Book Title: Bhavkutuhalam
Author(s): Jivnath Shambhunath Maithil
Publisher: Gangavishnu Shreekrushnadas
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[दशाफलम्
(१६२)
भावकुतूहलम् ।
अथ भोमस्य फलानि। अनलगरलभीतिः शस्त्रघातो नराणामरिगणनृप चौरव्यालशङ्काकुलत्वम्॥क्षितिसुतपरिपाके कामिनीपुत्रकष्टं भवति वमनमाधियाधिरर्थक्षतिश्च ॥७॥
मंगलकी दशामें मनुष्योंको अग्नि, विषका भय, शस्त्रसे घाव होवे शत्रुजन तथा चोर, राजा, सर्पसे भय होनेकी शंका एवं व्याकुलता होवैः स्त्रीपुत्रोंको कष्ट मिले, वमन(वांति)का रोग होवे. मानसी चिंता, रोग और धनहानिभी होवै॥७॥
अथ राहोः फलानि। राकेशारातिपाके नृपकुलवशतो द्रव्यनाशो विनाशो मानस्यातीवरोगागमनमपि नृणां तातकष्टं विशेषात् ॥ कान्तापत्याकुलत्वं हितजनखलताऽरातिरायाति सम; 'व्यामोहागारमंतःपरित उत ततातुंगताताईता वा॥८॥
राहुकी दशामें मनुष्योंको राजकुलके वशसे धनका नाश, मानका विनाश होवै, बहुतरोग उत्पन्न हो, तथा विशेषतः पितृकष्ट मिले, स्त्रीपुत्रोंकी ओरसे व्याकुलता रहे, मित्रजनोंके साथ दुष्टता होवै. शत्रु चढकर मकानहीपर आजावे.चित्तमें चारों ओरसे अज्ञानता आवे, नीचत्वको प्राप्त करे और भययुक्त रहै ॥८॥
अथ गुरुदशाफलम् । उर्वी गुर्वी समायात्यवनिपतिकुलानायकत्वं जनानां कान्तादन्ताबलाग्रागमइहकमलालंकृतावासशाला॥ मैत्री सद्भिर्महद्भिर्गुरुजनगरिमा कालिमारातिकास्ये हृद्या विद्यानवद्या भवति च वचसामाशितुः पाककाले॥
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