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भावकुतूहलम् ।
[ स्त्रीसामुद्रिक:
लोहितेन तिलकेन मण्डितं सुभ्रुवो हि कुचमण्डलं यदा । जायते किलसुताचतुष्टयं बालकत्रयमुदीरितं तदा ॥ १०८ ॥
जिस सुभ्रू स्त्रीके स्तनमंडलमें लाल रंगका तिल हो तो उसके चार कन्या और ३ पुत्र होवें यह पूर्वशास्त्रों में कहा है ॥ १०८ ॥ वामकुचेऽरुणलाञ्छनं शुभदृशस्तिलकं कमलप्रभम् । प्रथमतस्तनयं परिसूय सा कृतिवरं विधवा तदनन्तरम् ॥ १०९ ॥
भवति
जिस सुभ्रू स्त्रीके वामस्तनमें लालरंगका लांछन हो वह प्रथम युवावस्थामें गुणवान् पंडित पुत्रको उत्पन्न करके विधवा होजावै १०९ लसति बालमधुव्रतसन्निभं शुभदृशस्तिलकं गुददक्षिणे । नरपतेरबला कमलालया नृपमपत्यमरं जनयेदलम् ॥ ११० ॥
जिस सुन्दर भूकुटवालस्त्रिकि छोटे भ्रमरांक समूह समान रंगका (कृष्ण) तिल गुदद्वार के दाहिने हो वह राजा की स्त्री हो उसके घरमें लक्ष्मी वास रहै तथा उसका पुत्र भी निश्चय राजाही होवे ॥११०॥ मशकोऽपि च नासिकाग्रगामी सुदृशी विडुमकान्ति रर्थदायी । अलिपक्षनवाभ्ररूपधारी पतिहन्त्री किल पुंश्चली विशेषात् ॥ १११ ॥ जिस सुनेत्रा स्त्रीके नासिकाके अग्रभागमें लाल रंगका मसा हो तो धन देता है। यदि वही, मसा भ्रमरपक्ष यद्वा नवीन मेघके रूपको धारण किये हों तो पतिको मारती है विशेषतः व्यभिचारिणी होती है ॥ १११ ॥
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