Book Title: Bhavkutuhalam
Author(s): Jivnath Shambhunath Maithil
Publisher: Gangavishnu Shreekrushnadas

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Page 160
________________ पञ्चदशः १५] भाषाटीकासमेतम् । (१५१) गुरुर्नासामध्ये पदनयनयोरेव भृगुजः शनी राहु-केतुव्रणमुदरभागे जनिमताम् ॥ २६ ॥ उक्तयोगकारक यद्वा षष्ठेश सूर्य हो तो शिरमें, चंद्रमा मुखमें, मंगल कंठ (गले) में,बुध नाभीके समीप,बृहस्पति नाकके बीचमें, शुक पैर तथा नेत्रोंमें, शनि राहु केतु उदर (पेट) में मनुष्योंके व्रण (खोट आदि) अवश्य करते हैं ॥ २६ ॥ लग्नेशो यदि भौमभे बुधयुतो रोगं मुखे जन्मिनां रोगाङ्गाधिपती यदाकुजबुधौ चन्द्रेण वा राहुणा॥ मन्देनापि युतौ प्रयच्छत इति प्रायोङ्गगोरात्रिपो यक्तो वा तमसा सितं च शनिना कुष्ठं तदा। श्यामलम् ॥२७॥ यदि लग्नेश मंगलकी राशिमें बुधसहित हो तो मनुष्योंके मुखमें रोग रहे, लग्नेश तथा षष्ठेश बुध मंगल हों और चंद्रमा अथवा राहु या शनिसेयुक्त हों तो कुष्ठ समान रोग होता है । विशेषतः चंद्रमा लग्नमें राहुसे युक्त हो तो श्वेतकुष्ठ और शनियुक्त हो तो कृष्णकुष्ठ होवै॥२७॥ अथ सप्तमभावविचारः। विना स्वः कलत्रेशस्निकस्थानगतो यदि ॥ रोगिणी तरुणी दत्ते तथा तुङ्गपदं विना ॥२८ ॥ यदि सप्तमभावेश त्रिक६।८।१२। भावमें हो अपनी राशि छोडकर तथा उच्चराशि नवांशमें हो तो स्त्री रोगिणी मिले ॥२८॥ जायास्थानगते शुक्र कामी भवति मानवः॥ पापभे पापसंयुक्ते कवी नारीसुखोज्झितः ॥२९॥ जिस मनुष्यका शुक्र सप्तम हो वह कामी (अतिस्त्रीसंग चाहने Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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