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भावकुतूहलम् ।
[ पुत्रभाव:
राहु जन्मलन से ३ । ६ । ११ । भावों में से किसी में हो और समस्त शुभग्रह उसे देखें अथवा शुभग्रह युक्त हो तो अरिष्टरूपी जालके नाश करता है जैसे (नगजा ) पार्वती के पति शिव तीन प्रकारके ताप शांत करते हैं ॥ १० ॥
अधिकबलयुता जनुर्नभोगा यदि सकला नरराशिगा भवति ॥ हितभवननिजोच्च गेहगा वा बहुतरमाशु लयं प्रयाति रिष्टम् ॥ ११ ॥
इति भावकुतूहलेऽरिष्टभंगाध्यायः पञ्चमः ॥ ५ ॥ जन्मसमयमें बलवान् ग्रह ( पुरुष ) विषम राशियों में सभी हों अथवा मित्रके घरमें, अपने उच्चराशिमें हों तो बहुत प्रकारके अरिष्ट नाश होते हैं ॥ ११ ॥
इति भावकुतूहले माहीधरीभाषाटीकायामारेष्टभंगाध्यायः पंचमः ॥ ५ ॥ षष्ठोऽध्यायः । पुत्रकारकयोगः ।
नन्दनाधिपतिना युतेक्षितं नन्दनं शुभनभोगसंयुतम् ॥ नन्दनागमनमेव सत्वरं व्यत्ययेन नहि नन्दनागमः ॥ १ ॥
गृहस्थको संतान उत्पन्न करना मुख्य कर्तव्य है परंतु यह देवा धीन है इसलिये प्रथम संतान भाव विचार करते हैं कि, पंचमभावेश पंचम भावमें हो अथवा पंचमभावको देखे तथा पंचमभाव शुभग्रहसे युक्त हो तो शीघ्र पुत्र उत्पन्न होगा. यदि उक्त प्रकारसे विपरीत अर्थात् पंचमेश तथा शुभग्रह पंचममें न हों उसे न देखें पापग्रह पंचम में हो तथा पंचमको देखें तो पुत्रसुख न होवे ऐसे योग जन्म, वर्ष, प्रश्न, सभीमें देखे जाते हैं ॥ १ ॥
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