________________
(१७०) भावकुतूहलम्- [गर्वितादिदशायो मन्दारियुतेक्षितोऽरिभगतः खेटः क्षुधापीडितो यः पापारियुतेक्षितो न च शुभैदृष्टस्तृषार्तोम्बुभे ॥ गढियो मुदितोऽथ लज्जित इति प्रक्षोभितः कीतितो विद्भिः संक्षुधितस्तृषार्त इह षड्भावा ग्रहाणाममी२॥
जो ग्रह शनि अथवा शत्रग्रहसे युक्त वा दृष्ट हो और शत्रुराशिमें हो वह क्षुधापीडित और जो पापग्रहसे, शत्रुग्रहसे युक्त दृष्ट हो परन्तु शुभग्रह उसे न देखे चतुर्थस्थानमें हो वह तृषार्त होताहै, गर्वित, मुदित २, लजित ३, क्षोभित ४, क्षुधितो५, तृषार्त ये छः भाव ग्रहोंके विद्वानोंने कहेहैं ॥२॥
गर्वितादिभावफलम्। क्षुधितः क्षोभितो वापि यत्र तिष्ठति तं बलात् ॥ विनाशयति पुष्णाति मुदितो गर्वितो ग्रहः ॥ ३॥ 'क्षुधित तथा क्षोभित ग्रह जिस भावमें हो उसका जबरदस्ती नाश करता है । जिसमें मुदित वा गर्वित ग्रह हो उस भावको पुष्ट करताहै ॥३॥
कर्मभावगतो यस्य लज्जितस्तृषितोऽथवा ॥ क्षोभितः क्षुधितो वापि स दरिद्रो नरो भवेत् ॥४॥ जिस मनुष्यक दशमभावमें लजित अथवा तृषित यद्वा क्षोभित और क्षुधित ग्रह हो वह दरिद्र होताहै ॥ ४॥
लज्जितः पुत्रभावस्थः पुत्रनाशकरो मतः॥ क्षोभितस्तृषितो यस्य सप्तमे स्त्री न जीवति ॥ ५॥
लाजितग्रह पंचमभाव में हो तो पुत्रनाश करनेवाला कहाहै । जिसका क्षोभित वा तृषित ग्रह सप्तमभावमें हो उसकी स्त्री नहीं बचती है ॥५॥
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com