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मावकुतूहलम् ।
विशेषोऽत्र
ग्रहावस्थाविधानतः॥सामुद्रिकविचारैश्च प्रदृश्यते ॥ ३ ॥ अतो मया प्रकटितं लौकिक्या भाषया भुवि ॥ वेणीमाधव संतुष्टयै ग्रंथा भूयात्समर्पितः॥ ४ ॥
भाषाकारका समर्पण है कि, विक्रमार्क संवत् १९४९ में महीधर शर्मा ब्राह्मणने राजधानी टीहरी नगर (जिला गढ़वाल) ने पाठक बालकोंकी मन प्रसन्नता के हेतु इस फलितग्रंथ भावकुतूहलका विवरण भाषा में किया इस भाषामें जो कुछ गलती हो उसे विद्वान लोग क्षमा करें ॥ १॥ जातकों (जन्मफलों) में बृहज्जातक, ताजिकों ( वर्षफलों) में प्रश्नसहित नीलकंठी, ज्योतिषके फलप्रकरणमें शिरोमणि है इनको मैंने भाषाटीका करके लोकोपकारार्थ प्रकट कर दिया कि, जिससे अन्य ग्रंथोंमें श्रम करनेकी आवश्यकता नहीं थी ॥ २ ॥ यह ग्रंथ तो जातकलक्षणोंसे संपन्न नहीं परंच इसमें ग्रहोंकी अवस्थाओंके तथा सामुद्रिक लक्षणोंके विचार विशेष होनेसे इसकी विशेषता देखने में आई || ३ || इससे मैंने इसको देशभाषामें टीका करके संसार में प्रकट किया यह ग्रंथ मेरा वेणीमाधवकी प्रसन्न - ताके अर्थ समर्पित होवे ॥ ४ ॥ शुभम् ॥
॥ समाप्तोऽयं ग्रन्थः ॥
पुस्तक मिलनेका ठिकाना
गङ्गाविष्णु श्रीकृष्णदास, "लक्ष्मीवेङ्कटेश्वर " स्टीम्-प्रेस, कल्याण-बम्बई.
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
खेमराज श्रीकृष्णदास, "श्रीवेंकटेश्वर" स्टीम-प्रेस,
बम्बई.
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