________________
(१३६) भावकुतूहलम्- [ग्रहावस्थाफलम्-]
शांत ग्रहवाला मनुष्य अति शांतस्वभाव, सर्वदा युवराजोंका राजा होवै, अथवा युवराज (भविष्यराजा) होवै, बडा तेजमान होवै, बहुत मनुष्योंके साथ रहै, अनेक प्रकारके निर्मल गद्यपद्यसहित विद्याओंके अभ्यासमें तत्पर रहै और निश्चय धनयुक्त सर्वदा रहै ॥ ८॥
शस्ते विशेषाद्विदुर्गा प्रशस्तः प्रशस्तवेषो गतरोग संघः ॥ विशालमालालसितोऽमलोक्त्या नरो नराणामधिपः प्रधानः॥९॥
शस्त ग्रहका फल है कि मनुष्य विशेषतासे विद्वानोंका प्रशंसनीय (श्रेष्ठ) होवै, सुंदर सुहावना वेष (सजीला जवान ) होवै, निरोग रहे, बडी कीमती मालासे भूषित रहै और निर्मल वाणीकरके मनुष्योंका स्वामी किंवा प्रधान (श्रेष्ठ) होवै ।। ९॥
लुप्ते च लुप्तो गुणधर्मभावैः प्रपीडितोरातिकुलेन मर्त्यः ॥ भवेद्विरक्तो गदजालयुक्तो प्रमादशाली खलु पापमाली ॥१०॥ लुप्त ग्रहका फल है कि मनुष्य गुण तथा धर्मके कामोंका लोप कर अर्थात् निर्गुणी, विधर्मी होवै, शत्रुकुलसे पीडित (दुःखी) रहे, गृहस्थीसे विरक्त रहे, अनेक रागोंसे युक्त रहै प्रमादी होवै पाप करनेवाला होवे ॥१०॥
दीनेतिदीनो मतितोषहीनो जनो जनेशादिनिपीडितश्च ॥ गुणेन हीनः परदारलीनः परार्थहारीच
कुभूमिचारी ॥११॥ — दीनग्रहवाला मनुष्य अतिदीन (गरीब ) होता है, बुद्धिहीन, संतोषरहित, राजा आदिसे पीडित गुणहीन पराई स्त्रीमें आसक्त, परायाधन चोरानेवाला और निषिद्ध भूमिमें फिरनेवाला होताहै११
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com