Book Title: Bhavkutuhalam
Author(s): Jivnath Shambhunath Maithil
Publisher: Gangavishnu Shreekrushnadas

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Page 167
________________ (१५८) भावकुतूहलम्- [भावविचारः] सूर्य ग्यारहवें स्थानमें युक्त हो अथवा सूर्य इस भावको देखे तो राजकुलसे, तथा चोर मनुष्यसे नित्य लाभ होवे । उक्त प्रकारसे चन्द्रमा हो तो हाथी, जलसंबंधीकृत्यसे तथा स्त्रीजनोंसे, मंगल हो तो अनेक प्रकारके वाहन, मणि (रत्न) भूमि, सुवर्ण, मूंगा आदिसे, बुध हो तो शिल्प (कारीगरी) लिखना व्यापार आदि कृत्योंसे मनुष्यको लाभ होता रहै ॥५१॥ । जीवेनापि नरेशयज्ञगजभूज्ञानक्रियाभिः सिते. नालं वारवधूगमागमगुणव्याख्यानमुक्ताफलैः॥ मन्देनापि गजवजव्यसनभूनीलेन्द्रलोहबजैरित्थंवत्र बहुग्रहैरभिहितो नानार्थलाभो बुधैः॥५२ उक्त प्रकारका बृहस्पति हो तो.राजासे, यज्ञकृत्यसे, हाथी एवं भूमिसंबंधी कृत्यसे, ज्ञानसंबंधी क्रियाओंसे लाभ होवै । शुक्र हो तो निश्चय वारांगना (वेश्या) ओंके (गमागम ) कुकर्मआदिसे, तथा गुणोंके व्याख्यानसे, मोतियोंके व्यापारसे और शनि हो तो हाथियों के समूहकृत्य, यद्वा गोठ (गोपालकृत्य) व्यसन (धूत आदि) भूमि कृत्य, नीलम, लोहा आदिसे होवे । यदि लाभभावमें बहुत ग्रह हों वा उसे देखें तो बहुत ही प्रकारसे धन मिले यह पूर्वपंडितोंने कहा है॥५२॥ अथ व्ययभावविचारः । शुभग्रहाः प्रयच्छन्ति व्ययस्था विपुलं धनम्॥ विपरीतं खला जन्तोर्जन्मकाले विशेषतः ॥५३॥ बारहवें भावका विचार है-कि, व्ययभावमें शुभग्रह हों तो बहुत धन देते हैं तथा पापग्रह विपरीत फल जन्मकालमें विशेषतासे करते हैं ॥५३॥ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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