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पञ्चदशः १५] भाषाटीकासमेतम् । (१४७) धनाधिपो माननवायभावे बली यदा तिष्ठति जन्मकालेारमा विहारालयवासिनी वा निजोच्चमित्रालयगो जनानाम् ॥ १०॥
यदि जन्मकालमें बलवान् धनभावेश दशम, नवम, लाभ भाव में हो अथवा अपने उच्च, मित्र राशिमें हो तो लक्ष्मी उसके विहार करनेके घरमें निवास करे॥१०॥
__अथ तृतीयभावविचारः। सहजे सहजाधीशे षडादित्रयगेऽपि वा।। सहजेऽपि विशेषेण भ्रातुः सौख्यं न जायते ॥६॥ तीसरे भावका विचार है-कि, तृतीयभावका स्वामी तीसरा हो अथवा छठे आदि ३ में हो तो भाइयोंका सुख न होवै, विशेषसे सहजभावमें यह विचार है क्योंकि ग्रंथों में लिखा है कि जिस भावका स्वामी अपने गृहमें रहता है उसकी वृद्धि करता है यहां श्लोकार्थविरुद्ध प्रतीत होताहै परंतु ग्रंथकर्ताका आशय 'अपि तथा विशेशब्दसे है कि, बहुत सुख भाइयोंका न होवे क्योंकि भाइयोंको दायाद (पितृधनलेनेवाले) कहते हैं कैसाही भाइयोंमें मेल हो परंतु कभी न कभी किसी प्रकारकी शत्रुता होती है ॥ ११ ॥
सहोत्थभावेशकुजो सपापों पापालये वा भवती जनस्य ॥ उत्पाद्य सद्यो निहतः सहोत्थानितीरितं जातकवत्त्वविज्ञैः ॥ १२॥
तृतीयभावेश तथा मंगल पापयुक्त हों वा पापराशिमें हों तो मनुष्यके भाई जन्म पाकर मरते हैं, इस प्रकार जातकोंके तत्त्व: जाननेवाले कहते हैं ॥ १२॥ स्त्रीखेटः सहजाधीशः शुक्रो वाथ निशाकरः॥ तत्रगो भगिनी दत्ते भ्रातरं पुरुषग्रहः ॥ १३ ॥
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