________________
(४२) भावकुतूहलम्
[राजयोम:अतिउत्तम नानाप्रकारके मणियोंके समूहसे (मंडित) श्रृंगार युक्त होकर पृथ्वीमें धन भूषणोंसे युक्त रहै ॥३८॥ । चन्द्राकान्तभपः सुखालयगतो दन्तावलानां सुखं
मुक्तास्वर्णमणिव्रजामलयशःपुञ्ज विचित्रालयम् ॥ भृत्यापत्यकलत्रमित्रपटलीविद्याविनोदं तथा पुण्यं संतनुते मुदं नरपतरर्थ नराणामिह ॥ ३९॥
चंद्रस्थितराशिका स्वामी चतुर्थ हो तो हाथियोंका सुख, मोती, सुवर्ण, मणिसमूह मिलें निर्मल यशके पुंज होवें। नानारंगोंका पर होवे, (नौकर) सेवक, पुत्र, स्त्री, मित्रोंका समूह रहै, विद्याके विनो. देमें रहै, पुण्य कमावे, प्रसन्नता पावै, राजासे धन पावै यह सभी मनुष्योंको कहाहै ॥ ३९॥
अनफादियोगः। व्ययगतैरनफा रविवर्जितैर्द्धनगतैः खचरैः स्वनफा विधोः ॥ उभयतोऽपि गतैरुदिता नृणां दुरुधरा मधुराशनभोगदा ॥४०॥
चंद्रमासे बारहवें स्थानमें सूर्यरहित कोई ग्रह हो तो अनफा, चंद्रमासे दूसरेमें कोई हो तो स्वनफा और दोनों स्थानोंमें ग्रह हों तो दुरुपरा योग मधुरभोजन और अनेक प्रकारके भोग देनेवाला होताहे ॥१०॥
अनफायोगफलम् । । जनिमतामनफा कुरुतेतरां गुणवतीयुवतीरति
वर्द्धनम् ॥ नृपसभापटुताममलं यशो वरपशो| रपि सौख्यकरं परम ॥४॥
जन्मपारीको भनकायोग हो तो गुणवती (युवती) स्त्री एवं
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com