Book Title: Bhavkutuhalam
Author(s): Jivnath Shambhunath Maithil
Publisher: Gangavishnu Shreekrushnadas

View full book text
Previous | Next

Page 146
________________ चतुर्दशः १४] भाषाटीकासमेतम् । (१३७) पीडिते गदनिपीडितः सदा चिन्तया च परया समन्वितः॥ व्यग्रितो बहुमदोद्धतः पुमानाधिरोगसहितो विशेषतः ॥ १२ ॥ इति भावकुतूहलेपहावस्थाफेलाक्तोत्रयोदशोऽध्यायः ॥ १३ ॥ पीडित ग्रहसे मनुष्य सर्वदा रोगपीडित बडी चिंतास युक्त (व्यय) बेफुर्सत, बडे मदसे उन्मत्त रहता है तथा ( आधि ) मानसी दुःखसे दुःखी विशेषतः रोगी रहता है ॥ १२॥ इति भावकुतूहले माहीधरीभाषाटीकायां ग्रहावस्थाफलाऽध्यायः॥१३॥ अथ मारकविचाराध्यायः। चतुर्दशोऽध्यायः॥ शने मारकत्वनिरूपणम् । मारकग्रहसम्बन्धात् पापकर्ता शनिस्तदा ॥ तिरस्कृत्य ग्रहान्सान्निहंता भवति ध्रुवम् ॥१॥ अब मारकाध्याय कहते हैं समस्त ग्रहोंमें मृत्युकारक यमका भाई होनेसे शनि विशेष है इसलिये वक्ष्यामाणविधिसे मारकत्व जो ग्रह पावै उसके साथ चार प्रकारों से किसी प्रकार संबंध शनि पावै तो मारक ग्रहोंको हटायकर आपही मारक होजाता है अपने मार कत्व होनेमें तो क्याही बाकी रहेगा ॥१॥ भवनाधिपानांशुभाशुभसंज्ञा। त्रिकोणभवनाधिपाः शुभफलास्तु सर्व ग्रहास्त्रिवैरिभवभावपाः खलफला निरुक्ता बुधैः ॥ भवंति यदि केन्द्रपाः शुभखगा न शस्ता नृणा- " मतीवशुभदायकाः खलखचारिणो जन्मनि ॥२॥ त्रिकोण ९। ५ स्थानोंके कोई ग्रह स्वामी हों तो शुभसंज्ञक एवं शुभ फल देनेवाले होतेहैं और ३।६।११ भावोंके स्वामी Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186