Book Title: Bhavkutuhalam
Author(s): Jivnath Shambhunath Maithil
Publisher: Gangavishnu Shreekrushnadas

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Page 165
________________ (१५६) मावकुतूहलम् [ भावविचार:लग्रादिन्दोर्दशमभवने जन्मकाले नराणा| मादित्यायैः क्रमत उदिता जीविका खेचरेंद्रैः॥ । तातान्मातुर्निजरिपुकुलान्मित्रपक्षात्सहोत्थात् पल्याः पुत्रादपि बुधवरैतिक विशेषात् ॥ ४६॥ । लग्नसे अथवा चन्द्रमासे दशमस्थानमें जो ग्रह मनुष्यके जन्मकालमें हों उसक अनुसार कर्मसे वा सम्बन्धसे आजीविका (योगक्षेम) होता है । दशममें कोई ग्रह न हो तो दशमेशसे कहना । सूर्य हो तो पितासे वा पितावाले कर्मसे, ऐसेही चन्द्रमा हो तो मातासे, मङ्गल हो तो शत्रुकुलसे, बुध हो तो मित्रपक्षसे, बृहस्पति हो तो भ्रातृपक्षसे, शुक्र हो तो स्त्रीसे, शनि हो तो पुत्रसे कर्माजीविका, विशेषतः जातक जाननेवाले पण्डितोंने कही है ॥ १६॥ रविशीतकराङ्गकर्मपानां नरवृत्तिः कथिता लवेशवृत्त्या ॥ कनकोणतृणौषधैर्दिनेशे कृषिदाराम्बुसमा श्रयाच चन्द्रे ॥४७॥ दूसरा प्रकार कहते हैं-कि, सूर्य तथा चन्द्रमा और लग्नराशि इनसे दशम स्थानोंके स्वामी जो ग्रह हों वे जिस ग्रहसे अंशमें हों उन ग्रहोंकी वृत्ति (आजीवनोपाय ) मनुष्यकी होती है। जैसे सूर्य जीविकादाता हो तो सुवर्ण, ऊन, तृण (घास आदि) औषधि अनादिके सम्बन्धसे, चन्द्रमा हो तो कृषी (खेती ) के कर्म, जलकर्म स्त्रीके आश्रयसे आजीवन होता है ॥ १७ ॥ अथ साहसवह्निधातुशस्त्रैः क्षितिजे काव्यकलापतोशे ॥ लवणद्विजकांचनेभदेवैर्मणिरौप्यचयः क्रमाच्च गुवाः॥४८॥ इससे उपरांत फल है-कि,मङ्गल कर्माजीविका देनेवाला हो तो Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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