Book Title: Bhavkutuhalam
Author(s): Jivnath Shambhunath Maithil
Publisher: Gangavishnu Shreekrushnadas

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Page 178
________________ सप्तदशः १७] भाषाटीकासमेतम् । (१६९) पुण्यादि कृत्य, दशमेशकी दशामें धन एवं राजाका आश्रय मिलताहै, लाभेशकी दशामें लाभ, व्ययेशकी दशामें रोग, धननाश, बहुतसे कष्ट होते हैं इस प्रकार साधारणफल पूर्वाचार्योने लग्नेश आदियोंके शरीरधारियोंको कहे हैं ॥२६॥ भावाधिपो बलयुतो निजगेहगामी तुङ्गत्रिकोणशुभवर्गगतोपि पूर्णम्॥जन्तोः फलं किल करोति यदारिनीचस्थानस्थितोऽशुभफल विबलो विशेषात्॥ २७॥ इति भावकुतूहले दशाफलाध्यायः ॥ १६॥ जिस भावका स्वामी युक्त होकर अपनी राशि, अपने उच्च मूल त्रिकोण, शुभग्रहोंके अंशादि वर्ग आदिमें हो वह दशोक्त पूर्णफल तो निश्चय देताहै, यदि शत्रुगृह, नीचराशि आदिमें होनेसे निर्बल हो तो विशेषतः अशुभफल देताहै ॥ २७ ॥ इति भावकुतूहले माहीधरीभाषाटीकायां दशाफलाऽध्यायः॥ १६ ॥ सप्तदशोध्यायः॥ अथ ग्रहाणां गर्वितादिभावाऽध्यायः। कोणे तुंगगृहे गतो निगदितः खेटस्तदा गर्वितो मित्रः गुरुसंयुतोपि मुदितो मित्रेण युक्तेक्षितः ॥ पुत्रस्थानगतोऽगुभौमरविजाकैः संयुतो लज्जितः पापारिग्रहवीक्षितो हिरविणा संक्षोभितः कीर्तितः॥ अब ग्रहोंकी गर्वितादि दशा कहते हैं-कि, जो ग्रह अपने मूल त्रिकोण वा उच्चमें हो वह गर्वित कहाताहै,मित्रराशिवाला तथा बृहस्पतिके साथवाला तथा अपने मित्रसे युक्त वा दृष्ट भी मुदित होता है। और पंचमस्थानमें स्थित एवं राहु, मंगल, सूर्य, शनिसे युक्त लजित, पापग्रह अथवा शत्रुसे दृष्ट वा सूर्यसे दृष्ट ग्रह शोभित कहाताहै ॥ १॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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