Book Title: Bhavkutuhalam
Author(s): Jivnath Shambhunath Maithil
Publisher: Gangavishnu Shreekrushnadas
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विध ज्योतिष 15 76 169 Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat 2354 www.umaragyanbhandar.com Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ श्रीः॥ भावकुतूहलम्। । HalfT85ASS+6 श्रीमैथिलगणकशंभुनाथात्मजगणक जीवनाथविरचितम् । %A4 टिहरीनिवासिपण्डितमहीधरकृत-- भाषाटीकासमेतम्। गंगाविष्णु श्रीकृष्णदास, मालिक-" लक्ष्मीवेंकटेश्वर " स्टीम् प्रेस, कल्याण-बम्बई SSSSSSSHADKA संवत् १९८७, शके १८५२. कारागामाचावागावातावानारमानानानानानानानानामा नाकामारकचालनकारक मारमा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुद्रक और प्रकाशकगंगा विष्णु श्रीकृष्णदास, मालिक - "लक्ष्मीवेङ्कटेश्वर " स्टीम- प्रेस, कल्याण - बंबई. सन् १८६७ के आक्ट २५ के व मुजब रजिष्टरी सब हक्क प्रकाशकने अपने आधीन रखा है. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना | जब कि, यवन बादशाहों के महान् अत्याचार से बलात्काररूपी घोर राहु अपने तीव्र तिमिर से भारतभण्डार के विमल सूर्यरूपी सुग्रन्थ ज्योतिषविद्याको चारों ओर से आच्छादित कर रहा था, बडे बडे त्रिकालज्ञ ऋषि मुनीश्वरोंके प्रणीतग्रंथ बलवान् मुसलमान अभिकुंड में हवन कररहे थे, जिन ग्रन्थोंके अवलंबसे ज्योतिषी त्रिकालज्ञ कहलाते थे, ऐसी अपूर्व घटनाको अवलोकन कर उससे पार पानेके हेतु 'जीवनाथनामा ज्योतिबिंदू ' जो उस कालमें परमसिद्ध पुरुष कहलाते थे, ज्योतिषविद्या में अद्वितीय ज्ञान होनेसे लोग उनकी जिह्वा में सरस्वतीका वास बतलाते थे, उन्होंने यह निर्मल शब्दरूपी अमृतपुंज से "भावकुतूहल " ज्योतिष फलादेशरूपी धारा निकाली है, इसमें निमम होने (पढने ) से मनुष्य सर्वज्ञाता हो सकता है, तीनों कालकी बातको जान सकता है, उत्तम रोतिसे कुण्डलीका फलाफल कह सकता है. यह ग्रन्थ संस्कृत में होनेसे सबके समझमें नहीं आता था इसलिये अनभिज्ञ बालकोंके प्रसन्नार्थ ढीहरी ( गढवाल ) निवासी ' महीधर ' नामा ज्योतिषी निर्मित अत्युत्तम भाषाटीकासहित इसे अपने " श्रीवेङ्कटेश्वर " स्टीम -- प्रेस में मुद्रित कर प्रसिद्ध करता हूं । अवकी बार तृतीयावृत्ति में फिर भी बृहज्जातकादि ग्रन्थों के आश्रय से शास्त्रि योंसे भली भांति संशोधन कराय मुद्रित कर प्रकाशित करताहूं. आशा है कि अनु ग्राहक ग्राहक इसे ग्रहण कर स्वयं लाभ उठावेंगे और मेरे परिश्रमको सफल करेंगे। (( आपका कृपाकांक्षी - खेमराज श्रीकृष्णदास, श्रीवेङ्कटेश्वर ” स्टीम्–यन्त्रालयाध्यक्ष - मुंबई. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ S$8 88888888 868$888 Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat R888889 $$$$ RESSSSSSSSSS www.umaragyanbhandar.com Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विषय. ... मंगलाचरणम् . प्रन्थकर्तुः प्रविज्ञा द्वादश भावसंज्ञा राशिस्वामिनः ... प्रमेयादिकथनम् ग्रहमैत्र्यादिचक्रम् प्रहोचनीचकथनम् षड्वर्गसाधनम् .... नवांशगणना षड्वर्गसाधनचक्रम् त्रिशांशन्यास: ग्रहदृष्टिविचारः राशीनां चरादिसंज्ञा राशिभेद चक्रम् ..... प्रथमोऽध्यायः । .... पित्रारिष्टम् मात्रारेष्टम बालकस्यारिष्टविचार: || 7: 11 अथ भावकुतूहल विषयानुक्रमणिका । .... ... 9000 ... भ्रष्टम् 0000 मातुलारिष्टम् पुत्रहानियोगः ... स्त्रीहानियोगः .... ०.०९ 8000 ... ... ... 000F द्वितीयोऽध्यायः । ... जातकचिह्नज्ञानम् जन्मलग्न निश्चयाय चिह्नज्ञानम् भ्रातृ - मातृनाशयोगः सहजसुखविचारः भ्रातृनाशयोगः ... 06.0 ... .... तृतीयोऽध्यायः । 993. 0000 चतुर्थोऽध्यायः । 800 ... .... 0000 ... .... ०.०९ .... २ . ३ .... ४ ... .... ... 73 .... ५ ... 39 ... 59 ६ ७ ... ... 39 ...") पृष्ठ | विषय .... 39 ९ ... ९. ... ..... १० १२ 0000 ... gg 0000 ... ... 0.4 ... 29 ... 33 | अरिष्टभङ्गविचारः ... 33 .... १८ श्रीछत्रयोगः Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat पंचमोऽध्यायः । | पुत्रकारकयोगः सन्तानसंख्या विचार: सुतहानियोगः पुत्रप्राप्त्यप्राप्तिविचारः नपुंसकयोगः ... पुत्रसुखाभाव योगः षष्टिवर्षादूर्ध्व पुत्रप्राप्तियोगः त्रिंशद्वर्षादूर्ध्व पुत्रप्राप्तिः सन्तानाभावयोगः पुत्रार्थ देवतोपासना षष्ठोऽध्यायः । १३ नृपमुकुटयोगः सामान्यराजयोगः शत्रुत्रासकरयोगः १३ प्रतापाधिकयोगः सुखैश्वर्यादियुक्तयोगः ... सार्वभौमराजयोगः अत्युत्कृष्टराजयोगः सिंहासनयोगः . चतुश्चक्रयोगः .. एकावलीयोग:... शत्रु विजययोगः ... १७ कुबेर तुल्यराजयोगः केवलनृपबालकविचारः १९ अनफादियोगः 0000 0000 सप्तमोऽध्यायः । .... ... 0.00 ... ... ... .... 0000 130 ... .... ... .... .... 9336 नृपबालानां सुखादियुक्तयोगः चन्द्रयोगः ... ... ་་་་ 0000 8000 पृष्ठ. ... ... ... 39 .... २४ 0000 39 २५ 9000 39 **** 99 ... ... 29 0000 २८ .... ३२ ३३ १९ ... २२ २३ ... " ... ... 99 ;; 4900 : .... 95 २७ ... ... .... 39 ... ३४ ३५ .00 39 ३६ = .... 39 ३८ ४० .... 93 ... ४१ ४२ www.umaragyanbhandar.com Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२) विषय. अनफायागफलम् स्वन फायोगफलम दुरुधरायोगफलम् केमद्रुमयोगः केमद्रुमभङ्गः हृदयोगः फणियोगः काकयोगः दरिद्रयोगः हुताशनयोगः राजयोगभङ्गविचारः .... 1984 शुक्रराशौ बुधराशी चंद्रराशी 0000 1000 9008 .... .... राजयोग चिह्नम् यवचिह्नफलम् ... परमलक्ष्मीप्राप्तिचिह्नम् अखण्डलक्ष्मीप्राप्तिचिह्नम तिललक्षणम् 0000 .... 0000 अष्टमोऽध्यायः । 0086 100 0000 6000 001 0000 900 ... 9000 n .... नवमोऽध्यायः । .... .800 .... 0030 6000 1986 ... ... .... ... **** भावकुतूहल पृष्ठ. । विषय. ४२ | सूर्यराशौ ४३ गुरुराशौ शनिराशौ अन्ययोगाः अष्टमभावविचारः पुत्रभावविचारः विषयोगाः 909 ... .... .... 55 .... 39 .... ४४ ... 39 जातकम् सौभाग्यादिस्थानसंज्ञा सुभगादुर्भगायोगः पुंश्चलीत्वादियोगः पतिव्रतायोगः . त्राणां राजयोगाः .... सप्तमे प्रत्येक प्रहफलानि अन्ययोगाः वैधव्ययोगाः बालविधवायोगः मातृसहितव्यभिचारिणीयोगः ... 39 प्रहरा शिवशेन प्रत्येक त्रिंशांश फलानि.... ६० तत्रादौ भीमराशौ [... " : : : : ... ... 39 [...]] " ... ... ... ४७ 1000 33 ... **** 32 ... ... ... ४५ विषाख्यालक्षणम् ४६ **** 27 6000 ४८ ... .... ४९ ... 39 ... ५० ... 93 ५१ ५३ ५६ ५७ ५९ *** 33 0000 ... 39 0000 37 .... ६१ 0000 Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat 1000 विषयोगभङ्गः वैधव्यभङ्गोपायः ... पादतललक्षणम् गमन लक्षणम् लिष्टांगुलीलक्षणम् 'नखलक्षणम् पदतलम् 6960 ... ५२ नितम्बलक्षणम् योनिलक्षणम् नाभिलक्षणम् उदरलक्षणम् उरो लक्षणम् स्तनलक्षणम् स्कन्धलक्षणम् | बाहुमूललक्षणम् करांगुष्ठम् पाणितललक्षणम् गुल्फलक्षणम् पाष्णिलक्षणम्... जंघालक्षणम् रोमकूपलक्षणम् जानुलक्षणम् कटिलक्षणम् 0000 .... 000 दशमोऽध्यायः । कन्यायाः शुभाशुभांगलक्षणानि ... .... .... ... 0.0 200 0000 कर पृष्ठलक्षणम्..... कररेखा ... Det ... .... .... **** ... ... .... ... ... ... ... .... ... ... ... ... 9000 ... .... 800 .... 9000 .... ... ... ... ... .... " .... ... 39 ... 99 **** :: ... ... 39 0000 ... ... ... 99 ... पृष्ठ. ६१ ... ६२ ०००० १३ ६३ ... 39 ... ६४ ६५ .... 33 .... ६५ ६६ ६७ ... ६८ .... " .... ... " .... ७० ... 39 ... 2 ... 33 ६९ 33 .... ७५ ७६ ܺ ७१ ७३ ... "" = ७७ ... 19 ... 39 ७८ 1900 39 www.umaragyanbhandar.com Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विषय. अंगुलिलक्षणम्.... नखानि पृष्ठलक्षणम् कण्ठलक्षणम् प्रीवा - लक्षणम् .. नुलक्षणम् आष्ठलक्षणम् दन्तलक्षणम् जिह्वालक्षणम् तालुलक्षणम् धूलक्षणम् कर्णलक्षणम् ... 0000 ... कुनावस्था बुधावस्था गुरोरवस्था ... ... कण्ठमूलम् स्मितलक्षणम् नासिका लक्षणम् नेत्रलक्षणम् पक्ष्मलक्षणम् 2000 ... .... ... 0000 ललाटलक्षणम् केशलक्षणम् तिलम शकादि शुभाशुभलक्षणहेतुः सुरेखाफलम् कुलक्षणा फलम् ... कुलक्षणशान्त्युपायः ... .... ... 0000 .... 0800 ... .... ... 0000 .... 0.00 ... 9388 ... ... .000 ... .... 9000 9000 एकादशोऽध्यायः । शयनादिद्वादशावस्थाविचार: अवस्थापरिज्ञानम् स्वरशास्त्रमतेन स्वरांकचक्रम् अवस्थाला सूर्यावस्था चन्द्रावस्था DOR .... .... .... ... .... .... विषयानुक्रमणिका । ... पृष्ठ, .... ... 37 .... *** 5 ... ... " ... ८४ ८५ त्रिपय. ८१ शुक्रावस्था शरवस्था ८२ ... ... 39 .000 ... 39 .... 33 ... : : : : ८३ विशेषफलानि .... 39 .... ८८ ८९ .... ... ८६ [...]] " ... 35 ... " 0868 ... 944 ... "" 0000 35 ... ... 99 चन्द्रस्य 1000 ८७ भौमस्य फलम् ... ९८ ९९ बुधावस्थाफलानि गुरोरवस्थाफलम् शुक्रस्यावस्थाफलम् शनैः प्रत्यवस्थाफलानि राहोः प्रत्यवस्थाफलानि ९१ केतरोवस्थाफलानि 0000 99 १०० Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat 09.0 राहु केत्वोरवस्था ... 39 ... ... 39 0000 पुत्रसुखयोगः अपमृत्युयोगः .... अधिकृत तीर्थकृत मृत्यु योगी पुण्यक्षेत्रलाभयोगः 4465 दीप्ताद्यवस्थाः दीप्तग्रहफलम् .... द्वादशोऽध्यायः । ग्रहाणां प्रत्येकावस्थाफलानि तत्रादौ सूर्यस्य 1800 BOGO ... .... ९५ ९६ ग्रहाणां बालाद्यवस्थाफलानि ... 0000 ... 6836 0000 8000 .... 4. ... त्रयोदशोऽध्यायः । ... 0400 .... आयुस्थान मारकस्थानकथनम् मृत्युनिश्चयः राजयोगाः १०१ धनिक योगाः स्थिर लक्ष्मयोगः १०२ दरिद्रयोगाः ऋणीयोग: .... चतुर्दशोऽध्यायः। | शनेः मारकत्वनिरूपणम् . |भवनाधिपानां शुभाशुभसंज्ञा अल्पायुर्भावादिविचारः 9004 ... 0004 404 0000 0800 ... ( ३ ) पृष्ठ. ... 33 ... .... ... " .... ... 39 1296 ... 39 .... ... 1000 ... 39 ... ... ... १०२ ... १०३ .... १०४ 1000 १०५ ... 33 .... १०६ ... १०९ ११२ ११५ ११८ १२२ १२५ १२८ १३१ १३४ ... 39 **** 39 १३५ १३७ 1000 35 १३९ .... 39 १४० १४३ ... 99 १४४ www.umaragyanbhandar.com Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - - - - ... १६४ भावकुतूहल-विषयानुक्रमणिका। विषय. पृष्ठ. | विषय. पञ्चदशोऽध्यायः। केतुदशाफलम् ... ... भावविचारः . ... १४५/ शुक्रदशाफलम् ... सत्र तनुभावविचारः उच्चगतग्रहदशाफलम् धनभावविचारः... स्वक्षेत्रगतदशाफलम मृतीयभावविचारः | मित्रक्षेत्रगतग्रहदशाफलम् ... चतुर्थभावविचारः रिपुराशिस्थग्रहदशाफलम् ... पंचमभावविचारः रोगेशदशाफलम् अरिभावविचारः अष्टमेशदशाफलम् ... ..." सप्तमभावविचारः व्ययेशदशाफलम् अष्टमभावविचारः सप्तमेशदशाफलम् नवमभावविचारः अस्तङ्गतग्रहदशाफलम् दशमभावविचारः | चन्द्रबलानुसारेणग्रहदशाफलम् आयभावविचारः | बलानुकूलदशाफलम व्ययभावविचारः भावाधीशानां बलानुसारफलम् ..." षोडशोऽध्यायः। सप्तदशोऽध्यायः। सूर्यादिग्रहाणां विंशोत्तरीदशा ...... १५९/ ग्रहाणां गर्वितादिभावाऽध्यायः ... १६९ दशाभुक्तभोग्यानयनम् ... अन्तर्दशा-विदशाकरणम् ... | गर्वितादिभावफलम् दशाफलानि । तत्रादौ सूर्यस्य १६१ गार्वतदशाफलम्... चन्द्रस्य फलानि... | मुदितग्रहदशाफलम् भोमस्य फलानि... १६२ लजितग्रहदशाफलम् राहोः फलानि ... | क्षोभितग्रहदशाफलम् गुरुदशाफलम् ... क्षुधितग्रहदशाफलम् शनिदशाफलम् ... -. १६३/ तृषितग्रहदशाफलम् बुधदशाफलम् ... ... ..." प्रियकतृप्रशा | ग्रंथकर्तृप्रशंसा ... ... ... १७३ . इति भावकुतुहलविषयानुक्रमणिका समाप्ता । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥श्रीः॥ अथ भावकुतूहलम्। भाषाटीकासमेतम् । PERSOil प्रथमोऽध्यायः॥ श्रीगणेशाय नमः॥ मंगलाचरणम् । महः सेतुं हेतुं सकलजगतामङ्कुरतया सदा शंभोरम्भोभवभवभयत्राणजनकम् ॥ अहं वंदे तस्यासुरसुरमनोमोदनिकरं चिदानन्दं पादामलकमललावण्यमधिकम् ॥ १॥ प्रणम्य कान्तां परमस्य पुंसो हृदजसंस्था परदेवतां ताम् ॥ करोति भाषामथ बालतुष्टयै महीधरो भावकुतूहलीयाम् ॥ १॥ भाषाकार ग्रंथादिमें मंगलाचरणरूप प्रणाम करताहै-कि, परम पुरुष, परमात्माकी कांता (परब्रह्ममहिषी) जो हृदयकमलमें नित्य संस्थित परम देवता अर्थात् साक्षात् परब्रह्म निर्विकल्प स्वरूप आपही होरही एवं जिससे परे अन्य कोई नहीं है ऐसी उस परम इष्ट देवता साक्षात् योगमायाको प्रणाम करके महीधरनामा (ज्योतिषी टीहरीगढवालनिवासी)अथ (मंगलार्थ अब भावकुतूहलके अनभिज्ञ बालकोंके प्रसन्नतार्थ इसकी भाषाटीका सरल देशभाषामें करताहै__ ग्रंथकर्ता ग्रंथादिमें अपने इष्टदेवता शिवजीको प्रणाम करता है कि-(अई) मैं जीवनाथनामा ज्योतिषी उस सदाशिवके जलसे उत्पन्न संसार यद्वा ब्रह्माकी उत्पन्न की हुई सृष्टिमें जो जन्म मरणका एकमात्र भय है उससे रक्षा करनेवाले अर्थात् मुक्ति देनेवाले तथा दानव, एवं देवताओंके मनके आनंदकी खानि "आनंदो ब्रह्मणो Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२) भावकुतूहलम् [संज्ञाध्यायःरूपम्" इस वचन प्रकारसे बोधन हुआ कि, देव दानव परब्रह्म स्वरूप जिस शिवका मनमें ध्यान करते हैं तथा (चिदानंद) निराकार केवल प्रकाशमय सत्तामात्र एक आनंदस्वरूप, समस्त जगतोंका उद्धार करनेवाले (सेतु) पुल संसारके उत्पन्न करनेका (हेतु) बीज ऐसे शिवजीके चरणकमलोंका (अधिक लावण्य ) आनंदामतास्वादपरिपूर्ण जो अनुपम कोमलता है उसके (महः) उत्सवपूर्वक प्रणाम करताहूँ ॥ १॥ ग्रन्थकर्तुः प्रतिज्ञा। विचारसंचारचमत्कृतं यन्मतं मुनीनां प्रविलोक्य सारम् ॥ श्रीजीवनाथन विदां हिताय प्रकाश्यते भावकुतूहलं तत् ॥ २॥ जो प्राचीन मुनियोंके अनेक मतोंके ग्रंथ बडे बडे हैं उनमें जब बहुतसा विचार फैलायाजाय तब उसका चमत्कार मिलताहै उसका सारांश देखकर थोडेहीमें वही चमत्कार मिलनेके हेतु विद्वानोंके उपकारार्थ श्रीजीवनाथ ज्योतिर्वित् करके यह भावकुतूहल" प्रकाश किया जाताहै ॥२॥ धात्रोदितं यवनकर्कशशब्दसङ्गादाधिव्यथाविदलितं परमं फलं यत् ॥ मत्कोमलामलरवामृतराशिधारास्नानं करोतु जगतामपि मोदहेतोः ॥३॥ ज्योतिषका परम होराफल जो ब्रह्माआदियोंने कहाथा अर्थात् प्राचीन उत्तम ग्रंथ ऐसे चमत्कारी थे कि, जिनके प्रभावसे ज्योतिषी त्रिकालज्ञ कहाते थे परंतु बीचमें मुसल्मान बादशाह ऐसे मतवादी हुए कि सनातन धर्मसंबन्धी हिंदूधर्ममें अत्यंत अत्याचार किया यहां पर्यंत कि हिन्दुओंके पास जो जो उत्तम ग्रंथ थे, वे बलात्कारसे नष्ट भ्रष्ट कर दिये और “ यथा राजा तथा प्रजा" सर्वसाधारणमें Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथमः १] भाषाटीकासमेतम् । यावनी भाषा प्रचलित होगई संस्कृतका ह्रास होता गया ऐसे कारगोंसे ज्योतिषसंबंधी चमत्कारी फलादेश भी व्यर्थताको प्राप्त होकर यावनीभाषासे दलित होगया. इसके उद्धारार्थ इस ग्रन्थकी भूमिकामें ग्रंथकर्ता पंडित जीवनाथ कहते हैं कि, मेरे कोमल एवं निर्मल शब्दरूपी अमृतपुञ्जसे जो यह भारकुतूहल ज्योतिष फलादेशरूपी धारा निकलती है इसमें उक्त फलादेश ( यवनोंसे मलिन होरहा) स्नान करे जिससे निर्मल होकर पुनः अपने उसी पदको प्राप्त हो तथा संसार भी उसकी उन्नतिसे हर्षित हो ॥३॥ ____ अथ द्वादशभावसंज्ञा। तनुकोशसहोदरबन्धुसुतारिपुकामविनाशशुभा विबुधैः ॥ पितृभंतत आप्तिरपाय इमे क्रमतः कथिता मिहिरप्रमुखैः ॥ ४॥ लनादिकमसे १२ भावोंके नाम । तनु (१) प्रकारांतरसे लन, मूर्ति, अंग, उदय, वपु, कल्प, आद्य । कोश (२) प्र० स्वं, कुटुंब, धन। सहोदर (३) प्र० सहज, भ्रात, दुश्चिक्य, विक्रम । बंधु (४) प्र० अंबा, पाताल, मित्र, तुर्य, हिबुक, गृह, सुहृत, वाहन, सुख, अंबु, जल । सुत (५) प्र० तनय, बुद्धि, विद्या, आत्मज, औरस, तनय, मंत्र । रिपु (६)प्र० देष्य, वैरि, क्षत, रोग, मातुल। काम (७)प्र० यामित्र, अस्त, मदन, स्मर, मद, धून । विनाश (८) प्र. रंध, आयु, छिद्र, याम्य, निधन, लय, मृत्यु, संग्राम । शुभ (९) प्र° गुरु, मार्ग, भाग्य, धर्म । पितृ (१०) प्र० राज्य, कर्म, मान, आकाश । आति (११) प्र. लाभ, भव। अपाय (१२)प्र० व्यय, रिफ्फ, नाश । और त्रिकोण ९।५।। त्रित्रिकोण ९।केंद्र १।४।७।१०। पणफर २।५।८1११॥ आपोक्किम ३।६।९।१२। येभी संज्ञा हैं॥४॥ a Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१) भावकुतूहलम् [संज्ञाध्यायःराशिस्वामिनः। कुजकवी बुधचन्द्रदिवाकरा बुधसितावनिजा गुरुसूर्यजौ ॥ शनिगुरू च पुरातनपण्डितैरजमुखादुदिता भवनाधिपाः॥५॥ राशियोंके स्वामी कहते हैं कि, मेषका स्वामी मंगल, वृषका शुक्र, मिथुनका बुध, कर्कका चंद्रमा, सिंहका सूर्य, कन्याका बुध, तुलाका शुक्र, वृश्चिकका मंगल, धनुषका बृहस्पति, मकर और कुंकुंभका शनि, मीनका बृहस्पति ये राशिस्वामी हैं ॥५॥ ___ग्रहमैत्र्यादिकथनम् । अङ्गारकेन्दुगुरवो रविचन्द्रपुत्रांवादित्यचन्द्रगुरख कविचण्डभानू ॥ भौमार्करात्रिपतयो बुधमूर्यपुत्रौ शकेन्दुजौ दिनकरात्सुहृदो भवन्ति ॥६॥ सौम्यः समा हि सकला कविभानुपुत्रौ । मन्देज्यभूमितनया रविजः क्रमेण ॥ भौमेज्यको सुरगुरू रिपवोऽवशिष्टा स्तात्कालिका व्ययधनायदशत्रिबन्धौ ॥७॥ ग्रहोंके, मित्र, सम, शत्रु कहते हैं कि, सूर्यके चं. बृ० म०, चंद्र माकें सू०, बु० मंगलके सू० चं० बृ०, बुधके शु० सू०, बृहस्पतिके सू० चं० मं०, शुक्रके बु० श०, शनिके बु० शु० मित्र हैं। तथा सूर्यका बुध सम, चंद्रमाके मं० ० शु० श०, मंगलके शु० श°, बुधके श० बृ० म०, बृहस्पतिका श०, शुक्रकं मं० बृ०, शनिका बृहस्पति सम है। अन्य सब शत्रु हैं, अर्थात् सूर्यकं शु० श°, चंद्रमाका कोई शत्रु नहीं, मंगलका बुध, बुधका चंद्र, बृहस्पतिका बुशु०,शुक्रके सू०चं,शनिके सूमंचं शत्रुहैं और अपने स्थित Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आषाटीकासमेतम् । (५) भावसे १२|२|११|१०|३|४स्थनों में तात्कालिक मित्र होते हैं ६ ॥ ७ ग्रहमैत्र्यादिचक्रम् | प्रथमः १ } नाम रवि चन्द्र शनि शत्रु शुक्र सम बुध मित्र चंद्र गुरु मंगल ० शुक्र गुरु भौम श. रवि बुध भौम बुध गुरु शुक्र सूर्य चन्द्र बुध चन्द्र शुक्र शनि चंद्र गुरु सूर्य भौम गुरु शनि बुध शुक्र शनि Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat गुरु मंगल शनि रवि चंद्र भौम गुरु बुध बुध सूर्य सूर्य चंद्र शक्र मंगल शनि शुक्र ग्रहोच्चनीचकथनम् । परमोच्चमजे दशभिर्वृषभे शिखिभिर्मकरे गजयुग्मलवैः ॥ तिथिभिर्युवतीभवने विधुभे किल पंचभिरेव झषे त्रिघनैः॥८॥ कृतिभिश्च तुलाभवने रवितः कथितं मदने खलु नीचमतः ॥ मिथुने तमसः शिखिनो धनुषि प्रथमे बुधभे गुरुभे भवनम् ॥ ९ ॥ सूर्यका परम उच्च मेषके दश अंशपर, चंद्रमाका वृषके ३ अंशपर, एवं मंगलका मकर २८, बुध कन्या के १६, बृहस्पति कर्कके९, शुक्र मीनके २७, शनि तुटके २० अंशपर उच्च होते हैं और उच्चसे सप्तम राशिमें उक्त अंशोंकर के नीच होते हैं। राहु मिथुन के प्रथमांश और केतुका धनके प्रथम शपर परम उच्च होता है और कन्या राहुके मीन केतुके स्वगृह हैं ॥ ८ ॥ ९ ॥ अथ षड्वर्गसाधनम् । होरा राशिदलं समे प्रथमतश्चन्द्रस्य भानोरतो व्यत्यासा दशमे दृकाणपतयः स्वाक्षाङ्गभावाधिपाः । मेषादादिमभे वृषे तु मकराद्यग्मे घटादिन्दुभे कर्कादेव नवांशकानि गदिताः स्युर्द्वादशांशाः स्वभात् षडर्ग में प्रथम होरा कहते हैं - राशिका आधा होरा है, वह समराशिके प्रथमदल १५ अंशपर्यंत चन्द्रमाकी, उत्तरार्द्धमें १५ अंशसे ३० www.umaragyanbhandar.com Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६) भावकुतूहलम्- [संज्ञाध्यायःपर्यंत सूर्यकी, तथा विषमराशिमें पूर्वार्द्ध १५ अंशपर्यंत सूर्यकी उत्तरदल १५ अंशसे ३० पर्यंत चन्द्रमाकी होरा होतीहै, जैसे मेषके १५ अंशपर्यंत सूर्यकी, १५ से ऊपर चंद्रमाकी, वृषके १५ पर्यंत चन्द्रमा ऊपर सूर्यकी होराहै, ऐसेही सबके जानना । दृकाण प्रथम विभाग१० अंशपर्यंत उसी राशिके स्वामीका, द्वितीयभाग१० अंशसे२०अंशपर्यन्त उस राशिसे पंचमराशिके स्वामीका और तृतीय भाग २० से ३० पर्यंत उस राशिसे नवम राशिके स्वामीका द्रेष्काण होताहै । जैसे मेषके १० अंश पर्यंत मेषके स्वामी मंगलका, १० से २० लौं उससे पंचम सिंहके स्वामी सूर्यका, २० से ३० पर्यंत उससे नवम धनके स्वामी बृहस्पतिका हकाण होता है। नवांशक मेष, सिंह, धनको मेषसे, वृष, कन्या, मकरको मकरसे, मिथुन । तुला, कुंभको मिथुनसे । कर्क, वृश्चिक, मीनको कर्कटसे गिनना अर्थात् चर, स्थिर, द्विस्वभाव राशि तीन तीनका १।९।५ त्रिकोण मेल है, इनमें (चरादि) जो चरराशि हो उससे नवांश गिनाजाता है एक राशिके ३० अ-.. डाके ९भाग नवांश कहते हैं, वह च १० | चं० ७ ०१ विभाग ऐसे हैं कि, ३ अंश २० कलाका एक नवमांश हैं, ६।४०। पर्यत दूसरा, एवं १०।० तीसरा, अंश. १३ । २० चौथा, १६४० पंचम, कला. २०० छठा, २३२२० सातवां, २६ । ४० आठवां ३०० नवम भाग है. जैसे मेषके मेषहीसे गिनना है तो ३ अंश २० कला: पर्यत मेषका ६०४० क० पर्यंत वृषका, १०० में मिथुः नका, तथा वृषमें मकरसे गिनती है तो ३। २० पर्यंत मकरका, ६।४० लौं कुंभका इत्यादि । मिथुनमें ३॥ २० में तुलाका ६४० में वृश्चिकका इसी प्रकार जानना । द्वादशांश एक राशिके बारह नवांशगणना। १५।९ ।।६।१०।३७११४८१२ नवांशविभागः। २३२६३० ४०/०२०४०/०२०५010 Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७) - - प्रथमः १] भाषाटीकासमेतम् । भाग द्वादशांश होते हैं । २ अंश ३० कलाका एक द्वादशांश होता है यह अपनीही राशिसे गिनाजाता है. जैसे-मेषके २ अंश ३० कलापर्यंत मेषका, ५० पर्यंत वृषका एवं ७३० मिथुनका, १०१० ककैका,१२३०.सिंहका,१५० कन्याका,१७३०तुलाका. २०० वृश्चिकका, २२।३० धनका, २५। ० मकरका, २७३० कुंभका,३०१ ० में मीनका द्वादशांश जानना । ऐसेही वृषमें वृषसे, मिथुनमें मिथुनादि । द्वादशांश सभी राशियोंमें जानने ॥ १० ॥ षड्वर्गसाधनचक्रम् । । प्र. र. | चं | मं. | बु. । बृ. | शु. ३. | ग. | क. | | उच्चराशि | १ | २ | १० | ६ | ४ | १२ | ७ | ३ | ९ | | अंश | १० | ३ | २८ | १५ | ५ | २७ | २० | १ | १ । नीचराश ७ | ८ | ४ | १२ | १० | ६ | १ | ९ | ३ | अंश | १० | ३ | २८ | १५ । ५ / २७ | २० | १ | १ | गृह । । ४ । । । । १ ६ । १२ मूलत्रिकाण| ५ | २ | १ | ६ | ९ | ७ | ११ ) ३ | १२ । रंगक्तश्या गौर रक्तगा. पूर्वाश्या पीत चित्र | कृष्ण। कृष्ण धूम्र वर्णरंग | ताम्र श्वेत आतर हारत पीत | चित्र | कृष्ण देवता | अग्नि जल कुमार विष्णु चंद्र इंद्राणी ब्रह्मा राक्षस दिशापति पू० वा० द30 ई | आ | प. | नै. ई | | पापशुभ | पाप | शुभ | पाप | शुभ | शु. शुभ | शु. | शु. पा. पा. | पु.स्त्री.नपुं. पुं. स्त्री पु. पु | पु. स्त्री | महाभूत | अग्नि जल | अ. | भूमि आका. वायु वर्णाधीश राजा | वैश्य | रा. | वश्य | ब्रा. | ब्रा | अंत्यज सत्वादिगु सत्व सत्व तम | रज | सत्व | रज | तम । स्थान स्वालय जलाश, अग्नि कोड भ भंडार शयन | स्वात छिद्र | छिद्र.। वस्त्र मोटा | नया | दग्ध जलन अदृढ | दृढ फुटित मलि. मलि. धातु ताम्र | मणि सुवर्ण रौप्य सुव. मोत लो. | शीश | शीश ऋतु ग्रीष्म | वर्षा | ग्री० शरद | हेम । वस | शि. ग्रा० | ग्री० नि. ६. | ३ | १०। ९ । ५ । ८ । ४ । ७ ७ ७ . रायप. न. पु. आ. अं.रा. तम । तम Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ८ ) भावकुतूहलम् - [ संज्ञाध्याय: पंच पंचाष्टशैलाक्षास्त्रिंशांशा विषमे क्रमात् ॥ भौमभानुजजीवज्ञशुक्राणामुत्क्रमात्समे ॥११॥ त्रिंशांश - विषम राशिक५ अंशपर्यंत मंगलका, पांचसे ऊपर १० अंशपर्यंत शनिका, एवं १८ पर्यंत बृहस्पतिका, २५ लों बुधका, ३० पर्यंत शुक्रका त्रिंशांश और समराशिमें ( व्युत्क्रम) विपरीत जैसे ५ अंशपर्यंत शुक्रका, १२ पर्यन्त बुधका, २० पं० बृहस्पतिका, २५ पं० शनिका, ३० पर्यंत शुक्रका होता है ॥ ११॥ ग्रहदृष्टिविचारः । त्रिंशांशन्यास. ५ ५ ८ ७ ५ ५ ७८ ५५ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat बृ. बु. शु शु. बु. बृ.श. '५ १२ २० १३० ५ १२ २० २५ ३० समक्षे. चरणविवृद्धया खेटा दशम सहोत्थे त्रिकोणभे जनने॥ चतुरस्रेथ कलत्रे प्रयताः पश्यन्ति तत्फलं क्रमतः १२॥ ग्रहदृष्टि - जिस भाव में ग्रह है उससे तीसरे दशवें स्थानमें एक चरण दृष्टि देखता है, ९ ।५ में दो चरण ८।४ में तीन चरण सप्तम में पूरे चार चरण दृष्टि देखता है, ऐसाही फल भी दृष्टिको देता है, कोई ऐसाभी अर्थ करते हैं कि, सूर्य तीसरे, चंद्रमा दशममें, मंगल नवमें, बुध पंचममें, बृहस्पति अष्टम में, शुक चतुर्थ में, शनि सप्तम में पूर्ण देखते हैं यह निसर्ग दृष्टि है ॥ १२ ॥ राशीनां चरादिसंज्ञा । चरस्थिरद्विस्वभावाः क्रूराक्ररावजादितः ॥ नरनारी क्रमादेव विषमाख्यसमावपि ॥ १३ ॥ मिथुनं धन्विपूर्वार्द्धतुला कन्याघटा नराः ॥ चतुष्पदा धनुः सिंहवृषमेषा मृगादिमः ॥१४॥ मूलत्रिकोणमर्कादिः सिंहो वृषभ आदिमः ॥ कन्याधनुस्तुलाकुंभः प्रवदंति पुरातनाः ॥ १५ ॥ इति भावकुतूहले संज्ञाध्यायः प्रथमः ॥ १ ॥ www.umaragyanbhandar.com Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयः २ ] भाषाटीकासमेतम् । ( ९ ) मेषादि राशि क्रमसे चर, स्थिर, द्विस्वभावसंज्ञक हैं. मेष चर वृष स्थिर, मिथुन द्विस्वभाव, कर्क चर इत्यादि ( प्रगट ) 918/७| १० चर, २|५|८|११ स्थिर, ३/६/९/१२ द्विस्वभाव हैं । ऐसेही मेष क्रूर, वृष सौम्य, मिथुन क्रूर, इत्यादि ( प्रगट) १२३२५/७१९ | ११ क्रूर, २२४/६/८/१०/१२ सौम्य हैं । ऐसेही मेष पुरुष, वृष स्त्री, मिथुन पु० इत्यादि ( प्रगट ) विषम राशि पुरुष, सम स्त्रीसंज्ञक हैं। ऐसेही विषम सम क्रमसे जानने, जैसे मेष विषम, वृष सम इत्यादि (प्रगट) १२३/५/७/९/११ विषम, २२४|६|८|१०१२ सम हैं और मिथुन धनका पूर्वार्द्ध, तुला, कन्या (द्विपद मनुष्य धनका उत्तरार्द्ध सिंह, वृष, मेष, मकरका पूर्वार्द्ध चतुष्पद उपलक्षणसे मकरका उतरार्द्ध, कुंभ, मीन जलचर हैं । कर्क, वृश्विक कीट हैं और सूर्यका मूलत्रिकोण सिंह चंद्रमाका वृष' मंगलका मेष, बुधका कन्या, बृहस्पतिका धन, शुक्रका तुला शनिका कुंभ है यह प्राचीन आचार्यों ने कड़े हैं ॥ १३ ॥ १४ ॥ १५ ॥ राशिभेदचक्रम । धन | मकर कुम्भ | मान वि० स० वि० स० राशयः मष वृष मेथु कक | सिह | कन्या तुला | वृश्च वर्षमाः वि० स० वि० स० वि० स० वि० स० पु. स्त्री. पुं० स्त्री० षु० स्त्री० पु० स्त्री० पु० स्त्री० क्रूर क्रूर क्रूर सौ० क्रूर सौ० क्रूर सौम्य क्रूर चरादि चर स्थिर द्विस्व च० स्थिर द्वि० च० दिशा पू ८० प·० उ० पू० द प० संज्ञा चतुष्पद चतु० द्विपद कीट चतु० : द्विपद द्विपद कीट द्वि० चतु० द्विपद जल पु० स्त्री० पु० बी० सौम्य क्रूर स्थिर द्वि० पू० द० प० उ० चतु | जल० उ० Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat सौम्य क्रूर सौ० चर० स्थिर द्वि० इति मावकुतूहले माहीघरी भाषाटीकायां संज्ञाऽध्यायः प्रथमः ॥ १ ॥ द्वितीयोऽध्यायः ॥ अथ जातकचिह्नज्ञानम् । जनुषि लग्नगतो वसुधासुतो मदनगोपि गुरुः कविरेव वा ॥ भवति तस्य शिरो व्रणलांछितं निगदितं यवनेन महात्मना ॥ १ ॥ www.umaragyanbhandar.com Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०) भावकुतूहलम् [ लयचिह्वाध्यायः___ अब यहाँसे जन्मलग्न निश्चय करने के लिये चिह्न कहे जाते हैं । जिसके जन्मलग्रमें मंगल तथा सप्तम बृहस्पति अथवा शुक्र हों तो उसके शिरमें चोट लगनेसे यदा व्रणादिसे (दाग ) खोट होवे, यह योग महात्मा यवनका कह है ॥ १॥ : भवति लग्नगते क्षितिनन्दने भृगुसुतेऽपि विधाविह जन्मिनाम्॥ शिरसि चिह्नमुदाहृतमादिभिमुनिवर्द्विरसाब्दसमासतः॥२॥ मंगल लग्नमें शक चंद्रमा सहित जिस मनुष्यका हो उसके शिरमें दूसरे अथवा छठे वर्षमें चिह्न होवे यह पूर्व मुनियोंने कहा रण रखना चाहिये कि, मंगल बली हो तो (व्रण) दाग और शुक्र चंद्रमा बली हों तो तिल (मशक ) लाखन आदि चिह्न होते हैं ॥२॥ } भार्गव जनुरङ्गस्थ चाष्टमे सिंहिकासुत ॥ .मस्तके वामकर्णे वा चिह्नदर्शनमादिशेत् ॥ ३॥ जन्मलग्नमें शुक्र तथा अष्टम स्थानमें राहु हो तो माथेमें अथवा बांये कानमें कुछ प्रकार चिह्न होवे ॥३॥ , मदनसदनमध्ये सिंहिकानन्दने वा सुरपतिगुरुणा चेदङ्गराशी युते नुः ॥ । प्रकथितमिह चिह्न चाष्टमे पापखेटे कविरपि गुरुरङ्गे वामबाही मुनीन्द्रैः ॥ ४॥ सप्तम भाव में राहु लग्नमें बृहस्पति हो अथवा लग्नमें बृहस्पति राहु युक्त हों अष्टमभावमें पापग्रह हों अथवा शुक बृहस्पति लपमें Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वितीयः २] भाषाटाकासमतम् (११) अष्टममें पाप ग्रह हों तो भी मनुष्यके बांये ( बाहु ) भुजापर चिह्न होवें । यह योग मुनि श्रेष्ठोंने कहा है ॥ ४॥ लाभारिसहजे भौमे व्यये वा शुक्रसंयुते ।। वामपार्श्वे गत चिह्न विज्ञेयं व्रण बुधैः ॥५॥ लाभ (११) अरि (६) सहज (३) अथवा व्यय ( १२)वें स्थानमें मंगल शुक्रसहित हो तो बांये बगलकी ओर (व्रण) खोटका चिह्न होवे ॥५॥ लग्ने क्षितिसुते मन्दे शुक्रदृष्टे त्रिकोणभे ॥ 'लिङ्गे गुदसमीपे वा तिलकं संदिशेद्बुधः॥६॥ लग्नमें मंगल तथा शनि ५ १ ९ स्थानमें हों परन्तु इसपर शुककी दृष्टिभी हो तो (गुदा) मलद्वारके समीप अथवा लिंगस्थानमें तिलका चिह्न होवे ॥६॥ सुतालये भाग्यनिकेतने वा कविर्यदा चाष्टमगौ ज्ञजीवौ ॥शनौ चतुर्थे तनुभावगे वा तदा सचिह्न जठरं नरस्य ॥ ७॥ शुक्र पञ्चम वा नवम हो, अष्टमस्थानमें बुध बृहस्पति और लग्नमें वाचतुर्थस्थानम शनि हो तो मनुष्यके (उदर ) पेटपर चिह्न होवे॥७ धने कवावष्टमलग्नभे वा दिवाकरे मन्दकुजौ तृतीये॥ कटिप्रदेशे प्रवदन्नराणां चित्रं विशेषादिह जातकज्ञः॥८ धन (२) स्थानमें शुक्र, तीसरे शनि मंगल हों अथवा अष्टम भावमें वा लममें सूर्य और तीसरे शनि मंगल हों तो जातकशास्त्र जाननेवाला मनुष्योंको कमरमें चिह्न कहै ॥८॥ पातालस्थौ राहुशुक्रौ लग्ने मन्दः कुजोपि वा ॥ पादमूलेऽथवा पादे वाम चिह्न विनिर्दिशेत् ॥९॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १२ ) भावकुतूहलम् - [ लमचिह्नाध्यायः ] चतुर्थ स्थानमें शुक्र राहु, लग्नमें शनि अथवा मंगल हो तो पैरके नीचे अथवा पैरपर चिह्न होवे, यह बांये पैर यद्वा पैर के बांये ओर कहना ॥ ९ ॥ व्यये गुरौ विधौ भाग्ये लाभारि सहजे बुधे ॥ गोलकं गुदमध्यस्थं व्रणं वा प्रवदेद्बुधः ॥ १० ॥ बारहवें भाव में बृहस्पति, नवममें चंद्रमा, तथा ११ । ६ । ३ मेसे किसी में बुध हो तो (गुदा) मलद्वार में गोलाकार चिह्न अथवा (व्रण) किसी प्रकारका दाग पंडित कहै ॥ १० ॥ भ्रातृ-मातृनाशयोगः । दिनपतौ नवमे हरिभे यदा सहजहानिरवश्यमिहाङ्गिनाम् ॥ धनगते रविजे तनुगे गुरावगुरुमे जननी नहि जीवति ॥ ११ ॥ जिस मनुष्य के जन्म में सूर्य नवम सिंहका हो तो अवश्यमेव उसके भाइयों के हानि होवे और दूसरा शनि लग्न में बृहस्पति निर्बल नीच शत्र राशि अंशकादिकोंमें अथवा अस्तंगत पापपीडित हो तो उस बालकेकी माता नहीं बचै ॥ ११ ॥ सहजसुखविचारः । सुरगुरौ धनभावगते यदा कुजयुते शशिनापि च जन्मिनाम् ॥ अग्रयुते सहजे सहजासुखं निगदितं यवनैः प्रथमोदितम् ॥ १२ ॥ बृहस्पति धनभाव में मंगल तथा शनिसे युक्त हो और तीसरा भाव राहुसे युक्त हो तो भाइयों का सुख न हो प्रत्युत आतृपक्षीय ( असुख ) क्रेश होवें, अथवा सहजा बहिनीका सुख अर्थात् बहिन si भाई न हों यहभी अर्थ है यह योग यवनोंने पूर्वचार्य संमतिसे कहा है ॥ १२ ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वतीयः ३] भाषाटीकासमेतम् । भ्रातृनाशयोगः। अरिनिकेतनगेऽवनिनन्दने भवति राहयुते निधन शनी ॥ निगदितं सहजो जनिमात्रतो यमपुरं व्रजतीति पुरातनैः ॥१३॥ ___ इति भावकुतूहले लगचिह्नाध्यायो द्वितीयः ॥२॥ छठा मंगल तथा अष्टम शनि राहुयुक्त हो तो उसके जन्म होनेहामें उसका भाई मरजावे यह प्राचीनाचार्योंने कहा है ॥ १३॥ इति भावकुतूहले माहीधरीभाषा कायां द्वितीयोऽध्यायः ॥२॥ तृतीयोऽध्यायः। बालकस्यारिष्टविचारः। राशि तुहिनकिरणहोरिका च संध्या भूचरमगाः खलखेचरा जनौ चेत् ॥ मृतिरथ जनीशपापखेटेरखिलचतुष्टयगैर्विनाशमेति ॥ १॥ बालकका सबसे प्रथम अरिष्ट विचार करना चाहिये-बाल्यारिटोंसे बचजानेपर अन्य ज्योतिषोक्त फलादेशभी कहा जासकताहै. अरिष्टयोग जानकर उसका उपाय दीर्घायुकारक वैदिकतांत्रिकोक्तं प्रकारसे मनुष्य करसकते हैं. इस निमित्त आरिष्टयोग कहते हैं कि, संध्याकालमें जन्म हो उस समय लग्नमें चंद्रमाका होरा हो तथा पापग्रह राशिके अंत्य नवांशकमें हों तो वह बालक नहीं बचेगा अथवा पापयुक्त चंद्रमा केंद्रमें हो तथा अन्य तीनों केन्द्रोंमें पापग्रह हों तो भी वही फल कहना। पूर्वोक्त योगमें संध्याकही है उसका प्रमाण सूर्यास्तसे वा सूर्योदय डेढघडो पूर्व डेढ पीछेकी समस्त ३ घडी पर्यंत संध्या जानना ॥३॥ अशुभेषु शुभेषु चक्रपूर्वापरभागेषु गतेषु कीट Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४) ___ भावकुतूहलम्- अरिष्टध्यायःलग्ने ॥ विरतिं समुपैति बालकोऽयं खलखेटेरपि कामिनीतनुस्थैः ॥२॥ । (राशिचक्र ) लग्नकुण्डलीमें लगसे सप्तमपर्यंत चक्रपूर्वार्द्ध और अष्टमसे द्वादश पर्यंत उत्तराई है, चक्रके पूर्वार्द्धमें पापग्रह उत्तराईमें शुभग्रह हों और लग्नमें (कीटराशि४८) हों तो बालक मरजावै तथा पापग्रह स्त्रीसंज्ञक (सम ) राशियोंका लग्नमें हो तो भी वही फल जानना ॥२॥ । खलखगसहितो निशाकरोयं तनुमृतिमारगतो / हि जन्मकाले ॥ मृतिपदमुपयाति देवबालोऽपि च सकलैरविलोकितो न सौम्यैः ॥३॥ पापयुक्त चंद्रमा लग्न (१) मृति (८) मार(७) भाव में जन्मकालका हो उसे पापग्रह देखें, शुभग्रहोंकी दृष्टि उसपर न हो तो वह बालक मृत्युपदको प्राप्त होगा ॥३॥ अशुभावगोदयगतौ शुभदैरवलोकितो न खलु युक्तविधुः॥मृतिरत्यगे कृशविधौ कुगजागभगैः खलैरपि विकेन्द्रशुभैः ॥ ४॥ दो पापग्रह स्थिरराशि लग्नमें हो चंद्रमा शुभग्रहोंकी दृष्टि न हो और शुभग्रहोंसे युक्तभी न हो तो बालककी मृत्यु होवे और क्षीण चंद्रमा बारहवें लग्न अष्टमभावोंमें स्थिर राशियोंके पापग्रहोंके पापग्रह हो केद्रोंमें शुभग्रह न हों तो वही फल जानना ॥ ४॥ शीतांशावरिविरतिस्थिते विनाशः पापैःस्यात्सपदि युतेक्षितेपि जन्तोः॥ अष्टाब्दैःशुभखचरैश्च मिश्रखेटेर्वेदान्दैरपि मुनिभिनिरुक्तमेतत् ॥५॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तृतीयः ३ भाषाटीकासमतम् । (१५) वर्ष जीवता है चंद्रमा छठा आठवां पापग्रहों से युक्त वा दृष्ट हो तो शीघ्र मृत्यु देता है, यदि वह शुभग्रहों से युक्त दृष्ट हो तो ८ वर्ष पर्यंत बचता है, यदि शुभ और पाप दोन हूंसे युक्त दृष्ट हो तो यह मुनियोंका निरूपण किया हुआ है ॥ ५ ॥ अरिविरतिगते शुभे च दृष्टे बलसहिते समायुः ॥ मदनसदनगेऽपि लग्ननाथे खलविजिते ध्रुवमस्य मासमायुः ॥ ६ ॥ खलेन मा لا छठे आठ में ही शुभग्रह हो उसे बलवान् पापग्रह देखे उपलक्षणसे युक्तभी हों तो उस बालककी एकही महीने की आयु हो । तथा लग्नेश सप्तम पापग्रहास (विजित) युद्ध में हाराहुआ वा नीचादि निर्बल होकर पापपीडित हो तो निश्चय वही फल जानना ॥ ६ ॥ कृशशशिनि तनौ खलेष्टकेन्द्रे मृतिरथ शीतरुचौ खलान्तराले ॥ मुनिहिबुकलय स्थितेऽपि लगे मुनिलयगैश्च सहाम्बया खलैः स्यात् ॥ ७ क्षीण चंद्रमा लग्न में, पापग्रह आठवें तथा केंद्रों में हों तो शीघ्र मृत्यु हो और चंद्रमा पापग्रहों के बीच में होकर भी है । ७ । ८ - ४ में से किसीभावमें हों तथा ७ । ८ भावों में पापग्रहभी हों तो वह बालक मातासहित मरजाव ॥ ७ ॥ ॥ भविरतिगतशोभनैरदृष्टे शशिनि नवेषुगतैः खलै मृतिः स्यात् ॥ तनुगत हम गौ खले नगस्थे मृतिरुदिता मुनिभिः शिशोरवश्यम् ॥ ८ ॥ चन्द्रमा पर लग्न और अष्टम स्थान गत शुभग्रहों की दृष्टि न हो तथा ९।५ भावों में पापग्रह हों तो शीघ्रदी बालककी मृत्यु हो और चंद्रमा लग्नमें पापग्रह सप्तम में हो तो मुनियोंने अवश्य बालककी मृत्यु कही है ॥ ८ ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १६ ) भावकुतूहलम् - [ अरिष्टाध्यायः ] असुरमुखगते खलेन युक्ते तनुगविधौ सममम्बया लयारे ॥ मृतिरथ तनुगे रवौ सशस्त्रं ग्रहणगते खलसंयुतेऽपि मृत्युः ॥ ९ ॥ राहुके साथ यद्वा ग्रहणसमयका चंद्रमा पापयुक्त होकर लग्नमें हो मंगल अष्टम स्थान में हो तो मातासहित बालक मरे इस योग में यदि सूर्य भी लग्न में हो तो शस्त्रसे उनकी मृत्यु होवै सूर्य वा चंद्रमा ग्रहण समयका शनिसे युक्त लग्न से हो तौभी वही फल है ॥ ९ ॥ सबलशुभखगैर्युते न दृष्टे तुहिनकरे दिनपेऽथवा तनौ चेत् ॥ निधननवसुताश्रिताः खलाः स्युनिधनमिहाशु वदंति वै मुनीन्द्राः ॥ १० ॥ सूर्य अथवा चंद्रमा लग्न में पापयुक्त दृष्ट हो उसे बलवान् शुभग्रह न देखे न युक्त हो तथा ८ । ९ ।५ भावों में पापग्रह हों तो बालककी मुनीन्द्र शीघ्र ही मृत्यु कहते हैं ॥ १० ॥ शनिरविविधुभूमिजैः क्रमेण व्ययनवलग्रलयाश्रितैमृतिः स्यात् ॥ सबलसुरपुरोहितेन दृष्टैर्न हि मरणं गदितं तदा मुनीन्द्रैः ॥ ११ ॥ बारहवां शनि, नवम सूर्य, लग्नका चंद्रमा, अष्टम मंगल हो तो बालककी मृत्यु होवे, परंतु उक्त मृत्युकारक योगोंपर बलवान् बृहस्पतिकी दृष्टि हो तो मृत्यु नहीं होती और उपलक्षणसे दुष्टयोग शुभग्रहों की दृष्टि एवं योगसे मृत्यु नहीं करते अरिष्ट देते हैं कदाचित् उपायोंसे अरिष्टों की शांति करते हैं ॥ ११ ॥ लयमारलग्ननवधीव्ययगः खलखेचरेण सहितः सिवगुः ॥ अवलोकितो नहि युतश्च शुभर्नियतं भवेत्स मरणाय तदा ॥ १२ ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्थः ४ ] आपाटीकासमेतम् । (१७.) चंद्रमा पापग्रहसहित ८।७।१।९।५ । १२ मेंसे किसी भावमें हो तथा उसपर शुभग्रहकी दृष्टि न हो न उसके साथ शुभ ग्रह हो तो मृत्यु निश्चय करके शीघ्र ही होती है ॥ १२ ॥ बलियोगकारकखगाश्रित जानिभे तनावपि यदास्ति विधुः ॥ बलसंयुतः खलजदृक्सहितः शरदन्तरेव मृतिदः स तदा ॥ १३ ॥ इति भावकुतूहले बालारिष्टाध्यायः ॥ ३ ॥ उक्त योगों में से जिनके फलका समय नहीं कहा गया उनके लिये कहते हैं कि - बलवान् योगकारक ग्रह जिसमें बैठा है उसपर जब बली चंद्रमा आवै अथवा जन्मराशिपर जब आवै अथवा लग्नशारी पर आवै परंतु इसपर पापग्रहकी दृष्टि या पापग्रह युक्त हो तो उस समय अरिष्टयोगका अरिष्ट होता है यह विचार एकवर्षके भीतर है ऊपर नहीं ॥ १३ ॥ इतेि भावकुतूहले माहीधरीभाषाटीकायां बालारिष्टाध्यायीः ॥ ३ ॥ चतुर्थोऽध्यायः । अथ पित्ररिष्टम् | आदित्याद्दशमे पापः पीडितो दशमाधिपः ॥ तदा पितुर्महाकष्टं निधनं वेति कीर्तितम् ॥ १॥ सूर्यसे दशम पापग्रह हो तथा लनसे दशमभावका स्वामी (पीडित) पापयुक्त हो तो बालकके पिताको बडा कष्ट वा मृत्यु होवे ॥ १ मात्ररिष्टम् । । भवति यदि शशाङ्कः पापयोरन्तराले जनुषि सुखनगस्थैः पापखेटैः शशाङ्कात् ॥ २ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १८ ) भाषकुतूहलम् - विधुरपि बलहीनो नष्टकान्तिर्जनन्या निधनमपि विशेषादाहुराचार्यवर्य्याः ॥ २ ॥ चंद्रमा पापांतर्गत हो तथा चंद्रमासे ४ । ७ भावों में पापग्रह हों और चंद्रमा बलरहित एवं क्षीणभी हो तो ऐसा योग जन्ममें होनेसे श्रेष्ठ आचार्योंने बालककी माताकी मृत्यु कही है ॥ २ ॥ भ्रारिष्टम | यदा पापखेचारिणो जन्मकाले धरानन्दनाकान्तभावात्सहोत्थे ॥ तदैवाशु नाशं सहोत्थस्य धीरा मणित्थादयः प्राहुराचार्यमुख्याः ॥ ३ ॥ यदि जन्मसमयमै पापग्रह मंगलस्थितराशिसे तीसरे हों तो शीघ्रही भाइयों का नाश होवे . यह मणित्थ आदि मुख्य आचार्योंने काहै ॥ ३ ॥ [अरिष्टाध्यायः ] मातुलारिष्टम् । बुधारातिभावे तु पापा भवंति वृतो ज्ञोऽपि नीचः श्रितो नष्टवीर्यः ॥ तदा मातुलानां विनाशो विशेषादिति प्राहुराचार्यवर्या नराणाम् ॥ ४ ॥ बुधसे छठे स्थान में पापग्रह हों बुध पापांतस्थ वा पापयुक्त तथा बलहीन नीचराशि अंशकमें हो तो विशेषतः मनुष्यों के ( मातुल ) मामाओं का विनाश होवै यह श्रेष्ठ आचार्यों का मत है ॥ ४ ॥ पुत्रहानियोगः ।। बृहस्पतेः पञ्चमभावसंस्था महीजमन्दादिवाकराश्चेत् ॥ गुरोरपत्याधिपतिः सपापस्तदात्मजानां विरतिं वन्दन्ति ॥५ ॥ बृहस्पति से पंचम स्थान में मंगल, शनि, राहु, सूर्यमें से कोई भी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमः५] भाषाटीकासमेतम् । (१९) ग्रह हो तथा बृहस्पति पंचम भावका स्वामी पापयुक्त हो तो उस मनुष्यके पुत्र न हो अथवा पुत्रहानि होवै ॥५॥ स्त्रीहानियोगः। चेत्कवेरङ्गनागारगामी कुजातो विनाशोऽङ्गनायाः सपापो निरुक्तः॥ नैधने मन्दतः पापखेटा बलिष्ठा नृणां नैधनं सत्वरं संदिशन्ति ॥६॥ ___ इति भावकुतूहले चतुर्थोऽध्यायः॥ ४ ॥ शुकसे सप्तम स्थानमें मंगल पापयुक्त हो तो स्त्रीहानि करताहै और शनिसे अष्टम पापग्रह बलवान हो तो मनुष्योंकी अल्पमृत्यु करतेहैं ॥६॥ इति भावकुतूहले माहीधरीभाषार्टीकायां चतुर्थोऽध्यायः ॥४॥ पंचमोध्यायः ॥ ___ अरिष्टभङ्गविचारः। भवतीन्दुरथो शुभान्तराले परिपूर्णः किरणैश्च जन्मकाले ॥ विनिहन्ति तथाशु दोषसङ्घानिभसङ्घानिव केसरी बलिष्ठः ॥ १॥ पूर्वोक्त बालारिष्ट योगोंके परिहार अरिष्टभंगयोग कहतेहैं कि, जन्मसमयमें चंद्रमा शुभ ग्रहोंके बीचमें तथा पूर्णभी हो तो उक्त प्रकार दोषसमूहको नाश करताहै, जैसे बलवान सिंह हाथियोंके झुंडको नाश करताहै, तैसेही यह चंद्रमा करताहै ॥ १ ॥ यदि जनुषि निशाकरोरिभावं गुरुकविचन्द्रजवर्गगो विशेषात् ॥ शमयति बहुकष्टजालमद्धा मुरहरनाम यथाघसंघतापम् ॥२॥ जो जन्ममें चंद्रमा छठे स्थानमें (शुभग्रह ) बृहस्पति, शुक्र, बुधके (वर्ग) राशिअंशकादियोंमें हो तो विशेषतासे बहुत कष्टोंके Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२०) भावकुतूहलम्- [रिष्टभङ्गःजालको साक्षात् शमित करदेता है, जैसे मुरदैत्यक मारनेहारे श्रीभगवानका नामकीर्तन पापसमूहको शमित करता है ॥२॥ यदि सकलनभोगवीक्ष्यमाणो लसिततनुर्जनुरिन्दुरेव सद्यः॥दिविचरजनितं निहन्ति दोषं खगपतिराशु यथा भुजङ्गजालम् ॥ ३॥ यदि जन्ममें चंद्रमा पूर्णमूर्ति हो तथा उसे सभी ग्रह देखें तो यही एक ग्रह ग्रहोंसे उत्पन्न (दोष) आरिष्टको तत्कालही नाश करदेता है जैसे सर्प (जाल ) समूहको गरुड शीघ्र नाश करता है ॥३॥ भवति यदि तनोःक्षपाकरोऽयं मृतिभवने शुभखेटवर्गगश्चेत् ॥ गदविकलतनुं पितेव बालं किल परितः परिरक्षति प्रसन्नः॥४॥ यदि चंद्रमा लग्नसे अष्टम स्थानमें शुभग्रहके (वर्ग) राशि अंशादियोंमें हो तो समस्त आरिष्टोंसे बचाताहै जैसे रोगीबालकको उसका पिता सर्वतः रक्षा करता है ॥४॥ . शुभभवनगतस्तदीयभागेजनिसमये कविनाऽवलोकितश्चेत् ॥ शमयति सकलं शशी त्वरिष्टं जलमिव पावकमङ्गिनामतीव ॥५॥ यदि चंद्रमा जन्मसमयमें शुभग्रहके राशिमें एवं अंशकमें हो वा शुक्र उसे देखे तो समस्त अरिष्टोकों शमित करता है जैसे जल अग्निको शमित करदेताहै ॥५॥ बलवानपि केन्द्रगो विशेषादिह सौम्यो यदिलाभगो दिनेशः॥शमयत्यखिलामरिष्टमालामपि गाङ्गं हि जलं यथाघजालम् ॥६॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पञ्चमः ५] भाषादीकासमेतम् । (२१) यदि बुध उपलक्षणसे अन्य शुभग्रहभी बलवान हो विशेषतः केन्द्रमें हो तो तथा लाभभावमें सूर्य हो तो संपूर्ण आरिष्टकी मालाको शमित करताहै जैसे गंगाजल समस्त पापजालको शमित करताहै ६ भवति हि जनुरङ्गपो बलिष्ठः सकलशुभैरवला कितो नपापैः॥ इहमृतिमपहाय दीर्घमायुर्वितरति वित्तसमुन्नति विशेषात् ॥७॥ जन्मलग्नेश बलवान हो तथा उसे समस्त शुभग्रह देखें पापग्रह नदेखें तो मनुष्यकी मृत्यु हटाय कर दीर्घायु कर देताहै तथा विशेष करके धनकी उन्नति ( वृद्धि ) भी करता है ॥७॥ सुरपतिगुरुरङ्गधामगामी निजपदगोपि च तुगतामुपेतः॥ बहुतरखगजं निहंति दोषं हरिरिभयूथमुपागतं हि यत् ॥ ८॥ लग्नमें बृहस्पति अपनी राशि वा अंशमें हो अथवा अपने उच्चराशि (४) अंशकमें हो तो बहुत प्रकार ग्रहदोषोंको नाश करताहै जैसे सिंह हाथियों के झुंडमें जाकर उनका नाश करताहै ॥ ८॥ गुरुसितबुधवर्गगा हि पापाःसकलशुभैरवलोकिता यदिस्युः॥ खगकृतमपि वारयति रिष्टंतृणराशीनिव वह्निविन्दुरेकः ॥ ९॥ पापग्रह बृहस्पति, शुक्र, बुधके राशि अंशमें हो तथा उन्हें शुभग्रह देखें तो अरिष्टाध्यायोक्त आरिष्ट दूर होते हैं जैसे अग्निका एक (बिंदु) कण तृण घासके पुंजको फूंक देताहै ॥ ९॥ सहजरिपुगतोऽथलाभगो वा सकलशुभैरैवलोकितो युतोवा ॥ अगरिह विनिहन्ति रिष्टजालं नगजाधीश इवाधिवापराशिम् ॥१०॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २२ ) भावकुतूहलम् । [ पुत्रभाव: राहु जन्मलन से ३ । ६ । ११ । भावों में से किसी में हो और समस्त शुभग्रह उसे देखें अथवा शुभग्रह युक्त हो तो अरिष्टरूपी जालके नाश करता है जैसे (नगजा ) पार्वती के पति शिव तीन प्रकारके ताप शांत करते हैं ॥ १० ॥ अधिकबलयुता जनुर्नभोगा यदि सकला नरराशिगा भवति ॥ हितभवननिजोच्च गेहगा वा बहुतरमाशु लयं प्रयाति रिष्टम् ॥ ११ ॥ इति भावकुतूहलेऽरिष्टभंगाध्यायः पञ्चमः ॥ ५ ॥ जन्मसमयमें बलवान् ग्रह ( पुरुष ) विषम राशियों में सभी हों अथवा मित्रके घरमें, अपने उच्चराशिमें हों तो बहुत प्रकारके अरिष्ट नाश होते हैं ॥ ११ ॥ इति भावकुतूहले माहीधरीभाषाटीकायामारेष्टभंगाध्यायः पंचमः ॥ ५ ॥ षष्ठोऽध्यायः । पुत्रकारकयोगः । नन्दनाधिपतिना युतेक्षितं नन्दनं शुभनभोगसंयुतम् ॥ नन्दनागमनमेव सत्वरं व्यत्ययेन नहि नन्दनागमः ॥ १ ॥ गृहस्थको संतान उत्पन्न करना मुख्य कर्तव्य है परंतु यह देवा धीन है इसलिये प्रथम संतान भाव विचार करते हैं कि, पंचमभावेश पंचम भावमें हो अथवा पंचमभावको देखे तथा पंचमभाव शुभग्रहसे युक्त हो तो शीघ्र पुत्र उत्पन्न होगा. यदि उक्त प्रकारसे विपरीत अर्थात् पंचमेश तथा शुभग्रह पंचममें न हों उसे न देखें पापग्रह पंचम में हो तथा पंचमको देखें तो पुत्रसुख न होवे ऐसे योग जन्म, वर्ष, प्रश्न, सभीमें देखे जाते हैं ॥ १ ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षष्ठः ६] भाषाटीकासमेतम् । (२३) अङ्गाधिपे लग्नगते तृतीये धनालये वा प्रथम सुतः स्यात्॥सुखे यदा लग्नपतौ नरस्य कन्या सुतो वेति सुतश्च कन्या ॥२॥ लग्नेश लग्न, धन, तृतीयमें से किसीमें हो तो प्रथम पुत्र पीछे कन्या होगी, यदि लग्नेश चतुर्थ हो तो मनुष्यके प्रथम कन्या पीछे पुत्र, पुनः कन्या पुनः पुत्र होते हैं । अथवा कन्या पुत्र यमल होते हैं परंतु इसमें लग्न, लग्नेश, पंचम, पंचमेश द्विस्वभावगत हों तो ये फल होते हैं ॥२॥ ___ सन्तानसंख्याविचारः। यावन्मितानामिह पुत्रभावे नरग्रहाणामिह दृष्टयः स्युः ॥ तावन्त एवास्य भवंति पुत्राः कन्यामितिः 'स्त्रीग्रहष्टितुल्या ॥३॥ पंचमभावमें जितने पुरुष ग्रहोंकी दृष्टि हो उतने पुत्र तथा जितने स्त्रीग्रहोंकी दृष्टि हो उतनी कन्या होती हैं परंतु योगकारक ग्रह यदि स्वगृह उच्चादि बलसहित हों तो द्विगुण त्रिगुण उत्पन्न करते हैं, नीचशत्रराशिगत उतने संख्याक गर्भहानि करते हैं ॥३॥ सुतहानियोगः। सहजभावपतिः सहजे यदा तनुगतो धनगो व्ययगोऽपि वा ॥ सुतगतः सुतहानिकरो नृणां । बुधवरैरुदितो मिहिरादिभिः ॥ ४॥ तृतीय भावका स्वामी तीसरा, लग्नमें दूसरा, बारहवां अथवा पंचम हो तो संतानहानि करता है । यह वराहमिहिरादि श्रेष्ठ पंडि तोंने कहा है ॥४॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २४ ) भावकुतूहलम् - पुत्रप्राप्त्यप्राप्तिविचारः । शुक्राङ्गारनिशाकरा द्वितनुगाः सन्ता न सौख्यं नृणामादौ संजनयंति जन्मसमये चापं विना प्रायशः ॥ मीने वा धनुषि प्रमाणपटवः सन्तानाभावे यदा सन्तानं न तदामनन्ति विबुधाः पुंसां विशेषादिह ॥५ ॥ शुक्र, मंगल, चंद्रमा द्विस्वभाव राशियों में विशेषतः पंचमभावमें हों तो प्रथमहीसे संतान का सुख देते हैं, परन्तु विशेषतः धनके होनेमें उक्त फल नहीं देते, बृहस्पति के राशि मीन अथवा धन पंचमभावमें हो तो मनुष्योंको पंडितजन संतान सुखविशेष नहीं कहते ॥ ५ ॥ [ पुत्रभाव:-- नपुंसकयोगः । अर्के कर्कगते हरौ भृगुसुते मन्दे तुलायामजे चंद्रे यस्य नरस्य जन्मसमये वीर्यच्युतोऽसौ भवेत् ॥ लग्ने चन्द्रयुते गुरौ रविसुते पुत्रेऽपि वीर्यच्युतो जीवेङ्गे सरवौ मृतावपि कुजे कीबर्क्षगे कण्टके ॥६॥ जिस मनुष्य के जन्मसमय में सूर्य कर्कका, शुक्र सिंहका, शनि तुलाका, चंद्रमा मेषका हो तो वह (वीर्यच्युत) नपुंसक किंवा धातु क्षीणवाला होवे अर्थात् क्कीबतासे संतान न होने पावें तथा लग्नमें चंद्रमासहित बृहस्पति, पंचममें शनि हो तो वीर्यक्षीण होवे अथवा बृहस्पति लग्नमें सूर्यसहित तथा अष्टममें मंगल हो और नपुंसक ग्रहकी राशि केंद्र में हो तो नपुंसक होवे ॥६॥ कन्याराशिगते लग्ने बुधमन्दावलोकिते ॥ शनिक्षेत्रगते शुक्रे वीर्यहीनो नरो भवेत् ॥ ७ ॥ लग्नमें कन्या राशि हो उसपर बुध, शनिकी दृष्टि हो तथा शुक्र Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षष्ठः ६] भाषाटीकासमेत् । (२५) शनिके क्षेत्र ॥। १० । ११ में हो तो वह मनुष्य वीर्य्यहीन ( नपुंसक) होवै ॥ ७ ॥ पुत्रसुखाभावयोगः | नीचे गुरौ भृगौ वापि समे ज्ञे विषमे रखौ ॥ तदा पुत्रसुखं न स्यादित्युक्तं गणकोत्तमैः ॥ ८ ॥ बृहस्पति अथवा शुक्र नीचका हो तथा बुध सम राशिमें, सूर्य विषम राशिमें हो तो पुत्रका सुख न होवे यह उत्तम ज्योतिषियोंका कथन है ॥ ८ ॥ षष्टिवर्षादूर्ध्वं पुत्रप्राप्तियोगः । कर्कटे तु कलानाथे पापयुक्तेक्षिते यदा ॥ मन्ददृष्टे दिवानाथे पुत्रः षष्टिमितेऽब्दके ॥ ९ ॥ चंद्रमा कर्कटका हो उसे पापग्रह देखें पापयुक्तभी हो और सूर्य पर शनि की दृष्टि हो तो ६० वर्षकी अवस्था में पुत्र उत्पन्न होवे ॥ ९ त्रिंशद्वर्षादूर्ध्वं पुत्रप्राप्तिः । पापभे पापसंयुक्ते जन्मलग्ने रवावलौ ॥ ॥ युग्मभे वसुधापुत्रे खगुणाब्दात्परं सुतः ॥ १ जन्मलग्न पापग्रहकी राशि हो तथा पापग्रहसे युक्त हो और सूर्य वृश्विकका, मंगल मिथुनका हो तो ( ३० ) वर्षसे ऊपर संतान होवै ॥ १० ॥ सन्तानाभावयोगः । अलौ गुरुकवी लग्रे भवेतां चद्रजार्कजौ ॥ न पश्यति सुतं गेहे कदाचिदपि मानवः ॥ ११ ॥ मन्देन्दुदृष्टो रिपुसंयुतोङ्गाधिपो रविश्शत्रुधने विपुत्रः ॥ मन्दोरिगेहे बुध सूर्यचन्द्रैर्दृष्टो विलग्रे खलवीक्षिते वा १२ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( २६ ) भावकुतूहलम् - [ पुत्रभाव: वृश्चिक राशिमें बृहस्पति और शुक्र हों, लग्नमें बुध, शनि हों तो वह मनुष्य गृहमें कदापि पुत्रको नहीं देखे । लग्नेश शत्रुगृही वा शत्रु युक्त हो शनि चंद्रमा उसे देखें तथा सूर्य छठा वा दूसरा हो तो अपुत्र होवे अथवा शनि शत्रुभावमें बुध, सूर्य चंद्रमासे दृष्ट हो यह ऐसाही लग्र में पापदृष्ट हो तो भी अपुत्र करता है ॥ ११ ॥ १२ ॥ मन्दालयेऽर्के खलदृष्टियुक्ते लग्नेपि वा पापखगस्य वर्गः अपत्यहानिः कुलदेव कोपात्पुरात नैरंगभृतांनिरुक्ता १३ शनिकी राशि १० । ११ में सूर्य पापग्रहों से दृष्ट या युक्त हो अथवा पापग्रहके (वर्ग) राशि अंशकों के लग्नमें हो तो कुलदेवताके कोप से संतानकी हानि कहनी, यह फल मनुष्यों को प्राचीनाचार्योंने कहा है ॥ १३ ॥ अपत्यभावे यदि मङ्गलः स्यादपत्यराशिं विनिहन्ति सद्यः ॥ अस्तांशके पापयुते सुतेशे तदा न सन्तानसुखं वदन्ति ॥ १४ ॥ पंचम स्थान में मंगल हो तो जितने पुत्र हों सभीको नाश करता है यदि सप्तम भावांशपति एवं पंचमेश पापयुक्त हों तो संता नका सुख नहीं होता ऐसा आचार्य कहते हैं ॥ १४॥ गुरोः सुतागारपतिः सपापो बलेन हीनो मनुजो विपुत्रः ॥ अरावपापे निधने तदीशः सुतेन हीनो मनुजस्तदानीम् ॥ १५ ॥ बृहस्पत्तिसे पंचमभावका स्वामी पापयुक्त एवं बलहीन हो तो मनुष्य अपुत्र होता है तथा छठे भाव में शुभग्रह, षष्ठेश अष्टम हो तो भी वही फल है ॥ १५ ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षष्ठः ३] भाषा का सम् । (२७) तथैव भानुः खलु पंचमस्थो जातं च जातं विनिहन्ति बालम् ॥ लग्नेश्वरः पापयुतः सुतेशो व्ययाष्टमे पुत्रसुखेन हीनः ॥ १६ ॥ निर्बल सूर्य पंचम हो तो जितने बालक हों उन सबको नाश करे वा लग्नेश पापयुक्त और पंचमेश ८ । १२ में हो तो पुत्रसुखसे रहित रहै ॥ १६ ॥ यदा सूर्यारशनैश्चराणां दोषोऽथ वै जन्मनि मानवानाम् ॥ वंशेशकोपेन सुतस्य नाशं तदा वदन्तीति पुराणविज्ञाः ॥ १७ ॥ यदि जन्मकाल में संतान हानिकारक राहु, सूर्य शनैश्वरका दोष हो अर्थात् ये ग्रह संतानहानिकारक हों तो (वंशेश) कुलदेवता के कोप से संतानका नाश जानना उसके मनोहर पूजादि करने से संतानका सुख होता है यह पुराणाचार्योका मत है ॥ १७ ॥ पुत्रार्थ देवतोपासना | बुधशुक्रकृते दोषे सुताप्तिः शिवपूजनात् ॥ गुरुचन्द्रकृते दोषे यंत्रमंत्रौषधीबलात् ॥ १८ ॥ यदि बुध संतानहानि दोषकारक हो तो शिवके ( पूजन ) आराधन करने से पुत्रप्राप्ति होवे । बृहस्पति, चंद्रमाका दोष हो तो अनेक प्रकार यंत्र, मंत्र, साधन तथा दिव्य औषधिके प्रयोगसे संतान सुख होता है ॥ १८ ॥ राहुणा कन्यकादानं भानुना हरिकीर्त्तनम् ॥ शिखिना कपिलादानं मन्दाराभ्यां षडंगकम् ॥ १९ ॥ संतान बाधाकारक राहु हो तो किसीको किसी प्राकर कन्या दान करना, सूर्यका दोष हो तो विष्णुका कीर्तन भगवान्का आराधन Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२८) भावकुतूहलम् [राजयोगःविशेषतः हरिवंशका पाठ करना, केतु हो तो कपिला गोदान करना, शनि, मंगल बाधक हों तो (षडंग) रुद्राध्यायका अनुष्ठान रुद्राभिषेक घटीस्नानादि करना ॥ १९॥ सर्वदोषविनाशाय सन्तानहारपूजनम् ॥ कुर्याद्भौमव्रतं चापि कामदेवव्रतं नरः॥२०॥ इति भावकुतूहले पुत्रभावविचाराध्यायः ॥ ६॥ समस्त दोषशांतिके लिये संतानगोपालका अनुष्ठान पूजन करना तथा भौमवत अथवा कामदेवव्रत शास्त्रोक्त प्रकारसे करना औरभी उपाय धर्मशास्त्र आगम शास्त्रोंसे जानने ॥२०॥ इति भावकुतूहले माहीधरीभाषाटीकायां पुत्रभावविचाराध्यायः ॥ ६॥ सप्तमोध्यायः। सार्वभौमराजयोगः। खेटा यदा पंच निजोच्चसंस्थाः स सार्वभौमः खलु यस्य मृतौ ॥ त्रिभिः स्वतुङ्गोपगतैः स राजा नृपालबालोन्यसुतस्तु मंत्री॥१॥ जिसके जन्ममें पांच उपलक्षणसे चारभी ग्रह उच्चके हों तो राजवंशी समस्त पृथ्वीका राजा चक्रवर्ती होवे अन्य कुलोत्पन्न राजाही होवै। यदि तीन ग्रह उच्चके हों तो राजपुत्र राजा होवे, अन्यजात मंत्री होवै. अथवा स्वकुलानुमान श्रेष्ठता पावै ॥१॥ गुरावुच्चे केन्द्रे भवति दशमे दानवगुरौ जनुः काले मुद्रा विलसति समुद्रावधि भृशम् ॥ गुरौ कर्के चापे भवति च सचन्द्रे दिनमणौ । बुधे तुङ्गे लगे बलवनि खगे वा नरपतिः॥२॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ airmiriwwwmarAurar HansranALoad सप्तमः ७] भाषाटीकासमेतम् (२९) __ जन्मसमयमें उच्चका बृहस्पति केंद्रमें हो शुक्र दशम हो तो उस की (मुद्रा ) मोहर छाप समुद्रपर्यंत चले अर्थात् समुद्रांत पृथ्वीका राजा होवै । यदि बृहस्पति कर्क वा धनका चन्द्रमासहित होवै तथा बुध वा सूर्य अपने उच्चमें होकर लग्नमें अथवा कोई बलवान् ग्रह लग्नमें हो तो राजा होवै ॥२॥ ! गुरावङ्गे कर्के मदनसुखभावे दिनमणः । सुते शके वक्र प्रभवति जनेयस्य समयः॥ महाम्भोधेनौरं गमनसमये तस्य करिणां चलघण्टानादाद्रजति चपलत्वं हि परितः ॥३॥ बृहस्पति कर्ककालनमें (सूर्यपुत्र) शनि १७ भावोमेंसे किसीमें हो तथा शुक्र वक्रगति हो, ऐसा योग जिसके जन्मसमयमें हो वह ऐसा राजा होवै कि,जिसकी सवारी निकलनेमें चारों तरफसे हाथियोंके घंटाओंके नादसे समुद्रकाजलभी चारातरफ उछलने लगे॥३॥ अजं जीवादित्यौ दशमभवने भूमितनयः । स्तपस्थाने शुक्रो बुधविधुयुतो यस्य जनने ॥ गजानामालीभिर्विजयगमने तस्य सहसा | समाक्रान्ता पृथ्वी व्रजति चकिता मोहपदवीम्॥ जिसके जन्मसमयमें बृहस्पति सूर्य मेषके, मंगल दशम स्थानमें शुक्र नवमभावमें और चंद्रमा बुध सहित हो तो उसके शत्रुपर चढाई करनके गमनमें एकाएकी हाथियोंकी पंक्तिसे पृथ्वीभर जाकर ( चकित ) आश्चर्ययुक्त होके मोहको प्राप्त हो जावे ॥४॥ कन्याङ्ग सबुधे झषे सुरगुरौ भूपुत्रसूर्यौ बली मन्दे कर्कगते शरासनगवे शुक्रे यदीया जनिः॥ . . . ..*.. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३०) भावकुतूहलम् [राजयोगः। तस्यालं शिरसा वहति वसुधाधीशा:सदाशासन ह्यानंदाद्विकचारविन्दकलिकामालामिव प्रायशः॥५ कन्याका बुध लग्नमें, बृहस्पति मीनका सप्तम हो, सूर्य, मंगल किसी स्थानमें बलवान हों, शनि कर्कका, शुक धनका हो ऐसे राजयोगमें जिसका जन्म हो उसकी आज्ञा (हुकुम) को राजालोग सर्वदा आनंदपूर्वक ऐसे ग्रहण करते हैं जैसे खिलेहुये कमलोंकी मालाको विशेषतासे गलेमें धारण प्रसन्नतासे करते हैं ॥५॥ भाग्ये भानुसुतो मृगे धरणिजो जीवज्ञशुकाः सुते । तिष्ठति प्रबला दिवाकरकरव्यासंगमुक्ता यदा ॥ । तत्रोद्भूतजनस्य यानसमये प्रोत्तुङ्गराजिवज। व्यस्तन्यस्तपदप्रचाररजसाच्छन्नं नभोमण्डलम६॥ नवम स्थानमें शनि मकर राशिका मंगल,तथा बृहस्पति, बुध, शक्र पंचम हों और उक्तग्रह बलवान हों सूर्यकिरणोंके व्यासंगसे मुक्त हों अर्थात् अस्तंगत न हों उदयी हों ऐसे योगमें जिस किसीका जन्म हो तो उसकी सवारी निकलने में इधर उधरसे जो साथ चलनेवाले (जलवेदार ) हैं उनकी पंक्तियोंके उलटे सीधे पैर पृथ्वीपर रखनेसे जो (रज ) धूलि उडती है उससे आकाशभी ढकजावे इतना बडा राजा होवै ॥६॥ यदि तुलामकराजकुलीरभे रविमुखाः सकला विलसति चेत् ॥ इह चतुष्कमहोदधिसंज्ञकः सुरपतेः समतां तनुते नृणाम् ॥ ७॥ यदि ७।१०।१।४ राशियोंमें समस्तसूर्यादिग्रह हों तो इस योगमें जन्मनेवाला मनुष्य चार समुद्रपर्यंतके राजाकी तुल्यता पावे ॥७॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'सप्तमः ७] भाषाटीकासमेतम् । ( ३१ ) राज्यस्वामी निजोच्चे भवति तनुधनापत्यपातालकांता पुण्यानामुच्चराशौ पतय इह यदा वीर्य - वतोभवंति ॥ राजानो यस्य तस्य प्रबलबलघटादंतिघंटाधनुर्ज्या टंकारत्रातभीता जगदुदरगताः कंपभावं भजंति ॥ ८ ॥ MARA जिसके जन्मसमय में दशम स्थानका स्वामी अपने उच्च में हो तथा लग्न, धन, पंचम, सप्तम, चतुर्थ नवम भावोंके स्वामी अपने अपने उच्चोंमें हों अथवा बलवान् हों तो उस मनुष्यके ( प्रबल ) Mast भारी सेना ( फौज ) की घटासे एवं सेना के हाथियोंकी घंटा तथा धनुषोंकी (ज्या) चिल्ला के टंकारशब्दों के समूहसे भययुक्त होकर राजेलोग पृथ्वीके भीतर कंदरा ( खात) तैखाना आदियों में डरते कांपते हुये छिपजावे ॥ ८ ॥ येषामर्को निजोच्चे प्रभवति मकरे मंगलो वैौरभावे दैत्यज्यः कर्मगामी शनिरपि सहजे जन्ममात्रेण तेषाम् ॥ पृथ्वी सद्दानतोयार्णवजनितयशश्चंद्रकांत्यर्जुनामा मत्तान्मत्तप्रचण्डप्रबलरिपुशिरोमंडले वज्रपातः ॥ ९ ॥ selam B 7 जिन मनुष्यों का सूर्य अपने उच्च ( १ ) में, मंगल मकरमें, छठा शुक्र दशम शनि तीसरा हो तो उनके जन्महीसे पृथ्वी शुभदान देनेके संकल्प के समुद्ररूपी जलसे परिपूर्ण होवे । यशरूपी चंद्रमाके कांति से अर्जुनके समान यद्वा (अर्जुनाभ) धवलिते (श्वेत, स्वच्छ ) हो जावे और ऐश्वर्यवान् तथा राजमदसे उन्मत्त अतिबलवान् बडे बडे शत्रुओंके शिरोंमें वज्रपात जैसा खटकने लगे ॥९॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३२) ...भावकुतूहलम्- [राजयोगः। सम्बन्धो दशमाधिपस्य नवमाधीशेनयेषां जनुः काले पंचमभावपेन च बलोपेतस्य तुल्येन चेत् ॥ प्रस्थाने सति लीलया तनुभृतां वश्यारिविश्वंभरा 'गर्जडोटकमत्तवारणघटाक्रांता समंताद्भवेत् ॥१०॥ ग्रहोंके सम्बन्ध चार प्रकारके होते हैं-परस्पर दृष्टि होने में दृष्टिसम्बन्ध(१)एकके राशिमें दूसरा, दूसरेमें पहिला, अन्योन्याश्रयसंबंध (२), दोनों भावोंके स्वामी अपनी अपनी राशियोंमें स्थानसंबध (३), कारकसंबंधी (४), जिनके जन्म समयमें नवमेश दशमेशका किसी प्रकार संबंध हो अथवा पंचमेशके साथ उनका संबंध हो परन्तु संबंधकारकग्रह बलवान हों तो संबंध भी (तुल्य ) बलवान् एवं अधिकारीहीके साथ करें तो उनके युद्धार्थ प्रस्थानमें वा अन्य सवारी निकलनेमें पृथ्वी गरजते हुये घोडोंकी, मतवाले हाथियोंकी घटओंसे चारोंओरसे आक्रांत होवे तथा लीलासे शवकी पृथ्वी (राज्य) विनहीं युद्ध किये वशमें हो जावै ॥ १० ॥ अत्युत्कृष्टराजयोगः। राज्यशो यदि देवतालयपदे पारावतांशे तपःस्थानेशो धनगोपि गोपुरलवे लाभादिपोजन्मिनाम् । चंचत्तुंगतुरङ्गकुंजरघटाघटाधनुयारवै वित्रस्तागमनोत्सवे दिगबला भ्रांतिं भजतिक्षणात् ॥ यदि मनुष्योंके जन्मसमयमें दशमभावेश नवमस्थानमें पारावतांशकमें स्थित होवे, नवमेश द्वितीयस्थानमें होवे, तथा लाभेश गोपुरांशकमें हो तो उनके (प्रयाणोत्सव ) सफरकी तैयारीमें चपल तथा उच्च घोडे और उन्मत्त हाथियोंकी घंटाओंके शब्दोंसे एवं Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सप्तमः ७]. भाषाटीकासमेतम् । (३३) धनुषोंके टंकार शब्दोंसे भयभीत होकर दिशारूपी (अबल) श्री क्षणमात्रमें (भ्रांत ) घबराहटयुक्त हो जाती हैं ॥ ११ ॥ सिंहासनयोगः । कन्यामीनवृषालिभे यदि खगाः सिंहासनः कीर्वितः किंवा चापनृयुग्मकुंभहरिभे खेटे हि सिंहासनः ॥ यः सिंहासनयोगजो हि मनुजो भूपाधिराजो बली गर्जत्कुञ्जरवाजिराजिमुकुटारूढो घरामण्डले ॥ १२ ॥ यदि ६ । १२ । २ । ८ राशियों में सभी ग्रह हों तो सिंहासनयोग होता है, यद्वा ९| ३ |११/५ राशियों में हो तौभी यही योग होता है जिस मनुष्यका जन्म सिंहासनयोगमें हो वह पृथ्वी में गर्जन करनेवाले हाथी घोडों की पंक्तिके ( मुकुट ) श्रेष्ठों पर बैठनेवाला राजाओंकाभी राजा होवे ॥ १२ ॥ चतुश्चक्रयोगः । अजे सिंहे कन्याकलशमिथुनान्त्यालितुरगे समाजः खेटानामिह भवति जन्मन्यपि नरः ॥ चतुश्चक्रे योगे सकलसुखभोगेन मिलितो महीपानामाली मुकुटमणिपाली विजयते ॥ १३ ॥ जिस मनुष्य के जन्ममें १२५ / ६ /११/३/१२/८/ ७ राशियों में सभी ग्रह हों तो इस योगका नाम चतुश्वक है इसमें जिसका जन्म हो वह समस्त सुखभोगोंसे युक्त होकर राजाओंके मुकुटमणियोंकी पंक्तिको जीतकर स्वयं अधिराज होता है ॥ १३ ॥ एकावलीयोगः । ! एकैकेन खगेन जन्मसमये सैकावली कीर्तिता मुक्ताळीव समस्तभूपमुकुटालङ्कारचूडामणिः ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३४) भावकुतूहलम् [रामयोगःतज्जातो रिपुपुंजभंजनकरो गन्धर्वदिव्याङ्गना वृन्दानन्दपरो गुणवजधरो विद्याकरो मानवः॥१४॥ । यदि एक एक ग्रह एक एक स्थानों में बराबर हों जैसे मोति. योंकी माला पृथक् पृथक् एक एक दानेकी रहती है, तो इस योगको एकावली कहते हैं. इसमें जन्मा हुआ मनुष्य समस्त राजाओंके मुकुटकी शोभा देनेवाला(चूडामणि)उत्तम नग सरीखा श्रेष्ठ होता है. तथा शत्रुओंके समूहोंका भंजन करनेवाला, गंधर्वकन्या और स्वर्गकी स्त्रियोंके समूहका आनन्द करनेवाला,गुणोंके समूहको धारण करनेवाला तथा चतुर्दश विद्याओंकी खान होता है ॥१४॥ . शत्रुविजययोगः। कुलीरे कन्यायामनिमिषधनुर्युग्मभवने जनुःकाले यस्य प्रभवति नभोगो रविमुखः ॥ प्रचण्डप्रोत्तुङ्गप्रबलरिपुहन्ता क्षितिपतिः समन्तादाधिक्यं व्रजति धनदानेन महताम् ॥ १५॥ कर्क, कन्या, मीन, धन, मिथुन राशियोंमें सूर्यादि सभी ग्रह जिसके जन्मसमयमें हों वह अति प्रबल (बढीहुई) तीक्ष्णयोधाओंवाली बड़ी भारी शत्रुसेनाको जीतनेवाला राजा होताहै तथा धन देनेसे सभी प्रकार बडे बडे लोगोंसेभी अधिकता पाताहै ॥१५॥ नृपमुकुटयोगः। अथादित्यः सिंहे विधुरपि कुलीरे रविस्तो मृगे मीने जीवो हिमकरसुतो यस्य मिथुने ॥ तुलायां शुक्रश्चेदजभवनगो भूमितनयो नृबालो भूपालो नृपमुकुटभूषामणिवरः ॥ १६ ॥ जिसके जन्मसमयमें सूर्य सिंहका, चंद्रमा कर्कका, शनि,मकरका, वृहस्पति मीनका, बुध मिथुनका, शुक तुलाका भौर मंगल Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सप्तमः ७ ] भाषाटीकासमेतम् । ( ३५ ) मेषका हो तो वह मनुष्यबालक राजाओंके मुकुटका श्रेष्ठ मणि ऐसा श्रेष्ठ राजा होवे ॥ १६॥ सामान्यराजयोगः | दिवानाथः सिंहे गवि हिमकरो मेषभवने महीजः कन्यायाममृतकरसूनुः सुरगुरुः ॥ भवेच्चापे कुम्भे दिनमणिसुतस्तौलिनि कविजनुः काले यस्य प्रभवति नरोऽसौ क्षितिपतिः १७॥ जिसके जन्मसमय में सूर्य सिंहका चंद्रमा वृषका, मंगल मेषका, बुध कन्याका, बृहस्पति धनका, शनि कुंभका और शुक्र तुलाका हो तो वह राजा होवे ॥ १७॥ बली पुण्यस्वामी दशमभवनाधीशभवने तपःस्वाम्यागारे भवति दशमेशोऽपि भविनाम् ॥ तदा गर्जन्तावलनिकरघण्टाघनरवैदिगन्तं वित्रस्तो विजयगमने यात्यरिगणः ॥ १८ ॥ जिस मनुष्य के जन्म में नवमेश बलवान् होकर दशम वा दशमेशके राशिमें तथा दशमेश नवम वा नवमेश के राशि में हो तो वह ऐसा प्रतापी राजा हो कि, जिसके शत्रुविजयार्थ गमन ( शत्रुपर चढाई ) में गर्जन करतेहुये हाथियोंके घंटाओंके घने शब्दसे डर कर शत्रुसमूह दिगंतों में भाग जावै ॥ १८ ॥ शत्रुत्रासकरयोगः । यदा पुण्यस्वामी दशमभवने पुण्यभवने बली कर्माधीशो भवति भविनामेव जनने ॥ समुद्रान्तं कीर्तिर्विजयगमने वैरि पटलीधनुर्ज्याटङ्कारैर्भजति चकिता भीतिपदवीम् ॥ १९ ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ३६ ) भावकुतूहलम् - [ राजयोगः यदि जन्मधारियोंके जन्मसमय में नवमेश दशमस्थान में और दशमेश नवमस्थान में हों, वा दोनों बलवान हो तो समुद्रपर्यंत कीर्ति फैलानेवाला राजा होवे तथा उसके शत्रुविजयार्थ गमनमें धनुषकी (ज्या ) कमानके टंकारशब्दोंसे शत्रुसमूह आश्चर्ययुक्त होकर भय के मार्गको प्राप्त होता है ॥ १९ ॥ प्रतापाधिकयोगः । ! भवेदङ्गाधीशो जननसमये पुण्यभवने तथा कर्मस्वामी भवति च विलग्ने जनिमताम् ॥ तथा गर्जन्तावलकरभवाजिव्रजपदैः समाक्रान्ता पृथ्वी ब्रजति गमने मोहपदवीम् ॥२०॥ जिसके जन्मसमय में लग्नेश नवमस्थान में एवं दशमेश लग्रमें हो तो वह राजा होकर गर्जन करनेवाले हाथी घोडे ऊँट आदिकों के समूहसहित जब गमन करे तो सेना के बोझोंसे दबी हुई पृथ्वी मोह पद ( घबराहट) को प्राप्त होजावै ॥ २० ॥ सुखैश्वर्यादियुक्तयोगः । यदा राज्यस्वामी नवमसुतकेन्द्रेऽर्थ भवने बलाक्रान्तो यस्य प्रभवति स वीरो नरवरः ॥ सदा काव्यालापी नवमणिकलापी बहुबली तुरङ्गालीदन्तावलकलभगन्ता धनपतिः ॥ २१ ॥ यदि जन्मसमयमें दशमभावका स्वामी त्रिकोण (९१५) वा केन्द्र ( १ । ४ । ७ । १० ) यद्वा धन (२) स्थानमें बलवान हो तो वह सर्वदा काव्य करने वा कहनेवाला होवे एवं बहुत बलवान् और अनेक घोडाओंके पांति और हाथियोंके मनोहर जवान पट्टाओंके सवारीमें गमन करनेवाला धनवान राजा होवे ॥ २१ ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सप्तमः ७ ] भाषाटीकासमेतम् । यदा कर्मस्वामी सुतभवनगामी शुभयुतः सुतेशः कोदण्डे भवति भविनो यस्य जनने ॥ भयातीतो भोगी भवति चिरजीवी बहुगुणी मतङ्गालीगन्ता रिपुनिकरहन्ता नरपतिः ॥ २२ ॥ जिस मनुष्य के जन्मसमय में दशमेश पंचम भाव में शुभग्रहयुक्त हो तथा पंचमेश धनराशिकाही यद्वा दशम हो वह भयरहित तथा सुखभोग भोगनेवाला, दीर्घायु, बहुतगुणवान् होवे. हाथियोंके झुंड उसकी सवारीमें रहैं वह शत्रुसमूहको मारनेवाला राजा होवे ॥ २२ ॥ धनागारस्वामी भवति यदि पारावतपदे विशालं भूपालं कलयति नृबालं बहुबलम् ॥ अरातीभवाताङ्कुशमनिशमानन्दनिरतं नितान्तं श्रीमन्तं विविधधनदानोद्यतमलम् धनभावका स्वामी यदि पारावतांशमें हो तो मनुष्यके बालकको बहुत बडा राजा करता है कि, जो शत्रुरूपी हाथी समूहोंके ऊपर अंकुशतुल्य रहता है. सर्वदा प्रसन्न, सर्वदा धन राज्यलक्ष्मीसे युक्त रहता है अनेकप्रकारसे (उदार) धन देने में निश्चय तत्पर रहता है२३ देवलोकलवगो निशाकरात्पुण्यराशिपतिरिन्दुकान्तिभाक् ॥ गोगजव्रजतुरङ्गमण्डलीमण्डितो मणिगणैरिलापतिः ॥ २४ ॥ ॥२३॥ नवमभावेश चन्द्रमासे २१ वें अंशमें हो तथा चन्द्रमा पूर्णमूर्ति होवे तो वह गौ, हाथियोंके समूह घोडाओंके मण्डलीसे शोभायमान (मणि) रत्नोंके समूहसे युक्त पृथ्वीका पति होवे ॥ २४ ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ( ३७ ) www.umaragyanbhandar.com Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३८) भावकुतूहलम् [राजयोग:कुरतुल्यराजयोगः। यदा माने याने भवति मदने वासवगुरौ स्वतुङ्गे वा पढेरुहनिकरबन्धावपि भृशम् ॥ भयत्राता दाता निगमविहिताचारचतुरो गुणवातैनम्रो धनपतिसमानो विजयते ॥२५॥ यदि १०।४।७ भावोंमेंसे किसीमें बृहस्पति अपने उच्चका हो और उसके साथ विशेषतः चन्द्रमाभी हो तो भयसे रक्षा करनेवाला बहुत दान देनेवाला, शास्त्रोक्त आचार करनेमें चतुर, अनेक शौय्यौदा-दिगुणोंसे नम्र और धनमें कुबेरके समान जयशालीराजा होवे ॥२५॥ केवलनृपबालकविचारः। । एतेषु योगेषु नरो नृपालो भवेदलं नीचकुलप्र जातः ॥ नृपालबालोऽपि च वक्ष्यमाणैः सुयोगजातैरिति संप्रवक्ष्ये ॥ २६॥ . इतने जो राजयोग कहे हैं इनमें नीचकुलका उत्पन्न पुरुषभी राजा हो जाता है. ये सर्वसाधारणके लिये तुल्य है और राजाका पुत्र जिसका राजा होना संभव है वह थोडे भी राजयोगसे राजा होता है ऐसे अच्छे सुयोग आगे ग्रन्थकर्ता कहते हैं ॥२६॥ मृगे विलये रविजे कुलीरे दिवाकरे चन्द्रयुते प्रमूतौ ॥ कुजे यदाये भृगुजेऽष्टमस्थे भवेत्रपालो नृपवंशजातः॥ यदि जन्ममें मकर लग्र हो, शनि कर्कमें, सूर्य पञ्चममें हो,चंद्रमा भी साथ हो तथा मङ्गलटका ग्यारवहवें भावमें, शुक्र सिंहकाअष्टम, जन्ममें हो तोराजपुत्र राजा होवे अन्यकुलोत्पन्न कुलाधिक होवे२७ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सप्तमः ७] भाषाटीकासमेतम् । ( ३९ ) यदा कवीज्यौ भवतश्चतुर्थे नृपालबालोपि च भूमिपालः ॥ कुलीरगो देवगुरुः सचन्द्रो नृपालबालं प्रकरोति बालम् ॥ २८ ॥ !!! यदि जन्म में बृहस्पति शुक्र चतुर्थ भावमें हों तो राजपुत्र राजा होवे तथा कर्कका बृहस्पति चंद्रमासहित हो तो बालक राजाओं में श्रेष्ठ होवै ॥ २८ ॥ यदेन्द्रमन्त्री विधुजं प्रपश्येद्वणज्ञविज्ञं नृपतिं करोति ॥ प्रसूतिकाले यदि पंचराशौ चैकोऽपि बालं कुरते नृपालम् ॥ २९॥ यदि जन्मसमय बृहस्पति बुधको देखे तो गुणज्ञ तथा विद्यावान् राजा करता है तथा जन्मकाल में यदि पंचमभावमें एक भी बलवान् ग्रह हो तो बालक राजा होवे ॥ २९ ॥ 1 हितलवे तपनो विधुनेक्षितो नृपसुतं कुरुते च नृपोत्तमम् ॥ विधुसुतः सविधुः कुरुते नृपं भवति तुङ्गगतो यदि जन्मनि ॥ ३० ॥ सूर्य मित्रांशक में चन्द्रमासे दृष्ट हो तो राजपुत्र राजाओं में उत्तम होवे, बुध चन्द्रमासहित उच्च (६) का हो तो जन्महीसे राजा होवै ३० जनुषि लग्नगतो यदि लग्नपो बलयुतः किल // कण्टकगोऽपि वा ॥ अविरतं प्रकरोति तदा नृपं नृपजमेव न चित्रमिति स्फुटम् ॥ ३१ ॥ यदि जन्मसमय में लग्नेश लग्नमें बलवान् हो अथवा किसी अन्य केंद्रमें हो तो राजपुत्रको विना विलंब राजा करता है, इसमें कुछ आश्चर्य नहीं ॥ ३१ ॥ . रविरजे शनिना बलिना युतो भवति भूमिपति Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४०) भावकुतूहलम्- [राजयोगःकुरुते शिशुम् ॥ द्रविडकेरलदेशसमुद्भवं कृतिवरं च परत्र धनेश्वरम् ॥ ३२ ॥ सर्य मेषका बलवान शनिसे युक्त हो तो बालकको राजा करता है यह योग विशेषतः द्रविड तथा केरलदेशियोंको विशेष राज्यफल करता है तथा उसे अन्यत्र पंडित ‘एवं पराये कमायेहुए धनका स्वामी भी करता है ॥ ३२॥ गुरुकवी यदि तुङ्गगताविमौ जनुषि कण्टककोणगृहाश्रितौ ॥ नृपकुले कुरुतो नृपमन्यथा द्रविण परितो भवतो नरम् ॥ ३३ ॥ जन्मकालमें यदि बृहस्पति शुक्र अपने अपने उच्चराशियोंके केंद्र कोणोंमें हों तो राजकुलका उत्पन्न राजा होवे परन्तु अन्य कुलीय हो तो धनका स्वामी होवै ॥ ३३॥ _ श्रीछत्रयोगः। प्रसूतिकाले यदि सर्वखेटैस्तनुव्ययाऽगाऽर्थगृहस्थितैश्चेत् ॥ पुरातनात्पुण्यत एव पुंसां श्रीच्छत्रयोगं प्रवदन्ति सन्तः ॥३४॥ जन्मसमयमें समस्त ग्रह लग्न व्यय सप्तम धन भावोंमें हो तो यह श्रीछत्रयोग पूर्वजन्मके पुण्यसे मनुष्यका होताहै, यह पंडित कहते हैं ॥ ३४॥ नृपवालाना सुखादियुक्तयोगः। यदा जीवो लग्ने मकरमपहाय प्रवसति तदालं भूपालं नृपतिकुलबालं जनयति ॥ भवत्येवं चन्द्रो जनुषि जनुरङ्गं च कलया परिक्रान्तः केन्द्र नरपतिसुत भूपतिपरस् ॥ ३५॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सतमः ७] भाषाटीकासमेत् । (४१) यदि जन्ममें बृहस्पति मकरराशिको छोडके अन्य किसी राशिका लग्नमें हो तो निश्चय करके राजपुत्र राजा होता है ऐसेही चंद्रमा अपने नीच (८) को छोडकर पूर्णकला हो लग्न अथवा अन्य केंद्रोंमें हो तो राजपुत्रको राजा करताहै ॥ ३५ ॥ सुखागारस्वामी भवति नवमे वाथ दशमै सुख वा लग्ने वा हितलवगतो वा शुभखगैः॥ । युतो दृष्टो दन्तावलतुरगयानेन नितरां जनानामागारं कनकमणिसंधैः परिवृतम् ॥३६॥ जन्ममें यदि चतुर्थभावका स्वामी नवमस्थानमें अथवा दशममें, चतुर्थमें, लग्नमें हो परंतु मित्रस्वांशकमें हो शत्रुके वर्गमें न हो अथवा शुभग्रहोंसे युक्त दृष्ट हो तो हाथी घोडाओंकी सवारी नित्य उसके रहे तथा घर सुवर्ण एवं माणिक्य और रत्नसमूहोंसे युक्तरहे ३६ पंचमे भवति कर्मभावपे कान्तिभाजि गजवाजिजं सुखम् ॥ सर्वतोऽस्य विदिता ततो भवेदादिगन्तमतुला यशोलता ॥ ३७॥ . दशमभावेश पंचमस्थानमें उदयी हो तो हाथी घोडाका सुख सर्वप्रकारसे होवै और उसकी निर्मल कीर्ति दिशाओंके अंपतर्यंत पहुँचे ॥ ३७॥ अथ चन्द्रयोगाः। भवति चन्द्रमसो दशमाधिपो जनुषि केन्द्रनवद्विसुतोपगः ॥ अतिविचित्रमणिबजमाण्डतो वसुमतौ वसुभूषणसंयुतः ॥ ३८॥ अब चंद्रमासे योग कहते हैं-यदि जन्मसमयमें चंद्रमासे दशम भानेश केंद्र (१।४।७।१०) नव ९ द्वि २ सुत ५भावमें हो तो Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४२) भावकुतूहलम् [राजयोम:अतिउत्तम नानाप्रकारके मणियोंके समूहसे (मंडित) श्रृंगार युक्त होकर पृथ्वीमें धन भूषणोंसे युक्त रहै ॥३८॥ । चन्द्राकान्तभपः सुखालयगतो दन्तावलानां सुखं मुक्तास्वर्णमणिव्रजामलयशःपुञ्ज विचित्रालयम् ॥ भृत्यापत्यकलत्रमित्रपटलीविद्याविनोदं तथा पुण्यं संतनुते मुदं नरपतरर्थ नराणामिह ॥ ३९॥ चंद्रस्थितराशिका स्वामी चतुर्थ हो तो हाथियोंका सुख, मोती, सुवर्ण, मणिसमूह मिलें निर्मल यशके पुंज होवें। नानारंगोंका पर होवे, (नौकर) सेवक, पुत्र, स्त्री, मित्रोंका समूह रहै, विद्याके विनो. देमें रहै, पुण्य कमावे, प्रसन्नता पावै, राजासे धन पावै यह सभी मनुष्योंको कहाहै ॥ ३९॥ अनफादियोगः। व्ययगतैरनफा रविवर्जितैर्द्धनगतैः खचरैः स्वनफा विधोः ॥ उभयतोऽपि गतैरुदिता नृणां दुरुधरा मधुराशनभोगदा ॥४०॥ चंद्रमासे बारहवें स्थानमें सूर्यरहित कोई ग्रह हो तो अनफा, चंद्रमासे दूसरेमें कोई हो तो स्वनफा और दोनों स्थानोंमें ग्रह हों तो दुरुपरा योग मधुरभोजन और अनेक प्रकारके भोग देनेवाला होताहे ॥१०॥ अनफायोगफलम् । । जनिमतामनफा कुरुतेतरां गुणवतीयुवतीरति वर्द्धनम् ॥ नृपसभापटुताममलं यशो वरपशो| रपि सौख्यकरं परम ॥४॥ जन्मपारीको भनकायोग हो तो गुणवती (युवती) स्त्री एवं Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सतमः७] भाषाटीकासमेतम्। उससे (रति ) क्रीडाकी वृद्धि देताहै, राजाकी सभामें चतुरताः निर्मलयश और श्रेष्ठ पशु घोडे आदियोंकाभी परमसौख्य निश्चय करके देताहै ॥४१॥ स्वनफायोगफलम् । भुजबलेन रमापरमालयं जनिमतां गारमा स्वनफा यदा ॥ अबलयाऽमलया नवयानभूविभुतयाद्धतया परमं सुखम् ॥ ४२ ॥ स्वनफायोग यदि जन्ममें हो तो उसके बाहुबलसे (परम) श्रेष्ठ लक्ष्मी घरमें रहै, (गुरुता) बडप्पन मिले तथा सुन्दरनिर्मल नवयौवना स्त्री, नई सवारी और पृथ्वी इनका अद्भुत सुख मिले ॥१२॥ दुरुधरायोगफलम्। दुरुधरा बहुधा वसुधावसवजसुवारणवाजिसुखं नृणाम्॥ वितनुते नृपतेरतुलं यशो गुणकलापपटुत्वमिहाद्धतम् ॥ ४३॥ जिन मनुष्योंका दुरुधरायोग हो उनको( पृथ्वी) जमीन, धनके समूह, उत्तम हाथी, घोडे आदिका सुख होवे, राजासे अतुल यश मिले, अनेक गुणोंके समूहसे अद्भुत चतुरता मिले॥ १३॥ .. केमद्रुमयोगः। न धने न व्यये खेटाश्चन्द्रादिह भवन्ति चेत् ॥ वदा केमद्रुमं प्राहुः पंडिता मिहिरादयः ॥ ४४ ॥ यदि चंद्रमासे दूसरे वा व्ययभावमें कोईभी ग्रह न हो तो उसको मिहिराचार्य आदि पंडित केमद्रुमयोग कहते हैं ॥ १४ ॥ । केमद्रुमे सुरपतेरपि नन्दनोऽयं देशान्तरं व्रजति पुत्रकलत्रहीनः ॥ धर्मच्युतो विकलितो गदसंघभीतो नानाधितापसहिवो महिवोषहीनः ॥ १५॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४४ ) भावकुतूहलम् - [ राजयोग: जिसके जन्म में केमद्रुमयोग हो वह इंद्रका प्यारा पुत्रभी हो तो भी स्त्री पुत्रोंसे रहित होकर विदेश भ्रमण करै, धर्मसे रहित रहै, कलाहीन, रोगोंसे भयवान् नानाप्रकारकी मानसी व्यथा संतापसहित और संसार में संतोषहीन रहै ॥ ४५ ॥ केमदुमभङ्गः । शुक्रेज्यसौम्यसहितोऽपि च कण्टकस्थो वा पूर्णबिंब इह यस्य भवेन्मृगाङ्कः ॥ केन्द्राणि खेचरयुतानि तदा नराणां केमद्रुमोद्भवफलं विफलत्वमीयात् ॥ ४६ ॥ उक्त केमद्रुमयोगका भंग कहते हैं कि, जिसका चंद्रमा, शुक, बृहस्पति, बुधमेंसे किसी से युक्त हो अथवा केंद्र में हो अथवा पूर्ण मंडल हो यद्वा उसके केंद्रों में ग्रह हो तो मनुष्योंको केमद्रुम योगोक्त फल केमद्रुम हुएमें भी निष्फल होजावे ॥ ४६ ॥ हृदयोगः । जनुषि नीचगताः सकला ग्रहा यदि भवन्ति तदा हृदसंज्ञकः ॥ हृदभवो विकलो विभवोनितो रिपुहतो नितरां शठतायुतः ॥ ४७ ॥ जन्मसमय में यदि समस्तग्रह नीच राशिअंशकों में हो तो हदयोग होता है, ह्रदयोग में जिसका जन्म हो वह (विकल) कलारहित ऐश्वर्यहीन शत्रुसे ( पराजित ) हाराहुआ ( शठ ) धूर्त वा वंचकभी होवे ॥ ४७ ॥ फणियोगः । घटगते तपने क्रियगे शनावलिगते च विधौ निजनीचभे ॥ भृगुसुते जनने फणिसंज्ञको विकलितं कुरुते नरपुङ्गवम् ॥ ४८ ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सप्तमः ७] भापाटीकासमेतम् । ( ४५ ) कुम्भका सूर्य, मेषका शनि वृश्चिकका चन्द्रमा, कन्याका शुक्र, अपने नीचमें हो तो फणिसंज्ञकयोग होता है इसमें जिसका जन्म हो वह मनुष्य श्रेष्ठ भी ( विकल ) कलाहीन होता है ॥४८॥ काकयोगः । अजगते भृगुजे रविजे जनुर्वृषभगे दिनपेऽनिमिषे विधौ ॥ अवनिजे यदि कर्कटगेहगे भवति काकभवो विभवोनितः ॥ ४९ ॥ जिसके जन्ममें मेषका शुक्र, मेषका शनि, वृषका सूर्य, मीनका चन्द्रमा, कर्कका मङ्गल हो तो यह काकयोग ऐश्वर्यहीन ( दरिद्री ) करता है ॥ ४९ ॥ दरिद्रयोगः । विधुयुतो घटभे दिवसाधिपो गुरुमहीजकवीनसुताः पुनः ॥ यदि भवन्ति च नीचगता जनुर्वजति राजसुतोऽपि दरिद्रताम् ॥ ५० ॥ चन्द्रमासहित सूर्य कुम्भका और बृहस्पति, मङ्गल, शुक्र, शनि, अपने अपने नीचराशियों में हो ऐसे योगमें जिसका जन्म हो वह राजा भी हो तो भी दरिद्रीड़ी रहै ॥ ५० ॥ हुताशनयोगः । शनिमही जनिशाकरचन्द्रजा यदि जनुः किल नीचमुपाश्रिताः॥ मकरभे भृगुजोऽपि हुताशनः परमतापकरो न करोति शम् ॥ ५१ ॥ यदि जन्म में शनि, मंगल, चन्द्रमा, बुध अपने अपने नीचराशि योंमें हों तथा शुक्र भी मकरका हो तो यह हुताशनयोग होता है, इसमें मनुष्य परमसंताप करनेवाला होता है, शुभफल कदापि नहीं५१ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४६) भावकुतूहलम्-. । राजयोग: राजयोगभङ्गविचारः। यदि भवन्ति नवायदशाधिपा जनुषि नीचगता विकला भृशम् ॥ नृपतियोगजमङ्गभूतां फलं परिणमत्यपि निष्फलतामिह ॥ १२ ॥ यदि जन्ममें ९।१०।११ भावोंके स्वामी नीचराशियोंमें तथा अत्यन्त करके अस्तंगत पीडित आदिभी हों तो मनुष्यों के राजयोग भी हो तो भी उसका फल निष्फल होकर दरिदीही होवे५२॥ रिपुमन्दिरगैरेव वैरिभावगतैरपि ॥ राजयोगा विनश्यन्ति दिवाकरकरोपगैः ॥ ५३ ॥ यदि राजयोगकर्ता ग्रह शत्रुराशियोंमें वा छठे भावमें यद्वा शत्रु वर्गमें हो तथा अस्तंगत हो तो राजयोग नष्ट हो जाता है।५३ ॥ भवति वीक्षणवर्जितमङ्गिनां जननलममिहांबरगामिनाम ॥ जननभं च नृपालभवोनरोजगति यातितरामतिरकताम् ॥ ५४॥ यदि मनुष्योंके जन्मलनको कोई ग्रह न देखे तथा चन्द्रराशिको भी कोई ग्रह न देखे तो राजयोगवाला मनुष्य राजपुत्र भी हो तो भी (रंक) दरिद्री ही होता है ॥५४॥ भद्रायां व्यतिपाते वा तथा केतूदये जनिः॥ | यस्य तस्य विनश्यन्ति राजयोगफलान्यपि५५ जिसका जन्म भद्रा व्यतिपातमें तथा (केतु) पुच्छताराके उदयमें हो तो उसके राजयोगोंके फलभी नष्ट होता है ॥ ५५ ॥ परमनीचलवे यदि चन्द्रमा भवति जन्मनि तस्य विशेषतः॥नृपतियोगफलं विफलं ततः कलयतीति वदन्ति मुनीश्वराः॥५६॥ इति देवज्ञजीवनाथविरचिते भावकुतुहले राजयोमाध्यायः ॥७॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अष्टमः ८] भाषाटीकासमेतम् । जिसके जन्ममें चंद्रमा परम नीचांशकमें हो उसके विशेषतासे राजयोगोंके फल निष्फल होजाते हैं यह मुनीश्वर कहते हैं॥५६॥ इति भावकुतूहले माहौधरीभाषाटीकायां राजयोग तद्भगदरिद्रयोगाध्यायः॥७॥ - अष्टमोध्यायः ॥ राजयोगचिह्नम् । जनने प्रबलो यस्य राजयोगो भवेद्यदि ॥ करे वा चरणेऽवश्यं राजचिह्न प्रजायते ॥ ३ ॥ जिस मनुष्यके जन्ममें राजयोग प्रबल होता है उसके हाथ वा पैरमें अवश्यमेव राजचिह्न होताहै ॥ १॥ अनामामूलगा रेखा सैव पुण्यभिधा मता ॥ मध्यमाङलिमारभ्य मणिबधान्तमागता ॥२॥ सोर्ध्वरेखा विशेषेण राज्यलाभकरी भवेत् ॥ खण्डिता दुष्टफलदा क्षीणा क्षीणफलप्रदा ॥ ३॥ अनामिकाके मूलमें सीधी रेखा पुण्य देनेवाली होती है खंडित अशुभ जानना तथा मध्यमाके जडसे लेकर (मणिबंध ) हाथके जडनाडी स्थानसे नीचेपर्यंत पूरी सीधी एक रेखा हो उसे ऊर्ध्वरेखा कहते हैं विशेषतः राज्यलाभ करती है यदि खंडित हो तो ( दुष्टफल) दुःख दरिद्र देतीहै और (क्षीण) अथवा माडी हो तो फलभी क्षीण ही देती है ॥२॥३॥ ____यवचिह्नफलम्। अंगुष्ठमध्ये पुरुषस्य यस्य विराजते चास्यवों यशस्वी ॥ स्ववंशभूषासहितो विभूषायोषाजनैरर्थगणश्च मयः॥४॥ जिस पुरुषके अँगूठेके बीचमें (यवरेखा) जौके दानेका रमणीय Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४८) भावकुतूहलम्- [सामुदिकःआकार हो वह यशस्वी होताहै। अपने वंशका भूषण होताहै तथा स्त्री भूषण, धनसे युक्त रहताहै ॥४॥ वैसारिणो वाऽऽतपवारणो वा चेद्वारणो दक्षिणपाणिमध्य॥ सरोवरं चाङ्कुश एव यस्य वीणा च राजा भुवि जायते सः॥५॥ जिस मनुष्यके दाहिने हाथमें मछली, छत्र, हाथी, तालाव, अंकुशमेंसे कोई भी चिह्न हो अथवा वीणाका चिह्न हो वह पृथ्वी में राजा होवै ॥५॥ मुसलशैलकृपाणहलाङ्कितं करतलं किल यस्यस वित्तपः ॥ कुसुममालिकया फलमीदृशं नृपति व नृपालभवे यदा ॥६॥ जिसका हाथ मूसल, शैल, खड्ग, हलके चिह्नसे चित्रित हो वह धनका स्वामी होता है,यदि पुष्पमालाका चिह्नभी होतोभी धनवान् होता है, यदि यहचिह्न राजवंशीके हों तो अवश्य राजा होता है॥६॥ . परमलक्ष्मीप्राप्तिचिह्नम् । करतलेऽपिच पादतले नृणां तुरगपङ्कजचापरथाइवत् ॥ ध्वजरथासनदोलिकया समं भवति लक्ष्म रमापरमालये ॥ ७ ॥ जिन मनुष्योंके हाथवा पैरके तलेमें घोडा, कमल, धनुष, चक्र, ध्वजा, रथ, सिंहासन, डोलीके तुल्य चिह्न हों तो उसके घरमें परमलक्ष्मी सदा रहै ॥ ७॥ अखण्डलक्ष्मीप्रातिचिह्नम् । | कुंभास्तंभो वा तुरङ्गो मृदङ्गः पाणावंघौ वा द्रुमो यस्य पुसः ॥ चञ्चद्दण्डोऽखण्डलक्ष्म्या परीवः किंवा सोऽयं पण्डितः शौण्डिको वा ॥८॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अष्टमः ८] भाषाटीकासमेतम् । (४९) जिस पुरुषके हाथ वा पैरके तलुवेपर कलश, स्तंभ, घोडा, मृदंग अथवा वृक्ष, लट्ठीके चिह्न हों तो अखण्ड लक्ष्मीसे युक्त रहे यदा पंडित हो या (शौंडिक) मद्य बेचनेवाला होवै ॥ ८॥ विशालभालोऽम्बुजपत्रनेत्रः सुवृत्तमौलिः क्षितिमण्डलेशः॥आजानुबाहुः पुरुषं तमाहुः क्षोणी. भृतां मुख्यतरं महान्तः॥९॥ जिसका (भाल) माथा बडा हो, नेत्र कमलदलके समान हों, शिर सुहावना वृत्ताकार हो तो पृथ्वीमंडलका राजा होवे और जिसके खडे हुयेमें हाथ सीधे नीचे छोडे घुटनोंपर्यंत पहुंचे तो राजाओंमें मुख्य बडा राजा होवै ॥९॥ नाभिर्गभीरा सरला च नासा वक्षःस्थलं रत्नशिलातलाभम् ॥ आरक्तवर्णों खलु यस्य पादौ मृदू भवेतां स नृपोत्तमः स्यात् ॥ १०॥ जिसकी नाभि (गंभीर ) गहरी, नाक सरल, छाती रत्नशिलाके समान स्वच्छ, पैर लालरंगके तथा कोमल हों तो श्रेष्ठराजा होवे ॥१०॥ तिललक्षणम्। राजते करगो यस्य तिलोऽतुलधनप्रदः ॥ तथा पादतले पुंसां वाहनार्थसुखप्रदः ॥११॥ जिसके दाहिने हाथमें तिलका चिह्न हो उसे असंख्य धन देता हे एवं पैरके तलुवेमें हो तो वाहन और धनका सुख देवे ॥११॥ राजवंशप्रजातानां समस्तफलमीदृशम् ॥ अन्येषामल्पता याति तथा व्यक्तं सुलक्षणम्॥१२॥ इति भावकुतूहले सामुद्रिकलक्षणाध्यायोऽष्टमः ॥ ८॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५० ) भाषकुतूहलम् - [ स्त्रीजातकम् - उक्तरक्षण प्रगट हुये में राजवंशीके हों तो पूर्ण राज्यफल देते हैं अन्यको धन मान आदि थोडा ही फल देते हैं ॥ १२ ॥ इति भावकुतूहले माहीधरीभाषाटीकार्या सामुद्रिक लक्षणाध्यायः ॥ ८ ॥ नवमोऽध्यायः ॥ स्त्रीजातकम् । शुभाशुभं पूर्वजनेर्विपाकात्सीमन्तिनीनामपि तत्फलं हि || विवाहकालात्परतः प्रवीणैरसम्भवात्तत्पतिषु प्रकल्प्यम् ॥ १ ॥ अब स्त्रीजातक कहते हैं- जो कुछ स्त्रियोंके पूर्वजन्मार्जित कर्मों से शुभ वा अशुभ होते हैं वह विवाहसे ऊपर जो फल स्त्रियोंको होने असंभव हैं वे उसके भर्त्ताको चतुर ज्योतिषी कहे जां स्त्रियोंको संभव हैं वे उनको कहने. तथा समस्त फल देश, जाति, कुल विचारके संभवासंभव जानके युक्तिसे कहना ॥ १ ॥ अतीव सारं फलमङ्गनानामुदीरितं शौनकनारदाद्यैः ॥ व्यक्तं यथा लग्ननिशाकराभ्यां मया तथैव प्रतिपाद्यते तत् ॥ २ ॥ ग्रंथकर्त्ता कहता है कि, स्त्रियोंके लग्न तथा चंद्रमासे शौनक, नारद आदि आचार्योंने अतिसारतर जो फल कहे हैं उन्हीको मैं यहाँ प्रगट प्रतिपादन करता हूँ ॥ २ ॥ सौभाग्यादिस्थान संज्ञा । सौभाग्यं सप्तमस्थाने शरीरं लग्नचन्द्रयोः ॥ वैधव्यं निधनस्थाने पुत्रे पुत्रं विचिन्तयेत् ॥ ३ ॥ स्त्रियोंके सप्तमस्थान से सौभाग्य, लग्न तथा चंद्रमासे शरीर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवमः ९] भापाटीकासमेतम् । (५१) शुभाशुभ, अष्टमस्थानसे वैधव्य और पंचमभावसे पुत्रसुखासुख विचारना, अन्य भावविचार पुरुषोंके उक्तप्रकारसे जानने ॥३॥ सुभगा दुर्भगायोगः। सौम्याभ्यां प्रवरा शुभत्रययुते जाया भोदूपतेः सौम्यैकेन पतिप्रिया मदनभे दृष्टे युते जन्मनि ॥ पापैकेन पुनर्विलोलनयना पापद्वयेनाधमा पापानां त्रितयेन सा परकुलं हत्वा पतिं गच्छति ॥४॥ जन्मसमयमें तीन शुभग्रहोंसे सप्तम भावयुक्त वा दृष्ट हो तो वह स्त्री राजरानी होवै, दो शुभग्रहोंसे ऐश्वर्यवती एकसे पतिकी प्रिया होवै, तथा सप्तममें एक पापग्रह हो वा एक पाप ग्रह देखे तो (चंचलनेत्रा), परपुरुषदृष्टिवाली, दो पापोंसे अधर्मकर्म करनेवाली, तीनसे निज पतिको मारकर पराये घरमें अन्यपतिके पास जानेवाली होवे ॥४॥ पुंश्चलीत्वादियोगः। | जनुकाले यस्या मदनभवने वासरमणौ पतिं त्यक्त्वा नूनं कुपितहृदया भूमितनये ॥ अवश्यं वैधव्यं सपदि कमलाक्षी रविसुते जरां पापैदृष्टे निजपतिविरोधं ब्रजति वा ॥५॥ जिस सीके जन्ममें सूर्य सप्तमभावमें हो वह पतिको त्याग करे वा पति इसे त्याग करे तथा इसके हृदयमें नित्य क्रोध बना रहे। यदि मंगल सप्तम हो तो अवश्य विधवा होवे, शनि सप्तम हो तो (कमलनेत्रा ) सुरूपाभी हो तथापि अनव्याहेमें वृद्धत्व पावे अर्थात् बड़ी उमरमें विवाह होवे जो पापग्रहोंकी दृष्टि सप्तम भावपर हो तो पतिके साथ विरोध रक्खे ॥५॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भावकुतूहलम्- स्त्रिीजातकम् पतिव्रतायोगः। ' यस्याः शशाङ्के जनिलग्नभे वा रामशंगे सा प्रकृतिः स्थिरा स्यात् ॥ शुभेक्षिते रूपवती गुणज्ञा पतिक्रिया चारुविभूषणाढ्या ॥६॥ जिसके जन्मसमयमें चंद्रमा लपमें अथवा तीसरेभावमें हो तो उसकी प्रकृति सर्वदा स्थिर रहै उसे शुभग्रहभी देखें तो रूपवती गुणवती पतिसेवामें चतुर और रमणीय भूषणोंसे युक्त होवै ॥६॥ - यदाङ्गचन्द्रावसमे भवेतां तदा नराकारसमा कुरूपा ॥ पापेक्षितौ पापयुतौ विशेषाद्गदातुरा रूपगुणैविहीना ॥७॥ यदि लग्न एवं चंद्रमा विषमराशि विषमनवांशकोंमें हो तो स्त्री पुरुषकी (आकृति) स्वरूप यद्वा पुरुषोंके तुल्य कृत्य करनेवाली होवै, कुरूपाभी होवै, यदि उक्त लग्न चंद्रमा पापयुक्त दृष्ट भी हों तो विशेषतः रोगसे आतुर रहै सुगुणोंसे हीन रहे॥ ७ ॥ . स्त्रीणां राजयोगाः। जनुःकाले यस्या मदनसदने दानवगुरौ शुभाभ्यामाकान्ते गतवति तदा सा विधुमुखी॥ गजेन्द्राणां मुक्ताफलविमलमालावृतकुचा प्रिया पत्युनित्यं प्रभवति शचीवत्क्षितितले॥८॥ जिसके जन्मसमयमें सप्तमस्थानमें शुक्र दो शुभग्रहोंसे युक्त हो उसके चन्द्रमुखी स्तनों के ऊपर गजमोतियोंकी माला विराजमान रहे अर्थात् ऐश्वर्यसें परिपूर्ण रहे तथा पतिकी प्णरी नित्य रहे और इंद्राणीके समान ऐश्वर्यवती होवे ॥ ८॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवमः ९] भाषाटीकासमेतम् । (५३) समाक्रान्ते लग्ने त्रिदशगुरुणा वाथ भृगुणा बुधे कन्याराशौ मदनभवने भूमितनये ॥ मृगे कर्के चन्द्रे सति भवति लावण्यतिलका तपोरेखायोषा प्रभवति विशेषात्क्षितिपतेः॥९॥ यदि जन्मसमयमें लनका बृहस्पति अथवा शुक्र हो, तथा कन्याराशिका बुध सप्तमस्थानमें, मंगल मकरमें, चंद्रमा कर्कमें हो तो लावण्य ( सुरूपता) वाली स्त्रियोंमें (तिलका) श्रेष्ठ होने विशेषतः राजाकी महारानी बडी तपस्या करके पाई जैसी होवे ॥९॥ शशाङ्के कर्कस्थे भवति हि युक्त्यां विधुसुते वनौ जीवे मीने गवि भृगुसुते जन्मसमये ॥ सहस्राली मान्या जगति नृपकन्या गुणवती । विशेषादेषा स्यानृपतिपतिका पुण्यलतिका ॥१०॥ चंद्रमा कर्कका, बुध कन्याका, बृहस्पति मीनका लग्नमें, शुक वृषका, जन्मसमयमें हो तो एक हजार सखियोंमें मान्या संसारमें राजकन्या गुणवती होवै तथा विशेषतासे यह स्त्री राजाके घरकी स्वामिनी पुण्यकी लता होवै ॥ १० ॥ सप्तमे प्रत्येकग्रहफलानि । दिनपताविह कामनिकेतनं गतवति प्रवराप्यवरा भवेत् ॥ जनुषि वल्लभभावविवर्जिता सुजनता.. रहिता वनिता भृशम् ॥ ११ ॥ जिसके जन्ममें सूर्य सप्तम हो वह श्रेष्ठाभी अश्रेष्ठा होजावे, पतिका प्रेम उसमें न होवे, अतिशय दुर्जनता करे, दुष्ट स्वभावा होवे कुटुम्बसेभी विरोधी रहे ॥ ११॥ .... ! . । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५४) भावकुतूहलम्- [स्त्रीजातकमवृषे राकानाथे भवति मदने जन्मसमये भवेदेषा योषा विमलवसना चारुवदना ॥ विनम्रा मुक्तालीवलितकुचभारेण नितरां परालीलालक्ष्मीरतिपतिरमेव क्षितितले ॥१२॥ जिसके जन्ममें सप्तमभावमें चंद्रमा वृषका हो वह स्त्री निर्मलवस्त्र पहननेवाली, सुहावने (मुख ) वदनवाली, नम्रमुखी, मोतियोंकी मालासे शोभित स्तनभारसे नम्र, परम लीला करनेवाली होवे और पृथ्वी में सबसे सुंदर ऐसी होवै जैसी कामदेवकी स्त्री रति है अथवा लक्ष्मीके समान ॥ १२ अङ्गारके मदनमन्दिरमिन्दुभावं मन्दान्विते हारभगे जननेऽङ्गनायाः॥ वैधव्यमेव नियतं कपटप्रबन्धाद्वाराडना भवति सैव वराड़नापि ॥ १३॥ जन्ममें स्त्रीका मंगल विशेषसे कर्कका हो अथवा मंगल शनि सहित सिंहका सप्तम हो तो निश्चय वैधव्य पावै तथा कपटके प्रबंध करे (व्यभिचारिणी) वेश्या हो यदि यह स्त्री धर्मकर्मसे तथा कुलसे श्रेष्ठभी हो तोभी वेश्याही होवे ॥ १३॥ अनेकस्त्रीभर्ता भवति मखकर्ता च मदने बुधे तुङ्गे यस्या जनुषि खलु तस्याः पतिरिह ॥ स्वयं वामा कामाकुलितहृदया मोदकलया परीता मुक्तालीरजतकनकालीमणिगणैः ॥ १४॥ जिस स्त्रीके जन्ममें कन्याका बुध सप्तममें हो उसका भर्ता अनेक स्त्रियोंका स्वामी होवे और यज्ञ करनेवाला होवे तथा आप वह स्त्री कामदेवसे व्याकुलित हृदय रहे कामकलामें तत्पर रहे और मोतियोंकी माला, सोने, चांदी, मणिरत्नोंसे भरी रहै ॥ १४॥ .... Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवमः ९] भाषाटीकासमेतम् । परिक्रान्ते यस्या मदनभवने देवगुरुणा गुणज्ञा धर्मज्ञा निजपतिपदाब्जं भजति सा ॥ मणीनां मालाभिः कनकघटिताभिश्च शिरसा समाक्रान्ता कान्ता रतिपतिपताकेव शशिभे ॥ १५ ॥ जिसके जन्म में बृहस्पति सप्तमस्थान में बैठा हो वह (गुणज्ञा ) समस्त सुगुणवाली, धर्मजाननेवाली, अपने पतिकी सेवा करनेवाली " पतिव्रता " होवे और सुवर्ण में जडेहुये (मणि ) रत्नों की मालाओंसे शिर आक्रांत रहे यदि वह बृहस्पति सप्तम में कर्कका हो तो वह स्त्री कामदेवकी पताका जैसी उत्तमरूप गुणवती होवै १५ ॥ aat यस्या जन्मन्यपि मदनगे मीनभवने तदा कान्तो दान्तो रतिपतिकला कौतुकपटुः ॥ धनुर्द्धर्त्ता भर्त्ता स्वयमपि च सङ्गीतरसिका विलोला पद्माक्षी वसनलसिता भूषणवृता ॥ १६ ॥ जिसके जन्ममें मीनका शुक्र सप्तम भाव में हो उसका पति उदार, कामकला क्रीडामें चतुर तथा धनुष धारण करनेवाला होवे आप भी वह स्त्री गायनविद्याकी रसिका चंचलतासे भर्त्ताको प्रसन्न करने वाली, कमलदलसमाननेत्रा एवं उत्तम भूषण वस्त्रोंसे युक्त रहै ॥ १६ ॥ मदनभावगते तपनात्मजे पतिरतीव गदाकुलितो भवेत् ॥ मलिनवेषधरो विबलो महाअनुषि तुङ्गगते प्रवरो धनी ॥ १७ ॥ (५५) जन्म में शनि सप्तम भाव में हो तो उसका पति अतिरोग पीडित होवै मलिन वेष धारण करने वाला, अति निर्बल होवे । यदि उक्त शनि उच्चका हो तो श्रेष्ठ और धनवान् होवे ॥ १७॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५६) भावकुतूहलम् [स्त्रीजातकम्सप्तमे सिंहिकापुत्रे कुलदोषविवद्धिनी ॥ नारी सुखपरित्यक्ता तुङ्गे स्वामिसुखान्विता ॥१८॥ राहु सप्तममें हो तो कुलको ( दोष) कलंक बढानेवाली, सुख रहित स्त्री होवै यदि वह राहु उच्चका हो तो भर्ताके सुखसे युक्तरहै १८ अथान्ययोगाः। मिथस्तौ शुक्राी यदि लवगतौ वीक्षणमितौ भवेतां वा लग्ने घटलवगते शुक्रभवने ॥ अनङ्गैरालीलाकलितनररूपाभिरनिशं स्थिताभिः कान्ताभिःखलु मदनशान्ति व्रजतिसा१९॥ यदि शुक्र और शनि परस्परांशक अर्थात् शनिके अंशकमें शुक्र शुक्रके अंशमें शनि हो उपलक्षणसे राशियोंमेंभी परस्पर हो तथा इनकी परस्पर दृष्टि भी होवै यद्वा शुक्रके राशि२।७ लग्नमें कुम्भांशक युक्त हों तो कामदेवकी लीलाओंसे निर्मित नररूपवाली नित्य अनेक नररूप ( मर्दके वेष) स्थित स्त्रियोंसे कामदेवको शांत करै ॥ १९॥ क्षपानाथे यस्या गतवति कुलीराङ्गमथवा मदागारं सारं सुरगुरुबुधाभ्यामपि युतम् ॥ महान्तोऽपि भ्रान्ताः कतिकति मनोजाधिकतया पुरस्तां पश्यंतो दधति परमानन्दलहरीम् ॥२०॥ जिसका चन्द्रमा लग्नमें कर्कका हो अथवा सप्तमभाव मंगल सहित हो तथा बुध बृहस्पतिसेभी युक्त हो तो अनेक बडे बडे महात्मालोगभी सम्मुख इस स्त्रीको देखकर कामदेवके अधिक होनेसे विभ्रांतमन होकर मोहित होवें ऐसे वह परम आनन्दलहरीको रूपकी छटासे धारण करनेवाली होवे ॥२०॥... ..... ... ... Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवमः ९] भाषाटीकासमेत् । (५७) मृगागारे सारे गतवति विसारं सुरगुरौ कवौ वा पातालं तपनंतनयेनापि मिलिते ॥ जनुःकाले यस्याः करिमुकुटमुक्ताफलमाणव्रजानां मालाभिर्वलितमुत वक्षोजयुगलम् ॥२१॥ जिसके जन्मसमयमें मकरका मंगल, मीनका बृहस्पति प्राप्त हो अथवा शनिसहित शुक्र चतुर्थ हो तो हाथीके शिरसे उत्पन्न (गज मोती) मुक्ताफलोंसे सहित अनेकमणियोंकी मालाओंसे वेष्टित स्तनयुग्म रहैं ॥२१॥ वैधव्ययोगा। निशाकरात्सप्तमभावसंस्था महीजमन्दागुदिवाकराश्चेत्॥ तनोरभे जन्मनि नैधनं वा दिशन्ति वैधव्यमलं मदे वा ॥ २२॥ चन्द्रमासे सप्तमस्थानमें मंगल, शनि, राहु, सूर्य हों तो निश्चय वैधव्य करते हैं तथा जन्मलग्नमें शत्रुराशिक अथवा अष्टम या सप्तमस्थानमें हों तौभी वैधव्य देते हैं ॥२२॥ लग्नाधिपो वाथ मदालयेशो वर्गे गतः पापनभश्वराणाम् ॥ मदे तनौ वा खलखेटवर्गस्तदा कुलं मुञ्चति चञ्चलाक्षी ॥ २३ ॥ जन्मलग्नेश अथवा सप्तमेश पापग्रहोंके (वर्ग) राश्यंशकादिकोंमें हो अथवा लग्नमें एवं सप्तमभावमें पापग्रहके राश्यंशक हों तो वह स्त्री कुलको छोडदेवै अर्थात् कुलटा हो ॥२३॥ पापान्तराले यदि लमचन्द्रौ स्यातां शुभालोकनवर्जितो तौ ॥ अनङ्गलोला खलसङ्गमेन कुलदयं हन्ति तदा मृगाक्षी ॥२४॥ । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (५८) भावकुतूहलम्- [स्त्रीजातकम्यदि जन्मसमयमें लन, चन्द्रमा पापग्रहोंके बीचमें हो शुभयहोंकी दृष्टि उनपर न हो पापयुक्तभी हों तो वह मृगाक्षी कामदेवसे चंचल होकर पितृकुल भर्तृकुल दोनोंका नाशकरै अर्थात् व्याभचारिणी होकर दोनों कुलोको डुबावै ॥ २४ ॥ व्ययेऽष्टमे भूमिसुतस्य राशावगौ सपापेभवतीह रण्डा ॥ मदे कुलीरे सखी कुजेपि धवेन हीना रमतेऽन्यलोकैः ॥२५॥ यदि मंगलकी राशि १ । ८ में राहु बारहवां वा अष्टम पापयुक्त हो तो वह स्त्री रांड होवे अथवा । सप्तमभावमें कर्कका सूर्य,मंगल सहित हो तो पतिहीन होकर अन्यपुरुषोंसे रमित रहै ॥२५॥ तनाचतुर्थ निधन व्यय वा मदालय पापयुतः कुजश्चेत् ॥ अनङ्गलीलां प्रकरोति जारैः पर्ति तिरस्कृत्य विलोलनेत्रा ॥२६॥ यदि जन्मलग्रसे चौथा, बारहवां अथवा सप्तम पापयुत मंगल हो तो वह चंचला अपने पतिका तिरस्कार करके (जार) उपपतियोंके साथ कामक्रीडा करे चंचल होवै ॥२६॥ परस्परांशोपगतौ भवेतां महीजशुक्रौ जननेङ्गनायाः॥ स्वयं मृगाक्षी ह्यभिसारिकेव प्रयाति कामाकुलितान्यगेहे ॥ २७॥ यदि स्त्रीके जन्मसमयमें मंगलके अंशका शुक शुकके अंशका मंगल हो तो वह मृगाक्षी अभिसारिके समान आपही कामातुर होकर दूसरेके घर जावै ॥२७॥ पापग्रहे सप्तमगे बलोनेऽशुभेन दृष्टे पतिसौख्यहीना ॥ स्यातां मदे भीमकवी सचन्द्रौ पत्याज्ञया सा व्यभिचारिणी स्यात् ॥ २८॥ .. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवमः ९ ] भाषाटीकासमेतम् । ( ५९ ) पापग्रह बलहीन सप्तमस्थान में हों शुभग्रह उसे न देखें तो उस स्त्रीको भर्ताका सुख न होरे । यदि सप्तम स्थानमें मंगल, शुक्र, चंद्रमा हों तो वह स्त्री भर्ता की आज्ञा से व्यभिचारिणी (जारिणी) होवे २८ ॥ पापग्रहे सप्तमलग्नगेहे भर्ता दिवं गच्छति सप्तमाब्दे || निशाकरे चाष्टमवैरिभावे तदाष्टमाब्दे निधनं प्रयाति ॥ २९ ॥ जन्ममें जिसके सप्तम एवं लग्नभाव में पापग्रह हो उसका पति विवाहसे सातवें वर्ष स्वर्ग जावै । यदि चंद्रमाभी ६ । ८ में हो तो आठवें वर्ष में पति मरे ॥ २९ ॥ बालविधवायोगः । सप्तमेशोऽष्टमे यस्याः सप्तमे निधनाधिपः ॥ पापेक्षणयतो बाला वैधव्यं लभते ध्रुवम् ॥३०॥ जिस (बाला) नवयौवनाके जन्मलग्नसे सप्तमेश अष्टम, अष्टमेश सप्तम पापदृष्ट हों अथवा पापयुक्त हों तो निश्चय बालवैधव्य पांवै ३० सप्तमाष्टपती षष्ठे व्यये वा पापपीडितौ ॥ तदा वैधव्यमानोति नारी नैवात्र संशयः ॥ ३१ ॥ जिस स्त्रीके जन्मलग्नसे सप्तम, अष्टम भावों के स्वामी पापपीडित होकर छठे वा बारहवें हों वह निस्संदेह वैधव्य पावै ॥ ३१ ॥ मातृसहितव्यभिचारिणीयोगः । मन्दारराशौ ससिते शशाङ्के खलेक्षिते लग्नगते मृगाक्षी ॥ मात्रा सहैव व्यभिचारिणी स्यान्मदे खलांशे व्रणविद्धयोनिः ॥ ३२ ॥ यदि शनि मंगलकी राशि (१०।११।१।८) यों में शुकसहित चंद्रमा पापद्दष्ट लग्न में हो तो वह स्त्री अपनी मातासहित व्यभिचारिणी होवे । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat : www.umaragyanbhandar.com Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ६० ) भावकुतूहलम् - [ स्त्रीजातकम् - यदि सप्तम में पापांश हो यद्वा उक्तग्रह पापांशकी सप्तममें हों तो माँ, बेटी व्यभिचारिणी हों किन्तु उसकी योनि व्रणसे वेधित रहे ॥ ३२ ॥ महराशिवशेन प्रत्येकत्रिंशांशफलानि । तत्रादौ भौमराशौ । यदाङ्गचन्द्रौ कुजभे कुजस्य त्रिंशांश के दुष्टतमैव कन्या ॥ मन्दस्य दासी हि गुरौ तु साध्वी मायाविनी ज्ञस्य कवेः कुवृत्ता ॥ ३३ ॥ अब ग्रह राशियोंके वशसे प्रत्येक त्रिंशांशके फल कहतें हैं इनमें प्रथम मंगलकी राशिके त्रिंशांशकों के फल हैं कि, यदि लग्न, चंद्रमा मंगलकी राशि में हो तथा मंगलके त्रिंशांशमें हों तो वह कन्या दुष्ट होवै शनि के त्रिंशांशमें दासी होवे, बृहस्पतिकेमें पतिव्रता, बुधकेमें मायावाली, शुक्रकेमें दुष्टचरितवाली होवे ॥ ३३ ॥ शुक्रराशौ । शुक्रभे कुजखाम्यंशे दुष्टा सौरेः पुनर्भवा ॥ गुरोर्गुणमयी विज्ञा कवेः कामातुरा भवेत् ॥ ३४ ॥ शुक्र राशिमें लग्न चंद्रमा मंगलके त्रिंशांशमें हो तो दुष्टा होवे एवं शनि के में (पुनर्भवा ) दो बार विवाही जावैं, बृहस्पतिकेमें गुणयुक्ता, बुधके में पंडिता, शुक्रके में कामातुरा होवै ॥ ३४ ॥ बुधराशौ । बुधभ भूमिपुत्रस्य कापटी क्लीववच्छनेः । गुरोः सती विदो विज्ञा कवेः कामातुरा भवेत् ॥ ३५ ॥ बुधके राशिमें लग्न, चंद्र, मंगल के त्रिंशांशमें हों तो कपटी होने शनिकेमें नपुंसकके तुल्य होवे, बृहस्पतिकेमें पतिव्रता, बुधकेमें बहुत विषयोंको जाननेवाली, शुक्रकेमें कामसे आतुरा होवै ॥ ३५ ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवमः९ भाषाटीकासमेतम् । (६३) चंद्रराशौ । कुलीरभे भूमिसुतस्य वेश्या शनेः पतिप्राणविधातकौ ॥ गुरोर्गुणवातवती बुधस्य शिल्पक्रियाज्ञा कुलटा भृगोः स्यात् ॥ ३६॥ कर्कराशिके लग्न, चंद्रमा, मंगलके त्रिंशांशकमें हों तो वह स्त्री (वेश्या)पतुरिया होवे, तथा शनिकेमें भर्तीके प्राणघात करनेवाली, बृहस्पतिकेमें गुणसमूहयुक्ता बुधकेमें(शिल्प) कारीगरी जाननेवाली, शुक्रके त्रिंशांशकमें (कुलटा) व्यभिचारकरनेवाली होवै ॥३६॥ सूर्यराशा। सिंहे नराकारधरा कुजस्य वराङ्गना भानुसुतस्य नारी ॥ गुरोरिलाधीशवधूबुधस्य दुष्टा कवरेङ्गजगामिनी स्यात् ॥ ३७॥ सिंहराशिके लग्न, चंद्रमा, मंगलके त्रिंशांशकमें हों तो पुरुषके आकारधारण करे अथवा पुरुष समान पराक्रमी, चतुरा होवै, शनिकेमें (वराङ्गना) वेश्या होवै, बृहस्पतिकेमें पृथ्वीपतिकी वधू होते, बुधकेमें दुष्टा, शुक्रकेमैं अपने पुत्रसे गमन करनेवाली हावै॥३७॥ गुरुराशौ । गुणैर्विचित्रा गुरुभे कुजस्य मन्दस्य मन्दा गुणतत्त्वविज्ञा॥जीवस्य विज्ञा शनिनन्दनस्य शुक्रस्य रम्यापि भवेदरम्या ॥३८॥ बृहस्पतिके राशिमें लग्न, चंद्रमा, मंगलके त्रिंशांशकमें हों तो अनेकगुणोंसे युक्त होवै, शनिकेमें मूर्खा, बृहस्पतिकेमें गुणोंके तत्त्वको जाननेवाली, बुधकेमें पंडिता, शुक्रकेमें सुरूपाभी कुरूपासी प्रतीत हो ॥ ३८॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६२) भाषकुतूहलम्- (स्त्रीजातकम् - शनिराशौ। मन्दालये भूमिसुतस्य दासी शनरसाध्वी भवतीति साध्वी ॥ गुरोनिशानाथसुतस्य दुष्टा शुक्रस्य वंध्या क्रमतः प्रदिष्टा ॥ ३९॥ शनिके राशिमें लग्न, चंद्रमा, मंगलके त्रिंशांशकमें हों तो दासी होवे, शनिकेमें पतिव्रता न होवै, बृहस्पतिकेमें पतिव्रता, बुधकेमें दुष्टा, शुक्रकेमें(वंध्या)अपुत्रा होवे, इतने कमसे त्रिंशांशफल हैं३९॥ अन्ययोगाः। मंदैमध्यबले कवीन्दुशशिवर्यच्युतैःप्रायशः शेषैर्वीर्यसमन्वितैः पुरुषवनारी यदोजे तनुः ॥ जीवाङ्गाररवीन्दुजैर्बलयुतैश्चेदङ्गराशौ समे गीतातत्त्वविचारसारचतुरावेदांतवादिन्यपि॥४०॥ जिसके जन्ममें शनि मध्यबली, शुक्र, चंद्रमा, बुध, बलहीन, और विशेषतासे अन्यग्रह बलवान हों तथा लग्न विषमराशिका हो वह स्त्री पुरुषके समान होवे । यदि बृहस्पति, मंगल, सूर्य, बुध, बलवान हों तथा लग्नराशिसमसंज्ञक हों तो गीताका तत्त्व (ज्ञान) के विचारसे सार जाननेमें चतुरा और वेदांतवादिनीभी हो॥४०॥ ____अष्टमभावविचारः। यदाष्टमे देवगुरौ भृगौ वा विनष्टगर्भा मृतपुत्रका वा ॥ कुजेऽष्टमे सा कुलटा मृगाक्षी चन्द्रेऽष्टम स्वामिसुखेन हीना ॥४१॥ यदि जन्ममें बृहस्पति अष्टम हो अथवा शुक्र अष्टम हो तो उसके गर्भ नष्ट हो, अथवा पुत्र मरें, यदि मंगल अष्टम हो तो वह मृगाक्षी (कुलटा) व्यभिचारिणी होवे, यदि चंद्रमा अष्टम हो तो पतिके सुखसे हीन रहै ॥११॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवमः ९] भाषाटीकासमेतम् । (६३) मन्देऽष्टमे रोगरतस्य भार्या दिनाधिपे सा परितापतप्ता ॥ अनगरङ्गा परकान्तसङ्गा मृतावगौ सा कुलधर्मभङ्गा ॥४२॥ जिस स्त्रीका शनि अष्टम हो उसका पति रोगयुक्त सर्वदा है, सूर्य अष्टम हो तो सर्व प्रकार संतापोंसे संतप्त रहै, यदि राहु अष्टम हो तो कामदेवके (रंग)क्रीडासे परपुरुषोंका संग करे तथा अपने कुलके धर्मको खोवै ॥४२॥ पुत्रभावविचारः। पंचमे शुभसंदृष्टे पंचमाधिपतावपि ॥ केन्द्रकोणे तदा नारी बहुपुत्रवती भवेत् ॥४३॥ अब स्त्रियोंके संतान भावका विचार कहते हैं-कि, यदि जन्मलनसे पंचमभावमें शुभग्रहोंकी दृष्टि हो और पंचमेश केंद्र, कोण १४७१०।५।९। में हो तो वह स्त्री बहुत पुत्रोंवाली हो ॥१३॥ पंचपुत्रवती जीवे सबले च सिते विधौ ॥ सुतासुखवती पापे नारी संतानवजिता ॥ १४॥ यदि बृहस्पति बलवान होकर पंचममें हो तो पांच पुत्रवाली होवे शुक्र चंद्रमा सबल पंचममें हों तो कन्याओंका सुख होवे,पापग्रह पंचम हो तो संतानके सुखसे हीन रहै. जिन ग्रहोंका जो फल पंचममें कहा है वह उसकी दृष्टि से भी जानना॥४४॥ विषयोगाः। भद्रासापानलवरुणभे भानुमन्दारवारे यस्या जन्म प्रभवति तदा सा विषाख्या कुमारी ॥ पापे लग्ने शुभखगयुतः पापखेटावरिस्थी स्याता यस्या जननसमये सा कुमारी विषाख्या १५ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६४) भावकुतूहलम्- [स्त्रीजातकमअव स्त्रियोंके विषयोग कहतेहैं-कि,जिसके जन्मसमयमें भद्रासंज्ञक ७/१२ तिथि, आश्लेषा, कृत्तिका, शततारा नक्षत्र, रवि, शनि, मंगल वार हों वह विषाख्या होती है. इस योगके तीन भेद हैं कि, द्वितीया तिथि, आश्लेका नक्षत्र, रविवार(१)सप्तमी तिथि, कृत्तिका नक्षत्र, शनिवार (२) द्वादशी तिथि, शततारा नक्षत्र मंगल वार (३) और पापग्रहराशि लग्नमें पापग्रहयुक्त तथा दो पापग्रह छठेभी हों तो वह कन्या विषाख्या होती है ॥ १५ ॥ आदित्यमूनोर्दिवसे द्वितीया भुजङ्गभे भौमदिनेम्बुजः ॥ चेत्सप्तमी वाथ रखौ विशाखा हरेस्तिथौ वापि च सा विषाख्या ॥ ४६ ॥ इनके भेद कहते हैं कि, शनिवारको द्वितीया तिथि, आश्लेषा नक्षत्र (१), मंगलवारको शततारा नक्षत्र, सप्तमी तिथि (२), रविवारको विशाखा नक्षत्र, द्वादशी तिथि (३), में जिस कन्याका जन्म हो वह विषाख्या होती है ॥ १६ ॥ धर्मगेहगते भौमे लग्नगे रविनन्दने ॥ पञ्चमे दिवसाधीशे सा विषाख्या कुमारिका॥४७॥ यदि लग्रसे नवम मंगल, लग्नमें सूर्यपुत्र (शनि ) पंचममें सूर्य, जिस कन्याका होवै वह विषाख्या (विषकन्या) होती है। १७॥ . विषाख्यालक्षणम् । विषाख्या शोकसन्तप्ता दुर्भगा मृतपुत्रिका ॥ वस्त्राभरणहीना च पुराणैरुदिता बुधैः ॥४८॥ जो कन्या उक्तप्रकारोंसे विषाख्या हो वह शोकसे संतप्त(दुर्भगा) भाग्यहीना होवै, संतान उसकी मरती रहैं वस्त्र, भूषणोंसे हीन रहै यह प्राचीन पंडितोंने कहाहै, ऐसेही विष घटिकाके जन्मवाली भी होतीहै ॥४८॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाषाटीकासमेतम् । विषयोगभङ्गः । सप्तमे सप्तमाधीशः शुभो वा लग्नचन्द्रयोः ॥ विषयोगमलं हन्ति रहो हरिरिभं यथा ॥ ४९ ॥ दशमः १० ] (६५) यदि जन्मलग्न से सप्तमेश सप्तममें हो अथवा चंद्रमासे सप्तमेश सप्तम हो तथा लग्नचंद्रसे शुभग्रह सप्तम हो वा उसे देखे तो निश्चय विषयोग के फलको नाश करता है जैसे सिंह बलात्कार से हाथीको मारताहै ॥ ४९ ॥ इत्थं विवाहकालेऽपि ज्ञातव्यं लग्नचन्द्रयोः ॥ तदधीनं यतः स्त्रीणां शुभाशुभफलं भवेत् ॥ ५० ॥ विवाहसमय में भी लग्न और चंद्रसे ऐसाही विचार करना, क्योंकि विवाहमुहूर्त के अधीन स्त्रियोंका आजन्म शुभाशुभ है ॥ ५० ॥ वैधव्यभङ्गोपायः । वैधव्ययोगयुक्तायाः कन्यायाः शान्तिपूर्वकम् || वेदोक्तविधिनोद्वाहं कारयेच्चिरजीविना ॥ ५१ ॥ इति भावकुतूहले स्त्रीजातकाध्यायो नवमः ॥ ९ ॥ जिस कन्याके वैधव्ययोग हो उसको प्रथम प्रतिमाविवाह, सावित्रीव्रत, पिप्पलव्रत इत्यादि कल्पोक्तशांति करके वेदोक्त विधिसे उसका विवाह दीर्घायुयोगवालेके साथ करना ॥ ५१ ॥ इति भावकुतूहले माहीघरीभाषाटीकार्या स्त्रीजातकाध्यायः ॥ ९ ॥ दशमोऽध्यायः ॥ कन्यायाः शुभाशुभांगलक्षणानि । शुभलक्षणसम्पन्ना भवेदिह यदाङ्गना ॥ तत्करग्रहणादेव वर्द्धते गृहिणां सुखम् ॥ १ ॥ यदि स्त्री शुभलक्षणोंसे संपन्न होवे तो संसार में उसे विवाहविधि करके ग्रहण करनेसे गृहस्थियोंको सुख बढता है ॥ १ ॥ ५ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६६) भावकुतूहलम् [स्त्रीसामुद्रिक:शुभाशुभं पुरा गीतं वेदव्यासेन धीमता ॥ प्रकाश्यते तदेवात्र नारीणामङ्गलक्षणम् ॥२॥ स्त्रियोंके लक्षणोंसे शुभ तथा अशुभ प्रथम बुद्धिमान् व्यासदेवजीने कहाहै वही यहांभी स्त्रियोंके अंगलक्षण प्रकाश किये जाते हैं ॥२॥ ___ पादतललक्षणम् । युवतिपादतलं किल कोमलं सममतीव जपाकुसुमप्रभम् ॥ दिशति मांसलमुष्णमिलापतेरतिहितं बहुधर्मविवर्जितम् ॥ ३॥ स्त्रीके पैरके तलुए यदि कोमल, (सम ) सरल तथा (जपा) ओंड पुष्पके समान रक्तवर्ण, स्थूल, उष्ण और बहुत स्वेदसे रहित हो तो राजाके लिये हित करते हैं ॥३॥ कमलकम्बुरथध्वजचक्रवत्टथुलमीनविमानवितानवत्॥ भवति लक्ष्म पदे यदि योषितां क्षितिभृतां वनिता विभुतावृता ॥४॥ जिसके पैर कमल, कंबु (शंख ), रथ, ध्वजा, चक्रके समान तथा स्थूल मछली, विमान, वितान (चांदनी) के आकार चिह्न हों तो उस स्त्रीका पति राजा होवै एश्वर्यसे युक्त रहे ॥ ४ ॥ शूर्पाकारं विवर्ण च विशुष्कं परुषं तथा ॥ रूक्षं पादतलं तन्व्या दौर्भाग्यपरिसूचकम् ॥५॥ जिसके पैरके तलुए शूर्पके आकार, विवर्ण,(शुष्क ) खरदरा, करडा रूखा हो तो यह लक्षण तन्वंगीके दौर्भाग्य सूचक हैं ॥५॥ यस्याः समुन्नताङ्गुष्ठो वर्तुलोऽतुलसौख्यदः॥ शूर्पाकारा नखा यस्याः साभवेदुःखभागिनी॥६॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दशमः १०] भाषाटीकासमेतम् । (६७) जिसके पैरका अँगूठा ऊँचा, गोल हो तो अतिसौख्य देताहै, जिसके नाखून शूर्पके आकार हों वह दुःख भोगनेवाली होतीहै६॥ गमनलक्षणम् । संचलन्त्यां धराधूलिधारा यदा राजमार्गेऽबलायां बलादुच्छलेत् ॥ पांसुला सा कुलानां त्रयं सत्वरं नाशयित्वा खलैमोदते सर्वदा ॥७॥ जिस स्त्रीके सडकपर चलते समय पृथ्वीमें (धूलि ) गर्दकी धारा उडे चले वह अपतिव्रता (जारिणी ) (तीन कुल) माता, पिता, भर्ताको नाश करके सर्वदा दुष्टोंके साथ प्रसन्न रहे ॥७॥ श्लिष्टाङ्गुलीलक्षणम् । यस्या अन्योन्यमारूढाः पादांगुल्यो भवन्ति चेत्॥ सा पतीन्बहुधा हत्वा वारवामा भवेदिह ॥८॥ जिसके पैरकी एक अंगुली दूसरी अंगुलीके ऊपर चढीरहै वह बहुत पतियोंको मारके ( वारांगना ) वेश्या होती है ॥ ८॥ कनिष्ठा न स्पशेडूमि चलन्त्या योषितस्तदा ॥ सा द्रुतं स्वपति हत्वा जारेण रमते पुनः ॥९॥ जिस स्त्रीके चलते समयमें (कनिष्ठा) छोटी अंगुली पैरकी पृथ्वीको स्पर्श न करे वह शीघ्रही अपने पतिको मारकर जारसे रमित रहै ॥९॥ अनामिका च मध्याच यदि भूमि. न संस्पृशेत्॥ आद्या पतिद्वयं हन्ति चापरा तु पतित्रयम् ॥३०॥ जिस स्त्रीके पैरकी अनामिका एवं मध्यमा पृथ्वीको स्पर्श न करै इनमें से अनामिका ऊंची रहे तो दो पतियोंको, मध्यमा ऊंची रहे तो तीन पतियोंको मारे॥१०॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (६८) भावकुतूहलम् । [स्त्रीसामुद्रिकाअनामिका च मध्या च यदि हीना प्रजायते ॥ तदा सा पतिहीना स्यादित्याह भगवान्स्वयम्॥११ जिसके पैरकी मध्यमा तथा अनामिकाभी छोटी हो तो वह स्त्री पतिहीना होवै. यह भगवान् वेदव्यासने आपही कहाहै ॥११॥ नखलक्षणम् । यदि पादनखाः स्निग्धा वर्तुलाश्च समुन्नताः ॥ ताम्रवर्णा मृगाक्षीणां महाभोगप्रदायकाः ॥ १२॥ यदि स्त्रीके पैरोंके नाखून (स्निग्ध ) चिकने, (वर्तुल) गोलाकार, ऊंचे और तांबेके रंगके समान हों तो मृगाक्षियोंको उत्तम भोग देते हैं ॥ १२॥ पदतलम् । यदि भवेदमलं किल कोमलं कमलपृष्ठवदेव मृगीदृशाम् ॥ अरुणकंकुमविद्रुमसन्निभं बहुगुणं पदपृष्ठमिति ध्रुवम् ॥ १३॥ यदि मृगनयनी स्त्रियोंके पैरोंकी पीठ निर्मल, कोमल, कमलदलके पीठके समान ( अरुण ) गुलाबीरंग यद्वा कुंकुम, वा (विद्रुम) मूंगाके समान हों तो वे बहुत गुणवती होनै यह निश्चय है॥ १३ ॥ अंघ्रिमध्ये दरिद्रा स्यानम्रत्वेन सदाङ्गना ॥ शिरालेनाध्वगा नारी दासी लोमाधिकेन सा॥१४॥ पैरोंकी अंगलियोंके बीच में (नम्र ) गहरा हो तो वह स्त्री सर्वदा दरिद्रा रहै अंगुलियोंपर शिरा (नस) बहुत हों तो मार्ग चलनेवाली होवै और बहुत रोम अंगुलियोंमें हों तो दासी होवे ॥ १४॥ गुल्फलक्षणम्। निर्मासेन सदा नारी दुर्भगा खलु जायते ॥ गुल्फो गूढौं शुभौ स्यातामशिरालौ च वर्तुलौ१५॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दशमः १० ] भाषाटीकासमेतम् । ६९) जिसके (गुल्फ) घुटनोंके नीचे (निर्मास ) माडे हों तो वह स्त्री दुर्भगा होवै यदि उक्तस्थान ( गूढ ) स्थूल, पुष्ट हों (अशिरा) नसोंसे रहित हों एवं वर्तुल हों तो सुभगा होवै ॥ १५॥ अगूढौ शिथिलौ यस्यास्तस्या दौर्भाग्यसूचकौ ॥ गुल्फलक्षणमाख्यातं पार्णिलक्षणमुच्यते ॥ १६ ॥ जिस स्त्रीके गुल्फस्थान शिथिल एवं (अगूढ) ढीले हों वह दुर्भगा होवे इतने गुल्फलक्षण कहे गये, अब (पाणि) एंडीके लक्षण कहेजाते हैं ॥१६॥ पाणिलक्षणम् । समानपाणिः सुभगा पृथुपाणिश्च दुर्भगा॥ कुलटा तुङ्गपाणिश्च दीर्घपाणिगंदाकुला ॥ १७ ॥ जिसके (पाणि) एंडी समान हों तो वह सौभाग्यवती होवे, पाणि मोटे हों तो दुर्भगा होवे, जो पाणि ऊँचे हों तोव्यभिचारिणी और लंबी पाणिसे नित्य रोगसे आकुल रहे ॥ १७॥ जङ्घालक्षण। जंघे रंभोपमे यस्या रोमहीने च वर्तुले । मांसले च समे स्निग्धे राज्ञी सा भवति ध्रुवम् ॥१८॥ जिस स्त्रीके जंघा कदलीस्तंभके समान हों तथा रोमरहित (वर्तुल) गोलाकार सरल, मोटी,समान और चिकनी हो तो राजरानी होवे १८॥ एकरोमा प्रिया राज्ञो द्विरोमा सौख्यभागिनी ॥ त्रिरोमा विधवा ज्ञेया रोमकूपेषु कामिनी ॥ १९॥ जिसके जंघाओंके (रोमकूप) रोमोंके जडपर एक एक रोम हों तो वह राजाकी प्रिया, ऐश्वर्यवती होवै, दोदो हों तो सुख भोगनेवाली और तीनसे विधवा जाननी ॥ १९॥ रोमकूपलक्षणम् । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ७० ) भावकुतूहलम् - जानुलक्षणम् । भवति जानुयुगं यदि मांसलं तदतिवृत्तमतीव शुभप्रदम् ॥ भुवनभर्तुरतो विपरीत मादिभिरिदं विपरीतमुदीरितम् ॥ २० ॥ [ स्त्रीसामुद्रिक: जिस स्त्रीके दोनों जानु मोटे, अति सुंदर गोलाकार हों वह अति शुभफल करते हैं। वह राजरानीके तुल्य होती है इससे विपरीत लक्षण हों तो फलभी विपरीत कहा है ॥ २० ॥ कटिलक्षणम् । समुन्नतनितंबाद्या यस्याः सिद्धगुला कटिः ॥ सा राजपट्टमहिषी नानालीभिः समावृता ॥२१॥ जिसकी कमर सिद्ध (२४) अंगुल चौडी हो तथा ( नितंब ) चूतड ऊंचे हों तो वह राजाकी पटरानी होवे और अनेक (सखी) दासियोंसे युक्त रहै ॥ २१॥ निर्मासा विनता दीर्घा चिपिटा शकटाकृतिः ॥ लघ्वी रोमाकुला नाय वैधव्यं दिशते कटिः ॥ २२ ॥ जो कमर मांसरहित, माडी, गहरी (चिपिट) बैठी हुई गाड़ीके आकारकी, छोटी और रोमोंसे भरी हुई हो वह वैधव्य देती है॥ २२ ॥ नितम्बलक्षणम् । सीमन्तिनीनां यदि चारुबिंबो भवेन्नितंबो बहुभो - गदः स्यात् ॥ समुन्नतो मांसल एव यासां पृथुः सदा कामसुखाय तासाम् ॥ २३ ॥ जिन भाग्यवती स्त्रियोंके चूतड रमणीय बिंबवत् हों तो बहुप्रकार भोग देते हैं. यदि ऊंचे, मोटे, बडेभी हों तो सर्वदा कामदेवको सुख देते हैं ॥ २३ ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दशमः १.] भाषाटीकासमेतम् । (७१) योनिलक्षणम्। यदा गजस्कन्धसमानरूपो भगोऽथवा कच्छपष्टष्ठवेषः ॥ इलापतेः कामविनोददायी वा सोनतः सोऽपि सुताजनेता ॥ २४॥ यदि स्त्रीका (भग ) योनि हाथीके गर्दनके सदृश यद्वा कछु. आके पीठके सदृश हो तो वह राजाको कामक्रीडामें प्रसन्न करने वाली अर्थात् राजरानी होवै यदि उक्तभग ऊंचे आकारका हो तो कन्या जनने वाली होती है ॥ २४॥ अश्वत्थदलरूपो वा भगो गूढमणिःशुभः॥ चुल्लिकोदररूपो यः कुरङ्गखुरसन्निभः ॥ २५॥ रोमाकुलो दृष्टनासो विकृतास्यो महाधमः॥ कामिनां न विनोदा) भगो भवति सर्वथा ॥२६॥ अथवा भग (अश्वत्थ ) पीपल के पत्रके समान अथवा गुप्तमणिके (टोटनी)वाला हो तो शुभ होता है, जो भग चुहीके पेटके आकारका व मृगखुरसा, रोमव्याप्त, ऊँची टोटनीवाला, विकृतमुख हो, वह अधम होताहै यह भग कामियोंके विनोदका हेतु सर्वदा नहीं होताहै ॥२५॥२६॥ कामिन्याः कञ्चुकावतॊ भगो दौर्भाग्यवर्द्धकः॥ स गर्भधारणाशक्तो वक्राकारोऽपि तादृशः ॥२७॥ कामिनीका भग यदि दोनों ओर ऊंचा बीचमें गहरा हो तो दौर्भाग्य बढाता है, गर्भधारणमें असमर्थ होता है यदि ( वक्राकार) मुडा हुआ हो तोभी वैसाही फल करता है ॥२७॥ वेतसवंशदलप्रतिभासः कपररूपवदेव भगो वा ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७२) भावकुतूहलम्- [स्त्रीसामुदिकालंबगलो विकटो गजलोमा नैव शुभाश्चिपिटोऽपि निरुक्तः ॥२८॥ जो भग बेंतके अथवा बांसके पत्रके आकार हो अथवा(कपर) बीचमें गहरा चारों ओर ऊंचा हो तथा गलेके समान एक ओर माडा दूसरे ओर मोटा लंबा हो, (विकट) ऊंचा नीचा हो और हाथीकेसे रोम जिसपर हों वह शुभ नहीं होता ऐसेही (चिपिट) चपटा भग भी अशुभ कहाहै ॥२८॥ मृदुतरं मृदुरोमकुलाकुलं यदि तदा जघनं भगभाजनम् ॥ उत समुन्नतमायतमादरात्पतिकला कलित गदितं बुधैः ॥ २९ ॥ यदि भग कोमलतर, कोमल बालोंसे भरा हो तो वह ऐश्वर्यका (पात्र ) भोगनेवाला होता है और ऊंचा, बडा, कांतिमान् ( कलाकलित ) जिसके दर्शन वा स्पर्शसे मनकी उमंग प्रसन्नतासे उठे यह भी वैसाही है ॥२९॥ तदेव दक्षिणावर्त मांसलं शुभसूचकम् ॥ वामावर्त च नारीणां खंडितं खंडिताश्रयम् ॥३०॥ वही भग दाहिने ओर घुमा हो यद्वा भौंरा मोटा हो तो शुभफल करता है. यदि बाँये ओर घुमा हो यद्वा भौंरा तथा (खंडित) किसी जगे भंग जैसा हो तो व्यभिचारिणी करता है ॥ ३० ॥ निर्मासं कुटिलाकारं रूक्षं वैधव्यसूचकम् ॥ अतिस्थूलं महादी सद्यो दौर्भाग्यकारकम् ॥३१॥ यदि भग मांसरहित एवं कुटिलाकार, मोडवाला हो तो वैधव्य करता है. जो अतिमोटा, व बडालंबा हो तो अवश्य (दौर्भाग्य) भाग्यहीन करता है ॥३१॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दशमः १०] भाषाटीकासमेतम् । मृदुला विपुला बस्तिः शोभना च समुन्नता॥ अशुभा रेखयाक्रान्ता शिराला लोमसंकुला ॥३२॥ (बस्ति) भग कोमल तथा बडा हो तो शुभ होता है, ऊँचीभी योनि शुभफल देतीहै जिसमें रेखा हों एवं नसें हों तथा रोमोंसे भरीहो तो अशुभफल देती है ॥ ३२॥ नाभिलक्षणम् । गभीरा दक्षिणावर्ता नाभी भोगविवर्धिनी ॥ व्यक्तग्रन्थिः समुत्ताना वामावतों न शोभना ॥३३॥ स्त्रीका नाभि यदि गहरी एवं दाहिनी ओर (मोड) घुमाववाली हो तो भोग बढाती है. जिसकी (ग्रंथि) गांठ प्रकट हो नाभी खुली हो यद्वा वामावर्त हो तो शुभ नहीं होती॥ ३३ ॥ उदरलक्षणम् । पृथूदरी यदा नारी मृते पुत्रान बहूनपि ॥ भेकोदरी नरेशानं बलिनं चायतोदरी ॥ ३४॥ जिस स्त्रीका पेट बडा हो वह बहुत पुत्र जनती है जिसका पेट मेंडककासा हो उसका पुत्र राजा होवे जिसका पेट बडे फैलावका हो उसका पुत्र बलवान होता है ॥ ३४॥ उन्नतेनोदरेणैव वन्ध्या नारी प्रजायते ॥ जठरेण कठोरेण सा भवद्भिदुकाङ्गना ॥ ३५ ॥ जिस स्त्रीका पेट ऊंचाहो वह बांझ होती है. जिसका उदर (कठोर ) कडाहो वह किसी नीचजातीविशेषकी पत्नी होवै ॥३५॥ आवर्तन युतेनैव दासिका भवति ध्रुवम् ॥ कोमलैमाससंयुक्तैः समानैः पार्श्वकैः शुभम् ॥३६॥ जिसके पेटमें ( आवर्त ) भौंरा हो वह दासी होवे यह Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७४) भावकुतूहलम्- [स्त्रीसामुद्रिक:निश्चय है और जिसकी कोमल मांससे संयुक्त दोनहूँ कूखी हों तो शुभफल होता है ॥ ३६॥ विशिरेण मृदुत्वचा सपुत्रा जठरेणातिकृशेन कामिनी सा॥ बहुधातुलभोगलालिता सानुदिनं मोदकसत्फलाशिनी स्यात् ॥ ३७ ॥ जिसका पेट नसोंसे रहित, कोमल त्वचाका तथा कृश हो तो वह कामिनी पुत्रवती होती है और बहुत प्रकारके अनुपम भोगोंसे उसका प्रेम होता है दिनदिन प्रसन्नतापूर्वक मिष्टान्न उत्तम मेवे खानेवाली होती है ॥ ३७॥ घटाकारं यस्या भवति च मृदङ्गेन सदृशं यवाकारं दैवादुदरमहितं पुत्ररहितम् ॥ अभद्रं नो भद्रं तदपि यदि कूष्माण्डसदृशं निरुक्तं तत्त्वज्ञैः कठिनमरुशालेन च समम ॥३८॥ जिस स्त्रीका पेट घडा या मृदंगके आकार हो अथवा दैवयोगसे (यह ) जौके दानेके आकारका हो तो वह पुत्ररहित रहै यदि (कूष्मांड ) कुम्हडेके आकारका पेट हो तो सर्वदा अमंगल देखे कभी मंगल न हो तथा कठोर ( उरुशाल) के समान हो तो भी तत्त्वजाननेवालोंने यह फल कहाहै ॥ ३८॥ कृशतरा त्रिवली सरलावली ललितनर्मविनोदविवर्धिनी ॥ भवति सा कपिला कुटिलाकुला शुभकरी विरला महदाकृतिः ॥ ३९॥ जिसके (त्रिवली) हृदयसे भगपर्यंत रोमवाली बारीक एवं सीधी हो तो वह स्त्री रहस्यके प्रेममें हँसीकी बोलचाल अतिरमणीय करे, प्रेम बढावै यदि वह त्रिवली (कपिलवर्ण) भूरेरंगकी, मुडी हुई, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दशमः १.] भाषाटीकासमेतम्। बहुत रोमोंकी हो तो कुटिलस्वभाववाली और गुस्सेवाली कडे वचन कहनेवाली होवै. यदि विरलरोम तथा बडी आकृतिकी त्रिवली हो तो शुभफल देती है ॥ ३९॥ उरो लक्षणम् । लोमहीनहृदयं यदा भवेनिम्नताविरहितं समायतम् ॥ भोगमेत्य सकलं वराङ्गना सा पुनः प्रियवियोगमालभेत् ॥ ४०॥ जिस स्त्रीकी छाती रोमरहित, (समान) ऊंची नीची न हो ऊपर नीचेका( माप)परिमाण तूल अर्ज बराबर होतो वह श्रेष्ठ स्त्री समस्त भोगसुख पावै परंतु पीछे (प्रिय ) प्यारेका वियोगभी पावे॥१०॥ उद्भिनरोमहृदया स्वपति निहन्ति विस्ताररूपहृदया व्यभिचारिणी स्यात् ॥ अष्टादशांगुलमितं हृदयं सुखाय चेद्रोमशं च विषम न सुखाय किचित् ॥४१॥ जिस स्त्रीके हृदयके रोम फटेमुखके हों अथवा अकस्मात् स्वयं उखडजावें वह अपने पतिको मारती है, जिसका हृदय जितना लंबा उतनाही चौडाभी हो तो व्यभिचारिणी होतीहै. यदि हृदय १८ अंगुल हो तो सुख होताहै, यदि रोमोंसे भराहुआ तथा कहीं ऊंचा कहीं नीचाभी हो तो उसको थोडाभी सुख नहीं मिलता ॥४॥ उन्नतं पीवरं शस्तं हृदयं वरयोषिताम् ॥ अपीवरमिदं नीचं पृथुदौभाग्यसूचकम् ॥ ४२ ॥ उत्तम स्त्रियोंके हृदय ऊंचे, स्थूल शुभ होतेहैं गहरे और चिपिट हों तो दौर्भाग्य (भाग्यहीन ) करताहै ॥ ४२ ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७६) भावकुतूहलम्- [स्त्रीसामुदिक: स्तनलक्षणम् । भवत एव समौ सुदृढाविमौ यदि घनौ सुदृशस्तु पयोधरौ ॥ निजपतेरनिशं परिवर्तुलौ कुसुमबाण विनोदविवर्धकौ ॥४३॥ यदि स्त्रीके दोनों स्तन समान एवं अच्छे ( दृढ) कडे, बहुत खूबसूरत, सुहावने हों तथा गोल हों तो अपने पतिको नित्य कामदेवके बाणोंके विनोद (हर्ष ) बढावनेवाले होते हैं ॥४३॥ सुभ्रुवो विरलौ सूक्ष्मौ स्थूलाग्रावहिताविमौ ॥ पयोधरौ तदा नााः प्रभवेद्दक्षिणोन्नतः॥४४॥ पुत्रदोप्यथ कन्यादो यदा वामोन्नतो भवेत् ॥ सन्तरालौ च विस्तारौ पीवरास्यो न शोभनौ॥४५॥ सुन्दर है भ्रुकुटि जिसकी ऐसी स्त्रीके स्तन यदि मिलेहुए न हों माडे हों स्थूलाग्र हों तो अशुभ हों और( दक्षिणोन्नत) दाहिने ओर झुके हों यद्वा दाहिना स्तन कुछ बडा हो तो पुत्र देनेवाली होती है। यदि (वामोन्नत) वाम ओर झुके यदा वाम स्तन कुछ बडा हो तो कन्या देते हैं जिन स्तनोंके बीचमें कुछ ( अंतराल) फासला हो तथा बडे हों उनके (मुख ) चूंची मोटी हों तो शुभ नहीं होते ॥४४॥४५॥ मूले स्थूलो क्रमकृशावग्रे वीक्ष्णौ पयधरौ ॥ सुखदौ पूर्वकाले तु पश्चादत्यन्तदुःखदों ॥ ४६॥ स्तन जडसे मोटे फिर क्रमसे माडे होते होते अग्रभाग तीक्ष्ण हों तो प्रथम अवस्थामें सुख पीछे अत्यंत दुःख देतेहैं ॥ ४६॥ स्कन्धलक्षणम् । पुत्रिणी विनतस्कंधा ह्रस्वस्कंधा सुखप्रदा॥ पुष्टस्कंधा तु कामान्धा रतिभोगसुखावहा ॥४७॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1 दशमः १०] भाषाटीकासमतम् । (७७) जिसके कंधे नम्र हों वह पुत्रवती और छोटे कंधोंसे सुखी होती है यदि स्कंधे पुष्ट हों तो वह स्त्री कामदेवसे अंधीसी हो रमणसुखसे युक्त रहती है ॥ १७॥ मदान्धा कुटिलस्कन्धा स्थूलस्कंधा च तादृशी॥ यदि लोमाकुलस्कंधा वैधव्यं द्रुतमावहेत् ॥४८॥ जिसके (स्कंध) कंधे टेढे हों वह मदसे अंधी रहती है, मोटे कंधोंवालीभी ऐसेही मदांधा रहतीहै, यदि कंधोंमें रोम बहुत हों तो शीघ्र विधवा होती है ॥४८॥ बाहुमूलक्षणम्। स्रस्तांसा संहतांसा च धन्या भवति कामिनी ॥ तुङ्गांसा विधवा ज्ञेया विमांसांसा तथैव च ॥४९॥ स्कंधोंके किनारे बाहुके जड (अंस ) चौडे हों या कडे हों तो वह कामिनी धन्या (भाग्यवती) होवै जिसके उक्तभाग ऊंचे हों अथवा ( मांसरहित ) माडे हों तो विधवा जाननी॥१९॥ कराङ्गुष्ठम्।। अंगुष्ठांगलिक युग्मं यत्पद्मकलिकासमम् ॥ बहुभोगाय नारीणां निर्मितं विधिना पुरा ॥५०॥ अंगूठा तथा दो अंगुली स्त्रियोंकी यदि कमलकी कलीके समान हों तो बहुभोग देती हैं. यह स्त्रियोंके भोगनिमित्त पहिले ब्रह्माने बनाया ऐसा जानना ॥५०॥ पाणितललक्षणम् । करतलं भुजयोर्यदि कोमलं विमलपद्मनिभं च समुन्नतम् ॥ निजपतेः कुसुमायुधवर्द्धकं निगदितं मुनिना विधिनोदितम् ॥ ५॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (७८) भावकुतूहलम् - [ स्त्रीसामुद्रिक: भुजाओं से ( करतल ) हाथोंकी हथेली यदि कोमल निर्मल कमलके समान, तथा ऊंची हों तो अपने पतिके कामदेवको बढानेवाली होती है यह ब्रह्माके वचन मुनियोंने कड़े हैं ॥ ५१ ॥ स्वच्छ रेखाकुलं भद्रं नो भद्रं हीनरेखया ॥ अभद्रं रेखया हीनं वैधव्यं चातिरेखया ॥५२॥ यदि हाथ की हथेली निर्मल रेखाओंसे भरी हों तो मङ्गल देनेवाली होती है यदि रेखा छोटी हों तो अमंगली है यदि रेखा न हों तो अमंगली होवे और अतिरेखा हों तो वैधव्य पावै ॥ ५२ ॥ करपृष्ठलक्षणम् । शिरालं कुरते निःस्वं नारीकरतलं यदि ॥ समुन्नतं च विशिरं करपृष्ठं सुशोभनम् ॥ ५३ ॥ हाथ अति शिरा (नसियों से भरा ) हो तो स्त्री निर्धन होवे और हाथका पिछवाडा ऊंचा तथा नसियोंसे रहित हो तो शुभ होता है५३ रोमाकुलं गभीरं च निर्मासं पतिजीवहत् । सुभ्रुवः करपृष्ठस्य लक्षणं गदितं बुधैः ॥ ५४ ॥ यदि हाथ की पीठ रोमों से भरी, गहरी और मांसरहित हो तो पति के प्राणों को हरे इतने स्त्रियोंके करपृष्ठके लक्षण पंडितोंने कहे हैं ॥५४॥ कररेखा | गभीरा रक्ताभा भवति मृदुला वा स्फुटतरा करे वामे रेखा जनयति मृगाक्ष्या बहु शुभम् ॥ यदा वृत्ताकारा पतिरतिसुखं विंदति परं विसारं सौभाग्यं बलमपि सुतं स्वस्तिकमपि ॥ ५५ ॥ यदि स्त्रीके बाँये हाथमें गहरी, लाल रंगकी, कोमल, देखने में स्पष्टतर रेखा हों तो अतिशुभ होती हैं और गोलाकार हों तो Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दशमः १०] भाषाटीकासमेतम् । (७९) पतिकीरतिका परम सुख पाती है सौभाग्य बढाती है बलवती होती है यदि हाथमें स्वस्तिकभी हो तो पुत्रवती होवै॥ ५५॥ करतले यदि पद्ममिलापतेः प्रियतमा परमागरिमावृता । नृपमपत्यमलं जनयेदरं बलवतामपि मानविमर्दकम् ॥५६॥ यदि स्त्रीके हाथमें कमलका चिह्न हो तो परम बडप्पनसे युक्त राजरानी हो तथा संतानोंमें निश्चय राजाकोही उत्पन्न करे अर्थात् इसका पुत्रभी राजा होवै जो बलसे बलवानोंके बलकोभी मर्दन करनेवाला हो ॥५६॥ यदा प्रदक्षिणाकारो नन्द्यावर्तः प्रजायते । चक्रवर्तिनृपस्त्री सा यस्याः पाणितलेऽमले ॥ ५७ ॥ __ यदि स्त्रीके निर्मल हाथमें प्रदक्षिणाकार घुमाहुआ नंद्यावर्त चिह्न हो तो वह स्त्रीके चक्रवर्ती राजाकी रानी होवै ॥ ५७॥ आतपत्रं च कमठः शंखोऽपि यदि वा भवेत्। नृपमाता गुणोपेता भव्याकारा पतिव्रता ॥१८॥ जो स्त्रीके हाथमें छत्र, कमल कछुआ, अथवा शंखकासा चिह्न हो तो वह गुणवती राजमाता तथा बडे यद्वा सुंदर आकारकी और पतिव्रता होवै ॥२८॥ यस्या वामकरे रेखा तुलामालोपमा भवेत् । वैश्यवामा रमापूर्णा नानालङ्कारमाण्डिता॥१९॥ जिसके बाँयें हाथमें ( तराजू ) तखडी अथवा मालाके समान रेखा हो तो उसका पति यद्वा वही व्यापारी होवे अथवा व्यापारी वा वैश्यकी स्त्री होवै तथा धनसे परिपूर्ण रहे, अनेक भूषण अलंकारोंसे सुशोभित रहे ॥१९॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( 60 ) भावकुतूहलम् - [ स्त्रीसामुद्रिक: करतले गजवाजिवृषाकृतिः कृतिविदामबला किल कोविदा | भवति सौधसमा यदि सुभ्रुवः शशिनिभाऽतिशुभा किल रेखिका ॥ ६० ॥ जिस स्त्रीकी हाथ की हथेली में हाथी घोडा बैलका चिह्न हो वह चतुर एवं किये कामकी परीक्षा करनेवाली अर्थात् कदरदान और पंडिता होवे. जिस सुंदर भ्रुकुटीवाली स्त्रीके हाथमें चूनेवाले पक्के मकानके समान चिह्न हो अथवा चंद्रमा के समान रेखा हो तो वह अति शुभफल देती है. गुणवती भाग्यवती करती है ॥ ६० ॥ भवति सा विमलांकुशचामरामलशरासनवद्यदि रेखिका । गुणविभूषितभूपतिवल्लभा करतले शकटेन विशोऽबला ॥ ६१ ॥ जिस स्त्रीके हाथमें निर्मल अंकुश, चामर तथा निर्मल बाणके आकारका चिह्न हो वह शुभगुणोंसे शोभायमान, राजरानी होवे अर्थात् उसका पति राजा वा राजतुल्य होवे । यदि हाथ में ( शकट) गाडीके आकारकी रेखा हो तो उसका पति वैश्य यद्वा व्यापारी होवै ॥ ६१ ॥ अंगुष्ठमूलतो रेखा कनिष्ठां यदि गच्छति ॥ यस्याः सा पतिहंत्री तां दूरतः परिवर्जयेत् ॥६२॥ जिस स्त्रीके अँगूठेकी जडसे ( कनिष्ठा) छोटी अंगुलीके मूल पर्यंत रेखा पहुँची हो तो वह अवश्य अपने पतिको मारनेवाली होती है ऐसी स्त्रीको दूरहीसे वर्जित करना ॥ ६२ ॥ यदि करे करवालगदामल प्रखर कुंत मृदंग कुरंगवत् ॥ भवति शूलनिभा खल रोखका भुवि सदा धनदा प्रमदा तदा ॥ ६३ ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दशमः १०] भाषाटीकासमेतम् । (८१) जिस स्त्रीके हाथमें तलवार, गदा,निर्मल एवं तक्षिण कुंत, मृदंग, हरिण, शूलके समान रेखा हो तो वह स्त्री पृथ्वीपर सर्वदा धनदेनेवाली होवै ॥ ६३॥ वृषभेकवृश्चिकभुजङ्गजंबुकाः खरकङ्कपत्रशलभा बिडालकाः ॥ यदि वामपाणितलगा भवन्ति चेत् कलहेन सार्द्धमतिरोगकारकाः॥६४॥ जिसके बायें हाथकी हथेलीमें बैल, मेंडक, बिच्छु, सर्प,स्यार, गदहा, (कंकपत्रपक्षी) कैंचुआ, ( शलभ) टीडी, बिल्लीका चिह्न हो तो कलहकारिणी होवै तथा अतिरोगपीडित रहै॥ ६४ ॥ अडलिलक्षणम् । कोमलः सरलोंगुष्ठो वर्तुलो यदि योषिताम् ॥ क्रमादेवं कृशांगुल्यो दीर्घाकाराश्च वर्तुलाः ॥६५॥ पृष्ठरोमाः शस्तफलाश्चिपिटा उदिता बुधैः ॥ कृशाः कुंचितपर्वाणो ह्रस्वा रोगभयावहाः ॥६६॥ अनेकपर्वसंयुक्ता उन्नतांगुलयोऽशुभाः॥६७॥ यदि स्त्रीके अंगुष्ठ कोमल तथा सीधा और वर्तुलाकार (गोल) हों और अंगुली उससे क्रमकरके न्यून जैसे एकसे दूसरी कम होती जाएँ, तथा लंबे आकारकी वर्तुल (गोल) हों उनके पीछे रोम जमें हों एवं पृष्ठभाग उनका चिपिट( चौडा)स्वल्पमांसवाले हों तो शुभफल देते हैं ये शुभलक्षण हैं । यदि अंगुली माडी हो तथा उनके रेखाओंके बीचके पर्व टेढे हों तथा अंगुली छोटे कदकी हों तो रोगका भय देती हैं। यदि अंगुलियोंमें अनेक (पर्व) रेखा मध्य. स्थानमें हों तथा ऊंची हों तो अशुभफल देनेवाली होती६५-६७ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (८२) भावकुतूहलम् [स्त्रीसामुद्रिक:नखानि । शंखशक्तिनिभा निम्ना विवर्णा न नखाः शुभाः ॥ कपिला वक्रिता रूक्षाः सुभ्रवः सुखनाशकः ॥६॥ स्त्रीके नाखून यदि शंख यद्वा सीपके समान हों तथा बीचमें गहरे वर्णरहित हों तो शुभ नहीं होते, तथा कपिलवर्ण एवं मुडेहुए और रूखे भी हों तो सुखका नाश करतेहैं ॥ ६८॥ यदि भवंति नखेषु मृगीदृशां सितरुचो विरला यदि बिन्दवः ॥ अतितरां कुसुमायुधपीडया परजनेन लपति रमंति ताः ॥ ६९॥ मृगके समान हैं नेत्र जिनके ऐसी स्त्रियोकें नाखूनोंमें यदि श्वेतरंगके बिंदु (छींटे ) हों तो वे अतिही कामदेवकी पीडासे परपुरुषोंसे स्वयं बातचीत करे तथा रमितभी रहे ॥ ६९ ॥ पृष्ठलक्षणम् । गुप्तास्थिपृष्ठवंशेन मांसलेन पतिप्रिया ॥ रोममूलेन पृष्ठेन विधवा भवति ध्रुवम् ॥ ७० ॥ जिस स्त्रीके पीठकी हड्डी (कनकदण्ड ) मांसमें छिपी हो और पुष्ट हो तो पतिकी प्यारी होती है, यदि पीठपर बहुतरोम हों तो निश्चय विधवा होती है ॥ ७० ॥ सशिरेणातिभुग्नेन विनतेन च दुःखिता। सरलो मांसलो यस्याः पृष्ठवंशः समुन्नतः ॥७॥ सापत्युरनुभद्राख्या मुक्तालंकारमंडिता। अतिप्रिया सुशीला च वरालीभिः समावृता ॥७२॥ जिसका पृष्ठवंश शिरा (नसों ) से युक्त हो, कहीं ऊंचा कहीं नीचा हो तथा गहरा हो तो वह स्त्री दुःखित रहती है । जिसका Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दशमः १०] भाषाटीकासमेतम् । (८३) पृष्ठवंश सरल (सीधा) मांससे भरा हुआ हो तथा ऊंचा हो तो वह पतिव्रता पतिको मंगल करनेवाली मोती आदित्नोंके भूषणोंसे शोभित रहै, पतिकी अतिप्यारी होवे, अच्छा शील (स्वभाव) होव, श्रेष्ठसखियोंसे युक्त रहे ॥७१॥७२॥ कण्ठलक्षणम् । कण्ठो वर्तुलरूपः कमनीयः पीनतायुक्तः। चतुरंगुलश्चयस्याःसा निजभर्तुः प्रिया भवति॥७३॥ जिस स्त्रीका कण्ठ (गला) मोल आकारकां, सुन्दरसुहावना तथा पुष्ट हो और लंबाईमें चार अङ्गुल हो तो वह अपने भर्तार्की प्यारी होती है ॥७३॥ ग्रीवा-लक्षणम् । गुप्तास्थिर्मासला ग्रीवा त्रिरेखाभिः समावृता। सुसंहता तदा शस्ता विपरीता न शोभना ॥७४॥ जो ग्रीवा (कण्ठ) मांससे पुष्ट हो अर्थात् हुड्डी जिसकी प्रकट न हों, त्रिवलीके समान तीन रेखाओंसे युक्त हो, दृढ हो तो शुभ होती है। इससे विपरीत माडी, ऊंची हड्डीवाली, कहीं नीची हो तो अशुभ होतीहै ॥ ७४॥ स्थूलग्रीवा धवत्यक्ता रक्तग्रीवा च दासिका। अपतिश्चिपिटग्रीवा लघुग्रीवार्थवर्जिता ॥ ७९ ॥ जिस स्त्रीका गला मोटा हो तो पतिसे त्यक्त रहै, गलेका लालरंग हो तो दासी होवै, जिसकी ग्रीवा चिपिट (चौडी) माडी हो वह विधवा होवे, जिसकी ग्रीवा छोटी हो (वह धनवर्जिता) दरिद्रा रहै ॥७९॥ हनुलक्षणम् । सुघना कोमला यस्या निर्लोमा च हनुः शुभा। लोमशा कुटिलालध्वीचातिस्थूला न शोभना॥७६॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ८४ ) भावकुतूहलम् - [ स्त्रीसामुद्रिक: जिसकी ठोडी घनी, कोमल और रोमरहित हो तो शुभ होती है जिसमें रोम बहुत हों (टेढी) तिर्छा हो, छोटी अथवा बहुतमोटी हो तो शुभ नहीं, दुःख दौर्भाग्य दारिद्र्य करती है ॥ ७६ ॥ मांसल कोमलावेतौ कपोलौ वर्तुलाकृती । समुन्नतौ मृगाक्षीणां प्रशस्तौ भवतस्तदा ॥ ७७ ॥ जिन मृगाक्षियों के गाल बहुत मांसयुक्त, कोमल, गोलाकार ऊंचे हों तो शुभ होते हैं ॥ ७७ ॥ निर्मासौ पुरुषाकारौ रोमशौ कुटिलाकृती ॥ सीमंतिनीनामशुभौ दौर्भाग्यपरिवर्द्धकौ ॥७८॥ जिस नवयौवना स्त्रीके कपोल ( गाल ) मांसरहित हों, अथवा पुरुषकेसे हों तथा रोमयुक्त टेढी आकृतिके हों तो अशुभ होते हैं दौर्भाग्य ( कंबख्ती ) बढानेवाले होते हैं ॥ ७८ ॥ ओष्ठलक्षणम् । बर्तुलो रेखायाक्रांतो बन्धूकसदृशोऽधरः ॥ त्रिग्धो राजप्रियो नित्यं सुभ्रुवः परिकीर्तितः ॥७९॥ जिन सुभ्रुओंके होंठ गोल हों और रेखाओंसे युक्त तथा बंधूकपुष्पके समान रक्तवर्ण हों तथा स्निग्ध ( चिकने ) हों तो राजप्रिय अर्थात् ऐसे होंठ राजाको प्रिय होते हैं यह पूर्वाचार्योंने कहा ॥७९॥ प्रलंबः पुरुषाकारः स्फुटितो मांसवर्जितः ॥ दौर्भाग्यजनको ज्ञेयः कृष्णो वैधव्यसूचकः ॥ ८० ॥ जो ओष्ठ लंबा हो, पुरुषके सदृश हो, फटाहुआ हो तथा मांसरहित हो तो दौर्भाग्य देनेवाला जानना यदि ओष्ठ कृष्णरंगका होतो वैधव्य जनाता है ॥ ८० ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दशमः १०] भाषाटीकासमेत् । (८५) दन्तलक्षणम् । उपर्यधः समा दन्ताः स्तोकरूपाः पयोरुचः॥ द्वात्रिंशदास्यगा यस्याःसा सदा सुभगा भवेत् ८॥ जिस स्त्रीके मुखमें दांत ऊपर तथा नीचेके सम हों और छोटे हों तथा दूधके समान कांतिमान हों गिनतीमें बत्तीस हों तो वह सर्वदा सौभाग्यवती रहती है ॥ ८॥ अधोदंताधिकत्वेन मातृहीना च दुःखिता ॥ विधवा विकटाकारैः स्वरिणी विरलद्विजैः ॥ ८२ ॥ जिसके नीचेके दांत गिनतीमें ऊपरके दांतोंसे अधिक हों तो मातासे हीन एवं दुःखितभी रहे यदि दांत (विकटरूप ) कुरूप हों तो विधवा होवे और दांत (छोटे) बीचमें अंतराल सहित हों तो विधवा होवे और दांत (छोटे) बीचमें अंतराल सहित हों तो व्यभिचारिणी होवे ॥८२॥ जिहालक्षणम्। कोमला सरला रक्ता श्वेता च रसना शुभा॥ स्थूला या मध्यसंकीर्णा विकृता सुखनाशिनी॥८३॥ जिस स्त्रीकी जीभ कोमल,सरल और लाल,वा श्वेतरंगकी अथवा रक्त श्वेत मिलेहुये रंगकी शुभ होती है, जो जीभ आयंतमें मोटी बीचमें माडी हो तथा विकृतरूप हो तो सुखका नाश करतीहै ८३ श्यामया कलहा नित्यं दरिद्रा स्थूलया भवेत् ॥ अभक्ष्यभक्षिणी ज्ञेया जिह्वया लंबमानया ॥ ८४॥ जिसकी जिह्वा श्याम रंगकी हो वह नित्य कलह करनेवाली होवे, जिसकी जिह्वा मोटी हो वह दरिद्रा होवै और जिसकी जिह्वा लंबी हो वह अभक्ष्यभक्षिणी (न खानेके योग्य ) वस्तु खानेवाली होवै॥८॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (८६) भावकुतूहलम् [ स्वीसामुदिक:तालुलक्षणम् । तालु कोकनदाभासं कोमलं भद्रकारकम् ॥ नारी प्रवजिता पीते सिते वैधव्यमाप्नुयात् ॥ ८५॥ जिसकी तालु कमल (रक्तोत्पल) के समान रंग और कोमल हो वह मंगलसूचक होती है । यदि तालु पीतवर्ण हो तो स्त्री प्रवजिता (फकीरनी) होवै, श्वेतवर्ण हो तो वह स्त्री विधवा होवै ८५॥ श्यामले पुत्रहींना च रूक्षे तालुनि दुःखिता ॥ वक्रे कलिप्रिया नारी बहुरूपे च दुर्भगा ॥ ८६ ॥ जिस स्त्रीके तालु कृष्णरंगका हो तो वह पुत्ररहित होतीहै.रूक्ष हो तो दुःखित रहै. जिसका तालु टेढा हो वह कलिप्रिया (कलहमें शौक रखनेवाली) होवै जो तालुके अनेक रूप रंग हों तो दुर्भगा (दरिद्रा कुलकलंकिनी भी होवै ॥८६॥ ___ कण्ठमूलम् । क्रमसूक्ष्मारुणा वृत्ता स्थूला घंटी शुभा मता ॥ अतिस्थूला प्रलंबा च कृष्णा नैव शुभा भवेत्॥८७॥ घंटिका ( कंठमूल) का प्रथमभाग स्थूल तदुत्तर क्रमसे सूक्ष्म तथा लालरंगकी, गोलाकार, मोटी शुभ होती है, जो घंटिका अति स्थूल बहुतलंबी कृष्णरंगकी हो तो वह शुभ नहीं होती ॥ ८७॥ स्मितलक्षणम् । भवति चेदनिमीलितलोचनं शुभदृशां दरफुल्लकपोलकम् ॥ अलमलक्षितदन्तमुदीरितं पविहितं सतवं स्मितमुत्तमम् ॥ ८८॥ जिस स्त्रीके मुसकुरानमें आँख बन्द न हों तथा कपोल थोडे प्रफुल्लित होजायँ और दाँत देखनेमें न आवे तो वह मुसकुरान सर्वदापतिको हितकारी (शुभदायक ) कहाहै ॥ ८८॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दशमः १०] भाषाटीकासमेतम्। । (८७) नासिकालक्षणम् । नासिका तु लघुच्छिद्रा समवृत्तपुटा शुभा ॥ स्थूलाग्रा मध्यनम्रा च न शस्ता सुभ्रवो भवेत्॥८९ सुंदर भृकुटीवाली स्त्रीकी नाक छोटे छिद्रकी, (सम) समान तथा वृत्ताकारपुटकी शुभ होती है. यदि नासिकाका अग्रभाग स्थूल तथा मध्यमें गहरा हो तो शुभ नहीं होती॥८९॥ लोहिताग्रा कुंचिता च महावैधव्यकारिणी ॥ दासिका चिपिटाकारा प्रलंवा च कालप्रिया ॥९॥ नासिकाका अग्रभाग लालरंगका एवं मुडा हुवा हो तो महापैघव्य करती है, जिसका नाक चिपिट (मूखीसरीखी) हो तथा अतिलंबी हो तो वह स्त्री(कलिहारी) कलहको प्रिय माननेवाली होवै९०॥ नेत्रलक्षणम्। रक्तान्ते लोचने भद्रे तदन्तः कृष्णतारके ॥ कबुगांक्षीरधवले कोमल कृष्णपक्ष्मणी ॥९१॥ स्त्रीके नेत्रोंके अंतिम भाग रक्त हों, उन नेत्रोंके मध्यवर्ती तारा ( पुतली ) कृष्णवर्णके हों तथा कंबु (शंख ) यद्वा गौके दूधके समान नेत्र श्वेतरंग वाले हों एवं कोमल हों और पलकोंके केश कृष्ण हों तो शुभलक्षण हैं ॥९॥ अल्पायुस्त्रताक्षी च वृत्ताक्षी कुलटा भवेत् ॥ अजाक्षी केकराक्षी च कासराक्षी च दुर्भगा॥ ९२॥ जिस स्त्रीके नेत्र ऊंचे हों वह अल्पायु होती है, जिसके नेत्र गोल हों वह व्यभिचारिणी होवे, जिसके बकरेकेसे अथवा केकरेकेसे अथवा महिषकेसे नेत्र हों वह दुर्भगा होवे ॥९२॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (८८) भावकुतूहलम् - [ स्त्रीसामुद्रिक: पिंगाक्षी च कपोताक्षी दुःशीला कामवर्जिता || कोटराक्षी महादुष्टा रक्ताक्षी पतिघातिनी ॥ ९३ ॥ पीले नेत्र यद्वा पिंगलपक्षी केसे नेत्रवाली तथा कपोतपक्षीके से नेत्रवाली दुष्टप्रकृति, कामरहित होवै, जिसके नेत्र कोटरके समान गहरे हों वह बडीही दुष्टा होवे और लाल नेत्रवाली विधवा होती है९३ बिडालाक्षी गजाक्षी च कामिनी कुलनाशिनी ॥ वन्ध्या च दक्षकाणाक्षी पुंश्चली वामकाणिका ॥९४ it कामिनी बिल्ली के समान अथवा हाथीके समान नेत्रवाली हो, वह कुलका नाश करती है। जिसकी दाहिनी आँख काणी फूटी वा किसी प्रकार गई हो तो वह बांझ और वाम आंख काणी से व्याभचारिणी होवे ॥ ९४ ॥ सदा धनवती नारी मधुपिङ्गललोचना ॥ पुत्रपौत्रसुखोपेता गदिता पतिसंमता ॥ ९५ ॥ जिस स्त्रीके नेत्र सहतसमान पीले हों वह सर्वदा धनवती रहे तथा पुत्रपौत्रोंके सुखसे युक्त और पतिके संमत हो ऐसा आचाने कहा है ॥ ९५ ॥ : पक्ष्मलक्षणम् । कोमलैरसिताभासैः पक्ष्मभिः सुधनैरपि ॥ लघुरूपधरैरेव धन्या मान्या पतिप्रिया ॥ ९६ ॥ जिस स्त्रीके पलक कोमल हों, श्याम हों तथा घनभी हों आरे छोटे रूपको धारण किये हों वह स्त्री धन्य है. लोकमें माननीय तथा पतिकी प्रिया होवै ॥ ९६॥ रोमहनैिश्च विरलैलम्बितैः कपिलैरपि ॥ पक्ष्माभिः स्थूलकेशैश्च कामिनी परगामिनी ॥९७॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दशमः १०] आषाटीकासमेतम् । (८९) जिसके पलक रोमरहित हों अथवा कहीं स्वल्प रोम हों तथा नीचेको लंबायमान एवं कपिलवर्ण हों अथवा मोटे केशवाले हों तो वह कामिनी परपुरुषगामिनी होवै ॥ ९७॥ वर्तुला कोमला श्यामा भूर्यदा धनुराकृतिः॥ अनंगरंगजननी विज्ञेया मृदुलोमशाः॥९८॥ जिसकी भ्रुकुटी (भौंह ) गोल, कोमल, श्यामरंग और धनुषके समान घूमें हुए हों वह कामक्रीडामें पतिको सुख देनेवाली होती है तथा भ्रुकुटीपर कोमल रोमोंसेभी यही फल है ॥ ९८॥ भूलक्षणम् । पिङ्गला विरला स्थूला सरला मिलिता यदि ॥ दीर्घलोमा विलोमा च न प्रशस्ता नतभ्रवः॥१९॥ जिस स्त्रीके भृकुटीपर भूरे केश हों यदा विरल केश हों मोटी हों, सीधी हों, दोनों भृकुटी मिली हों अथवा लंबे केशवाली हों, यदा विना केशकी हो तो यह शुभलक्षण नहीं है वह स्त्री दुर्लक्षणा होती है. झुकी हुई भ्रुकुटीवालीभी ऐसेही होती है ॥ ९९ ॥ कर्णलक्षणम् । प्रलंबौ वर्तुलाकारौ कौँ भद्रफलप्रदौ॥ शिराला च कृशौ निंद्यौशष्कुलीपरिवर्जितौ १००॥ जिस स्त्राक कानलंबे गालाकार (गिर्द ) हों तो शुभफल देनेवाले होते हैं, जिनपर शिर। (नसों) बहुत प्रगट हों, माडे हों तथा फेणीकाकार न हों तो निन्द्य हैं अर्थात् अशुभफल देते हैं ॥१००॥ __ ललाटलक्षणम्। उन्नतस्यंगुलो भालः कोमलश्च नतभ्रुवाम् ॥ अर्द्धचंद्रनिभो नित्यं सौभाग्यारोग्यवर्धकः॥१०॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (९०) भावकुतूहलम्- [स्त्रीसामुद्रिक:जिन नम्रभुकुटीवाली स्त्रियोंका मस्तक (माथा) तीन अंगुल प्रमाण ऊंचा हो, कोमल हो और अर्द्धचंद्रमाके आकारका हो तो वह सौभाग्य, नीरोगिता आदि सौख्य बढानेवाला होता है ॥१०॥ व्यक्तस्वस्तिकरेखयाकुलमलं नार्या ललाटस्थलं सौभाग्यामलभोग्यकृत्तदलिकं लंबायमानं यदि ॥ अद्धा देवरमाशु हंति नितरां रोमाकुलं रोगदं रेखाहीनमनंगभंगजनकं ज्ञेय बुधैः सर्वदा ॥१०२॥ जिस स्त्रीके ललाटमें ( माथेमें (स्वस्तिक चिह्न प्रगट हो अथवा बहुत स्वस्तिक हों तो वह स्त्री सौभाग्ययुक्त, उत्तम निर्मल भोग युक्त रहती है, यदि वही चिह्न लंबा यदा लटकतासा हो तो वह स्त्री साक्षात् देवरका नाश करती है यदि मस्तक रोमोंसे भरा हो तो रोगी रहै यदि रेखाओंसे रहित हो तो कामदेवसंबंधी भंगता पंडिताने सर्वदा जाननी ॥ १०२ ॥ करिपुंगवकुम्भसमान उत प्रवरोन्नत एव कदंब निभः ॥ इह मौलिरजस्रामिला विमला विविधा बहुधान्ययुता सुदृशः॥ १०३॥ जिन सुनेत्रा स्त्रियोंका माथा श्रेष्ठ हाथीके गंडस्थलके समान अथवा क्रमसे ऊंचा कदंबसदृश हो तो उनको निर्मल अनेक प्रकारके धान्ययुक्त पृथ्वी मिले ॥ १०३ ॥ पीनमौलिरतिमानहारिका दारिका कुजनसंगका रिका । लम्बमौलिरपि सर्वनाशिका बन्धका निजकुलान्तकारिका ॥ १०४॥ जिस कन्याका माथा (ऊंचा) चूह्रीसदृश पैना हो वह अपने मानको खोवै, दुष्टजनोंकी संगति करे जिसका माथा लंबा हो वह Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दशमः १.] भाषाटीकासमेतम् । भी सर्व नाश करे, बांझिनी होवे और अपने कुलका नाश करनेवाली होवे ॥१०४॥ केशलक्षणम् । केशा यस्या भ्रमरपटलोपेक्षवर्णाः सुवर्णा वक्राकाराः कुवलयदृशः किंचिदाकुञ्चिताग्राः। भाग्यं सयो ददति विरलाः पिंगलाः स्थूलरूपा रुक्षाकाराः परमलघवो बन्धवैधव्यदःखम ॥१०५॥ जिस कमलयननीके शिरके केशभ्रमरसमूहोंके उपेक्षा करनेवाले अर्थात् अति कृष्णवर्ण तथा चमकीले और मुडेहुए तथा कुंचित थोडे मुडेहुए अग्रभागवाले होवें तो भाग्य (ऐश्वर्य) देते हैं, यदि छोटे हों पीले भूरेरंगके, मोटे, रूखे हों अथवा आतिही छोटे हों तो वैधव्य, बंधन आदि दुःख देते हैं ॥ १०५ ॥ तिलमशकादि। मशकापि ललाटपट्टवर्ती यदि जागर्ति स मध्यगो भ्रुवोर्वा । तनुते सुखमर्थराशिभोगं सततं पत्युरपत्यभृत्ययोश्च ॥ १०६॥ जिसके मस्तकमें मसा (चर्मविकारसे छोटा व्रण सरीखा) हो अथवा वह भ्रुकुटीके बीचमें हो तो सुख, अतिधनी, अनेकभोग और सर्वदा पति, पुत्रका सुख पाती है ॥ १०६॥ .. मशकोऽपि कपोलमध्यगामी सुदृशोलोहित एवमिष्टदः स्यात् । हृदयं तिलकेन शोभितं लसनेनापि च राज्यकारणम् ॥ १०७॥ जिसके गालके बीचमें मसा लालरंगका हो तो इष्टसिद्धि करता है, यदि हृदयमें तिल वा लसन चिह्न हो तो राज्य देताहै ॥ १०७॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ९२ ) भावकुतूहलम् । [ स्त्रीसामुद्रिक: लोहितेन तिलकेन मण्डितं सुभ्रुवो हि कुचमण्डलं यदा । जायते किलसुताचतुष्टयं बालकत्रयमुदीरितं तदा ॥ १०८ ॥ जिस सुभ्रू स्त्रीके स्तनमंडलमें लाल रंगका तिल हो तो उसके चार कन्या और ३ पुत्र होवें यह पूर्वशास्त्रों में कहा है ॥ १०८ ॥ वामकुचेऽरुणलाञ्छनं शुभदृशस्तिलकं कमलप्रभम् । प्रथमतस्तनयं परिसूय सा कृतिवरं विधवा तदनन्तरम् ॥ १०९ ॥ भवति जिस सुभ्रू स्त्रीके वामस्तनमें लालरंगका लांछन हो वह प्रथम युवावस्थामें गुणवान् पंडित पुत्रको उत्पन्न करके विधवा होजावै १०९ लसति बालमधुव्रतसन्निभं शुभदृशस्तिलकं गुददक्षिणे । नरपतेरबला कमलालया नृपमपत्यमरं जनयेदलम् ॥ ११० ॥ जिस सुन्दर भूकुटवालस्त्रिकि छोटे भ्रमरांक समूह समान रंगका (कृष्ण) तिल गुदद्वार के दाहिने हो वह राजा की स्त्री हो उसके घरमें लक्ष्मी वास रहै तथा उसका पुत्र भी निश्चय राजाही होवे ॥११०॥ मशकोऽपि च नासिकाग्रगामी सुदृशी विडुमकान्ति रर्थदायी । अलिपक्षनवाभ्ररूपधारी पतिहन्त्री किल पुंश्चली विशेषात् ॥ १११ ॥ जिस सुनेत्रा स्त्रीके नासिकाके अग्रभागमें लाल रंगका मसा हो तो धन देता है। यदि वही, मसा भ्रमरपक्ष यद्वा नवीन मेघके रूपको धारण किये हों तो पतिको मारती है विशेषतः व्यभिचारिणी होती है ॥ १११ ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दशमः १०] भाषाटीकासमेतम् । यदि नाभेरधोभागे तिलकं लांछनं स्फुटम् । सौभाग्यसूचकं ज्ञेयं मशको वा नतभ्रुवाम् ॥११२॥ यदि नम्र भृकुटीवाली स्त्रियोंके नाभीके नीचे तिल अथवा लांछन प्रकट हो तो सौभाग्य जनाता है अथवा मसा हो तो भी ऐसाही फल करता है ॥ ११२॥ यदि करे च कपोलतलेऽथवा भवति कण्ठगतं तिलकं तदा । श्रुतितलेऽपि च सा पतिवल्लभा वरशी मशकामललांछनः॥ ११३ ॥ जिस सुनेत्रास्त्रीके हाथकी हथेलीमें, या गालमें अथवा कंठमें यद्वा कानके नीचे तिल हो तो वह स्त्री पतिकी प्यारी होवे ऐसेही मसा आदि निर्मल लांछनसे जानना ॥ ११३॥ भालस्थेन त्रिशूलेन शंभुना निर्मितेन वै। यस्याःसाऽऽलीसहस्राणामीशितामानुयादरम् ११४ जिस भाग्यवती स्त्रीके माथेमें शिवजी कृपा करके त्रिशूलाकार रेखाका चिह्न करदें तो वह हजारहों( आली) सखियोंकी स्वामिनी होवे अर्थात् अतीव ऐश्वर्यवती होवै ॥ ११४॥ किटकिटे तिलकं कुरुते मिथः शुभदृशः शयने तु रदावली । महदमङ्गलमाह विशेषतः प्रियतमे तनुलक्षणकोविदाः ॥ ११५ ॥ जिस सुदृशी स्त्रीके दोनों पंक्तिके दांत सोयेमें किट किट शब्द करें अर्थात् दाँत परस्पर लडें तो उसके पतिको महान् अमंगल होताहै, यह विशेष दुर्लक्षण है,शरीरके लक्षणोंके जाननेवाले पंडित लोगोंने कहा है ॥ ११५॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (९४) भावकुतूहलम्- (स्त्रीसामुद्रिकः शकटवद्यदि योनिललाटगो मृगदृशो मृदुलोमगणो भवेत् । वरदुकूलमणिव्रजमंडिता क्षितिभृतां वनिता वनितावृता॥ ११६ ॥ जिस मृगनयनीके माथेपर कोमल केशोंसे बना हुआ गाडी अथवा(योनि) भगकासा आकार हो तो वह श्रेष्ठवस्त्र, अनेक रत्नसमूहोंसे शोभित,अनेक सखी दासिकाओंसे युक्त राजरानी होवे ११६ विलसति भगभाले दक्षिणावर्तरूपः कुवलयनयनायाः कोमलो लोमसंघः॥ नरपतिकुलमर्तुः कामिनी मानिनीनामिह भवति वदान्या सैव धन्या विशेषात् ॥११७॥ पूर्वश्लोकमें जो माथेपर कोमल केशोंसे भगका चिह्न कहा है वह यदि दक्षिणावर्त (दाहिनी ओरको घुमा) हो तो वह मृगनयनी राजाधिराजकी कामिनी (प्रिया) होवै यौवनगर्विता स्त्रियोंमें वदान्या (श्रेष्ठा) होवै, विशेषतः वह स्त्री धन्या है ॥ ११७॥ कण्ठावर्ता भवति कुलटा भर्तृहन्त्री कुरूपा पृष्ठावर्ता कठिनहृदया स्वामिहन्त्री कुलनी। आवतौ वा भवत उदरे द्वाविहैकोऽपि यस्याः सापि त्याज्या कृतिभिरबला लक्षण स्तु दूरात् ११८ जिस स्त्रीके बारीक कोमल रोमोंका पुंज होकर मुडाहुआ जलका आवर्त (भौंरा) जैसा कण्ठमें हो तो बहुत पति करनेवाली, पतिको मारनेवाली,कुरूपा होवे। पीठमें हो तो कठोरहृदय(कर्कशा, निर्दया)और भर्त्ताको मारनेवाली कुलका नाश करनेवाली होतीहै। जिसके पेट में दोअथवा एक भी भौंरा हो वह भी स्त्रियोंके सामुद्रिकलक्षण जाननेवाले चतुरोंको दूरहीसे वर्जित करनी चाहिये ॥१८॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दशमः १० ] भाषाटीकासमेतम् । (१५) सीमंते च ललाटे वा कण्ठ वापि नतभ्रुवः । लोम्नामावर्त्तको दक्षो वामो वैधव्यसूचकः ॥ ११९॥ माथे के ऊपर के प्रांतस्थान में अथवा माथेमें अथवा कण्ठमें जिस सुनके रोमावर्त्त ( भौंरा ) दाहिने ओर अथवा बायें ओर घुमाववाला हो तो वैधव्य जाननेवाला होता है ॥ ११९॥ शुभाशुभलक्षणहेतुः । याभिरेव वरदो महेश्वरः पूजितः किल पुरा व्रतादिभिः ॥ पार्वती च परिपूजिता मुदा भक्तियोगविधिना सुवासिनी ॥ १२० ॥ भूषितामलविभूषणादिभिः क्षालितं वपुरनेकधा पुरा ॥ तीर्थराजपयसा भवंति ता लक्षणैरिह शुभाः सुलक्षणाः ॥ १२१ ॥ जिन स्त्रियोंने पूर्वजन्म में व्रतादिकोंसे शिवजीका पूजन किया हो तथा प्रसन्नतापूर्वक पार्वतीजीका भी पूजन किया हो और भक्तिभावसे, योगसाधनविधिसे आराधन किया हो (सुवासिनी) सौभाग्य वतीका पूजन उमात्रत आदिकोंसे किया हो उनको वस्त्र, भूषणादि अलंकार दिये हैं अथवा तीर्थराज प्रयागादिकों के जलसे शरीर अनेक वार प्रक्षालित किया हो वे उक्त शुभलक्षणोंसे युक्त लक्षित, सुलक्षणा होती हैं अर्थात् जिन्होंने पहिले बडे पुण्य किये हैं वही भाग्य, ऐश्वर्यवती होती हैं, उन्होंके उक्त शुभचिह्न लक्षण होते हैं १२०-१२१ कृतं नहि तपो यया नगजया समाराधितो हरिर्नहि रविव्रतं नहि कृतं च तीर्थाटनम् ॥ धनं नहि धरामरे परममर्पितं तर्पितं गुरोः कुलमिहाङ्गना भवति सैव दीनाङ्गना ॥ १२२ ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (९६) भावकुतूहलम्- [स्त्रीसामुद्रिक:जिस स्त्रीने पार्वतीजीक तप न किया, अथवा विष्णुका भले प्रकार आराधेन नहीं किया, सूर्यका व्रत न किया,तीर्थोंमें न फिरी; ब्राह्मणोंको धन नहीं दिया, गुरुका कुल तृप्त नहीं किया, वह इस संसारमें (दीना) दुःखदारिद्ययुक्त दुर्लक्षणों सहित होती है।१२२॥ सुरेखाफलम् । यतः सुलक्षणीरेखा योषा हीनायुषं पतिम् ॥ दीर्घायुषं सुचरितैः प्रकरोति सुखास्पदम् ॥१२३॥ जिससे कि, सुलक्षण रेखाओंवाली स्त्रीका पति अल्पायुभी हो तो यह अपने शुभलक्षणोंके प्रभावसे एवं अपने सुचरित्रोंसे उसे दीर्घायु तथा सुखका स्थान करदेती है ॥ १२३ ॥ कुलक्षणाफलम् । दीर्घायुषं पति हन्ति कुयोगैश्च कुलक्षणैः ॥ अतः सुलक्षणा कन्या परिणेया विचक्षणैः ॥१२४॥ जिस स्त्रीके कुयोग एवं कुलक्षण (उक्त लक्षणोंमेंसे ) होते हैं वे दीर्घायु पतिकोभी नाश करके विधवा होती है, तस्मात् जाननेवालोंने सुलक्षणा कन्यासे विवाह करना दुर्लक्षणासे नहीं करना १२४ ___ कुलक्षणशान्त्युपायः। कुलक्षणविलक्षिता यदि सुताऽत्र संजायते श्रुतिस्मृतिपथानया परमसोमवारव्रतम् ॥ विधाय तदनन्तरं रहसि कारयित्वाऽच्युत द्रुमेण हरिणा कृतीशुभघटेन पाणिग्रहम् ॥१२५॥ जिसके घरमें कुलक्षणोंसे युक्ता कन्या उत्पन्न होवै उसने वेद तथा धर्मशास्त्र के अनुसार सोमवारका उत्तम व्रत कन्यासे करावना इसके उपरांत एकांतमें अच्युतद्रुम (पीपल) वा विष्णुप्रतिमा या घटके साथ विवाहावीधसे विवाह करना ॥ १२५ ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दशमः १०] भाषाटीकासमेतम् । (९७). शुभेऽहनि कुमारिकाकरनिपीडनं कारयेद्वरेण चिरजीविना पुनरिदं न दोषायते ॥ इदं तु बहुसंमतं मुनिवरेण गीतं पुनः प्रमाणपटुनादृतं प्रियविनोदकंदप्रदम् ॥ १२६ ॥ ऐसे अश्वत्थ विवाह तथा विष्णुप्रतिमाविवाह वा घटविवाह करनेके उपरांत शुभदिन मुहूर्तमें उस कन्याका चिरजीवित्वकारक ग्रहवाले वरके साथ विवाह करना; इसमें पुनर्विवाहका दोष नहीं होता (और दुर्लक्षण एवं वैधव्य योगोंका फल निराकरण होजाताहै. यह विधिबहुत आचार्योंके संमत है, श्रेष्ठ मुनिसे कहा हुआहै तथा उत्तम विद्वानोंसे आहत है और स्वामीको आनन्दप्रद है॥२६॥ कुलक्षणैः कुयोगैश्च लक्षिता वनिता यदा॥ तस्याः पूर्वविधानेन विवाहं कारयेद्बुधः॥ १२७॥ सामुद्रिकोक्तकुलक्षणोंसे यद्वा जातकोक्त कुयोगोंसे लक्षित जो कन्या हो उसका पूर्वोक्तविधिसे विवाहकरना (इससे सुहाग बढता है दुर्लक्षण दुर्योगोंका उपाय यही है ) ॥ १२७॥ जीवनाथविदुषात्र कामिनीलक्षणं बुधमनोमुदे मया । स्कंदकुम्भभवयोर्विवादजं व्यासगीतमखिलं प्रकाशितम् ॥ १२८॥ इति श्रीजीवनाथविरचिते भावकुतूहले स्त्रीसामुद्रिकाध्यायो दशमः ॥ ग्रंथकर्ता आचार्य पंडित जीवनाथ कहताहै कि मैंने बुधजनोंक मनप्रसन्न करनेके लिये इतने स्त्रीलक्षण स्कंद और अगस्तिके प्रश्नोतर व्यासदेवजीके कहे अनुसार समस्त प्रकाशित किया है॥१२८॥ इति भावकुतूहले माहीधरीभाषाटीकायां स्त्रीसामुद्रिकाऽध्यायः ॥ १०॥ - Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (९८) भावकुतूहलम्- [ग्रहावस्थाविचार: एकादशोऽध्यायः। अथ शयनादिद्वादशावस्थाविचारः। प्रथमं शयनं ज्ञेयं द्वितीयमुपवेशनम् ॥ नेत्रपाणिः प्रकाशश्च गमनागमने ततः॥१॥ सभायां च ततो ज्ञेय आगमो भोजनं तथा ॥ नृत्यलिप्सा कौतुकं च निद्रावस्था नभःसदाम्॥२॥ अब ग्रहोंकी अवस्था कहते हैं-शयन, उपवेशन २, नेत्रपाणि३, प्रकाश४,गमन५,आगमन६, सभा७,आगम८, भोजन९, नृत्य लिप्साकौतुक, निद्रा२ये अवस्थाओं के नाम हैं ॥१॥२॥ अवस्थापरिज्ञानम् । ।। ग्रहह्मसंख्या खगमाननिघ्नी खेटांशसंख्यागुणि ता ग्रहाणाम् ॥ निजेष्टजन्मसंतनुप्रमाणैर्युतार्क वष्टा शयनाद्यवस्था ॥३॥ । जिस नक्षत्रमें ग्रह हो उसकी अश्विन्यादि गणनासे जो संख्या हो उसे ग्रहकी संख्यासे गुनके पुनः ग्रहकी अंशसंख्यासे गुनाकर अपनी इष्टघटी, जन्मनक्षत्र, लमके संख्याओंसे युक्त करके बारहसे भाग लेना शेष जो रहै वह अवस्था जाननी जैसे(१) शेषमें शयनावस्था, (२) में उपवेशन, (३) में नेत्रपाणि इत्यादि ॥ ३॥ शेषं शेषहतं स्वरांकसहितं तष्टं पुनर्भानुना, संक्षेपं गुणशेषितं खलु भवेददृष्टयाद्यवस्था विधा॥ पंचद्विद्विगुणाक्षरामगुणवेदाः क्षेपकाङ्का रखेः प्राचीनैर्यवनादिभिःसमुदितास्तेऽमी निबद्धा मया॥४॥ ___ उक्त विधिसे जो शेष रहे उसे उसीसे गुनाकर स्वरांक जोडना (यह स्वरांक आगे लिखेंगे) पुनः (१२) से शेष करके जिस ग्रहकी अवस्था अभीष्ट है उसका ( वक्ष्यमाण) क्षेपकांक जोडना Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - एकादशः ११ ] भाषाटीकासमेतम् । ( ९९ ) तदनन्तर ( ३ ) से शेष करते एक (१) शेष रहे तो दृष्टि, (२) रहे तो चेष्टा, (०) शेष रहे तो विचेष्टा जाननी और सूर्यके ( ५ ) चन्द्रमाके (२) मंगलके (२) बुधके (३) बृहस्पतिके (५) शुक्रके (३) शनिके (३) राहुके ( ४ ) क्षेपकांक हैं इतने अंक यवनादि प्राचीन आचाय्योंके कहेही मैंने यहां लिखे हैं उपपत्ति इनकी ज्ञात नहीं यह ग्रंथ कर्त्ता कहता है ॥ ४ ॥ ऊपर जो स्वरांक कहा वह इस चक्रस्थ | क्रमसे लेना. जैसे अका इके२ उकेरे एके४ ओके ५ नामके (प्रधान) आदि अक्षरमें जो स्वर हों उसका अंक लेते हैं नाम प्रमाणभी वही है जिस नामके पुकारनेसे सोता मनुष्य जाग उठे. स्वरशास्त्रमतेन स्वरांकचक्रम् | १|२| ३ | ४ ५ अ इ उ ए क ख ग घ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat छ ज झ ट ड ढ त थ ध न प फ भ य र ल व श ष स |ह अवस्थाका उदाहरण - किसीका जन्म पौषशुकुपंचमी शुक्रवार मिथुन लग्न धनिष्ठा नक्षत्र के चतुर्थ चरण में है. इष्टघटी २६ । ० है सूर्य मूलनक्षत्र, चन्द्रमा धनिष्ठा में, मंगल श्रवणमें, बुध पूर्वाषाढा, बृहस्पति आर्द्रामें, शुक्र पूर्वाषाढा, शनि मूलमें, राहु पूर्वाफाल्गुनीमें, केतु पूर्वाभाद्रपदा में हैं। सूर्य ७ अंश, चन्द्रमा ४, मंगल ११, बुध २६, बृहस्पति ११, शुक्र २५, शनि ७, राहु केतु २३ अंशपर हैं। प्रथम सूर्य मूलनक्षत्र में है इसकी संख्या (१९) सूर्य की संख्या (१) से गुना १९ धनके ७ अंश पर होनेसे ७ से गुनदिया १३३ । इष्ट २६, जन्मनक्षत्र २३ लग्न मिथुन रेइनको जोड गुणित संख्या में मिलाया १८५ रवि ( १२ ) से शेष किया शेष ५ शयनादिगणना से पांचवीं गमनावस्था सूर्यकी हुई पुनः प्रसिद्धनाम गुणा www.umaragyanbhandar.com Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१००) भावकुतूहलम्- [ग्रहावस्थाविचार:नन्द आद्याक्षरोत्तरवर्ती स्वर उकारके अघोपंक्तिमें संख्या ३ पूर्वागतशेष ५ से शेष ५ गुनदिया २५ स्वरांक ३जोडके २८ पुनः१२ से शेष किया शेष ४ सूर्यक्षेपक ५ जोडनेसे ९ तीन ३ से शेष किया शेष रहा. इससे सूर्यकी गमनावस्थामें विचेष्टा अवस्था एवं प्रकारसे चन्द्रमाकी उपवेशावस्था में विचेष्टा,मंगल प्रकाशमें विचेष्टा, बुध आगममें दृष्टि, बृहस्पति नृत्यलिप्सामें विचेष्टा, शुक्र प्रकाशमें दृष्टि, शनि गमनमें विचेष्टा, राहु निद्रामें दृष्टि, केतु सभामें चेष्टा!! अथावस्थाफलानि । सूर्यावस्था । त्रिकोणे वा कर्मण्यपि नयनपाणौ दिनमणेः फलं शस्तं ज्ञेयं मदनसदने नन्दनपदे ॥ प्रकाशे मार्तण्डे मृतिपदमपत्यं जनिमतां तथा जाया याति व्ययमदनमाने च जनने ॥१॥ पुण्यबाधाकरः पुण्यभे भोजने कौतुके वैरिभे वरिहन्ता रविः ॥ सप्तमे पंच मे तत्रगो वा भवेदङ्गनापुत्रहा लिंगरोगप्रदः ॥२॥ अब अवस्थाओंके फल कहते हैं-प्रथम सूर्यके फल हैं कि, सूर्य त्रिकोण ५।९। वा १० भावमें नेत्रपाणि अवस्थामें हो तो शुभ फल देताहै. जो ७।५ भावमें प्रकाशावस्थामें हो तो जन्मियोंके पुत्रहानि होवै तथास्त्रीहानि हो, ऐसेही फल १२।७।१० स्थानोंमें भी उक्त अवस्थाके जन्ममें जानना, यदि ९भावमें भोजन अवस्थामें हो तो पुण्यमें बाधा डालता है, कौतुक अवस्थामें छठा हो तो वैरिहन्ता होताहै, यदि इसी अवस्थामें ७९ भावमें हो तो स्त्रीपुत्रहानि और लिंगमें रोग करता है ॥ १ ॥२॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एकादशः १] -.. .". - -. SHuein.. A C भाषाटीकासमेतम् । (१०१) चन्द्रावस्था । चन्द्रस्य द्वादशावस्था फलं शुक्लदले शुभम् ॥ अशुभं कृष्णपक्षे तु विज्ञेयं गणकोत्तमैः॥३॥ चंद्रमाके बारहों अवस्थाओंका फल शुक्लपक्षमें शुभ कृष्णपक्षमें अशुभ सर्वत्र उत्तम ज्योतिषियोंने जानना ॥३॥ . कुजावस्था। मदननंदनगोऽवनिनंदनः शयनगश्च कलत्रसुतक्षयम् । प्रथूमतः कुरुते रिपुणेक्षितो रिपुगृहे करभंगमनंगतः॥४ यदि युतः शनिनापि च राहुणा शिरसि रोगकरो धरणीसुतः ॥ तनुगतः शयने नयने गदं वितनुते नितरां क्षतमंगिनाम् ॥५॥ अङ्गारकोऽङ्गे यदि नेत्रपाणौ करो त्यनंगातिशयेन भङ्गम् ॥ भुजङ्गदन्तक्षतपावकाबुभय नगे हानिमिहाङ्गनायाः॥६॥ प्रकाशने पंचमसप्तमस्थः । सुतं निहन्त्याशु निहंति वामम् ॥ पापान्वितः पापखां- तराले कुकर्मिणां केतुवरं करोति ॥७॥ मंगलके आस्थाफल ये हैं कि, भौम शयनावस्थामें सप्तम भावमें हो तो स्त्रीहानि, पंचम हो तो पुत्रहानि करता है। यदि शडभावमें शत्रुदृष्ट उक्त अवस्थामें हो तो कामदेवव्याजसे हाथ टूटजावै ॥ ४॥ यदि शनिसे वा राहुसे युक्तभी हो तो शिरमें रोग करताहै, तथा निरंतर शरीरियोंको हानिहीं देताहै ॥ ५॥ यदि मंगल लनका नेत्रपाणि अवस्थामें हो तो कामदेवके संबंधी कार्यसे शरीरके अंगभंग करताहै. सर्पभय, दंतरोग, घाव, अग्नि, जलका भय होवे, स्त्री आदि गृहस्थका सुख न होवै ॥६॥ यदि प्रकाशावस्थामें ५७ भावमें हो तो पुत्रस्त्रीकी हानि करता है, यहां पंचममें पुत्र सप्तममें स्त्रीहानि जानना। यदि पापयुक्त, पापग्रहों के बीच भी हो तो कुकर्मियों में श्रेष्ठ “पापध्वज" पापियोंमें श्रेष्ठ ध्वजा जैसा करताहै ॥७॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०२) [ग्रहावस्थाविचार: भावकुतूहलम्- बुधावस्था। नेत्रपाणौ सुते सौम्ये पुत्रहानिः सुतागमः॥ सभायामव कन्यानामाधिक्यं मदने सुते ॥८॥ बुध नेत्रपाणि अवस्थामें पंचम हो तो पुत्रोंकी हानि और कन्याकी उत्पत्ति होवै । यदि सभावस्थामें प्राप्त होकर सप्तमपञ्चम भावोंमें हो तो कन्या बहुत पुत्र थोडे होवें ॥८॥ गुरोरवस्था। । भवति देवगुरौ यदि भोजने तनुगते मनुजो हि धनुर्द्धरः॥नवमपंचमभे धनवर्जितो भवति पापयुते विसुतो नरः ॥ ९॥ बृहस्पति भोजनावस्थामें लगका हो तो मनुष्य धनुषधारी होवै। यदि उक्त अवस्थामें ९।५भावमें हो तो धनरहित और पापयुक्त भी हो तो पुत्ररहित होवै॥ ९॥ शुक्रावस्था । । तनुगृहे मदने दशमे सितो नयनपाणिगतो यदि जन्मनि ॥शुभमतीव फलं तनुते बलं दशनभङ्गमनङ्गविवर्धनम् ॥ १० ॥ यदि जन्मकालमें शुक्र १७१० भावोंमें नेत्रपाणिअवस्थामें होतो अतीव शुभफल देताहै बलवान् करताहै परंतु दांतोंका भंग और कामदेवकी वृद्धिभी करता है ॥१०॥ शनेरवस्था। यत्र कुत्र स्थितो मन्दो जन्मकाले विशेषतः । अवस्थानामसदृशं वितनोति शुभाशुभम् ॥ ११ ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एकादशः ११ ] भाषाटीकासमेतम् । (903) जन्मकालमें जिस किसी भावमें स्थित शनि जिस अवस्थामें प्राप्त हो उस अवस्थाके नामसदृश शुभाशुभफल विशेष करके देता है ११ राहु केत्वोरवस्था | नवमे मदने वापि राहुराहुरिहाङ्गिनाम् ॥ महान्तो निद्रितोऽवश्यं पुण्यक्षेत्रनिवासिताम् १२ ॥ द्वितीये द्वादशे वापि लाभे वा सिंहिकासुते ॥ वसुधां भ्रमते मत्त्य विधनः शयने भवेत् ॥ १३ ॥ निजक्षेत्रे तु कविकुजगृहे मित्रभवने स्ववर्गे सद्वर्गे तमसि शयने जन्मसमये । फलं पूर्ण प्राहुः कथितभवनादन्यभवने तदा दृष्टप्रांस्तदिह शिखिनो राहुवदिदम् ॥ १४ ॥ जिन शरीरियोंके राहु ९/७ भावों में निद्रावस्था में हो तो उनको अवश्य पुण्य क्षेत्र में निवास मिले यह बडे आचार्य कहते हैं। यदि राहु शयनावस्था में २।१२।११ भावोंमें हो तो वह मनुष्य निर्द्धन रहकर पृथ्वी में भ्रमण करै । राहु यदि अपनी राशि |६ अपने उच्च ३ अथवा शुक्र के गृह २ । ७ या मंगलकी राशिमें १ । ८ में हो अथवा मित्रराशि में हो यद्वा अपने वा मित्रके अंशादियों में शयनावस्थाका जन्मकालमें हो तो फल पूर्ण देता है उक्त भवनोंसे अन्य गृहों में हो तो दुष्ट जनोंका पूज्य होवे । राहुके समान केतुका भी फल जानना ॥ १२-१४ ॥ अथ विशेषफलानि । यदि निद्रागतः पापः सप्तमे पापपीडितः ॥ तदा जायाविनाशः स्याच्छुभयोगेक्षणान्नहि ॥ १५ ॥ निद्रितो रिपुगेहस्थो रिपुयुक्तेक्षितो मदे । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १०४ ) भावकुतूहलम् - [ ग्रहावस्थाविचार: भार्या विनश्यति क्षिप्रं विधिना रक्षितापि चेत् ॥ १६ ॥ शुभयोगेक्षणादेका विनश्यति परा नहि ॥ शुभाशुभदृशा भार्या कष्टयुक्ता नृणां भवेत् ॥ १७ ॥ विशेषफल अवस्थाओं के कहते हैं कि, यदि कोई पापग्रह निद्रा अवस्था में प्राप्त सप्तमस्थानमें पापपीडित हो तो स्त्रीनाश होवे, यदि उसपर शुभग्रहकी दृष्टि हो वा शुभग्रहसे युक्त हो तो स्त्री कष्ट भोगकर बचजायगी ॥ १५ ॥ निद्राअवस्थावाला कोई भी ग्रह छठे भाव में शत्रुग्रहसहित वा उससे दृष्ट हो अथवा ऐसाही सप्तम स्थान में हो तो शीघ्र ही स्त्री नष्ट होवे यदि विधाताभी रक्षा करने आवें तौ भी नहीं रहे || १६ | यदि ऐसे ग्रह शुभयुक्त हों या उन पर शुभग्रहों की दृष्टि हो तो एक स्त्री मरे दूसरीसे गृहस्थसुख होवे यदि शुभ पाप दोनहूंसे दृष्ट वा युक्त हों तो स्त्री कष्टयुक्त रहै १५-१७॥ पुत्र सुख योगः । अपत्यभावे यदि तुङ्गगेहे निजालये पापयुतेक्षितश्चेत् ॥ निद्रागतोपत्यविनाशकारी शुभेक्षितचैकसुतस्य हन्ता ॥ ३८ ॥ यदि कोई ग्रह पंचम भाव में अपने उच्च वा अपनी शशिका होकर निद्रावस्था में हो तथा पापग्रहसे युक्त वा दृष्ट हो तो संतानका नाश करता है उस ग्रहपर शुभ ग्रह की भी दृष्टि हो तो एक पुत्रकी हानि करता है औरकी नहीं ॥ १८ ॥ अपमृत्यु योगः । राहुणा सहितौ यस्य निधनस्थ कुजार्कजौ ॥ अपमृत्युर्भवेत्तस्य, शस्त्रघातान्न संशयः ॥ १९ ॥ निधनेपि शुभो यस्य पापारिग्रहवीक्षितः तदा मृत्युर्विजानीयादाहवे शस्त्रपीडनात् ॥ २० ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एकादश: ११ ] आपाटीका समेतम् । (१०५) जिसके अष्टमस्थान में राहुसहित मंगल शनि हों इनमें से कोई निद्रावस्थामें हो तो उसकी अपमृत्यु शस्त्रके कटने से होवे, इसमें संदेह नहीं ॥ १९ ॥ जिसके अष्टमभाव में शुभग्रहभी पाप अथवा शत्रुग्रहसे दृष्ट वा युक्त हो तो उसकी मृत्यु संग्राम में शस्त्रसे होवे ( यहां भी संबंध से निद्रावस्था विचारणीय है ) ॥ २० ॥ अथारिकृततीर्थकृतमृत्यु योगौ । यदा निद्रायुक्तो निधनभवनं पापमिलितः शयानो वा मृत्युं व्रजति रिपुकोपेन मनुजः ॥ शुभैर्दृष्टो युक्त निजपतियुतो वान्तसमये नरो गङ्गामेत्य व्रजति हरिसायुज्यपदवीम् ॥ २१ ॥ यदि कोई ग्रह पापयुक्त अष्टमस्थान में निद्रावस्था में या शयनावस्था में हो तो शत्रुके कोपसे मृत्यु पावे और वही ग्रह शुभग्रहों से दृष्टवा युक्त हो अथवा अष्टमेश अष्टम हो तो मृत्युसमय में वह मनुष्य गंगा पायकर विष्णुका सायुज्यपद (मुक्ति ) पावे ॥ २१ ॥ अथ पुण्यक्षेत्रलाभयोगः । यदा पश्येदंगं तनुभवननाथोष्टमपतिमृतिं धर्माधीशो जनुषि च तपःस्थानमथवा ॥ शुभाभ्यामाक्रान्तं नवमभवनं पापरहितं वरक्षेत्रं प्राप्य व्रजति मनुजो मोक्षपदवीम् ॥ २२ ॥ इति श्रीभावकुतूहले स्थानवशेनावस्थाफलकथनं नामैकादशोऽध्यायः ॥ ११ ॥ यदि जन्मसमय में लग्नेश लग्नको, अष्टमेश अष्टमभावको और नवमेश नवम भाव को देखे अथवा इनमें से एकभी अपने स्थानका देखनेवाला हो तथा दो शुभग्रहों से युक्त, पापोंसे रहित नवम हो तो मरणसमय में उत्तम क्षेत्र (पुण्यस्थान) पायके मुक्तिपदको प्राप्त हो२२ इति भावकुतूहले माहीधरीभाषाटीकायां स्थानवशेनावस्थाफलाऽध्यायः ॥ ११ ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०६) भावकुतूहलम्- [ग्रहावस्थाफलम् द्वादशोऽध्यायः॥ अथ ग्रहाणां प्रत्येकावस्थाफलानि । तत्रादौ सूर्यस्य । मन्दाग्निरोगोबहुधानराणां स्थूलत्वमंधेरपि पित्त कोपः॥ वणं गुदे शूलमुर प्रदेशे यदोष्णभानौ शयनं प्रयाते ॥१॥ शयनादि १२ अवस्थाओंके प्रत्येकके फल कहते हैं-कि यदि सूर्य शयनावस्थामें हो तो मनुष्योंको सर्वदा मंदाग्नि (क्षुधामंद, पाचनशक्ति न्यून रहे) पैर स्थूल हों, पित्तका विशेषतः कोप रहै गुदामें व्रण होवै हृदयमें शूल रहै ॥ १॥ दारद्रताभारविहारशाली विवादविद्याभिरतो नरः स्यात् ॥ कठोरचित्तः खलु नष्टवित्तः सूर्य यदा चेदुपवेशनस्थे॥२॥ जो सूर्य उपवेशनावस्थामें हो तो दरिद्री रहे, पराया भार ढोनेवाला सर्वदा रहे, कलहही विद्या जाने और वह मनुष्य (कठोरचित्त) निर्दयी होवे और वित्त उसका नष्ट होवे ॥२॥ नरः सदानन्दधरो विवेकी परोपकारी बलवित्तयुक्तः॥ महासुखी राजकृपाभिमानी दिवाधिनाथे यदि नेत्रपाणौ ॥३॥ जिस मनुष्यका सूर्य नेत्रपाणि अवस्थामें हो वह सर्वदा आनंदमें रहे, विवेकवाला होवे, पराया उपकार करे, बलवान एवं धनवान रहे, बडा सुख भोगता रहे, राजकृपासे अभिमानयुक्त रहे॥३॥ उदारचित्तः परिपूर्णवित्तः सभासु वक्ता बहुपुण्य कां ॥ महाबली सुंदररूपशाली प्रकाशने जन्मनि पद्मिनीशे ॥४॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वादशः १२] भाषाटीकासमेतम् । ( १०७ ) जिसके जन्ममें सूर्य प्रकाशनावस्थामें हों वह उदारचित्त (देनेवाला) होवे, धनसे परिपूर्ण (संपन्न) रहे, सभामें चातुर्यसहित वार्ता करे, बहुत पुण्य करे, बडा बलवान् होवे, सुन्दररूपवान् होवे ॥ ४ ॥ प्रवासशाली किलं दुःखमाली सदालसी धीधनवर्जितश्च ॥ भयातुरः कोपपरो विशेषाद्दिवाधिनाथे गमने मनुष्यः ॥ ५॥ यदि सूर्य गमनावस्था में हो तो मनुष्य नित्य परदेश रहनेवाला होवे निश्वय सर्वदा अनेक दुःखोंसे युक्त रहै, आलसी (निरुद्यमी ) बुद्धि और धन से रहित रहे, भयसे आतुर रहै, विशेषता से कोप ( गुस्सा ) युक्त रहे ॥ ५॥ परदाररतो जनतारहितो बहुधाऽऽगमने गमनाभिरुचिः ॥ कृपणः खलताकुशलो मलिनो दिवसाधिपतौ मनुजः कुमतिः ॥ ६ ॥ सूर्य जिसके जन्म में आगमनावस्था में हो वह पराई स्त्रियोंमें तत्पर रहे, बहुत मनुष्योंकी संगतिसे रहित ( अकेला ) रहे, बाहुल्यसे गमन ( सफर) की इच्छा किया करे, कृपण (मूंजी ) होवे, दुष्टतामें निपुण और मलिन भी होवै ॥ ६ ॥ सभागते हिते नरः परोपकारतत्परः सदाऽर्थरत्न पूरितो दिवाकर गुणाकरः ॥ वसुन्धरानवान्बरालयान्वितो महाबली विचित्रवत्सलः कृपाकलाधरः परः ॥ ७ ॥ जिस मनुष्यका मित्रस्थानस्थित सूर्य सभावस्थामें हो वह पराये उपकार करनेमें तत्पर रहे, सर्वदा धन एवं रत्नोंसे भरा रहे, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०८) भावकुतूहलम्- [ग्रहावस्थाफलम्गुणोंकी खान होवै पृथ्वी (जमीन) का मालिक होवे, नवीन वस्त्र और घरोंसे युक्त रहे, बडा बलवान होवै, अनेक प्रकारके मित्र रक्खे और उनका प्रिय होवे और परम कृपाकी कला उसके हृदयमें जागृत रहै ॥