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( १२ )
भावकुतूहलम् -
[ लमचिह्नाध्यायः ]
चतुर्थ स्थानमें शुक्र राहु, लग्नमें शनि अथवा मंगल हो तो पैरके नीचे अथवा पैरपर चिह्न होवे, यह बांये पैर यद्वा पैर के बांये ओर कहना ॥ ९ ॥
व्यये गुरौ विधौ भाग्ये लाभारि सहजे बुधे ॥ गोलकं गुदमध्यस्थं व्रणं वा प्रवदेद्बुधः ॥ १० ॥ बारहवें भाव में बृहस्पति, नवममें चंद्रमा, तथा ११ । ६ । ३ मेसे किसी में बुध हो तो (गुदा) मलद्वार में गोलाकार चिह्न अथवा (व्रण) किसी प्रकारका दाग पंडित कहै ॥ १० ॥
भ्रातृ-मातृनाशयोगः ।
दिनपतौ नवमे हरिभे यदा सहजहानिरवश्यमिहाङ्गिनाम् ॥ धनगते रविजे तनुगे गुरावगुरुमे जननी नहि जीवति ॥ ११ ॥
जिस मनुष्य के जन्म में सूर्य नवम सिंहका हो तो अवश्यमेव उसके भाइयों के हानि होवे और दूसरा शनि लग्न में बृहस्पति निर्बल नीच शत्र राशि अंशकादिकोंमें अथवा अस्तंगत पापपीडित हो तो उस बालकेकी माता नहीं बचै ॥ ११ ॥
सहजसुखविचारः ।
सुरगुरौ धनभावगते यदा कुजयुते शशिनापि च जन्मिनाम् ॥ अग्रयुते सहजे सहजासुखं निगदितं यवनैः प्रथमोदितम् ॥ १२ ॥
बृहस्पति धनभाव में मंगल तथा शनिसे युक्त हो और तीसरा भाव राहुसे युक्त हो तो भाइयों का सुख न हो प्रत्युत आतृपक्षीय ( असुख ) क्रेश होवें, अथवा सहजा बहिनीका सुख अर्थात् बहिन si भाई न हों यहभी अर्थ है यह योग यवनोंने पूर्वचार्य संमतिसे कहा है ॥ १२ ॥
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