Book Title: Bhavkutuhalam
Author(s): Jivnath Shambhunath Maithil
Publisher: Gangavishnu Shreekrushnadas

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Page 166
________________ पञ्चदशः १५] भाषाटीकासमेतम् । (१५७) साहसके कर्म, अमिकर्म, धातुसम्बन्धिकर्म, शस्त्रकर्मसे, बुध हो तो काव्य और कलापोंके समूहसम्बन्धी कर्मसे, बृहस्पति हो तो लवण व्यापारसे, ब्राह्मण एवं सुवर्ण, हाथी, देवतासम्बन्धि कर्मसे, शुक्र हो तो मणि, गौ, चान्दी समूहसम्बन्धी कृत्यसे जीविका मिले ऐसे . जानना ॥ ४८॥ रविजे श्रमभारनीचतः स्यादिह कर्मेशभवांशनाथवृत्तिः ॥ हितवरिनिजसंतुङ्गसंस्थैहितवैरिस्ववशाधनाप्तिरुचैः॥४९॥ शनि हो तो श्रम (मेहनत ) भार ढोना, नीचकर्म (गुलामी आदि) से आजीविका होवे यह कर्मेश (दशमेश ) जिस नवांश कमें हो उसका जो स्वामी है उसकी उक्त आजीविका मनुष्यकी होती है। वह ग्रह मित्रराशि अंशकोंमें हो तो मित्रपक्षसे, शत्रुमें शत्रुसे, स्वराशिमें अपने पराक्रमसे, उच्चमें अकस्मात् बडे लोगोंसे धनप्राप्ति या आजीविका होती है ॥ १९॥ __ अथायभावविचारः। लाभेशो यदि केन्द्रस्थो लाभाधिक्यं प्रजायते ॥ षडादित्रयगे नीचे लाभबाधा नृणां सदा॥५०॥ ___ अब ग्यारहवें भावका विचार कहते हैं-कि लाभेश यदि केंद्रमें हो तो मनुष्यको लाभ अधिक होता है। यदि ६।८।१२ भावमें यद्वा नीचराशिमें हो तो लाभकी बाधा करता है ॥ ५० ॥ आदित्येन युतेक्षिते नृपकुलाल्लामालये चौरतो लाभो नित्यमथेन्दुनागजजलप्रोद्भूतवामाजनैः॥ | भूपुत्रेण विचित्रयानमणिभूस्वर्णप्रवालादिभि जतोश्चन्द्रसुतेन शिल्पलिखनव्यापारयोगैरलम् ५५ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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