Book Title: Granth Pariksha Part 02
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

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Page 22
________________ अतकेवलीकाको सिद्ध करनेको बल रहे हैं, इस लि. रके कथन परसे ही सब कुछ अनुभव कर सकते हैं। परन्तु फिर भी चूंकि समाजमें घोर अज्ञानान्धकार फैला हुआ है, अन्धी श्रद्धाका :प्रबल राज्य है, गतानुगतिकता चल रही है, स्वतंत्र विचारोंका वातावरण बंद है और कुछ विद्वान भी उसमें दिशा भूल रहे हैं, इस लिए मैं सविशेष रूपसे इस बातको सिद्ध करनेकी चेष्टा करूँगा कि यह ग्रंथ भद्रबाहु श्रुतकेवलीका बनाया हुआ नहीं है। श्वेताम्बरोंकी मान्यता। परन्तु इस सिद्ध करनेकी चेष्टासे पहले मैं अपने पाठकोंको यह · बतला देना जरूरी समझता हूँ कि यह ग्रंथ (भद्रबाहुसंहिता) श्वेताम्बर सम्प्रदायमें भी भद्रबाहु श्रुतकेवलीका बनाया हुआ माना जाता है। श्वेताम्बर साधु मुनि आत्मारामजीने अपने 'तत्त्वादर्श' के आन्तिम परिच्छेदमें भद्रबाहु श्रुतकेवलीके साथ उसका भी नामोल्लेख किया है और उसे एक ज्योतिष शास्त्र बतलाया है, जिससे इस संहिताके उस दूसरे खंडका अभिप्राय जान पड़ता है जो ऊपर एक अलग ग्रंथ सूचित किया गया है । बम्बईके श्वेताम्बर बुकसेलर शा भीमसिंह माणिकजीने इसी भद्रबाहुसंहिता नामके ज्योतिःशास्त्रका गुजराती अनुवाद संवत् १९५९ में छपाकर प्रसिद्ध किया था, जिसकी प्रस्तावनामें उक्त प्रसिद्ध कर्ता महाशयने लिखा है कि: "आ भद्रवाहुसंहिता ग्रंथ अनना ज्योतिष विषयमा आद्य ग्रंथ छे. तेमना रवनार श्रीभद्रबाहुस्वामि, चौदपूर्वधर श्रुतकेवली हता. तेमनां वचनो जैनमा आप्त वचनो गणाय छे । ... श्रीभद्रबाहुसंहिता नामना ग्रंथनी महत्वता • अति छतां आ प्रसिद्ध थयेला भाषांतररूप ग्रंथनी महत्वता जो जनसमुदायने अल्प लागे तो तेनो दोष पंचमकालने शिर छे।" प्रसिद्धकीक इन वाक्योंसे श्वेताम्बरसम्पदायमें ग्रंथकी मान्यताका . अच्छा पता चलता है; परन्तु इतना जरूर है कि इस सम्प्रदायमें

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