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मोहकी ऐसी विचित्रताका जीवंत चित्र और क्या हो सकता था।
सुरपाल राजाकी राजसभामें कितने ही दिनों तक यह वादविवाद चालु रहा। सूरिजीने मतमें अपने अद्भुत तर्कसामर्थ्य और असाधारण ज्ञानवैभवसे बौद्ध भिक्षुओको बादमे जीत लिया। बौद्धोंका मंत्रपभाव या तांत्रिक शक्ति भी हरिभद्रसूरिजीके सामने लाचार बन गई थी। 'प्रभावक चरित कार इस प्रसंगको स्मरण कराते हुए नोध करते हैं कि-'हरिभद्रसूरिजी वादमें जय प्राप्त कर लेनेके बाद अपने मन्त्रसामर्थ्यसे उस तेलकी कढाईमें बौद्ध भिक्षुओको खींच कर लाये थे, ऐसा कितनेक मनुष्योंका मानना है।' सूरिजीका शुद्धिमार्गः
हरिभद्रसूरिजीके परम गुरु आचार्य श्रीजिनभसूरिजीको इस चातका पता लगा तब उन्होने शीघ्र दो विद्वान साधुओको तैयार कर उनके कषायके उपशमके लिये तीन गाथाय देकर हरिभद्रसरिजीके पास भेजे । प्रसंगने परटा खाया । सूरिजीके उत्तप्त क्रोध पर इन गाथाओ ने शान्त रसका सुधासिंचन किया। अपने कषायकी विवशतासे आचरण किये हुए इन दुष्कृत्योंका उनके हृदयमें तीव्र पश्चात्ताप होने लगा और गुरु महाराजके पास अपने दुष्कृतोंकी आलोचना करके शुद्धिका मार्ग अपनाया और वे संयमकी तीन धार पर चलने लगे।
यह प्रसंग ' कथावली' में कुछ दूसरी तरहसे बतलाया गया है। जो कुछ हो, लेकिन हरिभद्रसूरिजीको इन शिष्योके विरहसे वडा दुःख हो आया था यह बात निर्विवाद है। इस दुःखको भूलनेके लिये