________________
(१६६) भावकुतूहलम्- [दशाफलम्
रिपुराशिस्थग्रहदशाफलम् । मनोजवेगो रिपुवर्गभीतिः कृशत्वमर्थक्षतिराप्तिबाधा ॥ दशा यदारातिगृहस्थितस्य तदा नरस्य
प्रकृतिश्चला स्यात् ॥ १७ ॥ 'जो ग्रह शउराशिमें हो उसकी दशामें मनुष्यको कामदेवका बडा वेग रहता है, शत्रुपक्षसे भय, शरीरमें कृशता, धनकी हानि, आमँदमें विन वा विलम्ब होता है, स्वभाव भी चलायमान हो जाता है बुद्धि ठिकाने नहीं रहती ॥ १७॥
____ अथ रोगेशदशाफलम्। रोगाधीशदशाऽबला जनकलिं रोगागमं जन्मिनामाधिव्याधिमरिव्रजवणगणातहूं कलई खलात् ॥ मानध्वंसमतिक्षयं कलयति ज्ञानार्थनाशं तथा चित्तव्याकुलता च पापवशतो धातुक्षयं प्रायशः॥१८ । निर्बल रोगेश (षष्ठेश ) की दशा-मनुष्योंके स्वजनके साथ कलह, रोगकी उत्पत्ति, मानकी चिन्ता, रोग, शत्रुसमूहकी वृद्धि, व्रण (घाव ) समूहोंसे क्लेश, दुष्टजनोंसे कलंक (झूठा अपवाद ) मानका विध्वंस, बुद्धिका नाश, ज्ञानका व धनका नाश, चित्तमें व्याकुलता और पापके वशसे धातुक्षय करती है ॥ १८॥
अष्टमेशदशाफलम्। निधनभावपतेरवनीपतेरतिभयं गदजालभयं
दशा॥कलयति स्वजनस्य विनाशनं निधनता: मपि वा भविनामिह ॥ १९॥
अष्टमेशकी दशा जन्मियोंको राजासे बडा भय, रोगसमूहोंका भय, अपने मनुष्योंका नाश और मृत्युका भयभी देती है ॥ १९॥
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com