्टा अन्यत्र भी पाई जाती है और इस 'पाराशरी होरा से और भी बहुतसे श्लोकोंका संग्रह किया गया है जिसका परिचय पाठकोंको अगले लेखमें कराया जायगा। ४ इस ग्रंथके दूसरे ज्योतिषखंडमें केवलकाल नामके ३४ वें अध्यायमें-पंचम कालका वर्णन करते हुए, शक, विक्रम और प्रथम कल्कीका भी कुछ थोडासा वर्णन दिया है जिसका हिन्दी आशय इस प्रकार है:___“ वर्धमानस्वामीको मुक्ति प्राप्त होनेपर ६०५ वर्ष और पाँच महीने छोड़कर प्रसिद्ध शकराजा हुआ (अभवत् )। उससे शक संवत् प्रवर्तगा (प्रवर्त्यति)। ४७० वर्षसे ( ? ) प्रभु विक्रम राजा उज्जयिनीमें अपना संवत् चलावेगा (वर्तयिष्यति)। शक राजाके बाद ३९४ वर्ष और सात महीने बीतनेपर सद्धर्मका द्वेषी और ७० वर्षकी आयुका धारक * चतुर्मुख' नामका पहला कल्की हुआ (आसीत् )। उसने एक दिन अजितभूम नामके मंत्रीको यह आज्ञा की (आदिशत् ) कि “पृथ्वी पर निर्यथमुनि हमारे अधीन नहीं हैं। उनके पाणिपात्रमें सबसे 'पहले जो ग्रास रक्खा जाय उसे तुम करके तौर पर ग्रहण करो। इस नरककी कारणभूत, आज्ञाको सुनकर मुदबुद्धि मंत्रीने वैसा ही किया

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