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भावकुतूहलम्- [ मारकादियोगा:चन्द्रमा कर्क राशिका पंचमभावमें और शनि लाभभावमें हो तो अनेक प्रकार धनोंकी समृद्धि धर्मकी वृद्धि और राजत्वभी होवे ॥१७॥ पंचमे तु मृगे कुंभे समन्दे यस्य जन्मनि ॥ बुधे लाभालये तस्य सर्वतो द्रविणोन्नतिः॥१८॥ जिसके जन्मलग्रसे शनि१०।११का पंचमभावमें तथा बुध ग्यारहवें भावमें हो उसको सर्वप्रकारसे धनकी वृद्धि होती रहै ॥१८॥ पंचमे तु रवौ सिंहे लाभे देवगुरौ सदा॥ वाहनस्वर्णरत्नानामधिपो जायते क्षणात् ॥ १९॥
सूर्य सिंहराशिका पंचमभावमें हो, बृहस्पति लाभ ११ भावमें हो तो सर्वदा वाहन (हाथी घोडे आदि)तथा सुवर्ण रवोंका स्वामी अकस्मात् ही होवै॥ १९॥ पंचमे तु गुरुक्षेत्र सगुरौ यदि जन्मनि ॥ लाभगाविंदुभूपुत्रौ पृथ्वीपतिसमो नरः॥२०॥
यदि जन्मकालमें पंचममें बृहस्पति अपनी राशि ९।१२ का हो तथा लाभभावमें चंद्रमा मंगल हो तो मनुष्य राजाके समान होवै२०
रविक्षेत्रगते लग्ने रविणा संयुते सति ॥ गुरुभौमयुते वापि धनाधिक्यं दिने दिने ॥२१॥ सूर्य लग्नमें सिंहका हो अथवा बृहस्पति मंगल करके युक्तभी हो तो दिनोदिन धनकी अधिकता होती रहे ॥२१॥
कर्कमे जन्मलने तु सचन्द्रे यदि जन्मनि ॥ संयुते जीवभौमाभ्यां स सद्यो वित्तपो भवेत्॥२२॥ जिसके जन्ममें कर्क लग्र हो उसमें चंद्रमाभी हो और मंगल बृहस्पतिसे युक्त हो तो अकस्मात् धनका स्वामी होवे ॥ २२ ॥
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