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(१८) .अर्थात्-'हे भगवन क्या आप कृपाकर इन समस्त यथो द्दिष्ट विषयोंका वर्णन करेंगे ! हम सब शिष्यगण तथा अन्य साधुजन उनके सुननेकी इच्छा रखते हैं।' इसके बाद प्रथमें दूसरे अध्यायका प्रारंभ करते हुए, जो वाक्य दिये हैं वे इस प्रकार हैं:
ततः प्रोवाच भगवान् दिग्वासा श्रमणोत्तमः । यथावस्थासुविन्यासद्वादशांगविशारदः ॥ १॥
भवद्भिर्यदहं पृष्टो निमित्तं जिनभाषितं । ___ समासव्यासतः सर्वं तन्निबोध यथाविधि ॥ २ ॥ ' अर्थात्-यह सुनकर यथावत् द्वादशांगके ज्ञाता उत्कृष्ट दिगम्बर साधु भगवान भद्रबाहु बोले कि 'आप लोगोंने संक्षेप-विस्तारसे जो कुछ जिनभाषित निमित्त मुझसे पूछा है उस संपूर्ण निमित्तको सुनिए । ___एक स्थानपर, इसी खंडके ३६ वें अध्यायमें पुरुषलक्षणोंके बादं स्त्रीलक्षणोंका वर्णन करते हुए यह भी लिखा है:
कन्या च कीशी ग्राह्या कीशी च विवर्जिता। कीदृशी कुलजा चैव भगवन्वक्तुमर्हसि ॥ १३६ ॥ . भद्रबाहुरुवाचेति भो भव्याः संनिबोधत ।
कन्याया लक्षणं दिव्यं दोषकोशविवर्जितम् ॥ १३७ ॥ . __ अर्थात्-हे भगवन, क्या आप कृपया यह बतलाएँगे कि ग्राह्य कन्या कैसी होती है, विवर्जिता कैसी और कुलजा किस प्रकारकी होती है ? इस पर भद्रबाहु बोले कि हे भव्यपुरुषो तुम कन्याका दोषजालसे रहित दिव्य लक्षण सुनो। इसके सिवाय इस खंडके बहुतसे श्लोकोंमें 'भद्रबाहुवचो यथा- भद्रबाहुने ऐसा कहा है-इन शब्दोंके प्रयोगद्वारा, यह सूचित किया है कि अमुक अमुक कथन भद्रबाहुके वचनानुसार लिखा गया है। उन श्लोकोंमेसे दो श्लोक नमूनेके तौर पर इस प्रकार हैं:- .
, पापासूल्कासु यद्यस्तु यदा देवः प्रवर्षति ।
प्रशांतं तद्भयं विद्याद्भद्रवाहुवचो यथा ॥ ३-६५ ।।