________________ द्रव्यान्तरों की उत्पत्ति नहीं होती है, क्योंकि सर्व द्रव्य स्वभाव सिद्ध हैं। उनकी स्वभावसिद्धता तो उनकी अनादिनिधनता से है, क्योंकि अनादिनिधन साधनान्तर की अपेक्षा नहीं रखता। जिस प्रकार स्वर्ण की उत्तरपर्यायरूप बाजूबन्द पर्याय से उत्पत्ति दिखाई देती है और पर्व पर्यायरूप अंगूठी पर्याय से विनाश देखा जाता है तथा बाजूबन्द और अंगूठी - दोनों ही पर्यायों में उत्पत्ति और विनाश को प्राप्त नहीं होने से पीलापन पर्याय का ध्रुवत्व देखा जाता है। - इसी विषय को आ. उमास्वामी ने भी तत्त्वार्थसूत्र में लिखा है कि - उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य से जो युक्त है वही सत् कहलाता है, जो द्रव्य का लक्षण है।' आचार्य उमास्वामी से ही पूरी तरह समानता को प्राप्त सत् का स्वरूप आचार्य देवसेन स्वामी ने भी अपने आलापपद्धति ग्रन्थ में उल्लिखित किया है कि 'सद्रव्यलक्षणम्। सीदति स्वकीयान् गुणपर्यायान् व्याप्नोति सत्। उत्पादव्ययध्रौव्ययुक्तं सत्।' अर्थात् द्रव्य का लक्षण सत् है, जो अपने गुण, पर्यायों में व्याप्त है वह सत् है। उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य से युक्त को सत् कहते हैं। सत् को ही अस्तित्व कहा गया है। उत्पाद-व्यय-ध्रौव्ययुक्तं सत्। सदद्रव्यलक्षणम्। 7/29-30 19 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org