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भावकुतूहलम्- [ भावविचार:लग्नसे तथा चन्द्रमासे नवमस्थान श्रेष्ठ आचार्योंने भाग्य (ऐश्वर्य वा प्रारब्ध)का स्थान कहा है इसीलिये इस नवम भावसे ज्योतिषी प्रथम यत्नपूर्वक भाग्यका विचार करै। भाग्यभाव नवमस्थानको कहते हैं यह जन्मसमयमें भावेश एवं शुभ ग्रहोंसे युक्त दृष्ट हो तो मनुष्यका भाग्य शुक्लपक्षकी चन्द्रमाकी कलाके समान प्रतिदिन फैलता (बढता) है ॥ ३८॥
सहोत्थपुत्राङ्गगतो ग्रहश्चेद्भाग्यं प्रपश्येद्यदि वा सवीर्यः॥ हिरण्यमाली खलु भाग्यशाली प्रसूतिकाले यदि यस्य जन्तोः ॥ ३९॥ जिस मनुष्यके जन्ममें यदि ३।५।१ भावस्थित ग्रह बलवान हो तथा नैसर्गिक दृष्टिसे नवम भावको देखे तो वह सुवर्णमाला पहरनेवाला धनवान तथा भाग्यवान होवे ॥ ३९॥ निजोच्चभे पुण्यगृहे नभोगो बलियंदा तिष्ठति जन्मकाले॥ स पुण्यशाली नवरत्नमाली धराधिपो राजकुलप्रसूतः ॥४०॥
अपनी उच्चराशिका कोई ग्रह बलवान् नवमस्थानमें जन्मकालका जिसका हो वह पुण्यवान्, नवरत्नोंकी माला पहिरनेवाला होवै, राजवंशमें उत्पन्न भया हो तो राजाही होवै ॥४०॥
जीवज्ञशुक्रा नवमे बलिष्ठाः सुतेशदृष्टा यदि जन्मकाले ॥ स पुण्यकर्ता नृपतेरमात्यो नेपाल जातो नरपालवर्यः॥४१॥ जिसके जन्मकालमें बृहस्पति, बुध और शुक्र नवमस्थानमें बलवान हों उनपर पंचमभावेशकी दृष्टिभी होतो वह मनुष्य पुण्य करनेवाला, राजाका मन्त्री होवे, राजवंशीका यह योग हो तो श्रेष्ठ राजा होवे ॥४१॥
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