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त्रयोदशः १३]
भाषाटीकासमेतम् ।
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अतिशस्त, अस्तंगत लुप्त, नीचराशिमें दीन, पापराशि वा शत्रुराशिमें पीडित होता है ऐसे दीप्तादि भेदों में ग्रहों के ८ भाव हैं ३-४ ॥
दीप्ते
अथ दीप्तग्रहफलम् ।
मदोन्मत्तगजन्द्रगन्ता सदारिहन्ता वरतीर्थगन्ता ॥ कान्तोमनस्वीनितरां यशस्वी प्रदीप्तवेषो मनुजोमहीपः५. दीप्त ग्रहका फल यह है कि मनुष्य मदसे उन्मत्त हाथी की सवारीमें चलनेवाला, सर्वदा वैरीको मारनेवाला, श्रेष्ठ तीर्थों में जानेवाला; सुरूप, बुद्धिमान्, सर्वदा यशवाला, कांतिमान् राजा होता है५ स्वस्थे गुणागारजयालयानामुपार्जको वैरिविनाशकर्त्ता ॥ नरोप्युदारो नृपपूजितः स्याद्विशालकीर्तिः कमनीयमूर्तिः ६ ॥
स्वस्थ हवाला मनुष्य गुणोंके गृह अर्थात् विद्याशाला आदि तथा जय और गृह इनका उपार्जक ( कमानेवाला) तथा शत्रुका विनाश करनेवाला, उदार, राजपूजित, बडी कीर्तिवाला, सुहावनी मूर्तिवाला होता है ॥ ६ ॥ हर्षिते भवति हर्षितः सदा मित्रपुत्रपरिपूरितो मुदा || धर्मकृन्मणिगणेन मण्डितः परमदैवविपाकविज्जनः ॥७
हर्षित ग्रहका फल ऐसा है कि, मनुष्य सर्वदा खुश रहे, मित्रोंसे तथा पुत्रोंसे सर्वदा प्रसन्नतापूर्वक परिपूर्ण रहे, धर्म करनेवाला होवे, मणियों के समूह से भूषित रहे और दैव (पूर्वार्जित कर्म ) अर्थात् कर्मविपाक आदि ज्योतिष जाननेहारा होवे ॥ ७ ॥ शान्तेतिशांतो युवराजराजो जनो महौजा जनतासमेतः ॥ अनेकविद्यामलगद्यपद्याभ्यासानुरक्तः खलु वित्तयुक्तः ॥ ८ ॥
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