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द्वितीयः २ ]
भाषाटीकासमेतम् ।
( ९ )
मेषादि राशि क्रमसे चर, स्थिर, द्विस्वभावसंज्ञक हैं. मेष चर वृष स्थिर, मिथुन द्विस्वभाव, कर्क चर इत्यादि ( प्रगट ) 918/७| १० चर, २|५|८|११ स्थिर, ३/६/९/१२ द्विस्वभाव हैं । ऐसेही मेष क्रूर, वृष सौम्य, मिथुन क्रूर, इत्यादि ( प्रगट) १२३२५/७१९ | ११ क्रूर, २२४/६/८/१०/१२ सौम्य हैं । ऐसेही मेष पुरुष, वृष स्त्री, मिथुन पु० इत्यादि ( प्रगट ) विषम राशि पुरुष, सम स्त्रीसंज्ञक हैं। ऐसेही विषम सम क्रमसे जानने, जैसे मेष विषम, वृष सम इत्यादि (प्रगट) १२३/५/७/९/११ विषम, २२४|६|८|१०१२ सम हैं और मिथुन धनका पूर्वार्द्ध, तुला, कन्या (द्विपद मनुष्य धनका उत्तरार्द्ध सिंह, वृष, मेष, मकरका पूर्वार्द्ध चतुष्पद उपलक्षणसे मकरका उतरार्द्ध, कुंभ, मीन जलचर हैं । कर्क, वृश्विक कीट हैं और सूर्यका मूलत्रिकोण सिंह चंद्रमाका वृष' मंगलका मेष, बुधका कन्या, बृहस्पतिका धन, शुक्रका तुला शनिका कुंभ है यह प्राचीन आचार्यों ने कड़े हैं ॥ १३ ॥ १४ ॥ १५ ॥ राशिभेदचक्रम ।
धन | मकर कुम्भ | मान वि० स० वि० स०
राशयः मष वृष मेथु कक | सिह | कन्या तुला | वृश्च वर्षमाः वि० स० वि० स० वि० स० वि० स० पु. स्त्री. पुं० स्त्री० षु० स्त्री० पु० स्त्री० पु० स्त्री० क्रूर क्रूर क्रूर सौ० क्रूर सौ० क्रूर सौम्य क्रूर चरादि चर स्थिर द्विस्व च० स्थिर द्वि० च० दिशा पू ८० प·० उ० पू० द प० संज्ञा चतुष्पद चतु० द्विपद कीट चतु० : द्विपद द्विपद कीट द्वि० चतु० द्विपद जल
पु० स्त्री० पु० बी० सौम्य क्रूर स्थिर द्वि०
पू० द० प० उ०
चतु | जल०
उ०
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सौम्य क्रूर सौ० चर० स्थिर द्वि०
इति मावकुतूहले माहीघरी भाषाटीकायां संज्ञाऽध्यायः प्रथमः ॥ १ ॥ द्वितीयोऽध्यायः ॥ अथ जातकचिह्नज्ञानम् ।
जनुषि लग्नगतो वसुधासुतो मदनगोपि गुरुः कविरेव वा ॥ भवति तस्य शिरो व्रणलांछितं निगदितं यवनेन महात्मना ॥ १ ॥
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