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मी दिगम्बर सम्प्रदाय के समान, यह ग्रंथ कुछ अधिक प्रचलित नहीं है। इसी लिए श्रीयुत मुनि जिनविजयजी अपने पत्र लिखते है कि "पाटनके किसी नये या पुराने भंडार में भद्रबाहु संहिता की प्रति नहीं है। गुजरात या मारवादके अन्य किसी प्रसिद्ध भंडार में भी इसकी प्रति नहीं है। वेताम्बरेकेि भद्रवाहचरितमि उनके संहिता बनानेका मिलता है; परन्तु पुस्तक अभीतक नहीं देखी गई । "
गुजराती अनुवाद |
संहिता इस गुजराती अनुवादके साथ मूलगंध लगा हुआ नहीं है । दिया है कि " यह अनुवाद भावक हीरालाल हंसराजजीका किया हुआ है, जिन्होंने माँगने पर भी मूलग्रंथ नहीं दिया और न प्रयत्न करने पर किसी दूसरे स्थानसे ही मूलग्रंथी प्राप्ति हो सकी। इसमें समूल छापने की इच्छा रुते भी यह अनुवाद निर्मूल ही छापा गया है।" यपि इस अनुवादके सम्बंध में मुझे कुछ कहनेका अवसर नहीं है; परन्तु सर्वसाधारणकी विज्ञप्ति और हित के लिए संक्षेपसे, इतना जरूर करेंगा कि यह अनुवाद सिरसे परतक प्रायः गलत मालूम होता है। एस अनुवाद में ग्रंथके दो स्तचक ( गुच्छक) किये हैं, जिनमें पट व २१ अध्यायोंका और दूसरे में २२ अध्यायोग अनुवाद दिया है। पहले स्तवकका मिलान करनेसे जान पढ़ता है कि अनुवादक जगह जगहपर बहुत से श्लोकोंका अनुवाद छोड़ना, कुछ फन अपनी तरफसे मिलाता और कुछ आगे पीछे करता हुआ चला गया है। शुक्रचारके कथनमें उसने २३४ श्लोकों के स्थानमें सिर्फ पाँच सात श्लोकोंका ही अनुवाद दिया है । मंगलवार, राहुचार, सूर्यचार, चंद्रचार और ग्रहसंयोग अर्धकाण्ड नामके पाँच
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१ या पत्र श्रीयुत पं० नाथूरामगी प्रेमी के नाम लिया गया है ।