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(१६०) भावकतुहलम्
[ दशानयनम्दशाभुक्तभोग्यानयनम् । गतक्षनाडीनिहता दशाब्दर्भभोगनाड्या विहृता
फलं यत् ॥ वर्षादिकं भुक्तमिह प्रवीणैर्नोग्यं । दशाब्दान्तरितं निरुक्तम् । ३॥
नक्षत्रकी भुक्तघटीको जिस ग्रहकी दशा प्रथम है उसके वर्षों से गुणकर नक्षत्रके सर्वभोगसे भाग देना लब्धि वर्ष, मास, दिन, घटी, क्रमसे उस ग्रहकी भुक्त दशा होती है, इसको ग्रहके वर्षों में घटायके भोग्य दशा होती है. अन्य ग्रहोंके पूरे वर्ष जोडते जाना यह विंशोत्तरी उडुदशा होती है.उदाहरण है कि, यह भरणी नक्षत्र भुक्त २४।२० भोग्य ३९।५ सर्व भोग्य ६३ । २५ । नक्षत्रभुक्त २४॥ २० को भरणीमें प्रथम दशापति शुकके वर्ष २० से गुणा किया पलात्मक २९२०० हुआ इसमें सर्वभो ग्य ६३ । २५ पलात्मक ३८०५ से भोग लिया तो लाभ (७) वर्ष हुए शेष २५६९ को १२ से गुणा किया ३०७८० इसे पुनः ३८०९ का भाग लेनेसे लाभ (८) महीना मिले शेष३४०को ३० से गुणा किया१०२०० इसमें भी उसी हारसे भाग लिया तो लब्धि दिन (२) मिले शेष २५९० को ६० से गुणाकर १९५४०० इसमें भाग लेनेसे लाभ (४०) घटी मिली यह भुक्तदशा शुक्रकी हुई, इसको शुक्रके वर्ष २० में घटाया तो शेष १२ वर्ष, ३ महीने, २७ दिन, २० घटी शुक्रके भोग्यदशा रही, इसमें सूर्यके वर्ष ६ जोडनेसे १८।३। २७।२० इतने वर्षादि पर्यन्त सूर्यदशा होती है ऐसेही सभी ग्रहोंके वर्षादि जानने ॥ ३॥
___ अन्तर्दशा-विदशाकरणम् । दशा दशाहता कार्या विहृता परमायुषा ॥ अंतर्दशाक्रमादेवं विदशाप्यनुपाततः॥४॥
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