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भावकुतूहलम्-
[ग्रहावस्थाफलम्
त्रयोदशोऽध्यायः॥
अथ ग्रहाणां बालाद्यवस्थाफलानि । बालो रसाशैरसमे प्रदिष्टस्वतः कुमारो हि युवाथ वृद्धः॥ मृतःक्रमादुत्क्रमतः समक्ष बालाद्यवस्थाः कथिता ग्रहाणाम् ॥ ३॥ फलं तु किंचिद्धि तनोति बालाश्चार्द्ध कुमारः प्रयतेन पुंसाम् ॥ युवा समग्रं खचरोऽथ वृद्धः फलं च दुष्टं मरणं मृताख्यः॥२॥
अब बालादि अवस्था कहते हैं कि, विषम राशिके प्रथम ६ अंशमें ग्रह हो तोबाल अवस्था, ७ से १२ अंशपर्यंत कुमार, १३से १८ लौं युवा, १९ से २४ पर्यंत वृद्ध, २५ से ३० पर्यंत मृत्यु अवस्था होती है, समराशिमें ग्रह हो तो विपरीत अर्थात् प्रथम ६ अंश पर्यंत मृत्यु, ७ से१२ पर्यंत वृद्ध,१३ से १८ पर्यंत युवा १९से २४ लौं कुमार, २५ से ३० पर्यंत बाल अवस्था होती है इनके फल ये हैं कि बाल अवस्थावाला ग्रह अपना पूर्वोक्त फल थोडा देता है, कुमारमें आधा; युवामें समस्त, वृद्ध में अनिष्ट फल और मृत्युवाला मृत्युही देता है ॥ १॥॥२॥
. अथ दीप्ताद्यवस्थाः। उच्चे दीप्तः स्वभेस्वस्थो मित्रभे हर्षिता भवेत् ॥ शांतः शोभनवर्गस्थोऽतिशस्तो दीप्तदीधितिः ॥३॥ 'लुप्तोस्ते नीचभे दीनः पीडितः पापशभ॥ एवमष्टौ नभोगानां भावा दीप्तादिभेदतः॥४॥
अब अन्य प्रकार दीप्ताद्रि अवस्था कहते हैं कि, जो ग्रह अपने उच्च राशिमें हैं वह दीप्त अवस्थाका एवं अपनी राशिमें स्वस्थ, मित्रकी राशिमें हर्षित,शुभग्रहकी राशि अंशादियोंमें शांत,उदयका
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