७॥ क्षोभितो रिपुगणैः सदा नरश्चञ्चलः खलमतिः कृशस्तथा ॥ धर्मकर्मरहितो मदोद्धतश्चागमे दिनपतौ यदा तदा ॥ ८॥ सूर्य जिसका आगमअवस्थामें हो वह शत्रुसे कंपायमान रहै, चञ्चल होवै, कुटिलबुद्धि (दुष्टता करनेवाला) होवै,शरीर कृश रहै, धर्मकर्मसे रहित रहे मदसे उछलता रहे ॥८॥ सदाङ्गसन्धिवेदना पराङ्गनाधनक्षयो । बलक्षयः पदे पदे यदा तदा हि भोजने ॥ असत्यता शिरोव्यथा तथा वृथान्नभोजनं रखावसत्कथारतिः कुमार्गगामिनी मतिः॥ ९॥ सूर्य भोजनावस्था में जिसका हो उसके सर्वदा शरीरकी सन्धियोंमें पीडा रहे, परस्त्रीके संसर्गसे धन एवं बलका क्षय पैर पैर पर हो, असत्यवादी हो, शिरमें रोग रहे, खायापिया व्यर्थ जावे, यदा अन्न पचे नहीं,अनिष्टवार्ता में रुचि रहे, कुमार्गचलनेकी बुद्धि होवे९ विज्ञलोकैः सदा मंडितः पंडितः काव्यविद्यानवद्यप्रलापान्वितः॥राजपूज्यो धरामण्डले सर्वदा नृत्यलिप्सांगते पद्मिनीनायक ॥१०॥ जिसका सूर्य नृत्यलिप्सावस्थामें हो वह सर्वदा विद्या जाननेवाला लोगोंसे शोभित रहे, पंडित होवे, काव्यविद्यामें बडी वाचाल शक्ति होवे, राजासे पूजा(आदर) पावै,पृथ्वीमेंभी पूज्य होवे ॥१० Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१०९) दादशः १२] भाषाटीकासमेतम् । | सर्वदानन्दधर्ता जनो ज्ञानवान् यज्ञकर्ता धराधी रासद्मस्थितः॥ पद्मबंधावरातीमपंचाननः काव्यविद्याप्रलापी मुदा कौतुके ॥ ११॥ सूर्य जिसका कौतुकावस्थामें हो वह सर्वदा प्रसन्नताको धारण करताहै, ज्ञानवान, यज्ञ करनेवाला, राजद्वारमें रहनेवाला होवे, शत्रुरूपी हाथियोंके ऊपर सिंहसमान प्रतापी होवे, काव्यविद्याम अतिवाक्शक्तिवाला मनुष्य होवे ॥ ११ ॥ निद्राभरारक्तनिभे भवेतां निद्रागते लोचनपद्मयुग्मे ॥ खौ विदेशे वसतिर्जनस्य कलत्रहानिः कतिधार्थनाशः ॥ १२ ॥ जिसका सूर्य निद्रावस्थामें हो उसके नेत्र नींदसे भरेहुए रुधिरके समान लालरंगके रहें, विदेशमें निवास पावे और स्त्रीहानि एवं कितनेही वार धननाश होवे ॥ १२॥ अथ चन्द्रस्य । जनुःकाले क्षपानाथे शयनं चेदुपागते॥ मानी शीतप्रधानी च कामी वित्तविनाशकः ॥१॥ जिसके जन्मसमयमें चन्द्रमा शयनावस्थामें हो वह मानी (इजतवाला) होवै, शरीरमें शीतप्रधान रहे, अतिकामी होवे, धनका नाश अपने हाथसे किसी व्यसनमें करे॥१॥ रोगार्दितो मन्दमतिविशेषाद्वित्तेन हीनो मनुजः कठोरः ॥ अपायकारी परवित्तहारी क्षपाकरे चेदुपवेशनस्थे॥२॥ जिसका चन्द्रमा उपवेशनावस्थामें हो वह रोगसे पीडित रहे, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११०) मावकुतूहलम्- [ग्रहावस्थाफलम्मन्द (जड) बुद्धि होवे, विशेषतः धनसे हीनरहे, कठोर स्वभाव होवे, पराया नाश करे,पराया धन लुटानेवाला भी वह मनुष्य होवेर नेत्रपाणौ क्षपानाथे महारोगी नरो भवेत् ॥ अनल्पजल्पको धूर्तः कुकर्मनिरतस्सदा ॥३॥ चन्द्रमा जिसका नेत्रपाणिअवस्थामें हो वह मनुष्य महारोगी ( राजरोग आदि बडे रोगवाला) होवे तथा बहुत वाचाल, धूर्त होवे और सर्वदा कुकर्मोंमें तत्पर रहे ॥३॥ । यदा राकानाथे गतवति विकासं च जनने विकासः संसारे विमलगुणराशरेवनिपात् ॥ नवा शालामाला करितुरगलक्ष्म्या परिवृता विभूषायोषाभिः सुखमनुदिनं तीर्थगमनम् ॥४॥ यदि जन्ममें चंद्रमा विकासावस्थामें हो तो मनुष्य संसारमें निर्मलगुणोंके समूहसे विकसित (प्रफुल्लित ) रहे तथा राजासे हाथी घोडे और धनोंसे संयुक्त, नवीन मकानोंका समूह मिलै एवं भूषण और स्त्रियोंसे नित्य सुख पावे तथा तीर्थ यात्रा करे ॥४॥ सितेतरे पापरतो निशाकरे विशेषतः क्रूरतरो नरो भवेत्॥सदाक्षिरोगैः परिपीडयमानोवलक्षपक्षे गमने भयातुरः॥५॥ यदि कृष्णपक्षका चंद्रमा गमनावस्थामें हो तो विशेषतः मनुष्य अतिकूर स्वभाववाला होवै सर्वदा नेत्ररोगसे पीडित रहे और शुकपक्षका हो तो सर्वदा भयातुर रहे ॥५॥ विधावागमने मानी पादरोगी नरो भवेत् ॥ गुप्तपापरतो दीनो मतितोषविवर्जितः॥६॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वादशः १२] भाषाटीकासमेतम् । (१११) चंद्रमा आगमनावस्थामें हो तो मानी (इजत यद्वा गर्ववाला) होवै, पैरोंमें रोग रहे गुप्तपाप करनेमें तत्पर रहे, दुःखी होवै, बुद्धि और संतोषसे वार्जत रहे ॥ ६॥ . सकलजनवदान्यो राजराजेन्द्रमान्यो रतिपतिसमकान्तिः शान्तिकृत्कामिनीनाम् ॥ सपदि सदास याते चारुबिंबे शशाङ्के भवति परमरीतिप्रीतिविज्ञो गुणज्ञः ॥७॥ पूर्ण चंद्रमासभावस्थामें हो तो मनुष्य समस्त मनुष्योंमें वदान्य (चतुर ) होवै, राजा तथा चक्रवर्तियोंका माननीय होवै, कामदेवके समान सुंदरकांति होवै,युवास्त्रियोंको कामक्रीडामें शांति करनेवाला होवे, प्रेमकला जाननेवाला होवे, गुणोंको पहिचाने ॥ ७॥ विधावागमने मत्यों वाचालो धर्मपूरितः॥ कृष्णपक्षे द्विभार्यः स्याद्रोगी दुष्टतरो हठी॥८॥ चंद्रमा आगमनावस्थामें हो तो अतिबोलनेवाला, धर्मसे परिपूर्ण होवै, यदि कृष्णपक्षका चंद्रमा उक्त अवस्थामें हो तो दो स्त्री होवें, रोगी रहे, अतिदुष्ट स्वभाव और हठ करनेवाला होवै ॥ ८ ॥ भोजने जनुषि पूर्णचंद्रमा मानयानजनतासुखं नृणाम् ॥ आतनोति वनितासुतासुखं सर्वमेव न सितेतरे शुभम् ॥९॥ जिनको जन्मकालमें पूर्णमंडल चंद्रमा भोजनावस्थामें हो वह मानवाला होवै, सवारी तथा मनुष्योंका सुख पावै, तथा स्त्रीसुख कन्यासुख भी होवै और कृष्णपक्षमें नहीं होते ॥९॥ नृत्यालिप्सागते चन्द्रे सबले बलवानरः॥ गीतज्ञो हि रसज्ञश्च कृष्णे पापकरो भवेत् ॥ १० ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( ११२ ) भावकुतूहलम् । [ ग्रहावस्थाफलम् - बली चंद्रमा नृत्यलिप्सा अवस्था में हो तो मनुष्य बलवान् होवे गीत (गायन) जाने, शृंगारादिरसोंको जाने और कृष्णपक्षका चन्द्रमा हो तो पाप करनेवाला होवे ॥ १० ॥ कौतुकभवनं गतवति चन्द्रे भवति नृपत्वं वा धनपत्वम् ॥ कामकलासु सदा कुशलत्वं वारवधूः रतिरमणपटुत्वम् ॥ ११ ॥ चंद्रमा कौतुकावस्था में हो तो मनुष्य राजा होवै; अथवा धनका मालिक होवे और कामकला ( रतिक्रीडामें ) सर्वदा चातुर्य रक्खे, वारांगनाओंके साथ रतिक्रीडामें चातुर्य पावै ॥ ११ ॥ निद्रागते जन्मनि मानवानां कलाधरे जीवयुते महत्त्वम् ॥ यदाऽगुणाः संचितवित्तनाशः शिवालये रौति विचित्रमुज्ज्ञैः ॥ १२ ॥ यदि मनुष्यों के जन्मसमय में पूर्णचन्द्रमा बृहस्पतियुक्त निद्रावस्थामें हो तो महत्त्व (बडप्पन ) पावे, कृष्णपक्षका हो तो गुण अवगुण होवें, संचय किये हुए धनादिका नाश होवे दुःखसे शिवालय (शिवमंदिर) में अनेक प्रकार के स्वरोंसे ऊंचा रोदन करे यद्वा उसके गृहमें स्यार अनेक प्रकार के स्वरोंसे ऊंचा रोदन करें अर्थात् शोक, दरिद्रसे ग्रस्त होवे ॥ १२ ॥ अथ भौमस्य फलम् । शयने वसुधापुत्रे जन्मकाले जनो भवेत् ॥ बहुना कण्डुना युक्तो दगुणा च विशेषतः ॥ १ ॥ जन्मसमयमें मंगल जिसका शयनावस्था में हो उसके अंगों में बहुतसी कण्डु (खुजली) रहाकरे, विशेषतः (दद्रु) दाद भी होवे ॥ १ ॥ यदाङ्गनासंचितवित्तनाशः६०पा० । स्त्रीका नाश और सञ्चित धनका नाश होवे । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वादश: १२] भाषाटीकासमेत् । (993) बली सदा पापरतो नरः स्यादसत्यवादी नितरां प्रगल्भः ॥ धनेन पूर्णो निजधर्महीनो धरासुते चेदुपवेशनस्थे ॥ २ ॥ मंगल उपवेशनावस्था में हो तो मनुष्य बलवान् होवे सर्वदा पापकर्म में तत्पर, झूठ बोलनेवाला, निरंतर वाग्वादचतुर, धनसे परिपूर्ण, स्वधर्म से हीन होवे ॥ २ ॥ V यदा भूमिसुते लग्ने नेत्रपाणिमुपागते ॥ दरिद्रता सदा पुंसामन्यभे नगरेशता ॥ ३ ॥ यदि मंगल नेत्रपाणि अवस्थाके लग्नमें हो तो मनुष्यों को सर्वदा दरिद्रता रहे, अन्य भावमें हों तो नगरके स्वामी होवे ॥ ३ ॥ प्रकाशो गुणस्य प्रवासः प्रकाशे धराधीशभर्तुः सदा मानवृद्धिः॥ सुते भूसुते पुत्रकान्तावियोगो युते राहुणा दारुणो वा निपातः ॥ ४ ॥ मंगल प्रकाशावस्था में हो तो गुणका प्रकाश होवे, परदेशमें नित्य निवास होवे, राजासे सर्वदा मान बढता रहै, यदि उक्त अवस्थाका मंगल पंचमभावमें हो तो स्त्री, पुत्रका वियोग (बिछोह ) पावे, यदि उसके साथ राहुभी हो तो वृक्षादिसे गिरपडे ॥ ४ ॥ गमने गमनं कुरुतेऽनुदिनं व्रणजालभयं वनिताकलहम् ॥ बहुदद्रुककण्डुभयं बहुधा वसुधातनयो वसुहानिमंरेः ॥ ५॥ मंगल गमनावस्था में हो तो प्रतिदिन गमन ( सफर ) करता है, अनेक प्रकारके व्रणका भय, स्त्रीकलह करता है और दाद, खुजलीको भी बहुत करता है शत्रुसे धनहानि होती है ॥ ५ ॥ १ करः इ० पाठातरम् । ८ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ DPPR (११४.) भावकुतूहलम्- [ग्रहावस्थाफलम्आगमने गुणशाली मणिमाली करालकरवाली ॥ गजगंता रिपुहंता परिजनसंतापहारको भौमे ॥६॥ मंगल आगमनावस्थामें हो तो पुरुष अनेक गुणोंसे युक्त हो मणियोंकी माला पहिने, तीक्ष्ण खड्गोंको धारण करनेवाला हो, हाथीकी सवारी करे, शुत्रुको मारे, आत्मीय जनोंका सन्ताप हरण करनेवाला होवे ॥६॥ तुङ्गे युद्धकलाकलापकुशलो धर्मध्वजा वित्तपः कोणे भूमिसुते सभामुपगते विद्याविहीनःपुमान्॥ अन्तेऽपत्यकलत्रमित्ररहितः प्रोक्तेतरस्थानगेडवश्यं राजसभाबुधो बहुधनी मानी च दानी जनः७ उच्चराशिका मङ्गल सभावस्थामें हो तो युद्धविद्याकी समस्त युक्ति जाने, तथा धर्मका ध्वज अर्थात् बडा धर्मात्मा और धनवान् (धनका स्वामी) होवे । यदि ९।५ स्थानमें हो तो पुरुष विद्याहीन (मूर्ख) होवे,बारहवें स्थानमें हो तो स्त्री,पुत्र, मित्रोंसे रहित रहें, उक्त स्थानोंसे अन्यमें हो तो अवश्य राजाके सभाका पंडित होवे, तथा बहुत धनवान्, मानवाला, दानी भी होवे ॥७॥ आगमे भवति भूमिजे जनो धर्मकर्मरहिवोगदातुरः ॥ कर्णमूलगुरुशूलरोगवानेव कातरमतिः कुसंगमी॥८॥ मङ्गल आगमावस्थामें हो तो धर्म कर्मसे रहित, रोगसे आतुर रहे, कानके नीचे बडा शूलरोग रहै, कायर तथा कुसङ्गी होवे८॥ भोजने मिष्टभोजी च जनने सबले कुजे॥ नीचकर्मकरो नित्यं मनुजो मानवर्जितः॥९॥ जन्ममें बलवान् मङ्गल भोजनावस्थामें हो तो मिष्टान्न खाने Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वादशः १२] भाषाटीका समेतम् । ( ११५) वाला होवे, तथा सर्वदा नीचकर्म करे, मान ( अहंकार वा इज्जत ) से रहित रहे ॥ ९ ॥ नृत्यलिप्सागते भूसुते जन्मिनामिन्दिराराशिरायाति भूमीपतेः ॥ स्वर्णरत्नप्रवालैः सदा मण्डिता वासशाला विशाला नराणां भवेत् ॥ १० ॥ मङ्गल नृत्यलिप्सा अवस्थामें हो तो मनुष्योंको राजासे बहुत लक्ष्मी (धन) आवे तथा रहनेका गृह सर्वदा सोना, रत्न, मूङ्गा आदियोंसे शोभित और बहुत भारी होवे ॥ १० ॥ कौतुकी भवति कौतुके कुजे मित्रपुत्रपरिपूरितो जुनः ॥ उच्चगे नृपतिगेहपण्डितो मण्डितो बुधवरैर्गुणाकरैः ॥ ११ ॥ मङ्गल कौतुकावस्था में हो तो मनुष्य खेल तमासा करनेवाला वा उसमें प्रेम रखनेवाला होवे, मित्र, पुत्रोंसे परिपूर्ण रहे, यदि मङ्गल उच्चकाभी हो तो राजाके दबरका पंडित होवे और बहुत गुणवान् पंडित श्रेष्ठों से शोभित रहै ॥ ११ ॥ निद्रावस्थागते भौमे क्रोधी धीधनवर्जितः ॥ धूर्तो धर्मपरिभ्रष्टो मनुष्यो गदपीडितः ॥ १२ ॥ मङ्गल निद्रावस्था में हो तो मनुष्य क्रोधी होवे, बुद्धि तथा धनसे वर्जित रहे, धूर्त होवे, धर्मसे भ्रष्ट रहे और रोग से पीडित रहे ॥ १२ ॥ अथ बुधावस्थाफलानि । क्षुधातुरो भवेदङ्गे खओ गुञ्जानिभेक्षणः ॥ अन्यभे लंपटो धूर्तो मनुजः शयने बुधे ॥ १ ॥ बुध शयनावस्था में लग्नका हो तो भूखसे सर्वदा आतुर रहे, लँगडा होवे, नेत्र लाल गुआके समान होवें और उक्त अवस्थाका अन्यभावों में हो तो लंपट ( लोभी) और धूर्तभी होवे ॥ १ ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११६) भावकुतूहलम्- [ग्रहावस्थाफलम् शशांकपुत्रे जनुरङ्गगेहे यदोपवेशे गुणराशिपूर्णः॥ पापेक्षिते पापयुते दरिद्रो हितोच्चभे वित्तसुखी मनुष्यः ॥२॥ बुध जन्ममें लगका उपवेशावस्थामें हो तो समस्त गुणोंके समूइसे पूरित रहे, पापदृष्ट अथवा पापयुक्त हो तो दरिद्री होवे, यदि मित्रराशि वा उच्चराशिमें हो तो मनुष्य धनसे सुखी रहे ॥२॥ विद्याविवेकरहितो हिततोषहीनोमानी जनो भवति चन्द्रसुतेऽक्षिपाणौ॥ पुत्रालये सुतकलत्रसुखेन हीनः कन्याप्रजो नृपतिगेहबुधो वरायः ॥३॥ बुध नेत्रपाणि अवस्थामें हो तो मनुष्य विद्या एवं विवेक (सदसज्ज्ञान) से रहित होवे, भलाई किसीकी न करै संतोषभी न रक्खे, गर्ववाला होवे.यदि उक्त बुध पञ्चमभावमें हो तोपुत्र और स्त्रीके सुखसे हीन रहे, कन्या संतति होवे, राजद्वारका पंडित तथा श्रेष्ठ होवे॥३॥ दाता दयालुः खलु पुण्यकर्ता विकासने चन्द्रसुते मनुष्यः अनेकविद्यार्णवपारगन्ता विवेकपूर्णःखलगर्वहन्ता ॥४॥ बुध विकासावस्थामें हो तो मनुष्य दाता (देनेवाला ) दयावान्, निश्चयसे पुण्य करनेवाला और अनेक विद्याओंके समुद्रके पार पहुँचनेवाला, विवेकसे परिपूर्ण, दुष्टोंके गर्व (घमंड) का तोडनेवाला होवे ॥४॥ गमनागमने भवतो गमने बहुधा वसुधा वसुधाधिपतः॥ भवनं च विचित्रमलं रमया विदिनुश्च जनुः समये नितराम् ॥५॥ . .. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दादशः १२] भाषाटीकासमेतम् । (११७) जिस मनुष्य के जन्म समयमें बुध गमनावस्थामें हो उसको नित्य गमागम (जाना, आना ) होता रहे, बहुतायत करके राजासे भूमि मिले, अनेक प्रकारकी शोभासे युक्त और लक्ष्मीसे पूर्ण गृह मिलै५॥ सपदि विदि जनानामुच्चभे जन्मकाले सदसि । धनसमृद्धिः सर्वदा पुण्यवृद्धिः॥ धनपतिसमता वा भूपता मन्त्रिता वा हरिहरपदभक्तिः सात्त्विकी मुक्तिरद्धा॥६॥ बुध जन्मकालका सभावस्थामें हो तो मनुष्योंको सर्वदा धनकी संपन्नता रहे, पुण्यकी उत्तरोत्तर वृद्धि होती रहे, धनमें कुबेरकी समानता पावे अथवा ( राजत्व) हाकिमी मिले यद्वा (मंत्रिता) वजीरी मिले और विष्णु एवं शिवके चरणोंमें भक्ति हो और साक्षात् सात्त्विकी मुक्ति होवे ॥६॥ आगमे जनुषि जन्मिनां यदा चन्द्रजे भवति हीनसेवया ॥अर्थसिद्धिरपि पुत्रयुग्मता बालिका भवति मानदायिका ॥७॥ यदि मनुष्योंके जन्ममें बुध आगमावस्थामें हो तो नीचजनकी सेवा करनेसे कार्यसिद्धि होवे तथा दो पुत्र होवें और एक कन्या अति सुलक्षणा सन्मान देनेवाली होवे ॥७॥ भोजने चन्द्रजे जन्मकाले यदाजन्मिनामर्थहानिः सदा वादतः ॥राजभीत्या कृशत्वं चलत्वंमते। रङ्गसङ्गो न जाया न मायाः सुखम् ॥ ८॥ बुध भोजनावस्थामें जन्मकालका हो तो मनुष्योंकी सर्वदा विवाद (कलह) से धनहानि होवे, राजाके भयसे कृशत्व (माडापन) आवै, बुद्धि चंचल रहे (स्थिर न रहे) तथा स्त्रीका सुख और धनका सुख भी न होवे ॥८॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११८) भावकुतूहलम्- [ग्रहावस्थाफलम् नृत्यलिप्सागते चन्द्रजे मानवो मानयानप्रवालव्रजैः संयुतः॥मित्रपुत्रप्रतापैः सभापण्डितः पापभे वारवामारतौ लम्पटः॥९॥ जिसके जन्मसमयमें बुध नृत्यलिप्सा अवस्थामें हो वह मनुष्य (मान) इज्जत, सवारी, मूंगा आदि रत्नसमूहसे युक्त रहे. तथा मित्र पुत्र संयुक्त रहे, प्रतापवान होवे, सभामें (पंडित) चतुर होवे (यदि पाप राशि) में हो तो वारांगना (पतुरिया) के साथ रतिक्रीडामें लंपट (व्यसनी) होवे ॥९॥ कौतुके चन्द्रजे जन्मकाले नृणामङ्गभे गीतविद्यानवद्या भवेत् ॥ सप्तमे नैधने वारवध्वा रतिः पुण्यभे पुण्ययुक्ता जनिः सद्गतिः॥ १०॥ जिन मनुष्योंके जन्मकालमें बुध कौतुकावस्थामें लगका हो उनको प्रशंसा करने योग्य गायनविद्या आवे । यदि उक्त बुध ७८ भावमें हो तो वारांगनासे प्रीति होवे, नवमभाव में हो तो सारा जन्म पुण्य करते बीते, अंतमें सद्गति (मुक्ति ) होवे ॥ १० ॥ निद्राश्रिते चन्द्रसुते न निद्रासुखं सदाव्याधिसमाधियोगः॥ सहोत्थवैकल्यमनल्पतापो निजेन वादो धनमाननाशः ॥ ११॥ बुध निद्रावस्थामें हो तो निद्राका सुख न पावै और सर्वदा शारीरिक तथा मानसिक व्यथासे युक्त रहे, भ्रातृपक्षसे विकलता (चिंता) रहे, बडा संताप रहे, अपने मनुष्योंसे कलह होतारहै, धन एवं मानका नाश होवे ॥ ११॥ अथ गुरोरवस्थाफलम् । वचसामधिपे तु जनुःसमये शयने बलवानपि Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वादशः १२ भाषाटीकासमेतम् । ( ११९ ) Į हीनरवः ॥ अतिगौरतनुः खलु दीर्घहनुः सुतरामरिभीतियुतो मनुजः ॥ १ ॥ जन्म समय में बृहस्पति शयनावस्था में हो तो मनुष्य बलवान् हुये भी स्वरहीन (अल्प आवाजवाला ) होवे, शरीर अति गौरवर्ण, ठोडी लंबी होवे, शत्रुका भय निरंतर बना रहे ॥ १ ॥ उपवेशं यदि गतवति जीवे वाचालो बहुगर्वपरीतः ॥ क्षोणीपतिरिपुजनपरितप्तः पदजंघास्यकरवणयुक्तः ॥ २ ॥ बृहस्पति यदि उपवेशावस्थानमें हो तो बडा वाचाल, बडे गर्व (घमंड) से भरा होवे तथा राजा और शत्रुसे सर्वदा संतापयुक्त रहे और पैर, जंघा, मुख, हाथोंमें व्रण ( घाव ) रहा करें ॥ २ ॥ नेत्रपाणौ गते देवराजार्चिते रोगयुक्तो वियुक्तो वरार्थश्रिया ॥ गीतनृत्यप्रियः कामुकः सर्वदा गौरवर्णो विवर्णोद्भवप्रीतियुक् ॥ ३ ॥ बृहस्पति नेत्रपाणि अवस्था में हो तो मनुष्य रोगयुक्त रहे, श्रेष्ठ धन एवं शोभासे रहित रहे । गीत नाचको प्रिय माने सर्वदा अतिकामी रहे, गोरा रंग शरीरका होवे, विवर्णोद्भव अर्थात् विजातीय मनुष्योंसे प्रीति रक्खे ॥ ३ ॥ गुणानामानन्दं विमलसुखकन्दं वितनुत सदा तेजःपुत्रं व्रजपतिनिकुञ्जं प्रति गमम् ॥ • प्रकाशं चेदुच्चैर्द्वतमुपगतो वासवगुरुगुरुत्वं लोकानां धनपतिसमत्वं तनुभृताम् ॥ ४ ॥ बृहस्पति प्रकाशावस्थामें हो तो मनुष्यको गुणोंके आनंदवाला, निर्मल सुखका भाजन करता है, सर्वदा तेजपुंजके सदृश Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२०) भावकुतूहलम्- [ग्रहावस्थाफलम्बनाये रहताहै, श्रीकृष्णके समान कुंज (वन उपवनोंमें) विहार करताहै अथवा भक्तिसे भगवान्के भवनमें प्राप्त होता है. समस्त लोकोंमें श्रेष्ठता पाताहै. समृद्धिमें कुबेरके समान होताहै. इतने पूरे फल मनुष्योंको बृहस्पतिके प्रकाशावस्था उच्चादिमें प्राप्त होनेसे होते हैं ॥ ४॥ । साहसी भवति मानवः सदा मित्रपुत्रसुखपूरितो मुदा ॥ पण्डितो विविधवित्तमण्डितो वेदविद्यदि गुरौ गमं गते ॥५॥ बृहस्पति गमनावस्थामें हो तो मनुष्य सर्वदा साहसी तथा मित्र पुत्र सुखसे परिपूर्ण रहे,पंडित होवे, अनेक प्रकारके धनोंसे शोभित रहै और वेदको जाने ॥५॥ आगमने जनता वरजाया यस्य जनुःसमये हरिमाया ॥ मुंचति नालमिहालयमद्धा देवगुरौ परितः परिबद्धा ॥६॥ जिस मनुष्यके जन्मसमयें बृहस्पति आगमावस्थामें हो तो उसके बहुत मनुष्य रहें, स्त्री श्रेष्ठ मिले, उसके घरको साक्षात् लक्ष्मी कदापि न छोडे चारों ओरसे बँधी हुई जैसी रहे ॥६॥ सुरगुरुसमवक्ताशुभ्रमुक्ताफलाड्यः सदसि सपदि पूर्णों वित्तमाणिक्ययानैः ॥ गजतुरगरथाढयो देववाधीशपूज्ये जनुषि विविधविद्यागवितो मानवः स्यात्॥७॥ बृहस्पति जन्ममें सभावस्थामें हो तो बुहस्पतिके समान शास्त्रवक्ता पंडित होवे,शुभ्र (श्वेत) मोतियोंसे युक्त रहे.धन, मणि,सवारी आदियोंसे सर्वदा परिपूर्ण रहे. हाथी, घोडे स्थोंसे युक्त रहे और वह मनुष्य अनेक विद्याओंसे गर्वित (भराहुआ) रहे ॥ ७ ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वादशः १२] भाषाका समेतम् । ( १२१ ) नानावाहनमानयानपटलीसौख्यं गुरावागमे भृत्यापत्यकलत्रमित्रजसुखं विद्यानवद्या भवेत् । क्षोणीपालसमानतानवरतं चातीव हृद्या मतिः काव्यानन्दरतिः सदा हितगतिः सर्वत्र मानोन्नतिः८॥ बृहस्पति आगमावस्था में हो तो अनेक प्रकारके वाहन (हाथी, घोडे, रथ आदि) मान और यान ( पालकी आदियों) के समूहका सुख होवे, तथा सेवक (नौकर ) पुत्र, स्त्री, मित्रोंका सुख मिले, दोषरहित विद्या आवै, राजा के समान ऐश्वर्य में सर्वदा रहे, अतिरमणीय बुद्धि होवे, काव्यरसके आनंदमें प्रेम रहे, सर्वदा हितकारी चाल रहे, सर्वत्र मानकी उन्नति होती रहे ॥ ८ ॥ भोजने भवति देवतागुरौ यस्य तस्य सततं भोजनम् ॥ नैव मुंचति रमालयं तदा वाजिवारणरथैश्च मण्डितम् ॥ ९ ॥ बृहस्पति भोजनावस्था में जिसके हो उसको उत्तम पदार्थ भोजनको मिलते रहें तथा उसके घोडे, हाथी, रथोंसे युक्त घरको लक्ष्मी कदापि न छोडे ॥ ९ ॥ नृत्यलिप्सागते राजमानी धनी देवताधीशवन्द्ये सदा धर्मवित् ॥ तन्त्रविज्ञो बुधैर्मण्डितः पण्डितः शब्दविद्यानवद्यो हि सद्यो जनः ॥ १० ॥ बृहस्पति नृत्यलिप्सावस्था में हो तो मनुष्य राजमानवाला, धनवान् सर्वदा धर्म जाननेवाला, तन्त्रशास्त्र वा युक्तियाँ जाननेवाला पंडितोंसे युक्त रहे आपभी पंडित होवे (शब्दविद्या ) व्याकरणादिमें निपुण तत्काल उपस्थितिवाला होवे ॥ १० ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२२) भावकुतूहलम्। [ग्रहावस्थाफलम् कुतूहली सकौतुके महाधनी जनः सदा निजान्वयाब्जभास्करः कृपाकलाधरः सुखी ॥ निलिपराजपूजिते सुतेन भूनयेन वा । युतो महाबली धराधिपेन्द्रसद्मपण्डितः॥ ११ ॥ बृहस्पति कौतुकावस्थामें हो तो मनुष्य खेल तमासा करनेवाला होवे यदि पापराशिवाला होवे, सर्वदा बडे धनसे युक्त रहे, अपने वंशरूपी कमलके विकाशनमें सूर्य सदृश होवे, कृपाकला (दया) को धारण करनेवाला होवे, सर्वदा सुखी रहे, नम्र पुत्र, भूमि और नीतिसे युक्त होवे बडा बलवान शरीर होवे, राजद्वारका पण्डित होवे ॥११॥ गुरौ निद्रागते यस्य मूर्खता सर्वकर्मणि ॥ दरिद्रतापरिक्रान्तं भवनं पुण्यवर्जितम् ॥१२॥ जिसका बृहस्पति निद्रावस्थामें हो तो उसका समस्त कामोंमें मूर्खता आवे, दरिद्रतासे दबारहे, पुण्यभी उसके घरमें न रहे १२॥ अथ शुक्रस्यावस्थाफलम् । . जनोबलीयानपिदन्तरोगीभृगौ महारोषसमन्वितः स्यात् ॥ धनेन हीनः शयनं प्रयाते वाराङ्गनासङ्गमलंपटश्च ॥१॥ जिसके जन्ममें शुक्र शयनावस्थामें हो वह मनुष्य बलवान होने परभी दन्तरोगी बडे क्रोध (गुस्सा) वाला तथा धनसे रहित रहे और वारांगनाओं (वेश्याओं) के संग करनेमें लंपट (व्यसनी) होवे। यदि भवेदुशना उपवेशने नवमाणिवजकाञ्चनभूषणैः ॥ सुखमजनमरिक्षय आदरादवनिपादपि मानसमुन्नतिः ॥२॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वादशः १२] भाषाटीकासमेतम् । ( १२३ ) यदि शुक्र उपवेशनावस्थामें हो तो नवीन मणियोंके समूह एवं सुवर्ण के भूषणोंसे सौख्य अनवरत रहे. शत्रुओं का क्षय होवे राजासेभी आदरपूर्वक मानकी उन्नति होवे ॥ २ ॥ नेत्रपाणिगते लग्नगेहे कवौ सप्तमे मानभे यस्य तस्य ध्रुवम् ॥ नेत्रपातो धनानामलं चान्यभे वासशाला विशाला भवेत्सर्वदा ॥ ३ ॥ | यदि शुक्र नेत्रपाणिअवस्था में लग्न, सप्तम दशममें हो तो उस मनुष्यका नेत्र गिरे तथा निश्चय धनभी क्षय होवे, यदि अन्य भावों में हो तो उसके निवासका गृह बहुत बडा सर्वदा रहे ॥ ३ ॥ स्वालये तुङ्गभे मित्रभे भार्गवे तुङ्गमातङ्गलीलाकलापी जनः ॥ भूपतेस्तुल्य एवं प्रकाशं गते काव्यविद्या कलाकौतुकी गीतवित् ॥ ४ ॥ प्रकाशावस्थाका शुक्र जिस मनुष्य के स्वराशि २ । ७ उच्चराशि १२ अथवा मित्रराशिमें हो वह उन्मत्त हाथियोंकी लीला (क्रीडा) का प्रेमी होवे, तथा राजाके समान ऐश्वर्यवान् होवे, काव्यविद्या शृंगार आदि कलाओं में निपुण और गायन जाननेवाला होवे ||४|| गमने जनने शुक्रे तस्य माता न जीवति ॥ अधियोगो वियोगश्च जनानामरिभीतितः ॥ ५ ॥ जिसके जन्म में शुक्र गमनावस्थामें हो उसकी माता शीघ्रही मर जाती है. तथा शत्रुके भयसे कभी अपने मनुष्यों में रहे कभी उनसे पृथक् होना पडे ॥ ५ ॥ आगमनं भृगुपुत्रे गतवति वित्तेश्वरो मनुजः ॥ स तु तीर्थभ्र मशाली नित्योत्साही कराघ्रिरोगी च६ ॥ शुक्र आगमनावस्था में हो तो मनुष्य बहुत धनका स्वामी होवे Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२४) भावकुतहलम्- [ग्रहावस्थाफलमतथा तीर्थयात्रा करनेवाला, नित्य उत्साही (उद्यमी) हो और हाथ पैरोंमें रोगभी रहे ॥६॥ । अनायासेनालं सपदि महसा याति सहसा प्रगल्भत्वं राज्ञः सदसि गुणविज्ञः किल कवौ ॥ सभायामायाते रिपुनिवहहन्ता धनपतेः समत्वं वा दन्तावलतुरगगन्ता नरवरः॥७॥ यदि शुक्र सभावस्थामें हो तो अकस्मात् शीघ्र विना परिश्रम स्वतेजसे राजाकी सभामें प्रगल्भत्व चतुराईको प्राप्त कर गुणोंका जाननेवाला होवे तथा शत्रुके समूहको मारनेवाला होवे, धनमें कुबेरकी तुल्यता रक्खे, अथवा हाथी घोडोंकी सवारीमें चलनेवाला मनुष्यों में श्रेष्ठ होवे ॥ ७॥ | आगमे भार्गवे नागमो जन्मिनामर्थराशेररातर तीव क्षतिः॥पुत्रपातो निपातो जनानामपि व्याधिभीतिः प्रियाभोगहानिभवत् ॥८॥ शुक्र आगमावस्थामें हो तो मनुष्योंको धनका आगम न होवे अर्थात् दरिद्री रहे, शसे बहुत हानि होवे, पुत्र तथा स्वजनोंका नाश होवे रोगका भय रहे और स्त्रीके भोगकी हानि होवे ॥८॥ क्षुधातुरो व्याधिनिपीडितः स्यादनेकधारातिभयादितश्च ॥ कवौ यदा भोजनगे युवत्या महाधनी पण्डितमाण्डितश्च ॥९॥ शुक्र भोजनावस्थामें हो तो क्षुधासे सर्वदा आतुर रहे अर्थात् भूख सहन न करसके, रोगसे पीडित रहे, अनेक प्रकार शत्रुके भयसे दुःखी रहे,स्त्रीसहित यद्वा स्त्रीके प्रतापसे बडा धनवान होवे, पंडित जनोंसे सुशोभित रहे ॥९॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वादशः १२] भाषाटीकासमेतम्। (१२५) काव्यविद्यानवद्या च हृद्या मतिः सर्वदा नृत्य- | लिप्सां गते भार्गवे॥शंखवीणामृदंगादिगानध्वनिवातनैपुण्यमेतस्य वित्तोन्नतिः ॥ १० ॥ शुक नृत्यालिप्सावस्थामें हो तो प्रशंसनीय काव्यविद्या आवे, बुद्धि सर्वदा मनोहर ( रमणीय ) रहे, शंख, वीणा, मृदंग आदि बाजे एवं गायनकी ध्वनि (शब्दों) में निपुणता होवे, धन इसका सर्वदा बढताही रहे ॥ १० ॥ कौतुकभवनं गतवति शुक्रे शक्रेशत्वं सदास महत्त्वम्॥ | हृद्या विद्या भवति च पुंसःपद्मा निवसति पद्मोदरतः ११ / शुक्र कौतुकावस्थामें हो तो इंद्रके समान ऐश्वर्य, पृथ्वीमें श्रेष्ठत्व पावे, सभामें बडप्पन मिले तथा उस पुरुषको रमणीय विद्या हो और लक्ष्मी आदरपूर्वक कमलका वास छोडकर उस मनुष्यके घरमें निवास करे ॥ ११॥ परसेवारता नित्यं निद्रामुपगते कवौ ॥ परनिन्दापरो वीरो वाचालो भ्रमते महीम् ॥ १२ ॥ निद्रावस्थामें शुक्र हो तो सर्वदा पराया सेवक रहे, पराई निन्दा करनेमें तत्पर होवे वीरता रक्खे वाचाल (अति बोलनेवाला) होवे तथा सारी पृथ्वीमें फिरता रहे ॥ १२ ॥ अथ शनेःप्रत्यवस्थाफलानि । क्षुत्पिपासापरिक्रान्तो विश्रान्तः शयने शनौ ॥ वयसि प्रथमे रोगी ततो भाग्यवतां वरः॥१॥ शनि जिसका शयनावस्थामें हो वह सर्वदा भूख प्याससे दबा रहे तथा श्रमयुक्त रहे पहिली अवस्था (छोटी उमर) में रोगी रहे, पीछे भाग्यवंतोंमें श्रेष्ठ होवै॥१॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १२६ ) भावकुतूहलम् । [ ग्रहावस्थाफलम् - भानोः सुते चेदुपवेशनस्थे करालका रातिजनानुतप्तः ॥ अपायशाली खलु दद्रुमाली नरोभिमानी नृपदण्डयुक्तः ॥ २ ॥ शनि उपवेशन में हो तो बडे प्रचंड शत्रुजनोंसे संतप्त ( दुःखी ) रहे सर्वथा धनादिका नाश करता है, तथा निश्चय है कि, उसके शरीर में ददु (दाद) बहुत होवैं और वह मनुष्य बडा अभिमानी ( घमंडखोर ) होवे तथा राजासे दंड बारंबार पावे ॥ २ ॥ नयनपाणिगते रविनन्दने परमया रमया परया युतः ॥ नृपतितो हिततो मतितोषकृद्बहुकलाकलितो विमलाक्तिकृत् ॥ ३ ॥ शनि नेत्रपाणि अवस्थामें हो तो उत्कृष्ट अन्यकी लक्ष्मीसे युक्त रहे, राजासे प्रेमपूर्वक प्रसन्नता पावै, अनेक कला ( विद्या वा तरकी) जाने, निर्मल वाणी बोले ॥ ३ ॥ नानागुणग्रामधनाधिशाली सदा नरो बुद्धिविनोदमाली || प्रकाशने भानुसुते सुभानुः कृपानुरक्तो हरपादभक्तः ॥ ४ ॥ जिस मनुष्यका शनि प्रकाशावस्थामें हो वह अनेक प्रकारके गुणोंके समूहको जाने, कुछ ग्राम (गांव) तथा धन उसके अधीनतामें रहें; सर्वदा सुबुद्धिके विनोदवाला होवे, सुन्दरकांति होवे, दयावान् एवं श्रीभगवान् शिवके चरणोंका भक्त रहे ॥ ४ ॥ महाधनी नन्दननंदितःस्यादपापकारी रिपुभूमिहारी ॥ गमे शनौ पंडितराजभावं धरापतेरायतने प्रयाति ॥५ ॥ शनि गमावस्था में हो तो महाधनी होवे पुत्रोंके हर्षसे हर्षित रहे पुण्य करनेवाला होवे शत्रुका नाश करे तथा उनकी भूमिहरण करे, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वादशः १२] भाषाटीकासमेतम् । ( १२७) पंडितों (चतुरों) में राजा-(श्रेष्ठ)भाव पायके दरबारमें जावे ॥५॥ आगमने पद्गदभययुक्तः पुत्रकलत्रसुखेन विमुक्तः॥ भानुसुते भ्रमते भुवि नित्यं दीनमना विजनाश्रयभावम् ॥६॥ शनि आगमावस्थामें जिसके होवह पैरोंके रोगके भयसे युक्त रहे. पुत्र, स्त्रीके सुखसे हीन रहे, दीन(दुःखी) मन करके एकान्तस्थानका सेवन करे और पृथ्वीमें घूमता फिरे ॥६॥ रत्नावलीकांचनमौक्तिकानां वातेन नित्यं व्रजति प्रमोदम् ॥ सभागते भानुसुते नितान्तं नयेन पूर्णो मनजो महौजाः॥७॥ शनि सभावस्थामें हो तो रत्नोंकी पंक्ति (लडियाँ) सुवर्ण, मोतियोंके समूहोंसे सर्वदा आनंदित रहे,तथा सभी समयमें मनुष्य नीतिसे परिपूर्ण होवे तथा बडा तेजस्वी होवे॥७॥ आगमे गदसमागमो नृणामब्जबंधुतनये यदा तदा ॥ मन्दमेव गमनं धरातले याचनाविरहिता मतिः सदा ॥ ८॥ यदि शनि आगमावस्था में हो तो मनुष्योंको वारंवार रोग होते रहें मन्दगति ( ढीली चाल चले) तथा संसारमें सर्वदा उसकी बुद्धि याचना ( माँगना) से रहित रहे ॥८॥ संगते जनुषि भानुनन्दने भोजने भवति भोजनं रसैः ॥ संयुतं नयनमन्दताऽज्ञता मोहतापपरितापिता मतिः ॥९॥ शनि भोजनावस्थामें जन्मकालका हो तो मनुष्यको भोजन Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१२८) भावकुतूहलम्- [ ग्रहावस्थाफलमउत्तम षड्रसोंसे संयुक्त मिले, नेत्रोंकी दृष्टि मन्द (अल्प) होवे, अज्ञान एवं मोहरूप तापोंसे संतप्त बुद्धि रहे ॥९॥ नृत्यलिप्सागते मन्दे धमात्मा वित्तपूरितः॥ राजपूज्यो नरो धीरो महावीरो रणाङ्गणे ॥ १०॥ शनि जिसका नृत्यलिप्सा अवस्थामें हो वह धर्मात्मा तथा धनसे परिपूर्ण होवै, राजासे पूजा (आदर) पावै, बडा धैर्यवान् होवै और रणभूमिमें बडी वीरता करनेवाला होवै ॥ १० ॥ भवति कौतुकभावमुपागते रविसुते वसुधावसुपूरितः ॥अतिसुखी सुमुखीसुखपूरितः कवितयाऽमलया कलया नरः॥ ११॥ शनि कौतुकावस्थामें हो तो मनुष्य भूमि एवं धनसे संपन्न रहे, अतिसुखी होवै,सुरूपा स्त्रीके सुखसे पूर्ण रहे और निर्मल कविताकी कलासे पूर्ण रहे अर्थात् कविता जाने तथा कवितारसज्ञ होवै ॥११॥ निद्रागते वासरनाथपुत्र धनी सदा चारगुणैरुपेतः ॥ पराक्रमी चंडविपक्षहंता सुवारकांतारतिरीतिविज्ञः१२॥ शनि निद्रा अवस्थामें हो तो मनुष्य सर्वदा धनवान होवै, उत्तम गुणोंसे युक्त रहे, पराक्रम करनेवाला होवै, बडे प्रचंडशत्रुओंकोभी मारडाले,सुंदर वारांगनाओंके साथ रति (रमण) की विधि जाने १२ अथ राहोः प्रत्यवस्थाफलानि ॥ गदागमो जन्मनि यस्य राहो केशाधिकत्वं शयनं प्रयाते ॥ वृषेऽथ युग्मेऽपिच कन्यकायामजे समाजो धनधान्यराशेः॥॥ जिसके जन्ममें राहु शयनावस्था हो उसको रोगकी प्राप्ति होवे और नानाप्रकारके क्लेश होवें । यदि उक्त अवस्थाका राहु Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वादशः १२] भाषाटीकासमेतम् । (१२९) वृष, मिथुन कन्या, मेषराशिमें हो तो अन्न, धनकी राशि ( समुदाय) मिलते रहें ॥१॥ उपवेशनमिह गतवति राही ददुगदेन जनः परितप्तः॥राजसमाजयुतोबहुमानी वित्तसुखेन सदा रहितः स्यात् ॥२॥ जिसका राहु उपवेशनावस्थामें हो वह दद्रु (दाद) रोगसे संतप्त रहे, तथा राजाकी सभामें बैठनेवाला बड़े मानवाला होवै, परंतु धनके सुखसे सर्वदा रहित रहे ॥२॥ नेत्रपाणावगौ नेत्रे भवतो रोगपीडिते ॥ दुष्टव्यालारिचौराणां भयं तस्य धनक्षयः॥३॥ राहु नेत्रपाणि अवस्थामें हो तो नेत्र सर्वदा रोगसे पीडित रहें और दुष्ट सर्प शत्रु चोर आदियोंका भय और धनका क्षय होवे ॥३॥ प्रकाशने शुभासने स्थितिः कृतिः शुभा नृणां धनोन्नतिगुंणोन्नतिः सदा विदामगाविह । धराधिपाधिकारिता यशोलता तता भवेनवीननीरदाकृतिर्विदेशतो महोन्नतिः ॥ ४॥ राहु प्रकाशनावस्थामें हो तो उत्तम स्थानमें स्थिति होवै,उत्तम यश मिलै, धनकी उन्नति (वृद्धि) होवै,ऐसेही सद्गुणोंकी वृद्धि होवै सर्वदा पांडित्य, चातुर्यता होकर राज्याधिकारिता मिले, यशरूपी लता बहुत फैले, नवीन मेघ (बादल) कीसी आकृति होवै, परदेशसे बडी उन्नति मिले ॥४॥ गमने च यदा राही बहुसन्तानवानरः॥ पडिण्तो धनवान्दाता राजपूज्यो नरोत्तमः॥५॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३०) भावकुतूहलम् । [ग्रहावस्थाफलम् राहु गमनावस्थामें हो तो मनुष्य बहुत संतानवाला होवै, पांडत तथा धनवान् ,उदार, राजपूज्य और मनुष्योंमें श्रेष्ठ होवे ॥५॥ राहावागमने क्रोधी सदा धीधनवर्जितः॥ कुटिलः कृपणः कामी नरो भवति सर्वथा ॥६॥ राहु आगमनावस्थामें हो तो मनुष्य क्रोधी होवे, सर्वदा बुद्धि एवं धनसे रहित रहे, कुटिल होवै, कृपण (कंजूस) होवै और सर्वप्रकारसे अतिकामी होवै ॥६॥ सभागते यदा राही पण्डितः कृपणो नरः ॥ नानागुणपरिक्रान्तो वित्तसौख्यसमन्वितः ॥७॥ राहु सभावस्थाम हा ता मनुष्य पाडत हाव परन्तु कृपण हाव अनेकगुणोंसे युक्त एवं धनसुखसे युक्त रहे ॥७॥ चेदगावागमं यस्य याते तदा व्याकुलत्वं सदा रातिभीत्या महत् ॥ बंधुवादो जनानां निपातो भवेद्वित्तहानिः शठत्वं कृशत्वं तथा ॥ ८॥ राहु आगमावस्था में जिसका हो वह सर्व शत्रुके भयसे व्याकुल रहे जातिभाइयोंमें कलह रहे, कुटुम्बमें मनुष्य न रहे, धनकी हानि होवे, मूर्खता रहे, शरीर कृश (माडा ) भी रहे ॥ ८॥ भोजने भोजनेनालं विकलो मनुजो भवेत् ॥ मन्दबुद्धिः क्रियाभीरुः स्त्रीपुत्रसुखवार्जतः ॥ ९॥ जिस मनुष्यका राहु भोजनावस्था हो वह भोजनसे विकल रहे अर्थात् भोजनप्राप्ति कठिनतासे होवै,बुद्धि मन्द होवे, कार्य करनेमें डरे (आलसी होवे ) स्त्रीपुत्रोंके सुखसे वर्जित रहे ॥९॥ नृत्यलिप्सागते राहो महाव्याधिविवर्द्धनम् ॥ नेत्ररोग रिपोभीतिद्धनधर्मक्षयो नृणाम् ॥१०॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वादशः १२] भाषाकासमेतम् । (१३१) . राहु नृत्यलिप्सावस्थामें हो तो मनुष्योंको बडे बडे रोग बढें. नेत्रोंमें रोग रहे, शत्रुका भय होवै,धन और धर्मका क्षय होवे॥१०॥ कौतुके च यदा राही स्थानहीनो नरो भवेत् ॥ परदाररतो नित्यं परवित्तापहारकः॥११॥ राहु कौतुकावस्थामें जिस मनुष्यका हो वह स्थान (गृह भूमि) से रहित रहे, सर्वदा पराई स्त्रीमें रमित रहे, पराये धनका हरण करनेवाला होवै ॥११॥ । निद्रावस्थागते राहौ गुणग्रामयुतो नरः ॥ कान्तासन्तानवान्धीरोगर्वितो बहुवित्तवान् ॥१२॥ । राहु निद्रावस्थामें हो तो मनुष्य अनेक गुणोंके समूहसे युक्त होवै, स्त्रीपुत्रवाला होवै, धैर्यवान गर्वित (घमंडखोर) और बहुत धनवान होवे ॥ १२॥ - अथ केतोरवस्थाफलानि । मेषे वृषेऽथ वा युग्मे कन्यायां शयनं गते ॥ केतौ धनसमृद्धिः स्यादन्यभे रोगवर्द्धनम् ॥ १॥ केतु मेष, वृषभ, मिथुन,कन्या राशिमेंसे किसीमें शयनावस्थाका हो तो धनकी समृद्धि होवे, अन्य राशियोंमें हो तो रोग बढे ॥१॥ उपवेशं गते केतो दट्ठरोगविवर्द्धनम् ॥ अरिवातनृपव्यालचौरशङ्कासमंततः॥२॥ . केतु उपवेशावस्थामें हो तो ददु (दाद ) का रोग बढे, शत्रुः समूह, राजा, सर्प, चोरोंसे शंका (भय ) होवै ॥२॥ नेत्रपाणिं गते केतौ नेत्ररोगः प्रजायते ॥ दुष्टसपादिभीतिश्च रिपुराजकुलादपि ॥ वित्तं विनाशमायाति मतिश्च चपला भवेत् ॥ ३॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १३२ ) भावकुतूहलम् - [ ग्रहावस्थाफलम् - केतु नेत्रपाणि अवस्था में हो तो नेत्रों में रोग रहे, दुष्टजन्तु सर्पा दिकोंका भय होवै, तथा शत्रुसे राजकुलसे भय होवे, धनका नाश हो, बुद्धि चंचल रहे ॥ ३ ॥ ॥ प्रकाशने गते केतौ धनधान्यसमुन्नतिः ★ राजमानं यशोलाभं विदेशे सौख्यमाप्नुयात् ॥४॥ केतु प्रकाशावस्था में हो तो अन्न धनकी वृद्धि होवे, राजासे मान मिले, यश बढे, विदेश में सौख्य होवे ॥ ४ ॥ गमने तु यदा केतौ पुत्रसंपत्तिमान्नरः ॥ पण्डितो राजमानी च धनेन परिपूरितः ॥ ५ ॥ केतु गमनावस्था में हो तो पुत्रों की संपत्तिवाला मनुष्य होवै तथा पंडित होवे, राजासे मान पावे, धनसे परिपूर्ण रहे ॥ ६ ॥ केतावागमने दुष्टमतिः श्रीरहितः पुमान् ॥ कामी धीधर्महीनश्च जायते क्रोधनः शठः ॥ ६ ॥ केतु आगमावस्था में हो तो पुरुषकी दुष्टबुद्धि होवे, लक्ष्मीरहित रहे, कामी होवे, सद्बुद्धि तथा धर्मकर्मसे हीन रहे, क्रोधी और ठगुआ होवै ॥ ६ ॥ सभावस्थागते केतौ वाचालो बहुगर्वितः ॥ कृपणो लंपटश्चैव धूर्तविद्याविशारदः ॥ ७ ॥ केतु सभावस्था में हो तो बडा वाचाल होवे, गर्वित ( बुडा मिजाजी ) होवे, कृपण (सूम ) होवे तथा लोभी होवे और धूर्तविद्यामें भी निपुण होवे ॥ ७॥ यदागमे भवेत्केतुः केतुः स्यात्पापकर्मणाम् ॥ बंधुवादरतो दुष्टो रिपुरोगनिपीडितः ॥ ८ ॥ केतु यदि आगमनावस्था में हो तो मनुष्य पाप कर्मोंका ध्वजा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ द्वादशः १२] भाषाटीकासमेतम् । (१३३) (पताका) होवे, बंधुजनोंमें विवाद करता रहै, दुष्टता करे शत्रुसे तथा रोगसे पीडित रहे ॥८॥ भोजने तु जनो नित्यं क्षुधया परिपीडितः॥ दरिद्रा रोगसंतप्तः केतौ भ्रमति मेदिनीम् ॥९॥ केतु भोजनावस्थामें हो तो मनुष्य नित्य क्षुधा ( ख ) से पीडित रहै; दरिद्री तथा रोगसे संतप्त रहकर पृथ्वीमें भ्रमण करे९॥ नृत्यलिप्सागते केतौ व्याधिना विकलो भवेत् ॥ बुबुदाक्षो दुराधर्षों धूतॊनर्थकरो नरः॥१०॥ केतु नृत्यलिप्सा अवस्था में हो तो मनुष्य रोगसे सर्वदा विकल (दुःखी ) रहे, आँख उसकी देखनेमें कांपे (स्थिर दृष्टि न होवे) किसीसे हारे नहीं, धूर्त होवे और अनर्थके काम करे ॥ १० ॥ कौतुकी कौतुके केतौ नटवामारनिप्रियः॥ स्थानभ्रष्टो दुराचारो दरिद्रो भ्रमते महीम् ॥११॥ केतु कौतुकावस्थामें जिसका हो वह खेल तमासा करै नटनीके संगभोग (रति) को प्रिय माने, स्थानभ्रष्ट (घरसे निकल जावे) दुष्ट आचार करे, दरिद्री होकर पृथ्वीमें भ्रमण करे॥११॥ निद्रावस्थागते केतौ धनधान्यसुखं महत् ॥ नानागुणविनोदेन कालो गच्छति जन्मिनाम्॥१२॥ इति भावकुतूहले ग्रहाणां शयनाद्यवस्थाविचारे द्वादशोऽध्यायः ॥ १२॥ केतु निद्रावस्थामें हो तो अन्न तथा धनका सुख मनुष्योंको बहुत होवै, अनेक प्रकार गुणोंकी चर्चासे खुसीसे दिन करें ॥१२॥ ... इति भावकुतूहले माहीधरीभाषाटीकायां ग्रहाणां शयनाद्यवस्था- . विचारोऽध्यायः ॥ १२॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३४) भावकुतूहलम्- [ग्रहावस्थाफलम् त्रयोदशोऽध्यायः॥ अथ ग्रहाणां बालाद्यवस्थाफलानि । बालो रसाशैरसमे प्रदिष्टस्वतः कुमारो हि युवाथ वृद्धः॥ मृतःक्रमादुत्क्रमतः समक्ष बालाद्यवस्थाः कथिता ग्रहाणाम् ॥ ३॥ फलं तु किंचिद्धि तनोति बालाश्चार्द्ध कुमारः प्रयतेन पुंसाम् ॥ युवा समग्रं खचरोऽथ वृद्धः फलं च दुष्टं मरणं मृताख्यः॥२॥ अब बालादि अवस्था कहते हैं कि, विषम राशिके प्रथम ६ अंशमें ग्रह हो तोबाल अवस्था, ७ से १२ अंशपर्यंत कुमार, १३से १८ लौं युवा, १९ से २४ पर्यंत वृद्ध, २५ से ३० पर्यंत मृत्यु अवस्था होती है, समराशिमें ग्रह हो तो विपरीत अर्थात् प्रथम ६ अंश पर्यंत मृत्यु, ७ से१२ पर्यंत वृद्ध,१३ से १८ पर्यंत युवा १९से २४ लौं कुमार, २५ से ३० पर्यंत बाल अवस्था होती है इनके फल ये हैं कि बाल अवस्थावाला ग्रह अपना पूर्वोक्त फल थोडा देता है, कुमारमें आधा; युवामें समस्त, वृद्ध में अनिष्ट फल और मृत्युवाला मृत्युही देता है ॥ १॥॥२॥ . अथ दीप्ताद्यवस्थाः। उच्चे दीप्तः स्वभेस्वस्थो मित्रभे हर्षिता भवेत् ॥ शांतः शोभनवर्गस्थोऽतिशस्तो दीप्तदीधितिः ॥३॥ 'लुप्तोस्ते नीचभे दीनः पीडितः पापशभ॥ एवमष्टौ नभोगानां भावा दीप्तादिभेदतः॥४॥ अब अन्य प्रकार दीप्ताद्रि अवस्था कहते हैं कि, जो ग्रह अपने उच्च राशिमें हैं वह दीप्त अवस्थाका एवं अपनी राशिमें स्वस्थ, मित्रकी राशिमें हर्षित,शुभग्रहकी राशि अंशादियोंमें शांत,उदयका Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ त्रयोदशः १३] भाषाटीकासमेतम् । ( १३५ ) अतिशस्त, अस्तंगत लुप्त, नीचराशिमें दीन, पापराशि वा शत्रुराशिमें पीडित होता है ऐसे दीप्तादि भेदों में ग्रहों के ८ भाव हैं ३-४ ॥ दीप्ते अथ दीप्तग्रहफलम् । मदोन्मत्तगजन्द्रगन्ता सदारिहन्ता वरतीर्थगन्ता ॥ कान्तोमनस्वीनितरां यशस्वी प्रदीप्तवेषो मनुजोमहीपः५. दीप्त ग्रहका फल यह है कि मनुष्य मदसे उन्मत्त हाथी की सवारीमें चलनेवाला, सर्वदा वैरीको मारनेवाला, श्रेष्ठ तीर्थों में जानेवाला; सुरूप, बुद्धिमान्, सर्वदा यशवाला, कांतिमान् राजा होता है५ स्वस्थे गुणागारजयालयानामुपार्जको वैरिविनाशकर्त्ता ॥ नरोप्युदारो नृपपूजितः स्याद्विशालकीर्तिः कमनीयमूर्तिः ६ ॥ स्वस्थ हवाला मनुष्य गुणोंके गृह अर्थात् विद्याशाला आदि तथा जय और गृह इनका उपार्जक ( कमानेवाला) तथा शत्रुका विनाश करनेवाला, उदार, राजपूजित, बडी कीर्तिवाला, सुहावनी मूर्तिवाला होता है ॥ ६ ॥ हर्षिते भवति हर्षितः सदा मित्रपुत्रपरिपूरितो मुदा || धर्मकृन्मणिगणेन मण्डितः परमदैवविपाकविज्जनः ॥७ हर्षित ग्रहका फल ऐसा है कि, मनुष्य सर्वदा खुश रहे, मित्रोंसे तथा पुत्रोंसे सर्वदा प्रसन्नतापूर्वक परिपूर्ण रहे, धर्म करनेवाला होवे, मणियों के समूह से भूषित रहे और दैव (पूर्वार्जित कर्म ) अर्थात् कर्मविपाक आदि ज्योतिष जाननेहारा होवे ॥ ७ ॥ शान्तेतिशांतो युवराजराजो जनो महौजा जनतासमेतः ॥ अनेकविद्यामलगद्यपद्याभ्यासानुरक्तः खलु वित्तयुक्तः ॥ ८ ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१३६) भावकुतूहलम्- [ग्रहावस्थाफलम्-] शांत ग्रहवाला मनुष्य अति शांतस्वभाव, सर्वदा युवराजोंका राजा होवै, अथवा युवराज (भविष्यराजा) होवै, बडा तेजमान होवै, बहुत मनुष्योंके साथ रहै, अनेक प्रकारके निर्मल गद्यपद्यसहित विद्याओंके अभ्यासमें तत्पर रहै और निश्चय धनयुक्त सर्वदा रहै ॥ ८॥ शस्ते विशेषाद्विदुर्गा प्रशस्तः प्रशस्तवेषो गतरोग संघः ॥ विशालमालालसितोऽमलोक्त्या नरो नराणामधिपः प्रधानः॥९॥ शस्त ग्रहका फल है कि मनुष्य विशेषतासे विद्वानोंका प्रशंसनीय (श्रेष्ठ) होवै, सुंदर सुहावना वेष (सजीला जवान ) होवै, निरोग रहे, बडी कीमती मालासे भूषित रहै और निर्मल वाणीकरके मनुष्योंका स्वामी किंवा प्रधान (श्रेष्ठ) होवै ।। ९॥ लुप्ते च लुप्तो गुणधर्मभावैः प्रपीडितोरातिकुलेन मर्त्यः ॥ भवेद्विरक्तो गदजालयुक्तो प्रमादशाली खलु पापमाली ॥१०॥ लुप्त ग्रहका फल है कि मनुष्य गुण तथा धर्मके कामोंका लोप कर अर्थात् निर्गुणी, विधर्मी होवै, शत्रुकुलसे पीडित (दुःखी) रहे, गृहस्थीसे विरक्त रहे, अनेक रागोंसे युक्त रहै प्रमादी होवै पाप करनेवाला होवे ॥१०॥ दीनेतिदीनो मतितोषहीनो जनो जनेशादिनिपीडितश्च ॥ गुणेन हीनः परदारलीनः परार्थहारीच कुभूमिचारी ॥११॥ — दीनग्रहवाला मनुष्य अतिदीन (गरीब ) होता है, बुद्धिहीन, संतोषरहित, राजा आदिसे पीडित गुणहीन पराई स्त्रीमें आसक्त, परायाधन चोरानेवाला और निषिद्ध भूमिमें फिरनेवाला होताहै११ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्दशः १४] भाषाटीकासमेतम् । (१३७) पीडिते गदनिपीडितः सदा चिन्तया च परया समन्वितः॥ व्यग्रितो बहुमदोद्धतः पुमानाधिरोगसहितो विशेषतः ॥ १२ ॥ इति भावकुतूहलेपहावस्थाफेलाक्तोत्रयोदशोऽध्यायः ॥ १३ ॥ पीडित ग्रहसे मनुष्य सर्वदा रोगपीडित बडी चिंतास युक्त (व्यय) बेफुर्सत, बडे मदसे उन्मत्त रहता है तथा ( आधि ) मानसी दुःखसे दुःखी विशेषतः रोगी रहता है ॥ १२॥ इति भावकुतूहले माहीधरीभाषाटीकायां ग्रहावस्थाफलाऽध्यायः॥१३॥ अथ मारकविचाराध्यायः। चतुर्दशोऽध्यायः॥ शने मारकत्वनिरूपणम् । मारकग्रहसम्बन्धात् पापकर्ता शनिस्तदा ॥ तिरस्कृत्य ग्रहान्सान्निहंता भवति ध्रुवम् ॥१॥ अब मारकाध्याय कहते हैं समस्त ग्रहोंमें मृत्युकारक यमका भाई होनेसे शनि विशेष है इसलिये वक्ष्यामाणविधिसे मारकत्व जो ग्रह पावै उसके साथ चार प्रकारों से किसी प्रकार संबंध शनि पावै तो मारक ग्रहोंको हटायकर आपही मारक होजाता है अपने मार कत्व होनेमें तो क्याही बाकी रहेगा ॥१॥ भवनाधिपानांशुभाशुभसंज्ञा। त्रिकोणभवनाधिपाः शुभफलास्तु सर्व ग्रहास्त्रिवैरिभवभावपाः खलफला निरुक्ता बुधैः ॥ भवंति यदि केन्द्रपाः शुभखगा न शस्ता नृणा- " मतीवशुभदायकाः खलखचारिणो जन्मनि ॥२॥ त्रिकोण ९। ५ स्थानोंके कोई ग्रह स्वामी हों तो शुभसंज्ञक एवं शुभ फल देनेवाले होतेहैं और ३।६।११ भावोंके स्वामी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १३८ ) भावकुतूहलम् - [ मारकादियोगा: पापसंज्ञक एवं क्रूर फल देनेवाले होते हैं ऐसा पंडितोंने कहा है । तथा कद्र १।४ । ७ । १० स्थानोंके स्वामी शुभग्रह हों तो शुभ फल नहीं देते हैं पापग्रह हों तो अतिशुभ फलदेते हैं यह विचार जन्ममें मुख्य है ॥ २ ॥ यद्यद्भावतो राहुः केतुश्च जनने नृणाम् ॥ यद्यद्भावेशसंयुक्तस्तत्फलं प्रदिशेदलम् ॥ ३ ॥ राहु तथा केतुभी मनुष्यों के जन्ममें जिन जिन भावोंमें हों और जिन जिन भावोंके स्वामियोंसे युक्त हों उन उन भावसंबंधी फलोंको निश्चय देते हैं ॥ ३ ॥ मन्दश्चेत्पापसंयुक्तो मारक ग्रहयोगतः ॥ तिरस्कृत्य ग्रहान्सर्वान्निहता पापकृद्यदा ॥ ४ ॥ यदि पापकर्ता शनि पापयुक्त होकर मारक (सप्तमेश द्वितीयेश) से युक्त उपलक्षणसे दृष्ट भी हो तो समस्त ग्रहों के फलोंको हटायके मारने वाला स्वयं होजाता है ॥ ४ ॥ अल्पमध्यमपूर्णायुः प्रमाणमिह योगजम् ॥ विज्ञाय प्रथमं पुंसां ततो मारकचिन्तना ॥ ५ ॥ प्रथम अल्प, मध्यम, पूर्ण आयुका विचार वक्ष्यमाण योगों से करके तब मारकका विचार करना (जैसे योगसे पूर्णायु है और मारक दशा अल्प वा मध्यमायुके समयमें हो तो अरिष्टमात्र होगा मृत्यु नहीं होगी ऐसेही मारकयोग अल्पायु समय में हो तथा मारक दशापूर्णायु समय में हों तो ऐसेही जानना । जब मारक दशा और योगायुभी तुल्य समयपर हो तब मृत्यु होती है ॥ ५ ॥ अल्पायुर्भावादिविचारः । चेदङ्गपो यदि रवेररिरेव हीनं पूर्ण सुहृद्यदि समः Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्दशः १४ ] भाषाटीकासमतम् । ___(१३९) सममायुराहुः ॥ बालग्रहो हितसमारिपदेपि पूर्ण मध्यं च हीनामह जातकतत्त्वविज्ञाः॥६॥ योगसे अल्प,मध्यम,दीर्घ आयु कहते हैं कि,यदि लग्रेश मर्यका शट हो तो अल्पायु, मित्र हो तो पूर्णायु, सम होतो मध्यमायु होती है। अथवा लग्नेश मित्रगृही हो तो पूर्ण, समके राशिमें हो तो मध्यम और शडराशिमें हो तो अल्प आयु होती है। यह जातकोंके तत्त्व जाननेवाले कहते हैं। (आयुका प्रमाण ४० पर्यन्त अल्प, ८० पर्यन्त मध्यम, १२० पर्यन्त पूर्ण है परन्तु कलिकालमें लोभमोहादि तथा अनाचार, कुपथ्य, झूठ, कूट आदियोंके करनेसे मनुष्योंकी परमायु ६०के लगभगही हो जाती है इस व्यवस्थामें इसके ३ भाग २० पर्यंत अल्प, ४० लौं मध्यम, ६० पर्यंत पूर्ण आयु जाननी॥६॥ आयुस्थान मारकस्थानकथनम् । अष्टमई तृतीयं च बुधैरायुरुदाहृतम् । द्वितीयं सप्तमं स्थानं मारकस्थानमुच्यते॥७॥ । लगसे अष्टम तथा तृतीय आयुस्थान पंडितोंने कह हैं और लनसे दूसरा और सप्तम स्थान मारक संज्ञक कहे हैं ॥७॥ । ___ मृत्यु निश्चयः। मारकेशदशापाके मारकस्थस्य पापिनः ॥ पाके पापयुजा पाके संभवे निधनं विशेत् ॥८॥ मारकभावका स्वामी दशामें मारकस्थानस्थित पापग्रहकी । अन्तर्दशा आनेसे सम्भव रहते मरण कहना । अथवा पापग्रहोंकी दशामें पापयुक्त मारकेशकी दशादिमेंभी मृत्यु होती है ॥८॥ असंभवे व्ययाधीशदशायां मरणं नणाम् ॥ अभावे व्ययभावेशसंबंधिग्रहमुक्तिषु ॥९॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १४० ) [ मारकादियोगाः भावकुतूहलम् - मारकग्रहकी दशाके (असम्भव ) वर्त्तमान न होने एवं बहुत दूर मारक ग्रहदशा होने में, अथवा मारकदशा मुक्त होजाने में व्ययाधीशकी दशामें मनुष्यों की मृत्यु होजाती है । उसकाभी पूर्वोक्त • प्रकारों से अभाव हो तो व्ययभावेशके साथ जो ग्रहसम्बंध करता हो अथवा मारकेशसे जो सम्बंध करता हो उसकी दशामें मृत्यु होती है ॥ ९ ॥ तदभावेऽष्टमेशस्य दशार्यां निधनं पुनः ॥ दुष्टतारापतेः पाके निर्याणं कथितं बुधैः ॥ १० ॥ पूर्वोक्तके अभाव से अष्टमेशकी दशामें मरण होता है, अथवा दुष्टराशि ८ २ का पतिकी दशामें यद्वा पापग्रहदशामें मृत्यु पंडितोंने कही है ॥ १० ॥ अथ राजयोगाः । नवमभावपतिस्तनयालये सुतपतिर्नवमे यदि जन्मिनः ॥ अतिविचित्रमणिवजमण्डितो वसुमती विभुतां स नरो व्रजेत् ॥ ११ ॥ अब राजयोग कहते हैं - जिसके जन्ममें नवमभावका स्वामी पंचमभावमें तथा सुतेश नवमस्थान में हो तो बहुत मूल्यके अनेक प्रकार मणि रत्न समूहोंसे भूषित होकर पृथ्वीका राजा होवे ॥ ११॥ कर्माधीशः सुतस्थाने सुतेशः कर्मगो यदा ॥ त्रिकोणपतिना दृष्टो राजा भवति निश्चितम् ॥ १२ ॥ जिसके जन्म में दशमेश पंचमस्थान में, पंचमेश दशमस्थानमें, त्रिकोण ९१५ भावेश में दृष्ट हो तो निश्चय राजा होता है ॥ १२ ॥ राज्येशाङ्गपवाहनेशसुतपा धर्मालये स्वामिना संयुक्ता यदि वांक्षिताश्च बलिनो राजा भवेन्मानवः॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्दशः १४] भाषाटीकासमेतम् । (१४१) पुत्रेशो यदि धर्मपेन सहितो लगाधिपेनाङ्गगोदृष्टो वा सहितः मुखेऽपि दशमे राजा भवेनिश्चितम् १३ जिसके जन्मलग्नसे दशमेश लग्नेश चतुर्थेश और पंचमेश नवमेशसे युक्त वा दृष्ट हों तथा बलवान्भी हो तो वह मनुष्य राजा होवै और पंचमेश यदि नवमेश तथा लग्नेशसे युक्त होकर लम हो अथवा दशममें यदा चतुर्थस्थानमें नवमेश लगेशसे युक्त वा दृष्ट हो तो निश्चय राजा होवै ॥ १३ ॥ यत्र कुत्रापि केन्द्रेशस्त्रिकोणपतिना युतः॥ सबलो मनुजो राजा दुर्बलो धनपो भवेत्॥ १४ ॥ केन्द्र १।४।७।१० कास्वामी किसी भावमें, त्रिकोण९।९भावके स्वामीसे युक्त हो बलवान्भी हो तो मनुष्य राजा होवै, यदि निर्बल हो तो धनवान होवे ॥१४॥ पुण्यस्थाने गुरुक्षेत्रे दशमे भृगुणा युते ॥ पञ्चमस्वामिना दृष्टे राजपुत्रो नराधिपः ॥ १५॥ लग्नेश नवममें अथवा बृहस्पतिकी राशि ९।१२में वा दशमस्थानमें शुक्रसहित हो तथा पंचमेश उसे देखे तो राजाका पुत्र राजा होवे अन्य नहीं ॥ १५॥ अथ धनिकयोगाः। पञ्चमे निजभ शुक्र लाभे रविसुते यदा॥ भोक्ता मणिसुवर्णानामधिपो जायते नृणाम् ॥१६॥ शुक्र अपनी राशि२७ का पंचमस्थानमें हो और लाभभावमें शनि हो तो मणि और सुवर्णका भोगनेवाला राजा होवै ॥ १६ ॥ कर्कटे तु कलानाथे पंचमे लाभगे शनौ ॥ नानाधनसममृद्धिः स्याद्धर्मवृद्धिश्च भूपता ॥१७॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४२) भावकुतूहलम्- [ मारकादियोगा:चन्द्रमा कर्क राशिका पंचमभावमें और शनि लाभभावमें हो तो अनेक प्रकार धनोंकी समृद्धि धर्मकी वृद्धि और राजत्वभी होवे ॥१७॥ पंचमे तु मृगे कुंभे समन्दे यस्य जन्मनि ॥ बुधे लाभालये तस्य सर्वतो द्रविणोन्नतिः॥१८॥ जिसके जन्मलग्रसे शनि१०।११का पंचमभावमें तथा बुध ग्यारहवें भावमें हो उसको सर्वप्रकारसे धनकी वृद्धि होती रहै ॥१८॥ पंचमे तु रवौ सिंहे लाभे देवगुरौ सदा॥ वाहनस्वर्णरत्नानामधिपो जायते क्षणात् ॥ १९॥ सूर्य सिंहराशिका पंचमभावमें हो, बृहस्पति लाभ ११ भावमें हो तो सर्वदा वाहन (हाथी घोडे आदि)तथा सुवर्ण रवोंका स्वामी अकस्मात् ही होवै॥ १९॥ पंचमे तु गुरुक्षेत्र सगुरौ यदि जन्मनि ॥ लाभगाविंदुभूपुत्रौ पृथ्वीपतिसमो नरः॥२०॥ यदि जन्मकालमें पंचममें बृहस्पति अपनी राशि ९।१२ का हो तथा लाभभावमें चंद्रमा मंगल हो तो मनुष्य राजाके समान होवै२० रविक्षेत्रगते लग्ने रविणा संयुते सति ॥ गुरुभौमयुते वापि धनाधिक्यं दिने दिने ॥२१॥ सूर्य लग्नमें सिंहका हो अथवा बृहस्पति मंगल करके युक्तभी हो तो दिनोदिन धनकी अधिकता होती रहे ॥२१॥ कर्कमे जन्मलने तु सचन्द्रे यदि जन्मनि ॥ संयुते जीवभौमाभ्यां स सद्यो वित्तपो भवेत्॥२२॥ जिसके जन्ममें कर्क लग्र हो उसमें चंद्रमाभी हो और मंगल बृहस्पतिसे युक्त हो तो अकस्मात् धनका स्वामी होवे ॥ २२ ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्दशः १४] भाषाटीकासमेतम् (१४३) कुजक्षेत्रगते लग्ने सभौमे यस्य जन्मनि ॥ ज्ञशुक्रमंदसंयुक्तेस धनेशसमो नरः॥२३॥ जिस मनुष्यके जन्ममें लनका मंगल अपनी राशि १।८ का बुध,शुक्र और शनिसे युक्त हो वह कुबेरकेसमान धनवान होवै२३ स्थिरलक्ष्मीयोगः।। गुरुभे गुरुसंयुक्त जन्मलग्नगते सति ॥ चन्द्राङ्गारयुतो यस्य तस्य लक्ष्मीरचंचला ॥२४॥ बृहस्पति लग्नमें अपनी राशि ९ । १२ का तथा चंद्रमा मंगलसेभी युक्त जिस मनुष्यका हो उसके घरमें लक्ष्मी स्थिर रहे॥२४॥ कन्यामिथुनयोलग्ने सबुधे यस्य जन्मनि ॥ संयुते शुक्रमन्दाभ्यां दृष्टे वा धनिको भवेत् ॥२५॥ जिसके जन्ममें कन्या वा मिथुनका बुध लग्नका हो और शुक्र शनिसे युक्त वा दृष्ट हो तो वह धनवान् होवै ॥ २५ ॥ शुक्रराशिगते लग्ने ससिते यदि जन्मनि ॥ चन्द्रजादित्यजाभ्यां तु युते दृष्टे धनाधिपः ॥२६॥ जन्ममें जिसका शुक्र लग्नमें अपनी राशि २।७ का बुध शनिसंयुक्त हो अथवा दृष्ट हो तो धनका स्वामी होवै ॥२६॥ __ अथ दरिद्रयोगा। त्रिकोणपतिसंबंधी यो यो वित्तप्रदो ग्रहः ॥ स षडष्टव्ययाधीशैर्युतो धनविनाशकः ॥२७॥ अब दरिद्रयोग कहते हैं-जो जो धन देनेवाले ग्रह हैं वह त्रिकोण ५।९ भावेशोंसे संबंधी होकर छठे, आठवें,बारहवें भावोंके स्वामियोंसे भी युक्त हों तो धनका नाश करके दरिद्र करते हैं ॥२७॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १४४ ) भावकुतूहलम् - [मारकादियोगाः रिपुभावपतौ लग्ने लग्नेशे रिपुभावगे ॥ मारकस्वामिना दृष्टे युते वा निर्द्धनो भवेत् ॥ २८॥ षष्ठेश लग्नमें और लग्नेश छठे भावमें हों इनपर मारकेशकी दृष्टि हो अथवा उससे युक्त हो तो मनुष्य निर्द्धन (धनरहित ) होवै ॥२८॥ चन्द्रादित्यौ यदा लग्ने वाङ्गपे निधनालये ॥ मारकेण युते दृष्टे नरो भवति निर्द्धनः ॥ २९ ॥ सूर्य, चंद्रमा लग्न में हों अथवा लग्नेश अष्टमभावमें हो और मार कसे युक्त वा दृष्ट हो तो मनुष्य निर्द्धन होंवे ॥ २९॥ ऋणीयोगः । पापयुतोऽ यदाङ्गनाथस्त्रिकभावनाथैर्युतेक्षितः थवा स्यात् ॥ पुत्रेश्वरेणापि युते विलग्ने शुभैरदृष्टे च भवेद्दणी सः ॥ ३० ॥ यदि लग्नेश त्रिक ६ । ८ । १२ भावोंके स्वामीसे युक्त वा दृष्ट हो अथवा पापयुक्त हो, शुभग्रह उसे न देखें तो पंचमेश से युक्त लग्नेश लग्नमें होनेसे जो धनवान् योग कहा है इसके हुये में भी वह मनुष्य ऋणी (कर्जदार ) होवै ॥ ३० ॥ अस्तारिनीचत्रिकभावगे वा लग्नेश्वरे मारकनाथयुक्ते ॥ भाग्याधिपेनाथ शुभैरदृष्टे भवेदृणीशो मनुजेश्वरोपि ॥ ३१ ॥ इति भावकुतूहले नानायोगनिरूपणाऽध्यायः ॥ १४ ॥ यदि लग्नेश अस्तंगत हो अथवा शत्रुराशिमें, नचिराशिमें, त्रिक ६।८। १२ भावोंमें हों मारकग्रहसे युक्त तथा उसे भाग्याधीश यद्वा शुभग्रह न देखें तो वह मनुष्य राजाभी हो तो भी ऋणियों में श्रेष्ठ होंवे ॥ ३१ ॥ इति भावकुतूहले माहीधरीभाषाटीकायां नानाविधयोगकथनाध्यायः ॥ १४ ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पञ्चदशः १५] भाषाटीकासमेतम् । पञ्चदशोध्यायः॥ अथ भावविचारः । तबादौ तनुभावविचारः। अष्टारिव्ययगो यस्य लग्नस्वामी खलैर्यतः॥। सुख निहन्ति तस्याशु सर्वभावेष्वयं विधिः॥ १ ॥ जिस मनुष्यका लनस्वामी ८।६।१२ भावोंमें हो और पाप युक्त हो तो उसके सुखको शीघ्र हरण करताहै यह विधि सभी भावोंमें जानना ॥१॥ लनपश्चन्द्रराशीशो नीचस्तु रिपुराशिगः ॥ विना स्वः त्रिकस्थश्चेबलहीनो ग्रहो भवेत् ॥ २॥ लग्नेश अथवा चंद्रराशीश नीचराशिमें अथवा शत्रुराशिमें तथा विना अपना राशिका त्रिक ६।८। १२ । स्थानमें हो तो वह ग्रह बलहीन कहाताहै अपनी राशिका ६८।१२ मेंभी बली होताहै २॥ दुष्टस्थानगते यस्य चन्द्रलग्नेश्वरे यदि ॥ कार्य गदमयं नित्यं वितनोति रिपूदयम् ॥३॥ जिसका लग्नेश वा चंद्रराशीश दुष्ट स्थान (शत्रु, नीच, त्रिक)में हो उसको कृशता, रोग, भय और शत्रुकी वृद्धि नित्य रहती है॥३॥ निजोच्चे निजभे वगै स्वकीये लग्नपे यदि ॥ दीर्घायुः सुखसन्तृप्तो बली भोगी प्रजायते ॥४॥ यदि लगेश उपलक्षणसे चंद्रराशीशभी अपनी उच्च राशिमें, स्व गृहमें अथवा अपने अंशादियोंमें हो तो मनुष्य दीर्घायु, सुखी,बलवान् और भोगवान होताहै ॥४॥ __अथ धनभावविचारः। धनेशः शुक्रसंयुक्तोऽथवा शुक्रात्रिके भवेत् ॥, सम्बन्धी लगनाथेन नेत्रयोः पीडनं भवेत् ॥५॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१४६) भावकुतूहलम्- [ भावविचार: धन (२) भावेश शुक्रके साथ हो अथवा शुक्रसे ६।८।१२वें स्थानमें हो तथा लग्नेशसभी संबंध करता हो तो नेत्ररोगी होताहै५ चन्द्रादित्यौ धने स्यातां निशान्धो मनुजो भवेत् ॥ अर्कलापकोशेशाः सुखाधिपतिना युताः ॥६॥ मात्रादीनां प्रकुर्वन्ति मन्दतां नेत्रयोरपि ॥ उच्चगो निजगेहस्थो ग्रहो नैवात्र दोषकृत् ॥७॥ जिसके सूर्य चंद्रमा दूसरे भावमें हों वह मनुष्य रात्र्यंध(रतौंधी) वाला होताहै. यदि सूर्य, लग्नेश और धनेश चतुर्थेशके साथ हों तो उसके माता आदियोंको नेत्रमंदता (दृष्टि कम) करते हैं. उक्त योगमें यदि उक्तग्रह अपने उच्च वा स्वराशिका हो तो दोष नहीं करता ॥६॥७॥ । गुरुवाग्भवनाधीशौ त्रिकस्थानगतौ यदा॥ मूकतां कुरुतोऽप्येवं पितृमात्गृहेश्वरः॥८॥ ताभ्यां युतस्त्रिकस्थाने तेषां भूकत्वमादिशेत् ॥ बलाबलविवेकेन जातक विशेषतः ॥ ९ ॥ बृहस्पति और पञ्चमस्थानका स्वामी त्रिक ६३८१ १२ स्थानमें हो तो मूकता (गूंगापन ) आता है. यदि उक्त बृहस्पति और पञ्चमेशके साथ मातृपितृआदि जिस भावका स्वामी त्रिकमें हो उसको मूकता कहनी,विशेषतः जातक जाननेवालोंने उनका बल एवं निर्बलता देखके फल कहना । जैसे योगकारक ग्रह उच्च स्वराशिमें हों तथा शुभग्रहोंसे युक्त दृष्ट हों तो अनिष्ट फल पूरा नहीं देते।नीच शत्रुराशिगत, पापयुत ग्रह कष्टफल पूराही देतेहैं इत्यादि विचार करना ॥८॥९॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पञ्चदशः १५] भाषाटीकासमेतम् । (१४७) धनाधिपो माननवायभावे बली यदा तिष्ठति जन्मकालेारमा विहारालयवासिनी वा निजोच्चमित्रालयगो जनानाम् ॥ १०॥ यदि जन्मकालमें बलवान् धनभावेश दशम, नवम, लाभ भाव में हो अथवा अपने उच्च, मित्र राशिमें हो तो लक्ष्मी उसके विहार करनेके घरमें निवास करे॥१०॥ __अथ तृतीयभावविचारः। सहजे सहजाधीशे षडादित्रयगेऽपि वा।। सहजेऽपि विशेषेण भ्रातुः सौख्यं न जायते ॥६॥ तीसरे भावका विचार है-कि, तृतीयभावका स्वामी तीसरा हो अथवा छठे आदि ३ में हो तो भाइयोंका सुख न होवै, विशेषसे सहजभावमें यह विचार है क्योंकि ग्रंथों में लिखा है कि जिस भावका स्वामी अपने गृहमें रहता है उसकी वृद्धि करता है यहां श्लोकार्थविरुद्ध प्रतीत होताहै परंतु ग्रंथकर्ताका आशय 'अपि तथा विशेशब्दसे है कि, बहुत सुख भाइयोंका न होवे क्योंकि भाइयोंको दायाद (पितृधनलेनेवाले) कहते हैं कैसाही भाइयोंमें मेल हो परंतु कभी न कभी किसी प्रकारकी शत्रुता होती है ॥ ११ ॥ सहोत्थभावेशकुजो सपापों पापालये वा भवती जनस्य ॥ उत्पाद्य सद्यो निहतः सहोत्थानितीरितं जातकवत्त्वविज्ञैः ॥ १२॥ तृतीयभावेश तथा मंगल पापयुक्त हों वा पापराशिमें हों तो मनुष्यके भाई जन्म पाकर मरते हैं, इस प्रकार जातकोंके तत्त्व: जाननेवाले कहते हैं ॥ १२॥ स्त्रीखेटः सहजाधीशः शुक्रो वाथ निशाकरः॥ तत्रगो भगिनी दत्ते भ्रातरं पुरुषग्रहः ॥ १३ ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १४८ ) भावकुतूहलम् । [ भावविचार: तृतीयभावेश स्त्रीग्रह, शुक्र अथवा चन्द्रमा तृतीयभावमें हों तो भगिनी (बहिन ) होवे | यदि पुरुषग्रह तृतीयेश होकर तृतीयमें हो तो भाई होते हैं ॥ १३ ॥ अथ चतुर्थभावविचारः । सुखपतिः सुखगस्तनुनाथयुग्जनयति प्रवरालयमङ्गिनाम् ॥ त्रिकगतो विपरीतमिहादिभिः सुखजनुः पतिरेव तथा बुधैः ॥ १४ ॥ चतुर्थेश चतुर्थस्थानमें लग्नेशयुक्त हो तो शरीरियोंको बडे बडे घर मिलते हैं, यदि त्रिक ६।८।१२ स्थानमें हो तो विपरीत फल करता है । ऐसेही चतुर्थेश लग्नेश से भी पंडितोंने 'फल' कहा है १४ ॥ सुखाधीशे जीवे सुखनिवहचिन्ता भृगुसुते ॥ विभूषायोषाङ्गप्रवरतुरगाणामपि बुधे ॥ अगौमन्दे नीचोद्भवसुखमते रेवादिन पे पितुश्चन्द्रे मातुः क्षितिनिकरचिन्ता क्षितिसुते ॥ १५ ॥ चतुर्थेश बृहस्पति हो तो बहुत सुखकी चिंता रहे, चतुर्थेश शुक्र हो तो भूषण, स्त्री, शरीर तथा श्रेष्ठ घोडा आदियोंकी चिंता होवे, ऐसे ही बुधसे भी होती है. शनि तथा राहु चतुर्थेश हो तो नीचजनसंबंधी सुखकी चिंता होवे. सूर्य हो तो पितृपक्षकी चन्द्रमा हो तो मातृपक्षकी और मंगल हो तो भूमिसमूहसंबंधी चिंता रहे! ऐसाही विचार प्रश्नमेंभी प्रष्टा के मनकी चिंतामें करना ॥ १५ ॥ त्रिकोणे वाहनाधीशे केन्द्रे च बलसंयुते ॥ निजोच्चादिपदे नूनं वाहनं नूतनं भवेत् ॥ १६ ॥ बलवान् चतुर्थेश त्रिकोण ५१९ में हो अथवा केंद्र १|४|७| १० में अपने उच्चादिपद में हो तो निश्चय नवीन वाहन मिले ॥ १६ ॥ 3 Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पञ्चदशः १५ ] भाषाटीका समेतम् । अथ पंचमभावविचारः । लग्नाधीशे कुजक्षेत्रे पुत्रभावपतावरौ ॥ म्रियते प्रथमापत्यं ततोऽपि न सुतोद्गमः ॥ १७ ॥ ( १४९) 1 पंचमभावका विचार है कि, लग्नेश मंगलकी राशिमें हो तथा पंचमभावका स्वामी छठा हो तो प्रथम सन्तान मरजावे, उपरांत पुत्रोत्पत्ति न होवे ॥ १७ ॥ षडादित्रयगे नीचे पुत्रेशे पापसंयुते ॥ काकवंध्यापतिस्तत्र केतुचन्द्रसुतौ यदा ॥ १८ ॥ पंचमेश पापयुक्त होकर ६।७।८ भाव में नीचराशि वा नीचांशकमें हो और पंचम में केतु तथा बुध हों तो वह पुरुष काकवंध्याका पति होवे अर्थात उसकी स्त्री काकवंध्या ( केवल एकही सन्तान जननेवाली ) होवे ॥ १८ ॥ तदीशो नीचगो यत्र पुत्रभावं न पश्यति ॥ तत्रैव बुधमन्दौ वा काकवंध्यापतिर्भवेत् ॥ १९ ॥ • पंचमेश नीच राशि में हो और पंचम भावको न देखे . तथा पंचममें बुध शनि हों तो मनुष्य काकवंध्या (एक संतान जननेवाली ) स्त्रीका पति होवे ॥ १९ ॥ RA धर्माधीशोङ्गगो नीचे सुतेशो यदि जन्मनि ॥ केतुज्ञ पंचम स्यातां पुत्रं कष्टाद्विनिर्दिशेत् ॥ २० ॥ जन्म में नवमेश लग्नका हो तथा पंचमेश नीचराशिमें हो और बुध, केतु पंचम भावमें हों तो कष्टसे पुत्र कहना ॥ २० ॥ पंचमाधिपतिः केन्द्रे त्रिकोणे वा शुभैर्युतः ॥ तदा पुत्रसुखं सद्यो विलोमेन विलंबतः ॥ २१ पंचमेश केंद्र में वा त्रिकोणमें शुभ ग्रहोंसे युक्त वा दृष्ट हो तो पुत्रका $ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५०) भावकुतूहलम् । [ भावविचार:-- सुख शीघ्र होताहै। यदि विलोम (पंचमेश केंद्रकोणरहित स्थानों में शुभग्रहयोग, दृष्टि रहित) हो तो पुत्रसुख विलंबसे होता है ॥२१॥ सन्तानभवनाधीशो जन्मलग्नाधिपस्तथा ॥ नरराशौ तदा पुत्रः स्त्रीराशी कन्यका भवेत्॥२२॥ पंचमेश तथा जन्मलग्रेश पुरुषराशि ( विषमराशि) में हों व उपलक्षणसे विषम नवांशोंमें हों तो पुत्र होवे और स्त्रीराशि (समराशि) योंमें हों तो कन्या होती है (मिश्रितमें कन्या, पुत्र, तुल्य जानना ऐसे विचार प्रश्नमें भी है) ॥ २२ ॥ अथारिभावविचारः। रोगेशो लग्नगो यस्य निधनस्थोऽपि जन्मनि ॥ व्रणोदयस्तु सवाङ्ग सपापोनवणं दिशेत् ॥२३॥ छठेभावका विचार है-कि, रोगभाव (छठा स्थान) का स्वामी जिसका लग्नमें हो अथवा अष्टम हो तो उसके सर्वांगमें व्रण ( घाव) होवे. यदि वह ग्रह पाप युक्तभी हो तो व्रण न होवे ॥ २३ ॥ एवं तातादिभावशास्तत्तत्कारकसंयुताः॥ व्रणाधिपयुताश्चापि षडादित्रयभावगाः ॥२४॥ तेषामपि व्रणं वाच्यं जातकज्ञैः सुकोविदैः॥ कारकस्य दशाकाले व्रणमागन्तुकं दिशेत् ॥२५॥ इसी प्रकार पितृमातृआदि भावोंके स्वामी उन्हीं उन्हीं कारकोंसे युक्त एवं व्रणाधिप (षष्ठेश) से युक्त हों तथा ६७७८भावोंमें हों तो उन पितृमात्रादियोंके अंगोंमें जातक जाननेवाले अच्छे चतुरोंने विचारपूर्वक चतुरतासे व्रण कहने । ये व्रण उसी कारक ग्रहके दशासमयमें होनेवाले कहने ॥ २४ ॥२५॥ शिरोदेशे भानुर्मुखपरिसरे शीतगुरलं धरासूनुः कण्ठे जनयति बुधो नाभिनिकटे॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पञ्चदशः १५] भाषाटीकासमेतम् । (१५१) गुरुर्नासामध्ये पदनयनयोरेव भृगुजः शनी राहु-केतुव्रणमुदरभागे जनिमताम् ॥ २६ ॥ उक्तयोगकारक यद्वा षष्ठेश सूर्य हो तो शिरमें, चंद्रमा मुखमें, मंगल कंठ (गले) में,बुध नाभीके समीप,बृहस्पति नाकके बीचमें, शुक पैर तथा नेत्रोंमें, शनि राहु केतु उदर (पेट) में मनुष्योंके व्रण (खोट आदि) अवश्य करते हैं ॥ २६ ॥ लग्नेशो यदि भौमभे बुधयुतो रोगं मुखे जन्मिनां रोगाङ्गाधिपती यदाकुजबुधौ चन्द्रेण वा राहुणा॥ मन्देनापि युतौ प्रयच्छत इति प्रायोङ्गगोरात्रिपो यक्तो वा तमसा सितं च शनिना कुष्ठं तदा। श्यामलम् ॥२७॥ यदि लग्नेश मंगलकी राशिमें बुधसहित हो तो मनुष्योंके मुखमें रोग रहे, लग्नेश तथा षष्ठेश बुध मंगल हों और चंद्रमा अथवा राहु या शनिसेयुक्त हों तो कुष्ठ समान रोग होता है । विशेषतः चंद्रमा लग्नमें राहुसे युक्त हो तो श्वेतकुष्ठ और शनियुक्त हो तो कृष्णकुष्ठ होवै॥२७॥ अथ सप्तमभावविचारः। विना स्वः कलत्रेशस्निकस्थानगतो यदि ॥ रोगिणी तरुणी दत्ते तथा तुङ्गपदं विना ॥२८ ॥ यदि सप्तमभावेश त्रिक६।८।१२। भावमें हो अपनी राशि छोडकर तथा उच्चराशि नवांशमें हो तो स्त्री रोगिणी मिले ॥२८॥ जायास्थानगते शुक्र कामी भवति मानवः॥ पापभे पापसंयुक्ते कवी नारीसुखोज्झितः ॥२९॥ जिस मनुष्यका शुक्र सप्तम हो वह कामी (अतिस्त्रीसंग चाहने Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३५२) भावकुतूहलम् [ भावविचार:वाला ) होवे, यदि शुक्र पापराशिमें पापसंयुक्त हो तो पुरुष स्त्रीके सुखसे रहित रहे ॥ २९॥ चतुर्थे महिलाधीशे लग्ने लग्नाधिपे यदा ॥ कलत्रे वा कुटुम्बे वा व्यभिचारी नरोभवेत् ॥३०॥ सप्तमेश चतुर्थमें, लग्नेश लग्नमें यदि हो अथवा सप्तममें वा द्वितीय स्थानमें हो तो पुरुष व्यभिचारी ( यथेच्छ स्त्रियोंका गमन करनेवाला) होवे ॥३०॥ . यावन्तो निधने खेटा निजस्वामिसमीक्षिताः॥ तावन्तोऽपि विवाहाः स्युः प्राणिनां कथिता बुधैः३१ ' जितने ग्रह अष्टम स्थानमें अष्टमेशसे दृष्ट हों उतने विवाह मनुष्योंके पंडितोंने कहे हैं (ऐसा विचार सप्तम भाव में भी होताहै॥३१ जायाधीशे निजक्षेत्रे निजोच्चे कोणकंटके ॥ शुभग्रहैर्युते दृष्टे विवाहः सत्वरं भवेत् ॥ ३२ ॥ सप्तमेश अपनी राशिमें अथवा अपने उच्चमें त्रिकोण केंद्रभावमें हो और शुभग्रहसे युक्त या दृष्ट हो तो विवाह बहुत शीघ्र होवै ३२ ____ अथाष्टमभावविचारः। अष्टमाधिपतिः पापैर्युतो लग्नेश्वरोऽपि चेत् ॥ करोत्यल्पायुषं जातं शुभेक्षणविवाजतः ॥ ३३ ॥ अष्टमभावका विचार है कि, अष्टमेश अथवा लग्नेश पापयुक्त हो उसे शुभग्रह न देखे तो मनुष्योंको अल्पायु करता है ॥ ३३ ॥ तमाशनिभ्यां निधनाधिनाथः पौपर्युतो हीनबलोऽस्तगो वा ॥ अल्पायुषं जातकमेव सद्यः करीति नैवोच्चनिजह्मगश्चेत् ॥ ३४॥ अष्टमभावेश यदि राहु शनिसेयुक्त अथवा पापयुक्त एवं बल Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पञ्चदशः १५] भाषाटीकासमेतम् । (१५३) हीन अस्तंगत हो तो मनुष्यको अल्पायु (थोडे दिन जीनेवाला) करताहै परंतु यदि अपने उच्च राशि वा स्वगृहमें न हो ॥३४॥ अष्टमस्थे रवौ वर्तेश्चन्द्रे तु जलयोगतः॥ करवालात्कुजे ज्ञेयं मरणं ज्वरतो बुधे ॥ ३५॥ गुरौ त्रिदोषतः शुक्र क्षुधया तृषया शनौ ॥ चरस्थिरद्विस्वभावैः परदेशे गृहे पथि ॥ ३६॥ ४ अष्टमभावमें वा अष्टमेश सूर्य हो तो अग्निसे, चंद्रमा हो तो जलके संयोगसे, मंगल हो तो तलवार आदि शस्त्रोंसे, बुध हो तो ज्वरसे, बृहस्पति हो तो (त्रिदोष) वात, पित्त, कफ इन तीनों दोषोंसे, शुक्र हो तो क्षुधा (भूख ) अथवा अन्नादिकी अरुचिसे, शनि हो तो तृषा ( प्यास ) रोगसे मनुष्यकी मृत्यु होती है और उक्त मृत्युकारक ग्रह चर राशिमें हो तो परदेशमें, स्थिरमें हो तो घरम, द्विस्वभावमें हो तो मागेमें मृत्यु हो ॥ ३५॥३६॥ केन्द्र कोणेऽष्टमाधीशे तुङ्गादिपदग तदा ॥ दीर्घायुरुदितं पूर्वैर्व्यत्यये हीनमङ्गिनाम् ॥ ३७॥॥ * अष्टमभावका स्वामी केन्द्र अथवा कोणमें हो तथा उच्च स्वराशि आदि पदमें हो तो पूर्वाचार्योंने उस मनुष्यकी दीर्घायु कही है इनसे व्यत्यय(विपरीत)अर्थात् केंद्र कोणोंसे रहित स्थानों में तथा नीच शत्रु आदि राशियोंमें हो तो अल्पायु जानना ॥ ३७॥ नवमभावविचारः। लग्रादिन्दोनवमभवनं भाग्यमाय्यः प्रदिष्टं भाग्यं तस्मात्प्रथमममुतः संविचिन्त्यं प्रयत्नात् ॥ युक्तं दृष्टं जननसमये स्वामिना सौम्यखेटैजन्तोर्भाग्यं प्रसरति विधोरेव शौकी कलेव ॥३८॥ अथ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५४) भावकुतूहलम्- [ भावविचार:लग्नसे तथा चन्द्रमासे नवमस्थान श्रेष्ठ आचार्योंने भाग्य (ऐश्वर्य वा प्रारब्ध)का स्थान कहा है इसीलिये इस नवम भावसे ज्योतिषी प्रथम यत्नपूर्वक भाग्यका विचार करै। भाग्यभाव नवमस्थानको कहते हैं यह जन्मसमयमें भावेश एवं शुभ ग्रहोंसे युक्त दृष्ट हो तो मनुष्यका भाग्य शुक्लपक्षकी चन्द्रमाकी कलाके समान प्रतिदिन फैलता (बढता) है ॥ ३८॥ सहोत्थपुत्राङ्गगतो ग्रहश्चेद्भाग्यं प्रपश्येद्यदि वा सवीर्यः॥ हिरण्यमाली खलु भाग्यशाली प्रसूतिकाले यदि यस्य जन्तोः ॥ ३९॥ जिस मनुष्यके जन्ममें यदि ३।५।१ भावस्थित ग्रह बलवान हो तथा नैसर्गिक दृष्टिसे नवम भावको देखे तो वह सुवर्णमाला पहरनेवाला धनवान तथा भाग्यवान होवे ॥ ३९॥ निजोच्चभे पुण्यगृहे नभोगो बलियंदा तिष्ठति जन्मकाले॥ स पुण्यशाली नवरत्नमाली धराधिपो राजकुलप्रसूतः ॥४०॥ अपनी उच्चराशिका कोई ग्रह बलवान् नवमस्थानमें जन्मकालका जिसका हो वह पुण्यवान्, नवरत्नोंकी माला पहिरनेवाला होवै, राजवंशमें उत्पन्न भया हो तो राजाही होवै ॥४०॥ जीवज्ञशुक्रा नवमे बलिष्ठाः सुतेशदृष्टा यदि जन्मकाले ॥ स पुण्यकर्ता नृपतेरमात्यो नेपाल जातो नरपालवर्यः॥४१॥ जिसके जन्मकालमें बृहस्पति, बुध और शुक्र नवमस्थानमें बलवान हों उनपर पंचमभावेशकी दृष्टिभी होतो वह मनुष्य पुण्य करनेवाला, राजाका मन्त्री होवे, राजवंशीका यह योग हो तो श्रेष्ठ राजा होवे ॥४१॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पञ्चदशः १५] भाषाटीकासमेतम् । (१५५) भाग्यभावाधिपौ नीचे रविलुप्तकरे सति ॥ अरिंगेहगतो वाऽपि भाग्यहीनो नरो भवेत् ॥४२॥ भाग्यभाव (९) का स्वामी नीचराशिमें हो तथा अस्तंगत अथवा शत्रुराशिमें हो तो मनुष्य भाग्यहीन होताहै ॥४२॥ अथ दशमभावविचारः। कर्मभावाधिपो नीचे षडादित्रयगोऽपि चेत् ॥ करोति कर्मवैकल्यं स्वोच्चस्वक्षपदं विना ॥४३॥ दशमभावका विचार कहते हैं-(इसकी कर्म, राज्य, तात आदि संज्ञा पूर्व कही हैं) इसका स्वामी नीचराशिका त्रिक स्थान ६।८ १२ में हो तो कर्मवैकल्य ( कार्यमें विन, यद्वा कार्यहानि या भाग्यहानि)करता है परन्तु अपने उच्च एवं स्वराशिमें न हो तो॥४३॥ कर्माधिपे केन्द्रनवात्मजः बुधज्यदृष्टे सबले नराणाम् ॥ तुरङ्गमातङ्गनवाम्बराणि भवन्ति नानाधनसंयुतानि ॥४४॥ बलवान दशमेश केंद्र ११४७।१० नवात्मज ९।५स्थानमें हो तथा बुध बृहस्पति उसे देखें तो मनुष्य घोडे, हाथी, नवीन वस्त्रादि और अनेक प्रकारके धनोंसे संयुक्त रहे ॥४४॥ कर्मपः केन्द्रकोणस्थो ज्योतिष्टोमादियज्ञकृत् ॥ कूपायतनकर्ता च देवतातिथिपूजकः॥४५॥ दशमेश केंद्र, कोणमें हो तो ज्योतिष्टोम आदि यज्ञ करनेवाला तथा कूप (कुवा बावड़ी ) धर्मशाला, मठ मन्दिर आदियोंका बनानेवाला होवे तथा देवता एवं अतिथियों (अभ्यागतों) का पूजन करनेवाला होवै ॥ ४५ ॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५६) मावकुतूहलम् [ भावविचार:लग्रादिन्दोर्दशमभवने जन्मकाले नराणा| मादित्यायैः क्रमत उदिता जीविका खेचरेंद्रैः॥ । तातान्मातुर्निजरिपुकुलान्मित्रपक्षात्सहोत्थात् पल्याः पुत्रादपि बुधवरैतिक विशेषात् ॥ ४६॥ । लग्नसे अथवा चन्द्रमासे दशमस्थानमें जो ग्रह मनुष्यके जन्मकालमें हों उसक अनुसार कर्मसे वा सम्बन्धसे आजीविका (योगक्षेम) होता है । दशममें कोई ग्रह न हो तो दशमेशसे कहना । सूर्य हो तो पितासे वा पितावाले कर्मसे, ऐसेही चन्द्रमा हो तो मातासे, मङ्गल हो तो शत्रुकुलसे, बुध हो तो मित्रपक्षसे, बृहस्पति हो तो भ्रातृपक्षसे, शुक्र हो तो स्त्रीसे, शनि हो तो पुत्रसे कर्माजीविका, विशेषतः जातक जाननेवाले पण्डितोंने कही है ॥ १६॥ रविशीतकराङ्गकर्मपानां नरवृत्तिः कथिता लवेशवृत्त्या ॥ कनकोणतृणौषधैर्दिनेशे कृषिदाराम्बुसमा श्रयाच चन्द्रे ॥४७॥ दूसरा प्रकार कहते हैं-कि, सूर्य तथा चन्द्रमा और लग्नराशि इनसे दशम स्थानोंके स्वामी जो ग्रह हों वे जिस ग्रहसे अंशमें हों उन ग्रहोंकी वृत्ति (आजीवनोपाय ) मनुष्यकी होती है। जैसे सूर्य जीविकादाता हो तो सुवर्ण, ऊन, तृण (घास आदि) औषधि अनादिके सम्बन्धसे, चन्द्रमा हो तो कृषी (खेती ) के कर्म, जलकर्म स्त्रीके आश्रयसे आजीवन होता है ॥ १७ ॥ अथ साहसवह्निधातुशस्त्रैः क्षितिजे काव्यकलापतोशे ॥ लवणद्विजकांचनेभदेवैर्मणिरौप्यचयः क्रमाच्च गुवाः॥४८॥ इससे उपरांत फल है-कि,मङ्गल कर्माजीविका देनेवाला हो तो Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पञ्चदशः १५] भाषाटीकासमेतम् । (१५७) साहसके कर्म, अमिकर्म, धातुसम्बन्धिकर्म, शस्त्रकर्मसे, बुध हो तो काव्य और कलापोंके समूहसम्बन्धी कर्मसे, बृहस्पति हो तो लवण व्यापारसे, ब्राह्मण एवं सुवर्ण, हाथी, देवतासम्बन्धि कर्मसे, शुक्र हो तो मणि, गौ, चान्दी समूहसम्बन्धी कृत्यसे जीविका मिले ऐसे . जानना ॥ ४८॥ रविजे श्रमभारनीचतः स्यादिह कर्मेशभवांशनाथवृत्तिः ॥ हितवरिनिजसंतुङ्गसंस्थैहितवैरिस्ववशाधनाप्तिरुचैः॥४९॥ शनि हो तो श्रम (मेहनत ) भार ढोना, नीचकर्म (गुलामी आदि) से आजीविका होवे यह कर्मेश (दशमेश ) जिस नवांश कमें हो उसका जो स्वामी है उसकी उक्त आजीविका मनुष्यकी होती है। वह ग्रह मित्रराशि अंशकोंमें हो तो मित्रपक्षसे, शत्रुमें शत्रुसे, स्वराशिमें अपने पराक्रमसे, उच्चमें अकस्मात् बडे लोगोंसे धनप्राप्ति या आजीविका होती है ॥ १९॥ __ अथायभावविचारः। लाभेशो यदि केन्द्रस्थो लाभाधिक्यं प्रजायते ॥ षडादित्रयगे नीचे लाभबाधा नृणां सदा॥५०॥ ___ अब ग्यारहवें भावका विचार कहते हैं-कि लाभेश यदि केंद्रमें हो तो मनुष्यको लाभ अधिक होता है। यदि ६।८।१२ भावमें यद्वा नीचराशिमें हो तो लाभकी बाधा करता है ॥ ५० ॥ आदित्येन युतेक्षिते नृपकुलाल्लामालये चौरतो लाभो नित्यमथेन्दुनागजजलप्रोद्भूतवामाजनैः॥ | भूपुत्रेण विचित्रयानमणिभूस्वर्णप्रवालादिभि जतोश्चन्द्रसुतेन शिल्पलिखनव्यापारयोगैरलम् ५५ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१५८) भावकुतूहलम्- [भावविचारः] सूर्य ग्यारहवें स्थानमें युक्त हो अथवा सूर्य इस भावको देखे तो राजकुलसे, तथा चोर मनुष्यसे नित्य लाभ होवे । उक्त प्रकारसे चन्द्रमा हो तो हाथी, जलसंबंधीकृत्यसे तथा स्त्रीजनोंसे, मंगल हो तो अनेक प्रकारके वाहन, मणि (रत्न) भूमि, सुवर्ण, मूंगा आदिसे, बुध हो तो शिल्प (कारीगरी) लिखना व्यापार आदि कृत्योंसे मनुष्यको लाभ होता रहै ॥५१॥ । जीवेनापि नरेशयज्ञगजभूज्ञानक्रियाभिः सिते. नालं वारवधूगमागमगुणव्याख्यानमुक्ताफलैः॥ मन्देनापि गजवजव्यसनभूनीलेन्द्रलोहबजैरित्थंवत्र बहुग्रहैरभिहितो नानार्थलाभो बुधैः॥५२ उक्त प्रकारका बृहस्पति हो तो.राजासे, यज्ञकृत्यसे, हाथी एवं भूमिसंबंधी कृत्यसे, ज्ञानसंबंधी क्रियाओंसे लाभ होवै । शुक्र हो तो निश्चय वारांगना (वेश्या) ओंके (गमागम ) कुकर्मआदिसे, तथा गुणोंके व्याख्यानसे, मोतियोंके व्यापारसे और शनि हो तो हाथियों के समूहकृत्य, यद्वा गोठ (गोपालकृत्य) व्यसन (धूत आदि) भूमि कृत्य, नीलम, लोहा आदिसे होवे । यदि लाभभावमें बहुत ग्रह हों वा उसे देखें तो बहुत ही प्रकारसे धन मिले यह पूर्वपंडितोंने कहा है॥५२॥ अथ व्ययभावविचारः । शुभग्रहाः प्रयच्छन्ति व्ययस्था विपुलं धनम्॥ विपरीतं खला जन्तोर्जन्मकाले विशेषतः ॥५३॥ बारहवें भावका विचार है-कि, व्ययभावमें शुभग्रह हों तो बहुत धन देते हैं तथा पापग्रह विपरीत फल जन्मकालमें विशेषतासे करते हैं ॥५३॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षोडशोः १६] भाषाटीकासमेतम् । (१५९) क्षीणेन्दुरन्त्यगो यस्य रविणा सहितो यदि ॥ तस्य वित्तं हरेद्राजा कुजेनापि युतेक्षितेः ॥ १५॥ ___ इति भावकुतूहले भावविचारे पंचदशोऽध्यायः॥ जिसका क्षीण चंद्रमा व्ययभावमें यदि सूर्यसे युक्तभी हो तो उसके धनको राजा हरलेवमिंगलसे युक्त,दृष्ट होनेमेंभी यही फल है। इति श्रीभावकुतूहले माहीधरीभागाटीकायां भावफलाध्यायः ॥ १५ ॥ षोडशोऽध्यायः॥ अथ दशानयनाऽध्यायः। सूर्यादिग्रहाणां विंशोत्तरीदशा । रसा आशाः शैला वसुविधुमिता भूपतिमिता १६ नवेलाः शैलेला नगपरिमिता विंशातमिताः ॥ खाविन्दावार तमसि च गुरौभानुतनये बुधे केतौ शुक्र क्रमत उदिताः पाकशरदः ॥ १॥ अब दशाविचार कहते हैं कि, सूर्यके ६, चंद्रमाके १ ०,मंगलके ७, राहुके १८, बृहस्पतिके १६, शनिके १९, बुधके १७, केतुके. ७, शुक्रके २० वर्ष नियत है दशा क्रमभी इसी क्रमसेहै ॥ १ ॥ कृत्तिकादिनिरावृत्त्या दशा विंशोत्तरी मता ॥ अष्टोत्तरी न संग्राह्या मारकार्थ विचक्षणैः ॥ २॥ कृत्तिकासे तीन आवृत्ति गिननेसे नक्षत्र दशाधिपति मिलता है जैसे कृत्तिका जन्मनक्षत्रमें सूर्यकी दशा प्रथम,रोहिणीमें चन्द्रमाकी इत्यादि । पुनः दूसरी आवृत्ति उत्तराफाल्गुनीसे, तीसरीमें उत्तरापाढसे गिनना यह विंशोत्तरी ( १२० वर्षके क्षेपककी) दशा कारक मारक विचारमें मुख्य है जाननेवालोंने इसीसे मारक कारक फल कहना अष्टोत्तरी आदिसे नहीं ॥२॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१६०) भावकतुहलम् [ दशानयनम्दशाभुक्तभोग्यानयनम् । गतक्षनाडीनिहता दशाब्दर्भभोगनाड्या विहृता फलं यत् ॥ वर्षादिकं भुक्तमिह प्रवीणैर्नोग्यं । दशाब्दान्तरितं निरुक्तम् । ३॥ नक्षत्रकी भुक्तघटीको जिस ग्रहकी दशा प्रथम है उसके वर्षों से गुणकर नक्षत्रके सर्वभोगसे भाग देना लब्धि वर्ष, मास, दिन, घटी, क्रमसे उस ग्रहकी भुक्त दशा होती है, इसको ग्रहके वर्षों में घटायके भोग्य दशा होती है. अन्य ग्रहोंके पूरे वर्ष जोडते जाना यह विंशोत्तरी उडुदशा होती है.उदाहरण है कि, यह भरणी नक्षत्र भुक्त २४।२० भोग्य ३९।५ सर्व भोग्य ६३ । २५ । नक्षत्रभुक्त २४॥ २० को भरणीमें प्रथम दशापति शुकके वर्ष २० से गुणा किया पलात्मक २९२०० हुआ इसमें सर्वभो ग्य ६३ । २५ पलात्मक ३८०५ से भोग लिया तो लाभ (७) वर्ष हुए शेष २५६९ को १२ से गुणा किया ३०७८० इसे पुनः ३८०९ का भाग लेनेसे लाभ (८) महीना मिले शेष३४०को ३० से गुणा किया१०२०० इसमें भी उसी हारसे भाग लिया तो लब्धि दिन (२) मिले शेष २५९० को ६० से गुणाकर १९५४०० इसमें भाग लेनेसे लाभ (४०) घटी मिली यह भुक्तदशा शुक्रकी हुई, इसको शुक्रके वर्ष २० में घटाया तो शेष १२ वर्ष, ३ महीने, २७ दिन, २० घटी शुक्रके भोग्यदशा रही, इसमें सूर्यके वर्ष ६ जोडनेसे १८।३। २७।२० इतने वर्षादि पर्यन्त सूर्यदशा होती है ऐसेही सभी ग्रहोंके वर्षादि जानने ॥ ३॥ ___ अन्तर्दशा-विदशाकरणम् । दशा दशाहता कार्या विहृता परमायुषा ॥ अंतर्दशाक्रमादेवं विदशाप्यनुपाततः॥४॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षोडशः १६ भाषाटीकासमेतम् । (१६१) अब अन्तर्दशाकी विधि कहते हैं कि, जिस ग्रहकी दशामें अन्तर लाना है उस ग्रहकी दशा वर्षादिको अन्तरवाले ग्रहकी दशासे गुणाकर परमायु १२० से भाग लेकर पूर्वोक्तरीतिसे वर्षादि ४ अंक लेने, वह वर्षादि ग्रहकी अन्तर्दशा होती है. एक ग्रहकी दशामें इसी प्रकार प्रत्येक ग्रहों की अंतर्दशा लेनी. ऐसेही अनुपातक्रमसे विदशायें भी होती हैं ॥४॥ अथ दशाफलानि । तत्रादौ सूर्य्यस्य । उद्वेगिता हृदि तता परितो लतावद्दायादवाद उत | वित्तवियोगयोगाः ॥ चिन्ता भयं नरपतेरपि पाक-।। काले रोगागमो भवति भानुदशाप्रवेशे ॥५॥ सूर्यकी दशाप्रवेशमें मनुष्यके हृदयमें चारों तरफसे वृक्षपर लता जैसी फैलीहुई उद्वेगिता (अनवस्थिति )रहे. भाई,बिरादरीमें कलह होवै, धनहानि होय और धन मिलैभी तो चिंता रहै, राजासे भय होवै, तथा रोगभी होताहै ॥५॥ अथ चन्द्रस्य फलानि । सदा पाके राकेशितुरधिकृतिभूपतिकृता सतां सङ्गो रङ्गोत्सवसवकृतिप्रीतिरतुला ॥ अलङ्कारागारोरिपुकुलमलङ्कारजसुखं . कलावत्यारत्या गम इभरथारामरमणम् ॥६॥ चंद्रमाकी दशामें सर्वदा राजासे अधिकार मिले, सज्जनोंकी संगति नाच रंग आदि उत्सव, नाट्य (नाटक, नट खेल आदि) में, यज्ञकर्मोंमें बडी प्रीति हावै, भूषण वस्त्र आदि अलंकारोंका घर होवै, शत्रुकुलके क्षय होनेसे सुख होवै । षोडशवर्षकी सुरूपा स्त्रीके साथ रतिक्रीडा मिले, हाथी, रथ आदि वाहन मिलें बाग आदियोंमें रमित रहे ॥६॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [दशाफलम् (१६२) भावकुतूहलम् । अथ भोमस्य फलानि। अनलगरलभीतिः शस्त्रघातो नराणामरिगणनृप चौरव्यालशङ्काकुलत्वम्॥क्षितिसुतपरिपाके कामिनीपुत्रकष्टं भवति वमनमाधियाधिरर्थक्षतिश्च ॥७॥ मंगलकी दशामें मनुष्योंको अग्नि, विषका भय, शस्त्रसे घाव होवे शत्रुजन तथा चोर, राजा, सर्पसे भय होनेकी शंका एवं व्याकुलता होवैः स्त्रीपुत्रोंको कष्ट मिले, वमन(वांति)का रोग होवे. मानसी चिंता, रोग और धनहानिभी होवै॥७॥ अथ राहोः फलानि। राकेशारातिपाके नृपकुलवशतो द्रव्यनाशो विनाशो मानस्यातीवरोगागमनमपि नृणां तातकष्टं विशेषात् ॥ कान्तापत्याकुलत्वं हितजनखलताऽरातिरायाति सम; 'व्यामोहागारमंतःपरित उत ततातुंगताताईता वा॥८॥ राहुकी दशामें मनुष्योंको राजकुलके वशसे धनका नाश, मानका विनाश होवै, बहुतरोग उत्पन्न हो, तथा विशेषतः पितृकष्ट मिले, स्त्रीपुत्रोंकी ओरसे व्याकुलता रहे, मित्रजनोंके साथ दुष्टता होवै. शत्रु चढकर मकानहीपर आजावे.चित्तमें चारों ओरसे अज्ञानता आवे, नीचत्वको प्राप्त करे और भययुक्त रहै ॥८॥ अथ गुरुदशाफलम् । उर्वी गुर्वी समायात्यवनिपतिकुलानायकत्वं जनानां कान्तादन्ताबलाग्रागमइहकमलालंकृतावासशाला॥ मैत्री सद्भिर्महद्भिर्गुरुजनगरिमा कालिमारातिकास्ये हृद्या विद्यानवद्या भवति च वचसामाशितुः पाककाले॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ षोडशः १६ ] भाषाटीकासमेतम् । (१६३) बृहस्पतिकी दशामें मनुष्यों को राजकुलसे श्रेष्ठ पृथ्वी मिलतीहै. तथा अधिकारिता (प्रधानता) होती है.रमणीय स्त्री मिलती है, सवारीको श्रेष्ठ हाथी मिलता है, रहनेका बहुत बडा घर धनादि शोभासे भूषित रहताहै, सजनोंसे तथा बडे लोगोंसे मित्रता, गुरुजनोंसे गौरव(मान )मिलता है, शत्रुके मुख काले होते हैं रमणीय एवं अतिप्रशंसनीय विद्या होतीहै ॥९॥ अथ शनिदशाफलम् । मिथ्यावादेन तापोरिनरजनकृतातङ्कता रङ्कतावा कृत्या गुप्ता प्रतप्ता मतिरपि कुजनरर्थनाशोजनानाम् । कान्तापत्यादिरोगो जनककनकगोवाजिदन्तावलानां विच्छेदो मित्रभेदो दिनपसुतदशायामनर्थो विशेषात् ॥ शनिकी दशामें मनुष्योंको झुठे कलंक लगनेसे संताप, शत्रुजनके किये उपद्रवसे क्लेश होताहै, अथवा फकीरी (भीख मांगनी) होती है, गुप्तकृत्या (अभिचार ) से संतप्तता रहे, बुद्धिभी सन्तान होजावै,दुष्टजनों करके धननाश होवै, स्त्री पुत्रादिकोंको रोग होवै, पिता, सुवर्ण, गौ, घोडे, हाथियोंका वियोग (नाश) होवै मित्रोंसे शता होवै, विशेष करके इस दशामें अनर्थ होते हैं ॥१०॥ ___ अथ बुधदशाफलम् । दिव्याहारविहारयानजनतापत्यार्थमानांबर- । श्रेणीग्रामनवालयेन्दुवदनालाभं विशेषादिह ॥ सद्भिः सङ्गमनङ्गमङ्गमतुलं प्रोत्तुंगमातंगजं सौख्यं संतनुते दशा सुतयशो वृद्धिं च सिद्धिं विदः११ बुधकी दशामें मनुष्यों को दिव्य (उत्तम) आहार (भोजन) विहार सवारी, मनुष्यसंगम,यदा मनुष्यता, संतान धन,मान, वस्त्र, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१६४) भावकुतूहलम् [ दशाफलम्ग्राम, भूमि नवीन मकान, चंद्रमुखी (सुरूपा) स्त्री इतनी वस्तुओंका विशेषतः लाभ होता है, सजनोंका संग कामदेवकी वृद्धि, ऊंचे हाथीकी सवारीका सुख मिलता है, संतानवृद्धि, यशकी. वृद्धि और सब कार्यमें सिद्धि होती है ॥११॥ अथ केतुदशाफलम् । मनस्तापं तापं निजजनविवादं खलकृतं सदा चन्द्रारातेरुदरभवरोगं वितनुते ॥ दशा पुंसामारादनुगतिमपायं निजमतेः कृशत्वं वित्तानामवनिपतिकोपेन परितः ॥ १२॥ केतुकी दशामें मनुष्योंके मनमें संताप, ज्वर, अपने मनुष्योंमें (विवाद) कलह) होवे, दुष्टजनोंसे मुकाबिला होवे, पेटमें रोग उत्पन्न करताहै, शीघ्रही शीघ्रगमन, भ्रमण होते हैं, अपनी ही बुद्धिसे धनादियोंका नाश होवे, शरीरमें कृशता आवे, सर्वप्रकार राजाके कोपसे धनका क्षय होवे, ॥ १२॥ अथ शुक्रदशाफलम् । तुल्यत्वं धरणीधवेन महता मित्राज्जयो जन्मिनां मारोल्लासविकास एव कमलालावण्ययुक्तं गृहम्॥ दिव्यारामसुधामसामबहुला व्याख्यानगानध्वनिः प्रज्ञासौख्यमतीव पाकसमय शाला विशाला कवेः ..'शुक्रकी दशामें मनुष्योंको बडे राजाकी तुल्यता मिलती है, मित्रसे जय (जीत) भलाई होती है, कामक्रीडाका उत्सव, विलास हासमें आनंद होता है,घरमें लक्ष्मी,कोमल स्त्रीका वास होवे, उत्तम बागबगीचा,उत्तम मकान आदि बहुत होते हैं, शास्त्रोंका व्याख्यान, मायनका शब्द, बुद्धिकी कुशलता आदियोंका बहुत सुख होता है. तथा बडे बडे घर बनते हैं ॥ १३ ॥ MRA auoia-andniamkaran Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पोडशः १६ ] भाषाटीका समेतम् । अथ उच्चगतग्रहदशाफलम् । निजोच्चगामिनो यदा तदा तता यशोलता नवाम्बरादिभूषणैः सुखं वराङ्गनागमः ॥ उपेन्द्रतुल्यगजेन्द्रवाजिराजिका रथा वृषाश्च वैरिणः ( १६५ ) तामता कृशा वशा दशा यदा भवेत् ॥ १४ ॥ जो ग्रह जन्म में उच्चका हो उसकी दशा जब हो तब मनुष्यों की यशकी लता बहुत फैलती है, नवीन वस्त्र, भूषण आदियों का सुख मिलता है, श्रेष्ठअंगवाली स्त्री घरमें आती है, उपेंद्र ( श्रीकृष्ण ) यद्वा चक्रवर्ती राजाके समान पराक्रमी एवं ऐश्वर्यवान होता है, श्रेष्ठ हाथी, घोडे, रथ, बैल आदि मिलते हैं शत्रु दुर्बल होकर वश होते हैं ॥ १४ ॥ अथ स्वक्षेत्रगतदशाफलम् | दशा निजागारगतस्य यस्य नवाम्बरागारविहारसौख्यम् ॥ नवीनयोषा बहुभूमिभूषा यशोविशेषादरिवर्गहानिः ॥ १५ ॥ जो ग्रह अपनी राशिका हो उसकी दशा में नवीन वस्त्र, नवीन घर, विहार आदियोंका सौख्य होवे, नवीन स्त्री मिले, बहुत भूमि बहुत भूषण मिलते हैं, शत्रुपक्षकी हानि होती है ॥ १५ ॥ अथ मित्रक्षेत्रगत ग्रहदशाफलम् । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat 1 कलत्रपुत्रैरपि मित्रपुत्रैरतीव सौख्यं हितराशिगस्य ॥ दशाविपाके वसनं नृपालाद्विशेषतो मानविवर्द्धनं स्यात् ॥ १६ ॥ जो ग्रह अपने मित्रकी राशिमें हो उसकी दशा में स्त्री, पुत्रोंसे तथा मित्र, एवं उनके पुत्रोंसे अतीव सुख मिले, तथा राजासे वस्त्र: खिलत मिले, विशेषतः मानकी वृद्धि होवे ॥ १६ ॥ www.umaragyanbhandar.com Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१६६) भावकुतूहलम्- [दशाफलम् रिपुराशिस्थग्रहदशाफलम् । मनोजवेगो रिपुवर्गभीतिः कृशत्वमर्थक्षतिराप्तिबाधा ॥ दशा यदारातिगृहस्थितस्य तदा नरस्य प्रकृतिश्चला स्यात् ॥ १७ ॥ 'जो ग्रह शउराशिमें हो उसकी दशामें मनुष्यको कामदेवका बडा वेग रहता है, शत्रुपक्षसे भय, शरीरमें कृशता, धनकी हानि, आमँदमें विन वा विलम्ब होता है, स्वभाव भी चलायमान हो जाता है बुद्धि ठिकाने नहीं रहती ॥ १७॥ ____ अथ रोगेशदशाफलम्। रोगाधीशदशाऽबला जनकलिं रोगागमं जन्मिनामाधिव्याधिमरिव्रजवणगणातहूं कलई खलात् ॥ मानध्वंसमतिक्षयं कलयति ज्ञानार्थनाशं तथा चित्तव्याकुलता च पापवशतो धातुक्षयं प्रायशः॥१८ । निर्बल रोगेश (षष्ठेश ) की दशा-मनुष्योंके स्वजनके साथ कलह, रोगकी उत्पत्ति, मानकी चिन्ता, रोग, शत्रुसमूहकी वृद्धि, व्रण (घाव ) समूहोंसे क्लेश, दुष्टजनोंसे कलंक (झूठा अपवाद ) मानका विध्वंस, बुद्धिका नाश, ज्ञानका व धनका नाश, चित्तमें व्याकुलता और पापके वशसे धातुक्षय करती है ॥ १८॥ अष्टमेशदशाफलम्। निधनभावपतेरवनीपतेरतिभयं गदजालभयं दशा॥कलयति स्वजनस्य विनाशनं निधनता: मपि वा भविनामिह ॥ १९॥ अष्टमेशकी दशा जन्मियोंको राजासे बडा भय, रोगसमूहोंका भय, अपने मनुष्योंका नाश और मृत्युका भयभी देती है ॥ १९॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । षोडशः १६ ] भाषाटीकासमेतम् । (१६७) _ व्ययेशदशाफलम् । वित्तक्षतिरवनीशादाधिव्याधिय॑येशपरिपाके ॥ कष्टं मृत्युसमानं भवति कुयानं कुसङ्गसंयोगः॥२०॥ व्ययेशकी दशामें राजासे धनका क्षय होता है. मानसी चिन्ता, रोग होते हैं. मृत्युके समान कष्ट मिलता है. भैंसा, गदहा आदि निषिद्ध सवारी मिलती हैं और कुसङ्गियोंकी सङ्गति होती है॥२०॥ . सप्तमेशदशाफलम् । । जायापतिपरिपाके रोगज्वाला हदि स्थिता भवति ॥ रिपुजनजनिता बाधा वित्तविनाशा नरेशभीतिश्च २१ सप्तमेशकी दशामें रोगकी ज्वाला हृदयमें स्थिर रहती है, शउसे. उत्पन्न बाधा (दुःख) रहता है.धनका नाश,राजाका भय होता है२१ ___ अस्तङ्गतग्रहदशाफलम् । दशाधीशे वास्तं गतवति विरोध बलवता सदा रोगागारं हृदयकुहरे वाथ जठरे ॥ अरेराधिव्याधिव्यसनमुत मानक्षतिरथो विरामो वित्तानामवनिपतिकोपेन भविनाम् ॥२२॥ दशापति ग्रह अस्तङ्गत हो तो अपनेसे बलवान् मनुष्यके साथ विरोध होवे, सर्वरोगका मकानही मनुष्यके हृदयमें यदा पेटमें बनारहे। शत्रुसे चिन्ता, रोग, व्यसन और मानक्षय होवे। राजाके कोपसे धनका नाश होवे ॥२२॥ . चन्द्रबलानुसारेणग्रहदशाफलम् । दशाप्रवेशे सबलः शशाङ्को दशाफलं शस्तमतीव जन्तोः ॥ अतोऽन्यथा चेद्विपरीतमाय्यॆरुदीरितं चन्द्रबलानुमानात् ॥२३॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१६८) जावकुतूहलम् [दशाफलमदशाके प्रवेश समयमें तत्काल लग्नसे चन्द्रमा बलवान हो तो जीवको उस दशाका फल अतिशुभ होता है, निर्बल होनेमें विपरीत फल होता है. इसी रीतिसे श्रेष्ठ आचार्योने चन्द्रमाके बलानुसार फल कहा है ॥२३॥ बलानुकूलदशाफलम् । बलवन्तो दशाधीशा दिशन्ति सकलं फलम् ॥ निर्बला नैव कुवैति मध्यं मध्यबला नृणाम् ॥२४॥ जो ग्रह बलवान हैं वे अपनी दशामें अपना उक्त फल पूर्ण देते हैं, निर्बल ग्रह पूरा फल नहीं देते,जो मध्यबली हैं वे फल भी मध्यमहीं करते हैं॥२४॥ , भावाधीशानां बलानुसारफलम् । लग्नेशस्य दशाफलं बहुधनं वित्तेशितुः पञ्चतां कष्टं वेति सहोदरालयपतेः पापं फलं प्रायशः॥ तुर्यस्वामिन आलयंकिल सुताधीशस्य विद्यासुखं रोगागारपतेररातिजभयंजायापतेः शोकतास२५॥ लग्रेशकी दशामें बहुत धन होना फल है. द्वितीयेशकी दशामें मृत्यु अथवा कष्ट, तृतीयेशकी दशामें बहुधा पाप फल होता है, चतुर्थेशकी दशामें गृहसुख,पंचमेशकी दशामें विद्याका सुख, षष्ठेशकी दशामें शत्रुभय, सप्तमेशकी दशामें शोक होता है ॥२५॥ मृत्यु मृत्युपतेः करोति नियतं धर्मेशितुः सुक्रियां वित्तं राज्यपते पाश्रयमथो लाभं हि लाभशितुः ॥ रोगं द्रव्यविनाशनं च बहुधा कष्टं व्ययेशस्य वै पूर्वैरङ्गभृतामुदीरितमिदं तन्वादिभावेशजम् ॥२६॥ अष्टमेशकी दशामें मृत्यु निश्चय करताहै. नवमेशकी दशामें -...-... . .. - -- ---- Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सप्तदशः १७] भाषाटीकासमेतम् । (१६९) पुण्यादि कृत्य, दशमेशकी दशामें धन एवं राजाका आश्रय मिलताहै, लाभेशकी दशामें लाभ, व्ययेशकी दशामें रोग, धननाश, बहुतसे कष्ट होते हैं इस प्रकार साधारणफल पूर्वाचार्योने लग्नेश आदियोंके शरीरधारियोंको कहे हैं ॥२६॥ भावाधिपो बलयुतो निजगेहगामी तुङ्गत्रिकोणशुभवर्गगतोपि पूर्णम्॥जन्तोः फलं किल करोति यदारिनीचस्थानस्थितोऽशुभफल विबलो विशेषात्॥ २७॥ इति भावकुतूहले दशाफलाध्यायः ॥ १६॥ जिस भावका स्वामी युक्त होकर अपनी राशि, अपने उच्च मूल त्रिकोण, शुभग्रहोंके अंशादि वर्ग आदिमें हो वह दशोक्त पूर्णफल तो निश्चय देताहै, यदि शत्रुगृह, नीचराशि आदिमें होनेसे निर्बल हो तो विशेषतः अशुभफल देताहै ॥ २७ ॥ इति भावकुतूहले माहीधरीभाषाटीकायां दशाफलाऽध्यायः॥ १६ ॥ सप्तदशोध्यायः॥ अथ ग्रहाणां गर्वितादिभावाऽध्यायः। कोणे तुंगगृहे गतो निगदितः खेटस्तदा गर्वितो मित्रः गुरुसंयुतोपि मुदितो मित्रेण युक्तेक्षितः ॥ पुत्रस्थानगतोऽगुभौमरविजाकैः संयुतो लज्जितः पापारिग्रहवीक्षितो हिरविणा संक्षोभितः कीर्तितः॥ अब ग्रहोंकी गर्वितादि दशा कहते हैं-कि, जो ग्रह अपने मूल त्रिकोण वा उच्चमें हो वह गर्वित कहाताहै,मित्रराशिवाला तथा बृहस्पतिके साथवाला तथा अपने मित्रसे युक्त वा दृष्ट भी मुदित होता है। और पंचमस्थानमें स्थित एवं राहु, मंगल, सूर्य, शनिसे युक्त लजित, पापग्रह अथवा शत्रुसे दृष्ट वा सूर्यसे दृष्ट ग्रह शोभित कहाताहै ॥ १॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७०) भावकुतूहलम्- [गर्वितादिदशायो मन्दारियुतेक्षितोऽरिभगतः खेटः क्षुधापीडितो यः पापारियुतेक्षितो न च शुभैदृष्टस्तृषार्तोम्बुभे ॥ गढियो मुदितोऽथ लज्जित इति प्रक्षोभितः कीतितो विद्भिः संक्षुधितस्तृषार्त इह षड्भावा ग्रहाणाममी२॥ जो ग्रह शनि अथवा शत्रग्रहसे युक्त वा दृष्ट हो और शत्रुराशिमें हो वह क्षुधापीडित और जो पापग्रहसे, शत्रुग्रहसे युक्त दृष्ट हो परन्तु शुभग्रह उसे न देखे चतुर्थस्थानमें हो वह तृषार्त होताहै, गर्वित, मुदित २, लजित ३, क्षोभित ४, क्षुधितो५, तृषार्त ये छः भाव ग्रहोंके विद्वानोंने कहेहैं ॥२॥ गर्वितादिभावफलम्। क्षुधितः क्षोभितो वापि यत्र तिष्ठति तं बलात् ॥ विनाशयति पुष्णाति मुदितो गर्वितो ग्रहः ॥ ३॥ 'क्षुधित तथा क्षोभित ग्रह जिस भावमें हो उसका जबरदस्ती नाश करता है । जिसमें मुदित वा गर्वित ग्रह हो उस भावको पुष्ट करताहै ॥३॥ कर्मभावगतो यस्य लज्जितस्तृषितोऽथवा ॥ क्षोभितः क्षुधितो वापि स दरिद्रो नरो भवेत् ॥४॥ जिस मनुष्यक दशमभावमें लजित अथवा तृषित यद्वा क्षोभित और क्षुधित ग्रह हो वह दरिद्र होताहै ॥ ४॥ लज्जितः पुत्रभावस्थः पुत्रनाशकरो मतः॥ क्षोभितस्तृषितो यस्य सप्तमे स्त्री न जीवति ॥ ५॥ लाजितग्रह पंचमभाव में हो तो पुत्रनाश करनेवाला कहाहै । जिसका क्षोभित वा तृषित ग्रह सप्तमभावमें हो उसकी स्त्री नहीं बचती है ॥५॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सप्तदशः १७] भाषाटीकासमेतम् । (१७१) अथ गाँवतदशाफलम् । नवालयारामसुखं नृपत्वं कलापटुत्वं विदधाति पुंसाम् ॥ मदार्थलाभं व्यवहारवृद्धिं दशा विशेषादिह गर्वितस्य ॥६॥ गर्वितग्रहको दशा पुरुषोंको नवीन घर, बगीचाका सुख, राजत्व तथा कला (६४ कलाओं) में चातुरी, मद, तथा धनका लाभ, व्यवहार में वृद्धि करती है ॥६॥ _ मुदितग्रहदशाफलम् । भवति मुदितपाके वासशाला विशाला विमलवसनभूषाभूमियोषासुसौख्यम् ॥ । स्वजनजनविलासो भूमिपागारवासो । है रिपुनिवहविनाशो बुद्धिविद्याविकाशः ॥७॥ मुदित ग्रहकी दशा में रहनेका घर बडा बनता है, निर्मल वस्त्र, भूषण तथा भूमि और स्त्रियोंका सुख मिलता है । अपने मनुष्य तथा साधारण मनुष्योंसे विलास, राजाके घरमें निवास, शत्रुसमूइका विनाश. बुद्धि तथा विद्याका प्रकाश होता है ॥ ७ ॥ लजितप्रहदशाफलम् । दिशति लज्जितखेटदशावशादतिविराममतीव / मतिक्षयम् ॥ सुतगदागमनं गमनं वृथा कलि। कथाऽभिरुचिं न रुचिं शुभे ॥८॥ लजितग्रहकी दशा विवशतासे रतिक्रीडाका विराम ( वियोग) बुद्धिका क्षय, पुत्रको रोग, व्यर्थ सफर, कलहसंबंधी वार्ता में रुचि और शुभकृत्यमें अरुचि करती है ॥८॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१७२) भावकुतूहलम्- गर्वितादिदशाः क्षोभितग्रहदशाफलम् । संक्षोभितस्यापि दशा विशेषाद्दरिद्रजातं कुमति च कष्टम् ॥ करोति वित्तक्षयमंघ्रिबाधां धनाप्तिबाधामवनीशकोपात् ॥ ९॥ शोभित ग्रहकी दशा विशेषतः दरिद्रताका केश करती है तथा कुत्सित बुद्धि, अतिकष्ट, धनक्षय, पैरोंमें पीडा. धनके आमदमें राजकोपसे बाधा करती है ॥ ९॥ क्षुधितग्रहदशाफलम् । | क्षुधितखगदशायां शोकमोहादितापः परिजनपरितापादाधिभीत्या कृशत्वम् ॥ कलिरपिरिपुलोकैरर्थबाधा नराणा मखिलबलनिरोधो बुद्धिरोधो विशेषात् ॥१०॥ क्षुधित ग्रहकी दशामें मनुष्योंके शोक, मोह ( अज्ञान ) आदि संताप होते हैं, स्वजनोंसे संताप मिलता है, मानसी व्यथा और भयसे शरीर दुबला होता ह, शत्रुजनोंसे कलह होताहै,तथा धनकी पीडा, समस्त बलका निरोध ( रुकावट ) बुद्धिका रोधभी विशेषतः होता है ॥१०॥ तृषितग्रहदशाफलम् । तृषितखगदशायामङ्गनामङ्गमध्ये भवति गदविकारो दुष्टकार्याधिकारः ॥ निजजनपरिवा दादर्थहानिः कृशत्वं । खलकृतपरितापो मानहानिःसदैव ॥११॥ तृषितग्रहकी दशामें शरीरियोके शरीरके बीचमें रोगका विकार होवै, दुष्टकार्यका अधिकार मिले, अपने मनुष्योंसे विवाद होवे, Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सप्तदशः १७] भाषाटीकासमेतम् । (१७३) जिसमें धनहानिभी रहे,अंग माडे होजावें, दुष्टजनके कृत्यसे संताप युक्त रहे, सर्वदा मानहानि होवै ॥ ११॥ ग्रंथकर्तृप्रशंसा। आसीच्छ्रीकरुणाकरो बुधवरो वेदाङ्गवेद्याकरस्तत्सूनुः क्षितिपालवंदितपदः श्रीशंभुनाथः कृती॥ विज्ञवातकृतादरो गणितविज्योतिर्विदां प्रीतये चक्रे भावकुतुहलं लघुतर श्रीजीवनाथः सुधीः॥१२॥ इति श्रीमन्मैथिलशंभुनाथगणकात्मजजीवनाथविरचिते भावकुतूहले ग्रहाणां गर्वितादिदशाफलाऽध्यायः ॥ १७ ॥ पहिले मैथिलदेशमें श्रीकरुणाकरनाम पंडितश्रेष्ठ वेदवेदांगके जाननेवालोंमें श्रेष्ठ यद्रा खान (उक्तविद्याओंको प्रगट करनेवाली भूमि) में भया,इनका पुत्र पण्डित शम्भुनाथ भया,जिसके चरणोंकी वंदना राजालोग करतेथे तथा विद्वानोंके समूहते आदरणीय एवं गणितविद्या जाननेवाला रहा इनका पुत्र श्रीजीवनाथ नामा पंडित ज्योतिर्विजनोंके प्रसन्नताके लिये छोटासा ग्रंथ भावकुतहल (जिसमें पाठ स्वल्प, प्रयोजन बहुत है) बनाया ॥१२॥ इति भावकुतूहके माहीधरीभाषाटीकायां ग्रहाणां गर्वितदिदशाफलऽध्यायः१७ नवाब्धिनवभूमिविक्रमदिवामणेर्वत्सरे महीधरधरासुरष्ठिहरिसंज्ञके पत्तने ॥ विवर्णमिह भाषया फलितभावकौतूहलेऽकरोच्छिशुमनोमुदे चपलतां क्षमध्वं बुधाः॥३॥जातकेषु बृहदाख्यजातकस्ताजिकेषु खलु नीलकंठिका॥हौरके फलविधौ शिरोमणी तो मया प्रकटितौ विवार्णितौ ॥२॥ लक्षणैरसमस्तीपि Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ( १७४ ) मावकुतूहलम् । विशेषोऽत्र ग्रहावस्थाविधानतः॥सामुद्रिकविचारैश्च प्रदृश्यते ॥ ३ ॥ अतो मया प्रकटितं लौकिक्या भाषया भुवि ॥ वेणीमाधव संतुष्टयै ग्रंथा भूयात्समर्पितः॥ ४ ॥ भाषाकारका समर्पण है कि, विक्रमार्क संवत् १९४९ में महीधर शर्मा ब्राह्मणने राजधानी टीहरी नगर (जिला गढ़वाल) ने पाठक बालकोंकी मन प्रसन्नता के हेतु इस फलितग्रंथ भावकुतूहलका विवरण भाषा में किया इस भाषामें जो कुछ गलती हो उसे विद्वान लोग क्षमा करें ॥ १॥ जातकों (जन्मफलों) में बृहज्जातक, ताजिकों ( वर्षफलों) में प्रश्नसहित नीलकंठी, ज्योतिषके फलप्रकरणमें शिरोमणि है इनको मैंने भाषाटीका करके लोकोपकारार्थ प्रकट कर दिया कि, जिससे अन्य ग्रंथोंमें श्रम करनेकी आवश्यकता नहीं थी ॥ २ ॥ यह ग्रंथ तो जातकलक्षणोंसे संपन्न नहीं परंच इसमें ग्रहोंकी अवस्थाओंके तथा सामुद्रिक लक्षणोंके विचार विशेष होनेसे इसकी विशेषता देखने में आई || ३ || इससे मैंने इसको देशभाषामें टीका करके संसार में प्रकट किया यह ग्रंथ मेरा वेणीमाधवकी प्रसन्न - ताके अर्थ समर्पित होवे ॥ ४ ॥ शुभम् ॥ ॥ समाप्तोऽयं ग्रन्थः ॥ पुस्तक मिलनेका ठिकाना गङ्गाविष्णु श्रीकृष्णदास, "लक्ष्मीवेङ्कटेश्वर " स्टीम्-प्रेस, कल्याण-बम्बई. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat खेमराज श्रीकृष्णदास, "श्रीवेंकटेश्वर" स्टीम-प्रेस, बम्बई. www.umaragyanbhandar.com Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जाहिरात. की.रु. आ. ३-० टित .... .... २-८ ....२-० ०c ० जातकसंग्रह-भाषाटीकासहित जातकाभरण-भाषाटीकासहित जातकशिरोमणि-आषाटीकासहित ... ज्योतिषतत्त्वसुधार्णव-भाषाटीकासहित ज्योतिषश्यामसंग्रह-भाषाटीकासहित ... दीपिका वा शुद्धदीपिका-भाषाटीकासहित नरपतिजयचर्या-संस्कृतटीका ... ... नारदसंहिता-(होरास्कन्ध) भाषाटीकासहित परमसिद्धान्तज्योतिष-प्रेमवल्लभविरुचित । ज्योतिषका सर्वोत्कृष्टसिद्धान्तग्रन्थ पत्रीमार्गदीपिका-और वर्दपिक--आषाटीकासहित प्रश्नज्ञानप्रदीप-भाषाटीकासहित .... ... प्रश्नशिरामाण-भाषाटीकासहित ... बृहज्जातक-भट्टोत्पली संस्कृतटीकासहित बृहज्जातक-भट्टोत्पली संस्कृतटीकासहित रफ कागज बृहज्जातक-दशाध्यायी, नौका नामक संस्कृतटीकासहित .... ... .... बृहज्जातक-वराहमिहिराचार्यकृत मूल भाषाटीकासहित .... ... बहज्जातक-भाषाटीकासहित रफ कागज बृहत्पाराशरहोराशास्त्र-पूर्वखण्ड सारांश तथा उत्तरखण्ड संपूर्ण संस्कृतटीका तथा भाषाटीकासहित ० ० ० ....१-८ ...१-१२ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बृहद्यवनजातक - वि० वा० स्व० पं० ज्वालाप्रसादजीमिश्र कृत भाषाटीकासहित. ..... भविष्यफलभास्कर - भाषाटीकासहित भृगुसंहिता योगावलीखण्ड - भृगुसंहितान्तर्गत मनुष्यजातक--श्रीमत्समरसिंहविरचित, सोदाहरण ... २ .... ... 1:00 संस्कृतटीकासहित मानसागरीपद्धति -- भाषाटीतसाहत मुहूर्तचिन्तामणि- प्रमिताक्षरा नामक संस्कृतटीकासहित लीलावती - भास्कराचार्यकृत मूल और पं० रामस्वरूपकृत भाषाटीकासहित Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat ... ... .... 110 ... .... ... 800 ... ... ... ... ... ... की. रु. आ. ( बडा सूचीपत्र अलग है मंगाकर देखना . ) wee ... लीलावती - भाषाटीकासहित रफ कागज वसन्तराजशाकुन संस्कृतटीका तथा भाषाटीका सहित वर्षप्रबोध - अर्थात् नूतन-संवत्सरशुभाशुभप्रबोध भाषाटीकासहित वाराही ( बृहत् ) संहिता-वराहमिहिराचार्यप्रणीत स्व ० पं० बलदेवप्रसाद मिश्रकृत भाषाटीकासहित ..... विवाहवृन्दावन-संस्कृतटीकासहित ... ... 0000 ... 91.8 २-८ २-० . ५० ... .... ... .... १–६ १-८ ३-० १-१२ 60.0 पुस्तकें मिलनेका ठिकाना “ गङ्गाविष्णु श्रीकृष्णदास, "लक्ष्मीवेंकटेश्वर " छापखाना, कल्याण- बम्बई. १-४ ३-० १-१२ 8-9 १--६ www.umaragyanbhandar.com Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री अ पुस्तक Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com