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(२८) भावकुतूहलम्
[राजयोगःविशेषतः हरिवंशका पाठ करना, केतु हो तो कपिला गोदान करना, शनि, मंगल बाधक हों तो (षडंग) रुद्राध्यायका अनुष्ठान रुद्राभिषेक घटीस्नानादि करना ॥ १९॥
सर्वदोषविनाशाय सन्तानहारपूजनम् ॥ कुर्याद्भौमव्रतं चापि कामदेवव्रतं नरः॥२०॥
इति भावकुतूहले पुत्रभावविचाराध्यायः ॥ ६॥ समस्त दोषशांतिके लिये संतानगोपालका अनुष्ठान पूजन करना तथा भौमवत अथवा कामदेवव्रत शास्त्रोक्त प्रकारसे करना औरभी उपाय धर्मशास्त्र आगम शास्त्रोंसे जानने ॥२०॥ इति भावकुतूहले माहीधरीभाषाटीकायां पुत्रभावविचाराध्यायः ॥ ६॥
सप्तमोध्यायः।
सार्वभौमराजयोगः। खेटा यदा पंच निजोच्चसंस्थाः स सार्वभौमः खलु यस्य मृतौ ॥ त्रिभिः स्वतुङ्गोपगतैः स राजा नृपालबालोन्यसुतस्तु मंत्री॥१॥ जिसके जन्ममें पांच उपलक्षणसे चारभी ग्रह उच्चके हों तो राजवंशी समस्त पृथ्वीका राजा चक्रवर्ती होवे अन्य कुलोत्पन्न राजाही होवै। यदि तीन ग्रह उच्चके हों तो राजपुत्र राजा होवे, अन्यजात मंत्री होवै. अथवा स्वकुलानुमान श्रेष्ठता पावै ॥१॥ गुरावुच्चे केन्द्रे भवति दशमे दानवगुरौ जनुः काले मुद्रा विलसति समुद्रावधि भृशम् ॥ गुरौ कर्के चापे भवति च सचन्द्रे दिनमणौ । बुधे तुङ्गे लगे बलवनि खगे वा नरपतिः॥२॥
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