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- एकादशः ११ ]
भाषाटीकासमेतम् ।
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तदनन्तर ( ३ ) से शेष करते एक (१) शेष रहे तो दृष्टि, (२) रहे तो चेष्टा, (०) शेष रहे तो विचेष्टा जाननी और सूर्यके ( ५ ) चन्द्रमाके (२) मंगलके (२) बुधके (३) बृहस्पतिके (५) शुक्रके (३) शनिके (३) राहुके ( ४ ) क्षेपकांक हैं इतने अंक यवनादि प्राचीन आचाय्योंके कहेही मैंने यहां लिखे हैं उपपत्ति इनकी ज्ञात नहीं यह ग्रंथ कर्त्ता कहता है ॥ ४ ॥
ऊपर जो स्वरांक कहा वह इस चक्रस्थ | क्रमसे लेना. जैसे अका इके२ उकेरे एके४ ओके ५ नामके (प्रधान) आदि अक्षरमें जो स्वर हों उसका अंक लेते हैं नाम प्रमाणभी वही है जिस नामके पुकारनेसे सोता मनुष्य जाग उठे.
स्वरशास्त्रमतेन स्वरांकचक्रम् |
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अवस्थाका उदाहरण - किसीका जन्म पौषशुकुपंचमी शुक्रवार मिथुन लग्न धनिष्ठा नक्षत्र के चतुर्थ चरण में है. इष्टघटी २६ । ० है सूर्य मूलनक्षत्र, चन्द्रमा धनिष्ठा में, मंगल श्रवणमें, बुध पूर्वाषाढा, बृहस्पति आर्द्रामें, शुक्र पूर्वाषाढा, शनि मूलमें, राहु पूर्वाफाल्गुनीमें, केतु पूर्वाभाद्रपदा में हैं। सूर्य ७ अंश, चन्द्रमा ४, मंगल ११, बुध २६, बृहस्पति ११, शुक्र २५, शनि ७, राहु केतु २३ अंशपर हैं। प्रथम सूर्य मूलनक्षत्र में है इसकी संख्या (१९) सूर्य की संख्या (१) से गुना १९ धनके ७ अंश पर होनेसे ७ से गुनदिया १३३ । इष्ट २६, जन्मनक्षत्र २३ लग्न मिथुन रेइनको जोड गुणित संख्या में मिलाया १८५ रवि ( १२ ) से शेष किया शेष ५ शयनादिगणना से पांचवीं गमनावस्था सूर्यकी हुई पुनः प्रसिद्धनाम गुणा
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