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[२२] सब गछवाले ग्रहण करते हैं । इसलिये आषाढ चौमासीसे ठहरना सो वर्षास्थितिरूप अज्ञात पर्युषणा और मासवृद्धिके सद्भावमें २० दिने या उसके अभावमें ५० दिने ज्ञात (प्रकट) पर्युषणा करना सो वार्षिक कार्यरूप पर्युषणा समझना चाहिये । जब जैन पंचांगके अभावसे २० दिनकी पर्युषणा बंधहुई, तबसे लौकिक हरेक मास बढे तो भी ५० दिने वार्षिक कार्यरूप पर्युषणा करनेकी मर्यादा है. २१- वीश दिनकी पर्युषणा वर्षास्थितिरूप हैं या
वार्षिकपर्वरूप हैं ? भो देवानुप्रिय ! जैसे चंद्रवर्ष ५० दिनकी शात पर्युषणा वार्षिक कार्यरूप हैं, तैसेही अभिवर्द्धित वर्षमें २० दिनकी बात पर्युष. णाभी वार्षिक कार्यरूप हैं । जिलपरभी श्रावणमें वीश दिनकी ज्ञात प. र्युषणा वर्षास्थितिरूप मानोगे तो भाद्रपद भी ५० दिनकी ज्ञात पर्युः षणाभी वर्षास्थितिरूप ठहर जावेगे और वार्षिककार्य करने सर्वथा उडजावेगे. और २०दिने वार्षिक कार्य नहीं करने मगर ५०दिने करने ऐसाभी कोई प्रमाण नहीं है, और २० दिने ज्ञात पर्युषणा किये बाद पीछे एक महीनेसे वार्षिक कार्य करने ऐसाभी कोई प्रमाण नहीं है। इसलिये- जैसे ५० दिने भाद्रपदमें वार्षिक कार्य होते है, वैसेही २० दिने श्रावणमेभी वार्षिक कार्य होते हैं । और वर्तमानमें श्रावण भाद्रपद बढे तो भी दूसरे श्रावणमे या प्रथम भाद्रपदमें ५० दिने वार्षिक कार्यरूप पर्युषणा करना जिनाशानुसार है। २२- वार्षिक कार्य १२ महीने होवें या १३ महीने होवें?
पहिलेभी जैसे २० दिने श्रावणमें वार्षिक कार्य करतेथे तब आवते वर्ष भाद्रपद तक १३ महीने होतेथे, तैसेही वर्तमानमेंभी ५० दिने दूसरे श्रावणमे या प्रथम भाद्रपदमें वार्षिक कार्य होनेसे आवते वर्ष १३ महीने होते हैं. इसमें कोई दोष नहीं है, देखिये-दो पौष, दो
आषाढ, या दो आसोज होनेसेभी १३महीने प्रत्यक्षमें होते हैं। इस लिये महीना बढे तबतो पहिले या पीछे १३ महीनोंके २६ पाक्षिक प्रतिक्रमण सबकोही होते हैं । और जैनमें या लौकिको १२ महीनोंके या १३ महीनोंके दोनों वर्ष माने हैं, इसलिये १२ महीनेभी वार्षिक कार्य होवें. और १३ महीनेभी वार्षिक कार्य होवे, यह कोई नवीन बात नहीं है। किंतु अनादि प्रवाह ऐसाही है। जिसपरभी १३
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