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द्वादशः १२
भाषाटीकासमेतम् ।
( ११९ )
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हीनरवः ॥ अतिगौरतनुः खलु दीर्घहनुः सुतरामरिभीतियुतो मनुजः ॥ १ ॥
जन्म समय में बृहस्पति शयनावस्था में हो तो मनुष्य बलवान् हुये भी स्वरहीन (अल्प आवाजवाला ) होवे, शरीर अति गौरवर्ण, ठोडी लंबी होवे, शत्रुका भय निरंतर बना रहे ॥ १ ॥ उपवेशं यदि गतवति जीवे वाचालो बहुगर्वपरीतः ॥ क्षोणीपतिरिपुजनपरितप्तः पदजंघास्यकरवणयुक्तः ॥ २ ॥
बृहस्पति यदि उपवेशावस्थानमें हो तो बडा वाचाल, बडे गर्व (घमंड) से भरा होवे तथा राजा और शत्रुसे सर्वदा संतापयुक्त रहे और पैर, जंघा, मुख, हाथोंमें व्रण ( घाव ) रहा करें ॥ २ ॥ नेत्रपाणौ गते देवराजार्चिते रोगयुक्तो वियुक्तो वरार्थश्रिया ॥ गीतनृत्यप्रियः कामुकः सर्वदा गौरवर्णो विवर्णोद्भवप्रीतियुक् ॥ ३ ॥
बृहस्पति नेत्रपाणि अवस्था में हो तो मनुष्य रोगयुक्त रहे, श्रेष्ठ धन एवं शोभासे रहित रहे । गीत नाचको प्रिय माने सर्वदा अतिकामी रहे, गोरा रंग शरीरका होवे, विवर्णोद्भव अर्थात् विजातीय मनुष्योंसे प्रीति रक्खे ॥ ३ ॥
गुणानामानन्दं विमलसुखकन्दं वितनुत सदा तेजःपुत्रं व्रजपतिनिकुञ्जं प्रति गमम् ॥ • प्रकाशं चेदुच्चैर्द्वतमुपगतो वासवगुरुगुरुत्वं लोकानां धनपतिसमत्वं तनुभृताम् ॥ ४ ॥ बृहस्पति प्रकाशावस्थामें हो तो मनुष्यको गुणोंके आनंदवाला, निर्मल सुखका भाजन करता है, सर्वदा तेजपुंजके सदृश
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