________________
airmiriwwwmarAurar
HansranALoad
सप्तमः ७] भाषाटीकासमेतम्
(२९) __ जन्मसमयमें उच्चका बृहस्पति केंद्रमें हो शुक्र दशम हो तो उस की (मुद्रा ) मोहर छाप समुद्रपर्यंत चले अर्थात् समुद्रांत पृथ्वीका राजा होवै । यदि बृहस्पति कर्क वा धनका चन्द्रमासहित होवै तथा बुध वा सूर्य अपने उच्चमें होकर लग्नमें अथवा कोई बलवान् ग्रह लग्नमें हो तो राजा होवै ॥२॥ ! गुरावङ्गे कर्के मदनसुखभावे दिनमणः ।
सुते शके वक्र प्रभवति जनेयस्य समयः॥ महाम्भोधेनौरं गमनसमये तस्य करिणां
चलघण्टानादाद्रजति चपलत्वं हि परितः ॥३॥ बृहस्पति कर्ककालनमें (सूर्यपुत्र) शनि १७ भावोमेंसे किसीमें हो तथा शुक्र वक्रगति हो, ऐसा योग जिसके जन्मसमयमें हो वह ऐसा राजा होवै कि,जिसकी सवारी निकलनेमें चारों तरफसे हाथियोंके घंटाओंके नादसे समुद्रकाजलभी चारातरफ उछलने लगे॥३॥
अजं जीवादित्यौ दशमभवने भूमितनयः । स्तपस्थाने शुक्रो बुधविधुयुतो यस्य जनने ॥
गजानामालीभिर्विजयगमने तस्य सहसा | समाक्रान्ता पृथ्वी व्रजति चकिता मोहपदवीम्॥
जिसके जन्मसमयमें बृहस्पति सूर्य मेषके, मंगल दशम स्थानमें शुक्र नवमभावमें और चंद्रमा बुध सहित हो तो उसके शत्रुपर चढाई करनके गमनमें एकाएकी हाथियोंकी पंक्तिसे पृथ्वीभर जाकर ( चकित ) आश्चर्ययुक्त होके मोहको प्राप्त हो जावे ॥४॥
कन्याङ्ग सबुधे झषे सुरगुरौ भूपुत्रसूर्यौ बली मन्दे कर्कगते शरासनगवे शुक्रे यदीया जनिः॥
.
.
.
..*..
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com