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(१२८) भावकुतूहलम्- [ ग्रहावस्थाफलमउत्तम षड्रसोंसे संयुक्त मिले, नेत्रोंकी दृष्टि मन्द (अल्प) होवे, अज्ञान एवं मोहरूप तापोंसे संतप्त बुद्धि रहे ॥९॥
नृत्यलिप्सागते मन्दे धमात्मा वित्तपूरितः॥ राजपूज्यो नरो धीरो महावीरो रणाङ्गणे ॥ १०॥
शनि जिसका नृत्यलिप्सा अवस्थामें हो वह धर्मात्मा तथा धनसे परिपूर्ण होवै, राजासे पूजा (आदर) पावै, बडा धैर्यवान् होवै और रणभूमिमें बडी वीरता करनेवाला होवै ॥ १० ॥
भवति कौतुकभावमुपागते रविसुते वसुधावसुपूरितः ॥अतिसुखी सुमुखीसुखपूरितः कवितयाऽमलया कलया नरः॥ ११॥
शनि कौतुकावस्थामें हो तो मनुष्य भूमि एवं धनसे संपन्न रहे, अतिसुखी होवै,सुरूपा स्त्रीके सुखसे पूर्ण रहे और निर्मल कविताकी कलासे पूर्ण रहे अर्थात् कविता जाने तथा कवितारसज्ञ होवै ॥११॥ निद्रागते वासरनाथपुत्र धनी सदा चारगुणैरुपेतः ॥ पराक्रमी चंडविपक्षहंता सुवारकांतारतिरीतिविज्ञः१२॥
शनि निद्रा अवस्थामें हो तो मनुष्य सर्वदा धनवान होवै, उत्तम गुणोंसे युक्त रहे, पराक्रम करनेवाला होवै, बडे प्रचंडशत्रुओंकोभी मारडाले,सुंदर वारांगनाओंके साथ रति (रमण) की विधि जाने १२
अथ राहोः प्रत्यवस्थाफलानि ॥ गदागमो जन्मनि यस्य राहो केशाधिकत्वं शयनं प्रयाते ॥ वृषेऽथ युग्मेऽपिच कन्यकायामजे समाजो धनधान्यराशेः॥॥ जिसके जन्ममें राहु शयनावस्था हो उसको रोगकी प्राप्ति होवे और नानाप्रकारके क्लेश होवें । यदि उक्त अवस्थाका राहु
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